“तुम धन्यवादी बने रहो”
“तुम धन्यवादी बने रहो”
“मसीह की शान्ति . . . तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।”—कुलुस्सियों 3:15.
1. मसीही कलीसिया और शैतान की मुट्ठी में बंद इस दुनिया में क्या फर्क है?
दुनिया-भर में, यहोवा के साक्षियों की 94,600 कलीसियाओं में एहसानमंदी की भावना साफ झलकती है। हर सभा की शुरूआत और आखिर में प्रार्थना की जाती है जिसमें यहोवा परमेश्वर का शुक्रिया अदा किया जाता है। और इन सभाओं में जब बूढ़े और जवान, लंबे समय से सेवा कर रहे और नए साक्षी मिलकर उपासना करने और एक-दूसरे के साथ मेल-जोल बढ़ाने के लिए इकट्ठा होते हैं, तब लगभग सभी की ज़बान पर “शुक्रिया,” “धन्यवाद,” “थैंक्यू,” या इस तरह के दूसरे मीठे लफ्ज़ होते हैं। (भजन 133:1) मगर दुनिया की हालत बिलकुल ही उलटी है! दुनिया के ज़्यादातर लोगों में स्वार्थ की भावना नज़र आती है क्योंकि वे ‘यहोवा को नहीं पहचानते, और सुसमाचार को नहीं मानते।’ (2 थिस्सलुनीकियों 1:8) हम एक एहसान-फरामोश दुनिया में जी रहे हैं। और यह हमारे लिए कोई ताज्जुब की बात नहीं है, क्योंकि इस संसार का ईश्वर शैतान यानी इब्लीस है। खुद का स्वार्थ पूरा करने की आग उसी ने लगायी है। और घमंड करने और बगावत करने की उसकी आत्मा इंसानी समाज की रग-रग में समा चुकी है!—यूहन्ना 8:44; 2 कुरिन्थियों 4:4; 1 यूहन्ना 5:19.
2. हमें किस चेतावनी पर ध्यान देने की ज़रूरत है, और हम किन सवालों की जाँच करेंगे?
2 हम शैतान के संसार से घिरे हुए हैं, इसलिए हमें चौकस रहने की ज़रूरत है ताकि हम भी इस संसार के रंग में रंगकर भ्रष्ट न हो जाएँ। पहली सदी में प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को याद दिलाया: “तुम पहिले इस संसार की इफिसियों 2:2,3) आज, बहुत-से लोगों की यही हालत है। ऐसे में हम धन्यवादी होने या एहसानमंदी की भावना दिखाते रहने के लिए क्या कर सकते हैं? यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है? किन व्यावहारिक तरीकों से हम दिखा सकते हैं कि हम दिल से एहसानमंद हैं?
रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है। इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।” (धन्यवादी बने रहने के कारण
3. हम किस बात के लिए यहोवा के एहसानमंद हैं?
3 हम पर सबसे बड़ा एहसान करनेवाला हमारा सिरजनहार और जीवनदाता, यहोवा परमेश्वर है। खासकर जब हम उन ढेरों तोहफों पर ध्यान देते हैं, जो उसने हमें दिल खोलकर दिए हैं, तो हम उसका और भी ज़्यादा एहसान मानने लगते हैं। (याकूब 1:17) हम ज़िंदा हैं, इसके लिए हर दिन हम यहोवा का धन्यवाद करते हैं। (भजन 36:9) हमारे चारों तरफ हर चीज़ में, यहोवा के हाथ की कारीगरी नज़र आती है जैसे सूरज, चाँद और सितारे। हमारी धरती ऐसा भंडार-घर है, जिसमें जीवन कायम रखनेवाले खनिज मौजूद हैं, वायुमंडल में जीवन के लिए ज़रूरी गैसों का बिलकुल सही मिश्रण है और कुदरत के जटिल-से-जटिल चक्र भी हैं। ये सब इस बात का सबूत हैं कि स्वर्ग में रहनेवाले, हमारे प्यारे पिता ने हमारे लिए कितना कुछ किया है जिसके लिए हमें उसका एहसानमंद होना चाहिए। दाऊद ने एक भजन में गाया: “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं कि खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।”—भजन 40:5.
4. अपनी कलीसिया के भाई-बहनों के साथ मिलने-जुलने पर जो खुशी मिलती है, उसके लिए हमें क्यों यहोवा का शुक्रिया अदा करना चाहिए?
4 आज हम जिन हालात में जी रहे हैं, हालाँकि उन्हें फिरदौस हरगिज़ नहीं कहा जा सकता, फिर भी यहोवा के सेवक आध्यात्मिक फिरदौस का लुत्फ उठा रहे हैं। हमारे राज्यगृहों में, अधिवेशनों और सम्मेलनों में अपने मसीही भाई-बहनों से मिलते वक्त हम महसूस कर पाते हैं कि उनमें परमेश्वर की आत्मा के फल काम कर रहे हैं। इसके अलावा, कुछ साक्षी जब ऐसे लोगों को प्रचार करते हैं जिन्हें बाइबल का बहुत कम या ज़रा भी ज्ञान नहीं है, तब वे पौलुस की बातों का ज़िक्र करते हैं जो गलतियों की पत्री में दर्ज़ हैं। सबसे पहले, वे ‘शरीर के कामों’ के बारे में बताते हैं, और फिर अपने सुननेवालों से गलतियों 5:19-23) ज़्यादातर लोग मानते हैं कि ये सारी बुराइयाँ आज के इंसानी समाज में साफ देखी जा सकती हैं। उसके बाद उन्हें परमेश्वर की आत्मा के फलों के बारे में समझाया जाता है और अपनी आँखों से इसका सबूत देखने के लिए उन्हें अपने इलाके के किंगडम हॉल में आने का न्यौता दिया जाता है। किंगडम हॉल आने पर बहुत-से लोगों को यह कबूल करने में देर नहीं लगती कि “सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।” (1 कुरिन्थियों 14:25) और यह सबूत आपको सिर्फ एक किंगडम हॉल में नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में जाएँ, जब आपकी मुलाकात 60 लाख से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों में से किसी एक से भी होगी, तब भी आपको उनमें वही खुशी की भावना नज़र आएगी। सचमुच इस तरह की संगति जिससे सबकी उन्नति होती है, एक वजह है कि हमें यहोवा का शुक्रिया अदा करना चाहिए, क्योंकि उसी ने अपनी आत्मा देकर यह मुमकिन किया है।—सपन्याह 3:9; इफिसियों 3:20, 21.
उनकी राय पूछते हैं। (5, 6. परमेश्वर के सबसे नायाब तोहफे, छुड़ौती के इंतज़ाम के लिए हम एहसानमंदी की भावना कैसे दिखा सकते हैं?
5 यहोवा का सबसे नायाब तोहफा, सबसे उत्तम दान है, उसका बेटा यीशु जिसके ज़रिए उसने छुड़ौती बलिदान दिया था। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।” (1 यूहन्ना 4:11) जी हाँ, यहोवा ने हमारी खातिर छुड़ौती का जो इंतज़ाम किया है, उसका एहसान मानते हुए हम न सिर्फ उससे प्यार और उसका धन्यवाद करते हैं, बल्कि हम इस तरीके से ज़िंदगी बिताते हैं जिससे दूसरों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर कर सकें।—मत्ती 22:37-39.
6 हम एहसानमंदी की भावना कैसे दिखा सकते हैं, इस बारे में हम प्राचीन इस्राएल के साथ यहोवा के व्यवहार से सीख सकते हैं। यहोवा ने मूसा के ज़रिए इस्राएल जाति को एक कानून-व्यवस्था दी थी और इसी व्यवस्था से उसने अपने लोगों को बहुत-से सबक सिखाए। “ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है,” उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं और इससे हमें पौलुस की यह सलाह मानने में मदद मिलेगी: “तुम धन्यवादी बने रहो।”—रोमियों 2:20; कुलुस्सियों 3:15.
मूसा की कानून-व्यवस्था से तीन सबक
7. दशमांश देने के इंतज़ाम से, इस्राएलियों को यहोवा का धन्यवाद करने का एक मौका कैसे मिलता था?
7 यहोवा ने मूसा की कानून-व्यवस्था में, तीन इंतज़ाम किए जिनके ज़रिए इस्राएली उसकी भलाई के लिए सच्ची कदरदानी दिखा सकते थे। पहला था, दशमांश देना। ज़मीन की उपज का दसवाँ हिस्सा, साथ ही ‘गाय-बैल और भेड़-बकरियों का दशमांश, यहोवा के लिये पवित्र ठहराया’ जाना था। (लैव्यव्यवस्था 27:30-32) जब इस्राएलियों ने इस आज्ञा का पालन किया, तो यहोवा ने उन पर आशीषों की बौछार की। “सारे दशमांस भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।”—मलाकी 3:10.
8. अपनी मरज़ी से दान देने और दशमांश देने में क्या फर्क था?
8 दूसरा, दशमांश देने के साथ-साथ यहोवा ने इस्राएलियों के लिए अपनी मरज़ी के मुताबिक दान देने का भी इंतज़ाम किया था। उसने मूसा को इस्राएलियों से यह कहने की हिदायत दी: “जब तुम उस देश में पहुंचो जहां मैं तुम को लिये गिनती 15:18-21) मगर जब इस्राएली एहसान भरे दिल से यह दान देते थे, तो उन्हें यकीन होता था कि यहोवा उन्हें आशीष देगा। यहेजकेल के दर्शन में देखे गए मंदिर में भी कुछ इसी तरह का इंतज़ाम था। हम पढ़ते हैं: “सब प्रकार की सब से पहिली उपज और सब प्रकार की उठाई हुई वस्तु जो तुम उठाकर चढ़ाओ, याजकों को मिला करे; और नये अन्न का पहिला गूंधा हुआ आटा भी याजक को दिया करना, जिस से तुम लोगों के घर में आशीष हो।”—यहेजकेल 44:30.
जाता हूं, और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिये उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो।” पीढ़ी-दर-पीढ़ी, इस्राएलियों को अपने ‘आटे’ के पहले फल को ‘रोटियों के रूप में, यहोवा को भेंट चढ़ाना’ (NW) था। ध्यान दीजिए कि उन्हें पहले फल में से कितना देना है, यह तय नहीं किया गया था। (9. बीनने के इंतज़ाम से यहोवा ने क्या सबक सिखाया?
9 तीसरा, यहोवा ने बीनने के रिवाज़ का इंतज़ाम किया था। उसने यह निर्देश दिया: “जब तुम अपने देश के खेत काटो तब अपने खेत के कोने कोने तक पूरा न काटना, और काटे हुए खेत की गिरी पड़ी बालों को न चुनना। और अपनी दाख की बारी का दाना दाना न तोड़ लेना, और अपनी दाख की बारी के झड़े हुए अंगूरों को न बटोरना; उन्हें दीन और परदेशी लोगों के लिये छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।” (लैव्यव्यवस्था 19:9, 10) इस इंतज़ाम में भी यह तय नहीं था कि उन्हें अपने खेत का कितना हिस्सा ज़रूरतमंद लोगों के बीनने के लिए छोड़ना था, बल्कि यह फैसला हर इस्राएली पर छोड़ा गया था। इसलिए बुद्धिमान राजा सुलैमान का यह कहना कितना सही था: “जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा।” (नीतिवचन 19:17) इस तरह यहोवा ने इस्राएलियों को गरीब, मोहताज लोगों पर दया दिखाना और उनकी मदद करना सिखाया।
10. इस्राएल के लोग जब एहसान-फरामोश बन गए, तब उनका क्या हुआ?
10 जब इस्राएलियों ने आज्ञा मानकर दशमांश दिया, अपनी मरज़ी के मुताबिक दान किया और गरीबों की भी मदद की, तो यहोवा ने उन्हें आशीष दी। लेकिन बाद में, जब वे एहसान-फरामोश बन गए, तब यहोवा का अनुग्रह उन पर से उठ गया। इस वजह से उन पर आफत टूट पड़ी और आखिर में, उन्हें बंदी बनाकर ले जाया गया। (2 इतिहास 36:17-21) इन सारी बातों से हम क्या सीख सकते हैं?
हम एहसानमंदी की भावना कैसे दिखाते हैं
11. हम यहोवा के एहसानमंद हैं, यह दिखाने का अहम तरीका क्या है?
11 हमारे लिए यहोवा की महिमा करने और उसका धन्यवाद करने का जो अहम तरीका है उसमें भी “भेंट” चढ़ाना शामिल है। यह सच है कि हम मसीही, मूसा की कानून-व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, इसलिए हमसे जानवरों या फसलों का बलिदान चढ़ाने की माँग नहीं की जाती है। (कुलुस्सियों 2:14) फिर भी, प्रेरित पौलुस ने इब्री मसीहियों को उकसाया: ‘[आओ] हम स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।’ (इब्रानियों 13:15) चाहे हम प्रचार में हों या अपने संगी मसीहियों के साथ “सभाओं में” हों, जब हम यहोवा की महिमा करने के लिए अपनी काबिलीयतों और साधनों का इस्तेमाल करते हैं, तो हम दरअसल स्वर्ग में रहनेवाले अपने प्यारे पिता, यहोवा परमेश्वर का दिल से धन्यवाद कर रहे होते हैं। (भजन 26:12) यहोवा को एहसानमंदी दिखाने के इस्राएलियों के तरीकों से हम क्या सीख सकते हैं?
12. अपनी मसीही ज़िम्मेदारी को पूरा करने में, हम दशमांश देने के इंतज़ाम से क्या सीख सकते हैं?
12 सबसे पहले, हमने देखा कि इस्राएलियों को दशमांश देना ही था; यह हरेक का फर्ज़ था। उसी तरह हम मसीहियों को प्रचार में हिस्सा लेने और मसीही सभाओं में हाज़िर रहने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। इस ज़िम्मेदारी को पूरा करना हमारी मरज़ी पर नहीं छोड़ा गया है बल्कि यह हमें हर हाल में पूरी करनी है। यीशु ने अंत के समय के बारे में भविष्यवाणी करते वक्त साफ-साफ कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:14; 28:19, 20) और मसीही सभाओं के बारे में प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।” (इब्रानियों 10:24, 25) हम यहोवा के लिए अपनी एहसानमंदी तब दिखाते हैं, जब हम दूसरों को प्रचार करने और उन्हें सिखाने, साथ ही कलीसिया की सभाओं में लगातार हाज़िर रहकर अपने भाइयों के साथ मेल-जोल रखने की अपनी ज़िम्मेदारी खुशी-खुशी कबूल करते हैं और इसे एक बड़ा सम्मान और आदर की बात समझते हैं।
13. अपनी मरज़ी से दान देने और बीनने के इंतज़ाम से हमें क्या सीख मिलती है?
13 इसके अलावा, दो और इंतज़ाम हैं जिनके ज़रिए इस्राएली अपनी कदरदानी दिखा सकते थे, इनकी जाँच करने से हमें फायदा होगा। वे थे, अपनी मरज़ी से दान देना और बीनने का इंतज़ाम। दशमांश देने की माँग में साफ-साफ बताया गया था कि उन्हें कितना देना था, मगर यह तय नहीं किया गया था कि अपनी मरज़ी से देते वक्त उन्हें कितना दान देना है या बीनने के लिए खेत का कितना हिस्सा छोड़ना है। इसके बजाय, इन इंतज़ामों में यहोवा का सेवक जो कुछ करता, उससे पता चलता कि वह दिल से यहोवा का कितना एहसानमंद है। उसी तरह, हम जानते हैं कि प्रचार में हिस्सा लेना और मसीही सभाओं में हाज़िर रहना यहोवा के हर सेवक की बुनियादी ज़िम्मेदारी है, फिर भी क्या हम तन-मन से और खुशी-खुशी इन ज़िम्मेदारियों को निभाते हैं? क्या हम इन्हें एक ऐसा मौका समझते हैं जिससे यहोवा ने हमारे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए दिल से कदरदानी दिखा सकें? क्या हम इन कामों में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेते हैं, जितना हमारे हालात हमें इसकी इजाज़त देते हैं? या क्या हम इन्हें बस अपना फर्ज़ समझकर पूरा करते हैं? बेशक, इन सारे सवालों के जवाब हमें खुद देने होंगे। प्रेरित पौलुस ने कहा: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों 6:4.
14. यहोवा हमसे किस तरह की सेवा चाहता है?
14 यहोवा परमेश्वर हमारे हालात से अच्छी तरह वाकिफ है। वह बखूबी जानता है कि हमारी हद क्या है। उसके सेवक अपनी इच्छा से जो भी त्याग करते हैं, चाहे वे छोटे हों या बड़े, वे उसकी नज़र में अनमोल हैं। वह हमसे यह उम्मीद नहीं करता कि हम सभी उसे एक-समान दान दें, ना ही हम ऐसा कर सकते हैं। पैसे या दूसरी चीज़ें दान करने के बारे में चर्चा करते वक्त, प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों से कहा: “यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।” (2 कुरिन्थियों 8:12) परमेश्वर की सेवा पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। यहोवा हमारी सेवा को कबूल करेगा या नहीं, यह इस बात से तय नहीं होता कि हम उसकी सेवा में कितना करते हैं, बल्कि हम किस तरीके से करते हैं, यह ज़्यादा मायने रखता है। जी हाँ, खुशी-खुशी और तन-मन से की गयी सेवा को वह मंज़ूर करता है।—भजन 100:1-5; कुलुस्सियों 3:23.
पायनियर सेवा के लिए जोश पैदा कीजिए और बनाए रखिए
15, 16. (क) पायनियर सेवा और एहसानमंदी की भावना के बीच क्या ताल्लुक है? (ख) जो लोग पायनियर सेवा नहीं कर सकते हैं, वे फिर भी पायनियर सेवा के लिए जोश कैसे दिखा सकते हैं?
15 यहोवा के लिए एहसानमंदी की भावना दिखाने का सबसे बढ़िया और मन को संतोष देनेवाला तरीका है, पूरे समय की सेवा करना। यहोवा के लिए प्यार और उसकी बड़ी दया के लिए कदरदानी की वजह से, बहुत-से समर्पित सेवकों ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी तबदीलियाँ की हैं ताकि वे यहोवा की सेवा में ज़्यादा वक्त दे सकें। कुछ लोग रेग्युलर पायनियर सेवा करते हैं और वे हर महीने सुसमाचार का प्रचार करने और लोगों को सच्चाई के बारे में सिखाने में औसतन 70 घंटे बिताते हैं। दूसरे जिनके अलग-अलग हालात इस सेवा के लिए उन्हें इजाज़त नहीं देते, वे कभी-कभार ऑक्ज़लरी पायनियर सेवा करते हैं यानी वे एक महीने में, प्रचार में 50 घंटे बिताते हैं।
16 लेकिन यहोवा के उन सेवकों के बारे में क्या जो ना तो रेग्युलर, ना ऑक्ज़लरी पायनियर सेवा कर सकते हैं? वे पायनियर सेवा के लिए जोश पैदा करने और उसे बनाए रखने के ज़रिए अपनी एहसानमंदी की भावना दिखा सकते हैं। वह कैसे? जो पायनियर सेवा कर सकते हैं, उनका हौसला बढ़ाने से, बचपन से ही अपने बच्चों के मन में पूरे समय की सेवा करने की इच्छा पैदा करने से और अपने हालात के मुताबिक जितना ज़्यादा हो सके प्रचार में हिस्सा लेने से। यहोवा ने बीते समय में जो किया है, अभी जो कर रहा और आगे जो करनेवाला है, इन सबके लिए हम जितना ज़्यादा दिल से शुक्रगुज़ार होंगे, उतना ज़्यादा हम उसकी सेवा करेंगे।
“अपनी संपत्ति” के ज़रिए एहसानमंदी दिखाना
17, 18. (क) हम “अपनी संपत्ति” के ज़रिए एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं? (ख) विधवा को दान डालते देख यीशु ने क्या कहा, और क्यों?
17 नीतिवचन 3:9 कहता है: “अपनी संपत्ति के द्वारा, और अपनी भूमि की सारी पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना।” आज, यहोवा के सेवकों को दशमांश नहीं देना पड़ता। इसके बजाय पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया को लिखा: “हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” (2 कुरिन्थियों 9:7) अगर हम दुनिया भर में हो रहे राज्य के प्रचार काम के लिए दान देंगे, तो हम दिखाएँगे कि हम शुक्रगुज़ार हैं। एहसान की भावना से भरा दिल हमें बार-बार, लगातार ऐसा करने के लिए उभारता है। और पहली सदी के मसीहियों की तरह हम भी दान देने के लिए हर हफ्ते कुछ पैसा अलग रख सकते हैं—1 कुरिन्थियों 16:1, 2.
18 यहोवा के लिए हमारे दिल में कितनी कदरदानी है, यह दान की रकम से नहीं आँकी जाती। इसके बजाय हम किस भावना से देते हैं, यह ज़्यादा अहमियत रखता है। यीशु जब लोगों को मंदिर के भंडार में अपना दान डालते देख रहा था, तो वह भी इसी नतीजे पर पहुँचा। यीशु की नज़र एक कंगाल विधवा पर पड़ी जिसने “दो दमड़ियां” डालीं, तब उसने कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं कि इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। क्योंकि उन सब ने अपनी अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।”—लूका 21:1-4.
19. हम जिन तरीकों से अपनी एहसानमंदी दिखाते हैं, उनकी दोबारा जाँच करना क्यों अच्छा होगा?
19 हम एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं, उम्मीद है कि यह अध्ययन हमें उन तरीकों की दोबारा जाँच करने के लिए उकसाएगा जिनसे हम अपनी एहसानमंदी की भावना दिखाते हैं। यहोवा की महिमा करने के लिए हम जो स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाते हैं, क्या हम उसको बढ़ा सकते हैं? क्या हम दुनिया भर में हो रहे काम को बढ़ावा देने के लिए पैसों या दूसरी चीज़ों का दान दे सकते हैं? हम जितना ज़्यादा करेंगे, उससे हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि हमारी एहसानमंदी की भावना देखकर हमारा उदार और प्यारा पिता, यहोवा ज़रूर खुश होगा।
क्या आपको याद है?
• यहोवा का धन्यवाद करने की क्या-क्या वजह हैं?
• दशमांश देने, अपनी मरज़ी से दान देने और बीनने के इंतज़ाम से हम क्या सबक सीखते हैं?
• हम पायनियर सेवा के लिए जोश कैसे पैदा कर सकते हैं?
• यहोवा का शुक्रिया अदा करने के लिए हम “अपनी संपत्ति” का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीरें]
“हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है”
[पेज 16 पर तसवीरें]
कानून-व्यवस्था के इंतज़ामों से कौन-से तीन सबक यहाँ देखने को मिलते हैं?
[पेज 18 पर तसवीरें]
हम क्या-क्या बलिदान चढ़ा सकते हैं?