नौजवानो, यहोवा के योग्य चाल चलो
नौजवानो, यहोवा के योग्य चाल चलो
कुछ मसीही युवाओं को थोड़े समय के लिए अपने परिवार और अपनी कलीसिया से दूर रहना पड़ा है। कुछ अपनी सेवा बढ़ाना चाहते थे इसलिए घर से दूर रहे। कुछ लोगों को इसलिए घर से दूर जाना पड़ा क्योंकि वे इस संसार के मामलों में निष्पक्ष रहना चाहते थे। (यशायाह 2:4; यूहन्ना 17:16) इसके अलावा, कुछ देशों में खराई बनाए रखनेवाले युवाओं को “कैसर” ने जेल की सज़ा दी और दूसरों से जनता के लिए काम करवाए। *—मरकुस 12:17; तीतुस 3:1, 2.
निष्पक्ष रहने की वजह से जब नौजवान जेल की सज़ा काटते हैं तो उन्हें काफी समय तक अपराधियों के संग रहना पड़ता है। उसी तरह जब कुछ युवा दूसरे कारणों से, मजबूरन अपने घर से दूर रहते हैं तब उन्हें भी गंदे माहौल में लोगों के साथ काम करना पड़ता है। तो फिर ये नौजवान या दूसरे मसीही किस तरह ऐसे माहौल के दबावों और तनावों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं ताकि वे ‘परमेश्वर के योग्य चाल’ चलने की पूरी कोशिश कर सकें? (1 थिस्सलुनीकियों 2:12) या उनके माता-पिता उन्हें भविष्य में उठनेवाले ऐसे बुरे हालात का सामना करने के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं?—नीतिवचन 22:3.
खास चुनौतियाँ
इक्कीस बरस का टाकिस, जिसे मजबूरन अपने घर से 37 महीने तक दूर रहना पड़ा, कहता है: “उन दिनों मुझे वाकई बड़ी मुश्किल हुई और डर भी लगता था क्योंकि मुझ पर ना तो अपने माता-पिता की छत्रछाया थी, ना ही मेरा भला चाहनेवाले प्राचीनों की निगरानी।” * फिर वह कहता है: “कभी-कभी, मैं अपने आपको बहुत कमज़ोर महसूस करता था।” बीस बरस के पेट्रोस को दो साल से भी ज़्यादा समय तक घर से दूर रहना पड़ा। वह कबूल करता है: “ज़िंदगी में पहली बार मुझे मनोरंजन और दोस्तों के बारे में खुद चुनाव करना पड़ा और कई बार मैं गलत चुनाव कर बैठता था।” फिर वह कहता है: “इस तरह ज़्यादा आज़ादी मिलने से मुझ पर जो ज़िम्मेदारी बढ़ी, उसकी वजह से कभी-कभी मैं बहुत तनाव में आ जाता था।” एक मसीही प्राचीन टासोस, जो ऐसे हालात में रहनेवाले जवान मसीहियों से अकसर मिलता है, उसने कहा: “जो जवान लापरवाह और इरादे के कमज़ोर होते हैं, उन पर अपने अविश्वासी साथियों के बगावती रवैए, गंदी बोली और गुंडागर्दी का बहुत जल्दी असर होने लगता है।”
जब मसीही युवक ऐसे लोगों के साथ रहते या काम करते हैं जो बाइबल सिद्धांतों के लिए कोई कदर नहीं दिखाते, तो उनका मन भी उन्हें अपने साथियों की तरह अनैतिक या परमेश्वर के सिद्धांतों के खिलाफ काम करने के लिए बहका सकता है। सो उन्हें सावधान रहने की ज़रूरत है। (भजन 1:1; 26:4; 119:9) ऐसे में शायद नियमित रूप से निजी अध्ययन करना, सभाओं और प्रचार में जाना बहुत मुश्किल लगे। (फिलिप्पियों 3:16) इतना ही नहीं, आध्यात्मिक लक्ष्य रखकर उनके लिए मेहनत करना भी आसान नहीं होता।
बेशक, वफादार मसीही नौजवान अपने चालचलन और बोली से यहोवा को खुश करना चाहते हैं। स्वर्ग में रहनेवाला उनका पिता, प्यार से उनसे जो अनुरोध करता है, वे हमेशा उसके मुताबिक चलना चाहते हैं: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीतिवचन 27:11) वे यह बखूबी समझते हैं कि उनके तौर-तरीकों और आचार-व्यवहार को देखकर यहोवा और उसके लोगों को आँका जाएगा।—1 पतरस 2:12.
कुलुस्सियों 1:9-11) बाइबल में परमेश्वर का भय माननेवाले ऐसे कई नौजवानों के उदाहरण दिए गए हैं, जिन्हें बिलकुल नए माहौल में रहना पड़ा, जहाँ मूर्तिपूजा का बोलबाला था और उनके विश्वास के लिए खतरा था, फिर भी वे यहोवा के योग्य चाल चलने में कामयाब हुए।—फिलिप्पियों 2:15.
यह सराहने की बात है कि बहुत-से जवान, जी-जान से पहली सदी के अपने भाइयों की तरह बनने की कोशिश करते हैं, जिनके लिए प्रेरित पौलुस ने यह प्रार्थना की थी: “तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, . . . यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।” (“यहोवा यूसुफ के साथ था”
राहेल और याकूब का चहेता बेटा यूसुफ, छोटी उम्र में ही परमेश्वर का भय माननेवाले अपने पिता के आशियाने से दूर हो गया था। उसे मिस्र की गुलामी में बेच दिया गया। इसके बावजूद उसने मेहनती, भरोसेमंद और अच्छे चरित्र के होने का बढ़िया उदाहरण रखा। उसका मालिक पोतीपर, यहोवा का उपासक नहीं था, फिर भी यूसुफ ने दिल लगाकर उसके लिए कड़ी मेहनत की, जिस वजह से उसके स्वामी ने आखिरकार घर का सारा ज़िम्मा उसके हाथ सौंप दिया। (उत्पत्ति 39:2-6) यूसुफ ने हमेशा यहोवा के लिए अपनी खराई बनाए रखी। इस कारण आखिरकार जब उसे कैदखाने में डाला गया, तब भी उसने यह निष्कर्ष नहीं निकाला: “आखिर इसका क्या फायदा?” कैदखाने में भी उसने बढ़िया गुण दिखाए और जल्द ही उसे वहाँ कई कामों की ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं। (उत्पत्ति 39:17-22) परमेश्वर ने उसे आशीष दी और जैसा उत्पत्ति 39:23 कहता है: “यहोवा यूसुफ के साथ था।”
यूसुफ तो परमेश्वर का भय माननेवाले अपने परिवार से बहुत दूर था। इसलिए वह बड़ी आसानी से, आस-पास के झूठे धर्मों के माननेवालों के रंग में रंग सकता था और मिस्रियों की तरह एक अनैतिक ज़िंदगी जी सकता था! लेकिन नहीं, वह परमेश्वर के सिद्धांतों के मुताबिक चलता रहा और सबसे ज़बरदस्त प्रलोभन आने पर भी उसने खुद को भ्रष्ट होने नहीं दिया। जब पोतीपर की पत्नी लैंगिक संबंध रखने के लिए उसके पीछे पड़ गयी, तब उसका साफ और सीधा जवाब यही था: “भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?”—उत्पत्ति 39:7-9.
बाइबल में बुरी संगति, अनैतिक मनोरंजन, पोर्नोग्राफी और गंदे संगीत के खिलाफ जो चेतावनियाँ दी गयी हैं, आज मसीही युवाओं को उन्हें मानने की ज़रूरत है। वे यह कभी नहीं भूलते कि “यहोवा की आंखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं।”—नीतिवचन 15:3.
मूसा ने ‘पाप में सुख भोगने’ से इनकार किया
मूसा फिरौन के राजमहल में पला-बढ़ा, जहाँ मूर्तिपूजा के रस्मों-रिवाज़ मनाए जाते थे और मौज-मस्ती का आलम छाया रहता था। लेकिन बाइबल मूसा के बारे में कहती है: “विश्वास ही से मूसा ने . . . फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।”—इब्रानियों 11:24, 25.
1 यूहन्ना 2:15-17) तो क्या मूसा के उदाहरण पर चलना अच्छा नहीं होगा? बाइबल कहती है कि “वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों 11:27) उसने परमेश्वर का भय माननेवाले अपने पूर्वजों से मिली आध्यात्मिक विरासत पर पूरा मन लगाया। उसने यहोवा के मकसद को अपनी ज़िंदगी का मकसद बनाया और हमेशा उसकी इच्छा पूरी करनी चाही।—निर्गमन 2:11; प्रेरितों 7:23, 25.
संसार के साथ दोस्ती करने से कुछ फायदे ज़रूर मिल सकते हैं मगर थोड़े समय के लिए। और ज़्यादा-से-ज़्यादा तब तक के लिए, जब तक यह संसार है। (परमेश्वर का भय माननेवाले जिन युवाओं को गंदे और खतरनाक माहौल का सामना करना पड़ता है, उन्हें निजी अध्ययन के ज़रिए यहोवा के साथ अपना रिश्ता और मज़बूत बनाना चाहिए। और इस तरह वे उस “अनदेखे” को, और भी करीब से जानने की कोशिश कर सकते हैं। यह ज़रूरी है कि वे सभी मसीही कामों में पूरी तरह हिस्सा लें, जिनमें नियमित रूप से सभाओं और प्रचार में जाना शामिल है। इससे उन्हें आध्यात्मिक बातों पर अपना मन लगाने में मदद मिलेगी। (भजन 63:6; 77:12) उन्हें मूसा की तरह ही मज़बूत विश्वास पैदा करने और पक्की आशा रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। उन्हें यहोवा के सोच-विचार और कामों पर ध्यान लगाना चाहिए; उसके साथ अपनी दोस्ती को उन्हें अनमोल समझना चाहिए।
उसने अपनी ज़बान यहोवा की महिमा के लिए इस्तेमाल की
एक इस्राएली लड़की ने भी घर से दूर रहकर एक अच्छी मिसाल रखी, जब उसे परमेश्वर के भविष्यवक्ता एलीशा के दिनों में आरामी लोग बंदी बनाकर ले गए थे। आरामी सेनापति नामान, जिसे कोढ़ था, वह उसकी पत्नी की दासी बनी। उसने अपनी मालकिन से कहा: “जो मेरा स्वामी शोमरोन के भविष्यद्वक्ता के पास होता, तो क्या ही अच्छा होता! क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता।” उसकी गवाही की वजह से नामान, एलीशा से मिलने इस्राएल गया और उसका कोढ़ ठीक हो गया। इतना ही नहीं, वह यहोवा का उपासक भी बना।—2 राजा 5:1-3, 13-19.
इस लड़की का उदाहरण साफ ज़ाहिर करता है कि युवाओं को अपनी ज़बान, इस तरह इस्तेमाल करनी चाहिए जिससे परमेश्वर की महिमा हो, फिर चाहे वे अपने माता-पिता से दूर ही क्यों न रहते हों। अगर उस लड़की को “मूर्खतापूर्ण बातें” (NHT) या “अश्लील मज़ाक” (नयी हिन्दी बाइबिल) करने की आदत होती तो मौका मिलने पर, क्या वह बिना हिचकिचाहट के इफिसियों 5:4; नीतिवचन 15:2) नीकॉस जो कोई 20-25 बरस का है, उसे निष्पक्ष रहने की वजह से जेल में डाला गया था। उस समय के बारे में याद करके वह कहता है: “जब दूसरे जवान भाइयों के साथ मैं सज़ा के तौर पर खेतीबाड़ी का काम कर रहा था, उस समय माता-पिता या कलीसिया के ज़िम्मेदार भाइयों की नज़र हम पर नहीं थी, तब मैंने गौर किया कि हमारी बातचीत दिन-ब-दिन बदतर होती गयी। और बेशक, ऐसी भाषा से परमेश्वर की महिमा नहीं हुई।” लेकिन खुशी की बात है कि इस मामले में नीकॉस और दूसरों को पौलुस की यह सलाह मानने में मदद दी गयी: “जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो।”—इफिसियों 5:3.
अपनी ज़बान का इतनी अच्छी तरह इस्तेमाल कर पाती? (यहोवा उनके लिए असल था
प्राचीन बाबुल में दानिय्येल के तीन इब्री दोस्तों का अनुभव उस सच्चाई को पुख्ता करता है, जिनके बारे में यीशु ने कहा था कि जो थोड़े में वफादार होता है, वह बड़ी बातों में भी वफादार रहेगा। (लूका 16:10) मूसा के नियम में, जिस भोजन को खाने की मनाही थी, जब उसे लेकर समस्या खड़ी हुई तब वे जवान आसानी से यह तर्क कर सकते थे कि वे तो परदेस में बंधुए हैं इसलिए उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं। लेकिन उन्होंने इस बात को भी गंभीरता से लिया जो शायद देखने में मामूली लगे। और बदले में उन्हें कितनी बड़ी आशीष मिली! वे दूसरे सभी बंधुओं के मुकाबले, जो राजा का शाही खाना खाते थे, ज़्यादा स्वस्थ और बुद्धिमान साबित हुए। इस छोटी-सी बात में उन्होंने जो वफादारी दिखायी, इससे बेशक उनका हौसला बढ़ा और जब मूर्ति के सामने झुकने की एक बड़ी परीक्षा उनके सामने आयी, तो उन्होंने बेधड़क इनकार कर दिया।—दानिय्येल 1:3-21; 3:1-30.
यहोवा इन तीनों नौजवानों के लिए एकदम असल था। हालाँकि वे अपने घर और परमेश्वर की उपासना की खास जगह से दूर थे, लेकिन उनका यह इरादा पक्का था कि वे किसी भी हाल में इस संसार का दाग अपने पर लगने नहीं देंगे। (2 पतरस 3:14) वे यहोवा के साथ अपने रिश्ते को इतना अनमोल समझते थे कि उस पर आँच न आने के लिए, वे अपनी जान की बाज़ी लगाने को तैयार थे।
यहोवा आपको नहीं छोड़ेगा
युवा जिनसे प्यार करते और जिन पर भरोसा रखते हैं, जब ऐसे लोगों से उन्हें दूर रहना पड़ता है तो वाजिब है कि वे तनाव में आ जाते हैं, दुविधा में रहते हैं और डरा हुआ महसूस करते हैं। लेकिन फिर भी, वे हर परीक्षा और प्रलोभन का इस दृढ़ विश्वास भजन 94:14) अगर ऐसे युवा ‘धर्म के कारण दुख भी उठाते’ हैं तो यहोवा है, जो उन्हें “धर्म की बाट” या मार्ग पर चलते रहने में मदद देगा।—1 पतरस 3:14; नीतिवचन 8:20.
के साथ सामना कर सकते हैं कि ‘यहोवा उनको न तजेगा।’ (यहोवा ने यूसुफ, मूसा, इस्राएली दासी लड़की और उन तीन इब्री नौजवानों की लगातार हिम्मत बढ़ायी और उन्हें ढेरों आशीषें दीं। आज जो “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़” रहे हैं, यहोवा उन्हें अपनी पवित्र आत्मा, अपने वचन और संगठन के ज़रिए हिम्मत देता है, इसके अलावा उसने उनके सामने “अनन्त जीवन” का इनाम रखा है। (1 तीमुथियुस 6:11, 12) जी हाँ, यहोवा के योग्य चाल चलना ज़रूर मुमकिन है और ऐसा करना ही बुद्धिमानी है।—नीतिवचन 23:15, 19.
[फुटनोट]
^ पैरा. 2 मई 1, 1996 का प्रहरीदुर्ग, पेज 18-20 देखिए।
^ पैरा. 5 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
[पेज 25 पर बक्स]
माता-पिताओ—अपने बच्चों को तैयार कीजिए!
“जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं।” (भजन 127:4) एक तीर अपने-आप ही निशाने पर नहीं लग जाता। निशाना बड़ी सावधानी से साधना पड़ता है। उसी तरह बच्चे भी माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना, अगर घर-परिवार से दूर जाएँगे तो ज़िंदगी की हकीकतों का सामना नहीं कर पाएँगे।—नीतिवचन 22:6.
जवान अकसर आवेग में आकर कोई भी काम कर बैठते हैं या “जवानी की अभिलाषाओं” के आगे झुक जाते हैं। (2 तीमुथियुस 2:22) बाइबल चेतावनी देती है: “छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है, परन्तु जो लड़का योंही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण होता है।” (नीतिवचन 29:15) अगर बच्चे के चालचलन पर रोक-टोक न लगायी जाए, तो बाद में जब वह घर से दूर होगा तब ज़िंदगी के दबावों और माँगों का सामना करना बहुत मुश्किल पाएगा।
मसीही माता-पिताओं को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए साफ-साफ बच्चे को आज की ज़िंदगी की सच्चाइयों, दबावों और मुश्किलों के बारे में बताना चाहिए। लेकिन इनके बारे में हद-से-ज़्यादा बुराई किए बिना वे अपने जवान बच्चों को बता सकते हैं कि जब वे घर से दूर होंगे तो उनके सामने कैसे बुरे हालात पैदा हो सकते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण और परमेश्वर की बुद्धि की मदद से “भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक” मिलेगा।—नीतिवचन 1:4.
जिन बच्चों के दिल में माता-पिता, परमेश्वर की शिक्षाएँ और भले-बुरे के बारे में उसके सिद्धांत बिठाते हैं, ऐसे बच्चे ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करने के काबिल होते हैं। बच्चे की कामयाबी या नाकामयाबी इससे तय होगी कि क्या उनके साथ नियमित रूप से पारिवारिक बाइबल अध्ययन किया जाता है, दिल खोलकर बातचीत की जाती है और उनकी भलाई के लिए सच्ची चिंता दिखायी जाती है? माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे को परमेश्वर के बताए तरीके से मुनासिब तालीम दें। ऐसी तालीम उन्हें समझदारी से और बच्चे की तरक्की के लिए देनी चाहिए ताकि बड़ा होकर वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके। माता-पिता अपने उदाहरण से बच्चे को सिखा सकते हैं कि इस संसार में रहकर भी इस संसार का भाग न बनना मुमकिन है।—यूहन्ना 17:15, 16.
[पेज 23 पर तसवीर]
कुछ मसीही युवाओं को अपने परिवार से दूर रहना पड़ा है
[पेज 24 पर तसवीरें]
नौजवान लुभाए जाने पर यूसुफ की मिसाल पर चल सकते हैं और अपना चरित्र बेदाग रख सकते हैं
[पेज 26 पर तसवीरें]
उस दासी इस्राएली लड़की की मिसाल पर चलिए जिसने अपनी ज़बान का इस्तेमाल यहोवा की महिमा के लिए किया