परमेश्वर के लोगों के लिए कृपा से प्रेम रखना ज़रूरी है
परमेश्वर के लोगों के लिए कृपा से प्रेम रखना ज़रूरी है
“यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?”—मीका 6:8.
1, 2. (क) यह ताज्जुब की बात क्यों नहीं है कि यहोवा अपने लोगों से कृपा दिखाने की उम्मीद करता है? (ख) कृपा के बारे में कौन-से सवाल ध्यान देने के लायक हैं?
यहोवा परमेश्वर कृपालु परमेश्वर है। (रोमियों 2:4; 11:22) पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा ने इस गुण के लिए परमेश्वर का कितना एहसान माना होगा! वे अदन की वाटिका में अपनी चारों तरफ सृष्टि की चीज़ों में इंसानों के लिए परमेश्वर की कृपा के सबूत देख सकते थे, जो उनके आनंद के लिए बनायी गयी थीं। तब से अब तक परमेश्वर लगातार कृपा दिखाता आया है, उन लोगों को भी जो नाशुक्र हैं और जो बुरे काम करते हैं।
2 इंसान को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है और उसमें परमेश्वर के गुणों को दिखाने की काबिलीयत है। (उत्पत्ति 1:26) इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा हमसे कृपा दिखाने की उम्मीद करता है। मीका 6:8 कहता है कि परमेश्वर के लोगों के लिए “कृपा से प्रीति” रखना ज़रूरी है। लेकिन कृपा क्या है? इसका परमेश्वर के दूसरे गुणों के साथ क्या नाता है? जब इंसान इस गुण को दिखा सकते हैं तो यह दुनिया क्यों इतनी क्रूरता और कठोरता से भरी है? हम मसीहियों को क्यों दूसरों के साथ अपने बर्ताव में यह गुण दिखाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए?
कृपा क्या है?
3. आप कृपा के गुण को कैसे समझाएँगे?
3 दूसरों की भलाई में गहरी दिलचस्पी लेना कृपा है। यह गुण, दूसरों की मदद के लिए किए गए कामों और मीठे बोलों से दिखाया जाता है। कृपालु होने का मतलब है, दूसरों को नुकसान पहुँचानेवाला काम करने के बजाय उनकी भलाई के लिए काम करना। कृपालु इंसान दोस्ताना, कोमल, हमदर्द और मिलनसार होता है। वह दूसरों के साथ उदारता और लिहाज़ से पेश आता है। प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी: “बड़ी करुणा, और भलाई [“कृपा,” NW] और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।” (कुलुस्सियों 3:12) इसलिए कृपा हर सच्चे मसीही की आध्यात्मिक पोशाक का हिस्सा है जो उसे धारण करनी चाहिए।
4. इंसानों को कृपा दिखाने में यहोवा ने कैसे पहल की है?
4 यहोवा परमेश्वर ने कृपा दिखाने में पहल की है। पौलुस ने कहा कि जब “हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर की कृपा, और मनुष्यों पर उसकी प्रीति प्रगट हुई” तो “उस ने हमारा उद्धार किया: और यह . . . नए जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।” (तीतुस 3:4, 5) परमेश्वर, अभिषिक्त मसीहियों को यीशु के लहू में “स्नान” कराता या शुद्ध करता है यानी मसीह के छुड़ौती बलिदान के फायदे उन पर लागू करता है। उन्हें पवित्र आत्मा के ज़रिए नया भी बनाया जाता है, और वे आत्मा से जन्मे परमेश्वर के पुत्रों के नाते “नई सृष्टि” बन जाते हैं। (2 कुरिन्थियों 5:17) इनके अलावा, परमेश्वर ने “बड़ी भीड़” के लोगों पर भी अपनी कृपा और अपना प्रेम ज़ाहिर किया है जिन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।”—प्रकाशितवाक्य 7:9, 14; 1 यूहन्ना 2:1, 2.
5. जो परमेश्वर की आत्मा की अगुवाई में चलते हैं उन्हें कृपा क्यों दिखानी चाहिए?
5 कृपा परमेश्वर की पवित्र आत्मा या सक्रिय शक्ति के फलों में से एक है। पौलुस ने कहा: “आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।” (गलतियों 5:22, 23) अगर ऐसी बात है, तो जो लोग परमेश्वर की आत्मा की अगुवाई में चलते हैं, क्या उन्हें दूसरों को कृपा का गुण नहीं दिखाना चाहिए?
सच्ची कृपा दिखाना कोई कमज़ोरी नहीं
6. कब कृपा एक कमज़ोरी बन जाती है और क्यों?
6 कुछ लोग कृपा दिखाने को कमज़ोरी समझते हैं। उन्हें लगता है कि एक इंसान को सख्त होना चाहिए यहाँ तक कि वक्त पड़ने पर कठोर भी ताकि दूसरे उसकी शख्सियत की ताकत को देख सकें। लेकिन असल में, सचमुच कृपालु होने और गलत किस्म की कृपा दिखाने से दूर रहने के लिए बहुत हिम्मत की ज़रूरत होती है। सच्ची कृपा परमेश्वर की आत्मा का फल है, इसलिए यह बुरे चालचलन को नज़रअंदाज़ करनेवाली कमज़ोरी हो ही नहीं सकती। दूसरी तरफ, जब एक इंसान गलत कामों को देखकर भी अनदेखा करता है, तो उसका ऐसा करना, गलत किस्म की कृपा दिखाना है जो वाकई एक कमज़ोरी है।
7. (क) एली लापरवाह कैसे साबित हुआ? (ख) क्यों प्राचीनों को गलत किस्म की कृपा दिखाने से सावधान रहना चाहिए?
7 इस्राएल के महायाजक एली की मिसाल पर गौर कीजिए। उसने अपने बेटों होप्नी और पीनहास को अनुशासन देने में ढिलाई बरती जो निवासस्थान में याजकों का काम करते थे। परमेश्वर की व्यवस्था के तहत, बलिदान में से जो हिस्सा याजकों के लिए ठहराया गया था उससे वे खुश नहीं थे। इसलिए बलि चढ़ाए जानवर की चर्बी वेदी पर जलाए जाने से पहले ही वे अपने सेवक को भेजकर बलि का कच्चा माँस लाने की ज़िद करते थे। इतना ही नहीं उसके बेटों ने निवासस्थान के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियों के साथ कुकर्म भी किया। मगर एली ने अपने बेटों को याजकपद से हटाने के बजाय उन्हें बस झिड़की दी। (1 शमूएल 2:12-29) इसलिए ताज्जुब नहीं कि “उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ” हो गया था! (1 शमूएल 3:1) मसीही प्राचीनों को सावधान रहना चाहिए कि वे पाप करनेवाले ऐसे लोगों को गलत किस्म की कृपा न दिखाएँ जिनकी वजह से कलीसिया की आध्यात्मिकता को खतरा हो सकता है। सच्ची कृपा अंधी नहीं होती जो परमेश्वर के स्तरों के खिलाफ दुष्ट बातों और कामों को बरदाश्त करे।
8. यीशु ने सच्ची कृपा कैसे दिखायी?
8 हमारे आदर्श यीशु मसीह ने कभी-भी गलत किस्म की कृपा नहीं दिखायी। वह तो सच्ची कृपा दिखाने की जिंदा मिसाल था। उदाहरण के लिए, ‘उस को लोगों के लिए कोमल करुणा महसूस होती थी, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।’ सच्चे दिल के लोग यीशु के पास आने से हिचकिचाते नहीं थे, यहाँ तक कि वे अपने नन्हे-मुन्नों को बेझिझक उसके पास लाते थे। ज़रा सोचिए कि उसने किस कदर कृपा और करुणा दिखायी होगी जब उसने “उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।” (मत्ती 9:36; मरकुस 10:13-16) हालाँकि यीशु कृपालु था, फिर भी वह उन बातों में अटल रहा जो उसके स्वर्गीय पिता की नज़रों में सही थीं। उसने कभी-भी दुष्टता को अनदेखा नहीं किया; और परमेश्वर से मिली हिम्मत के बलबूते पर उसने अपने ज़माने के कपटी धार्मिक अगुवों की खुलकर निंदा की। जैसा मत्ती 23:13-26 में दर्ज़ है, कई बार उसने ऐसे कठोर शब्द कहे: “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो तुम पर हाय!”
कृपा और दूसरे ईश्वरीय गुण
9. कृपा किस तरह धीरज और भलाई से जुड़ी है?
9 कृपा का संबंध परमेश्वर की आत्मा से पैदा होनेवाले दूसरे कई गुणों से भी है। बाइबल में कृपा का गुण “धीरज” और “भलाई” के बीच में दिया गया है। वाकई, कृपालु इंसान धीरज धरकर कृपा का गुण दिखाता है। वह कठोर लोगों के साथ भी धीरज से पेश आता है। कृपा का संबंध भलाई से भी है, क्योंकि इसे दूसरों के फायदे के लिए किए गए अच्छे कामों से दिखाया जाता है। कभी-कभी, बाइबल में “कृपा” के लिए इस्तेमाल होनेवाले यूनानी शब्द का अनुवाद “भलाई” किया जा सकता है। पहली सदी के मसीहियों में कृपा का गुण देखकर दूसरी जातियों के लोगों को इतना ताज्जुब होता था कि टर्टुलियन के मुताबिक वे यीशु के चेलों को ‘कृपा की मूरत’ कहते थे।
10. कृपा और प्रेम कैसे आपस में जुड़े हैं?
10 कृपा और प्रेम का भी गहरा नाता है। यीशु ने अपने चेलों के बारे में कहा था: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) और इस तरह के प्रेम के बारे में पौलुस ने कहा था: “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है।” (1 कुरिन्थियों 13:4) शास्त्र में कई बार इस्तेमाल किया जानेवाला शब्द, “निरंतर प्रेम-कृपा” में भी कृपा का संबंध प्रेम से देखा जा सकता है। इस कृपा की नींव सच्चा प्रेम ही है। जिस इब्रानी संज्ञा का अनुवाद “निरंतर प्रेम-कृपा” किया गया है वह कोमल स्नेह से कहीं बढ़कर है। यह वह कृपा है जो किसी से सच्चा प्यार होने की वजह से उसके साथ तब तक जुड़ी रहती है जब तक कि उसके लिए प्यार दिखाने का मकसद पूरा ना हो जाए। यहोवा की यह निरंतर प्रेम-कृपा, या सच्चा प्रेम हमें कई तरह से देखने को मिलता है। मिसाल के लिए, यह छुटकारा देने और हिफाज़त करने के उसके कामों से नज़र आता है।—भजन 6:4; 40:11; 143:12.
11. परमेश्वर की निरंतर प्रेम-कृपा हमें क्या यकीन दिलाती है?
11 यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा लोगों को उसकी तरफ खींचती है। (यिर्मयाह 31:3, NW) जब परमेश्वर के वफादार सेवकों को छुटकारे या मदद की ज़रूरत होती है तब वे जानते हैं कि वह उन्हें मायूस नहीं करेगा और अपना सच्चा प्रेम या निरंतर प्रेम-कृपा उन्हें ज़रूर दिखाएगा। इसलिए वे भजनहार की तरह विश्वास के साथ यह प्रार्थना कर सकते हैं: “मैं ने तो तेरी करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा।” (भजन 13:5) परमेश्वर का प्रेम सच्चा है इसलिए उसके सेवक पूरी तरह उस पर भरोसा रख सकते हैं। उन्हें यह यकीन दिलाया गया है: “यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा।”—भजन 94:14.
यह दुनिया इतनी ज़ालिम क्यों है?
12. दुनिया पर ज़ालिम हुकूमत की शुरूआत कब और कैसे हुई?
12 अदन की वाटिका में जो कुछ हुआ उससे हमें इस सवाल का जवाब मिलता है। शुरूआत में, एक आत्मिक प्राणी ने दुनिया पर हुकूमत करने की साज़िश रची क्योंकि वह लालची और घमंडी बन गया था। वह अपनी चाल में कामयाब हुआ और वह वाकई “इस जगत का सरदार” बन गया, एक बेहद ज़ालिम शासक। (यूहन्ना 12:31) वह शैतान यानी इब्लीस कहलाया जो परमेश्वर और इंसान दोनों का सबसे बड़ा दुश्मन है। (यूहन्ना 8:44; प्रकाशितवाक्य 12:9) उसने यहोवा की कृपा से भरी हुकूमत के खिलाफ अपनी हुकूमत खड़ी करने का जो स्वार्थ-भरा षड्यंत्र रचा था उसका पर्दाफाश हव्वा के बनाए जाने के कुछ समय बाद हो गया। और जब से आदम ने परमेश्वर की कृपा और उसके शासन को पूरी तरह ठुकराते हुए अपनी मनमानी करने का फैसला किया, तब से शैतान का दुष्ट शासन शुरू हुआ। (उत्पत्ति 3:1-6) अपनी ज़िंदगी का मालिक बनने के बजाय आदम और हव्वा स्वार्थी और घमंडी इब्लीस की मुट्ठी में आकर उसके गुलाम बन गए।
13-15. (क) यहोवा के धर्मी राज को ठुकराने के कुछेक नतीजे क्या निकले? (ख) यह दुनिया इतनी कठोर क्यों है?
13 ज़रा इसके नतीजों पर गौर कीजिए। आदम और हव्वा को धरती के उस भाग से निकाल दिया गया जो एक फिरदौस था। हरियाली और आराम से मिलनेवाली साग-सब्ज़ियों और फलों से लदे अदन के बाग से बाहर उन्हें मुश्किल हालात में जीना पड़ा। परमेश्वर ने आदम से कहा: “तू ने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैं ने तुझे अज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिये भूमि तेरे कारण शापित है; तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा: और वह तेरे लिये कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी।” धरती पर शाप पड़ने का मतलब था कि उस पर खेती करना अब बेहद मुश्किल हो गया था। शाप की वजह से धरती पर कंटीली झाड़ियाँ और ऊंटकटारे इस कदर उग आए थे कि उसका असर आदम के वंशज नूह के पिता लेमेक के ज़माने में नज़र आ रहा था। उसने कहा: ‘प्रभु द्वारा अभिशप्त इस भूमि पर कठिन परिश्रम करने में हमें कष्ट होता है।’—उत्पत्ति 3:17-19; 5:29, बुल्के बाइबिल।
14 इसके अलावा, आदम और हव्वा ने सुख-चैन गँवाकर दुःख को गले लगा लिया। परमेश्वर ने हव्वा से कहा: “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” बाद में, आदम और हव्वा के पहिलौठे बेटे कैन ने बड़ी बेरहमी से अपने ही भाई हाबिल की हत्या की।—उत्पत्ति 3:16; 4:8.
15 प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) अपने इस ज़ालिम शासक की तरह आज की दुनिया भी दुष्टता से भर गयी है जहाँ खुदगर्ज़ी और घमंड का बोलबाला है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि यह कठोरता और ज़ुल्म से भरी हुई है! लेकिन हमेशा तक यह ऐसी नहीं रहेगी। यहोवा इस बात का ज़िम्मा लेता है कि उसके राज में कठोरता और ज़ुल्म नहीं किया जाएगा बल्कि हर किसी पर कृपा और दया दिखायी जाएगी।
परमेश्वर के राज में कृपा का बोलबाला होगा
16. मसीह यीशु के अधीन परमेश्वर के राज में कृपा का बोलबाला क्यों होगा और इससे हमारा क्या फर्ज़ बनता है?
16 यहोवा और उसके राज्य का ठहराया हुआ राजा मसीह यीशु दोनों, यही चाहते हैं कि उसकी प्रजा के लोग अपनी कृपा के लिए जाने जाएँ। (मीका 6:8) यीशु ने हमें एक झलक दी कि कैसे उसके हाथों सुपुर्द उसके पिता के राज में कृपा का बोलबाला होगा। (इब्रानियों 1:3) यह यीशु के इन शब्दों से देखा जा सकता है जो उसने लोगों पर भारी बोझ लादनेवाले झूठे धार्मिक अगुवों का परदाफाश करते हुए कहे थे: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30) दुनिया के कई शासकों और धार्मिक अगुवों ने लोगों पर बेहिसाब कायदे-कानूनों और ऐसे कामों का भारी बोझ लाद दिया है जिनसे कोई लाभ नहीं। उन्हें ढोते-ढोते लोगों की कमर टूट चुकी है। लेकिन यीशु अपने चेलों से जो चाहता है वह उनकी ज़रूरतों के मुताबिक है और काबिलीयतों के दायरे में है। उसका जुआ वाकई बहुत विश्राम देनेवाला और सहज है! क्या हम भी यीशु की तरह दूसरों को कृपा दिखाने के लिए प्रेरित नहीं होते?—यूहन्ना 13:15.
17, 18. हम इस बात पर क्यों यकीन रख सकते हैं कि मसीह के साथ स्वर्ग में राज करनेवाले और धरती पर उसके प्रतिनिधि कृपा दिखाएँगे?
17 यीशु ने अपने प्रेरितों को आगे जो गौर करने लायक शब्द कहे वे इस बात पर रोशनी डालते हैं कि परमेश्वर का राज्य मनुष्यों के राज्य से कितना अलग होगा! बाइबल बताती है: “उन में [चेलों में] यह बाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है? उस ने उन से कहा, अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। परन्तु तुम ऐसे न होना; बरन जो तुम में बड़ा है, वह छोटे की नाईं और जो प्रधान है, वह सेवक के नाईं बने। क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के नाईं हूं।”—लूका 22:24-27.
18 दुनिया के शासक अपनी महानता साबित करने के लिए लोगों पर “प्रभुता करते हैं” और बड़े-बड़े खिताब पाने की कोशिश करते हैं मानो ये खिताब उन्हें अपनी प्रजा से ऊँचा उठा देते हैं। लेकिन यीशु ने कहा था कि सच्ची महानता सेवक बनने में होती है यानी पूरी मेहनत और लगन के साथ दूसरों की सेवा करने से। वे सभी जो मसीह के साथ स्वर्ग से राज्य करेंगे या इस धरती पर उसके प्रतिनिधियों के नाते काम करेंगे उनके लिए नम्रता और कृपा में यीशु की मिसाल पर चलना बेहद ज़रूरी है।
19, 20. (क) यहोवा किस हद तक कृपा दिखाता है, यह यीशु ने कैसे समझाया? (ख) कृपा दिखाने में हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
19 आइए हम यीशु की एक और प्यार भरी सलाह पर ध्यान दें। यहोवा किस हद तक कृपा दिखाता है, इसे समझाते हुए यीशु ने कहा: “यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं। और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। और यदि तुम उन्हें उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएं। बरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा: और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।”—तिरछे टाइप हमारे; लूका 6:32-36.
20 ईश्वरीय कृपा में स्वार्थ नहीं होता। यह बदले में किसी चीज़ की उम्मीद या माँग नहीं करती। यहोवा अपनी कृपा दिखाते हुए “भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती 5:43-45; प्रेरितों 14:16, 17) अपने स्वर्गीय पिता की मिसाल पर चलते हुए, हम न सिर्फ ऐसे लोगों का नुकसान करने से दूर रहते हैं जो एहसानफरामोश होते हैं बल्कि उनकी भलाई के लिए काम भी करते हैं। यहाँ तक कि हमारे साथ दुश्मनों जैसा सलूक करनेवालों के साथ भी हम नेकी करते हैं। कृपा दिखाने से, हम यहोवा और यीशु को इस बात का सबूत देते हैं कि हम परमेश्वर के उस राज के अधीन जीने की तमन्ना रखते हैं जहाँ हर इंसानी रिश्ते में कृपा और दूसरे ईश्वरीय गुणों का बोलबाला होगा।
कृपा क्यों दिखानी चाहिए?
21, 22. हमें कृपा क्यों दिखानी चाहिए?
21 सच्चे मसीहियों के लिए कृपा दिखाना खास तौर पर बहुत अहमियत रखता है। यह इस बात का सबूत है कि परमेश्वर की आत्मा हम पर काम कर रही है। यही नहीं, जब हम सच्ची कृपा दिखाते हैं तो हम यहोवा परमेश्वर और मसीह यीशु की मिसाल पर चल रहे होते हैं। परमेश्वर के राज्य की प्रजा बननेवालों से कृपा दिखाने की माँग की जाती है। इसलिए हमें कृपा से प्रेम रखना और इसे दिखाना सीखना चाहिए।
22 रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कृपा दिखाने के कुछ कारगर तरीके क्या हैं? अगले लेख में इसी विषय पर चर्चा की जाएगी।
आप कैसे जवाब देंगे?
• कृपा क्या है?
• क्यों आज दुनिया ज़ालिम और कठोर हो गयी है?
• हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर के राज में कृपा का बोलबाला होगा?
• जो परमेश्वर के राज्य के अधीन जीना चाहते हैं उनके लिए कृपा दिखाना बेहद ज़रूरी क्यों है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
मसीही प्राचीन झुंड के साथ अपने बर्ताव में कृपा दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं
[पेज 15 पर तसवीर]
मुश्किल हालात में यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा उसके लोगों को मायूस नहीं करेगी
[पेज 16 पर तसवीर]
यहोवा कृपा दिखाते हुए सभी इंसानों पर अपना सूर्य उदय करता है और मेंह बरसाता है