यहोवा, उस पर आस लगानेवालों की रक्षा करता है
यहोवा, उस पर आस लगानेवालों की रक्षा करता है
“तेरी करुणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे!”—भजन 40:11.
1. राजा दाऊद ने यहोवा से क्या बिनती की, और फिलहाल वह बिनती कैसे सुनी जा रही है?
प्राचीन इस्राएल देश का राजा दाऊद “धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा” और उसके दिल से ये शब्द निकले कि यहोवा ने “मेरी ओर झुककर मेरी दोहाई सुनी।” (भजन 40:1) दाऊद कई बार, अपनी आँखों से देख चुका था कि यहोवा ने अपने सेवकों की किस तरह हिफाज़त की है, जो उससे प्यार करते हैं। इसलिए, उसने प्रार्थना में यहोवा से बिनती की कि उसकी निरंतर रक्षा करे। (भजन 40:11) क्या उसकी यह बिनती सुनी गयी? बिलकुल! दाऊद भी उन वफादार लोगों में से एक है जिनसे “उत्तम पुनरुत्थान” का वादा किया गया है। (इब्रानियों 11:32-35) फिलहाल, वह यहोवा की याद में सुरक्षित है। उसके भविष्य के सुरक्षित होने की इससे बढ़िया गारंटी और क्या हो सकती है कि उसका नाम यहोवा की ‘स्मरण की एक पुस्तक’ में लिखा है।—मलाकी 3:16.
2. यहोवा से हिफाज़त पाने का मतलब क्या है, यह समझने में बाइबल हमें कैसे मदद देती है?
2 इब्रानियों के 11वें अध्याय में परमेश्वर के उन वफादार सेवकों के बारे में बताया गया है जो यीशु के आने से पहले जीए थे। वे सभी उस उसूल के मुताबिक जीए, जिसके बारे में बाद में यीशु ने भी सिखाया: “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उस की रक्षा करेगा।” (यूहन्ना 12:25) इससे पता चलता है कि यहोवा से रक्षा या हिफाज़त पाने का यह मतलब बिलकुल नहीं कि हम तकलीफों या ज़ुल्मों से बचाए जाएँगे। लेकिन, इसका यह मतलब ज़रूर है कि आध्यात्मिक मायने में हमें हिफाज़त मिलेगी ताकि परमेश्वर के सामने हम शुद्ध विवेक बनाए रख सकते हैं।
3. हमारे पास क्या सबूत है कि यहोवा ने मसीह यीशु की हिफाज़त की थी, और उसका नतीजा क्या निकला?
3 अब आइए यीशु की मिसाल लें। उस पर बड़े ही वहशियाना तरीके से ज़ुल्म ढाए गए थे और उसे ज़लील किया गया था। आखिरकार उसके दुश्मन उस पर हावी हुए और उन्होंने उसे बड़ी शर्मनाक और दर्दनाक मौत मारा। मगर इसका मतलब यह नहीं था कि परमेश्वर ने मसीहा की हिफाज़त करने का अपना वादा पूरा नहीं किया। (यशायाह 42:1-6) यीशु की मौत से पहले, यहोवा ने उसे खराई बनाए रखने में मदद दी थी और इस तरह उसकी बिनती का जवाब दिया था। (मत्ती 26:39) और जब यीशु को बेइज़्ज़त करके मार डाला गया, तो तीसरे दिन परमेश्वर ने उसका पुनरुत्थान किया। यह इस बात का सबूत था कि यहोवा ने दाऊद की तरह यीशु की मदद की पुकार भी सुनी थी और उसे अपनी याद में रखा था। इस तरह यीशु, यहोवा की हिफाज़त में रहा और जी उठने पर उसे स्वर्ग में अमर जीवन मिला। इतना ही नहीं, यीशु ने इंसान के लिए जो छुड़ौती दी उस पर विश्वास रखने से लाखों लोगों को हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा मिली।
4. अभिषिक्त मसीहियों और ‘अन्य भेड़ों’ से क्या वादा किया गया है?
4 हम यकीन रख सकते हैं कि जैसे यहोवा ने दाऊद और यीशु की हिफाज़त की थी, आज भी वह अपने सेवकों की हिफाज़त करने के काबिल है और वह ऐसा करना चाहता भी है। (याकूब 1:17) इस धरती पर अभी-भी यीशु के कुछ गिने-चुने अभिषिक्त भाई मौजूद हैं। वे भी यहोवा के इस वादे पर भरोसा रख सकते हैं: “एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास . . . जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आनेवाले समय में प्रगट होनेवाली है, की जाती है।” (1 पतरस 1:4, 5) इनके अलावा, “अन्य भेड़ें” जिन्हें इस धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा है, वे भी यहोवा पर और उसके इस वादे पर भरोसा रख सकती हैं जिसे भजनहार ने लिखा था: “हे यहोवा के सब भक्तो उस से प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगों की तो रक्षा करता है।”—यूहन्ना 10:16, NW; भजन 31:23.
आध्यात्मिक मायने में हिफाज़त पाना
5, 6. (क) यहोवा ने आज अपने सेवकों की हिफाज़त कैसे की है? (ख) अभिषिक्त जनों का और धरती पर जिन्हें ज़िंदगी पाने की उम्मीद है उनका, यहोवा के साथ क्या रिश्ता है?
5 आज भी, यहोवा ने अपने लोगों की आध्यात्मिक मायने में हिफाज़त करने का इंतज़ाम किया है। यहोवा ने उन्हें ज़ुल्मों से या ज़िंदगी की आम तकलीफों और हादसों से नहीं बचाया है। तो फिर आध्यात्मिक हिफाज़त का क्या मतलब है? यही कि यहोवा पूरी वफादारी से अपने लोगों की मदद करता आया है और उनका हौसला बढ़ाता आया है ताकि वे उसके साथ अपने नज़दीकी रिश्ते पर किसी किस्म की आँच न आने दें। परमेश्वर के सेवकों ने जिस बुनियाद पर उसके साथ यह रिश्ता कायम किया है वह है, छुड़ौती पर उनका विश्वास, जो परमेश्वर की तरफ से एक प्यार-भरा इंतज़ाम है। इनमें से कुछ वफादार मसीहियों को परमेश्वर की आत्मा से अभिषिक्त किया गया है ताकि वे मसीह के साथ स्वर्ग में राज करें। उन्हें परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों के नाते धर्मी ठहराया गया है और उन पर ये शब्द लागू होते हैं: “उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। जिस में हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है।”—कुलुस्सियों 1:13, 14.
6 इनके अलावा, लाखों और वफादार मसीहियों को यकीन दिलाया गया है कि वे भी छुड़ौती के इस इंतज़ाम से फायदा पा सकते हैं। क्योंकि बाइबल में लिखा है: “मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” (मरकुस 10:45) ये मसीही उम्मीद करते हैं कि सही वक्त आने पर वे “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” करेंगे। (रोमियों 8:21) तब तक, वे परमेश्वर के साथ अपनी गहरी दोस्ती पर किसी किस्म की आँच नहीं आने देते और इस रिश्ते को मज़बूत बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं।
7. यहोवा आज अपने लोगों की आध्यात्मिक खुशहाली की हिफाज़त किन तरीकों से करता है?
7 यहोवा ने अपने लोगों की आध्यात्मिक खुशहाली की हिफाज़त करने के लिए उन्हें लगातार और सिलसिलेवार तरीके से तालीम देने का एक कार्यक्रम बनाया है। इस वजह से उसके लोग दिनोंदिन सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करते जाते हैं। यहोवा अपने वचन, संगठन और अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए लगातार अपने लोगों को सही राह दिखा रहा है। “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की निगरानी में, सारी दुनिया में परमेश्वर के लोग एक बड़े परिवार की तरह हैं जो दुनिया के कोने-कोने तक फैला है। दास वर्ग, यहोवा के सेवकों के इस परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों को और जहाँ ज़रूरी हो वहाँ शारीरिक ज़रूरतों को भी पूरा करता है, फिर चाहे ये सेवक किसी भी देश में रहते हों और समाज में उनका ओहदा चाहे जो भी हो।—मत्ती 24:45.
8. यहोवा ने अपने वफादार सेवकों पर कैसे भरोसा रखा है, और इससे उसके सेवकों को किस बात का यकीन होता है?
8 जब दुश्मनों ने यीशु पर हमला किया, तो यहोवा ने बीच में आकर उसकी जान नहीं बचायी। उसी तरह आज यहोवा अपने सेवकों को खतरों से नहीं बचाता। लेकिन इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि परमेश्वर अपने सेवकों से नाराज़ है। जी नहीं, यह सच नहीं है! इसके बजाय, इन तकलीफों की इजाज़त देकर यहोवा दिखाता है कि उसे अपने सेवकों पर कितना भरोसा है। उसे यकीन है कि तकलीफों में भी उसके सेवक इस विश्व पर हुकूमत करने के उसके हक की पैरवी करेंगे। (अय्यूब 1:8-12; नीतिवचन 27:11) यहोवा अपने वफादार लोगों को कभी नहीं छोड़ेगा, “क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपने भक्तों को न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है।”—भजन 37:28.
यहोवा की करुणा और सत्यता से हिफाज़त
9, 10. (क) यहोवा की सत्यता कैसे उसके लोगों की हिफाज़त करती है? (ख) बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा अपने वफादार लोगों की हिफाज़त अपनी करुणा से करता है?
9 भजन 40 में दर्ज़ प्रार्थना में दाऊद ने यहोवा से बिनती की कि उसकी करुणा और सत्यता से उसकी रक्षा हो। यहोवा की सत्यता और धार्मिकता के लिए उसका प्रेम यह माँग करता है कि वह साफ-साफ बताए कि उसके स्तर क्या हैं जिनके हिसाब से उसके सेवकों को जीना चाहिए। जो इन स्तरों के मुताबिक जीते हैं वे काफी हद तक उन तकलीफों, डर और समस्याओं से हिफाज़त पाते हैं जो इन स्तरों को न माननेवालों पर आती हैं। मिसाल के लिए, अगर हम उसके स्तरों को मानें और ड्रग्स और शराब का गलत इस्तेमाल न करें, लैंगिक बदचलनी में न पड़ें और दूसरों से लड़ने-झगड़ने और खून-खराबा करने की आदत न डालें, तो हम खुद को साथ ही अपने अज़ीज़ों को कई समस्याओं से बचा पाएँगे। और अगर कोई यहोवा की सत्यता के मार्ग से भटक भी जाए, जैसे कई बार दाऊद के साथ हुआ था, तो वह यकीन रख सकता है कि परमेश्वर प्रायश्चित्त करनेवाले पापियों के लिए अब भी “छिपने का स्थान” है। ऐसे जन बड़ी खुशी से यह कह सकते हैं: “तू संकट से मेरी रक्षा करेगा।” (भजन 32:7) यहोवा ने क्या ही लाजवाब तरीके से अपनी करुणा ज़ाहिर की है!
10 परमेश्वर की करुणा एक और तरीके से ज़ाहिर होती है। वह अपने सेवकों को खबरदार करता है कि वे इस दुष्ट संसार से अलग रहें जिसे वह जल्द ही खत्म करनेवाला है। लिखा है: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।” इस चेतावनी पर ध्यान देने और इसे मानने से हम सचमुच अपनी जान हमेशा-हमेशा के लिए बचाएँगे, क्योंकि यह आयत आगे कहती है: “और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्ना 2:15-17.
विवेक, समझ और बुद्धि से हिफाज़त
11, 12. समझाइए कि विवेक, समझ और बुद्धि से हमारी रक्षा कैसे होती है।
11 जो लोग परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं, उनके लिए दाऊद के बेटे सुलैमान ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा: “विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी।” उसने यह भी कहा: “बुद्धि को प्राप्त कर, . . . बुद्धि को न छोड़, वह तेरी रक्षा करेगी; उस से प्रीति रख, वह तेरा पहरा देगी।”—नीतिवचन 2:11; 4:5, 6.
12 अगर हम परमेश्वर के वचन से सीखी हुई बातों पर मनन करते हैं, तो हम विवेक से काम लेते हैं। ऐसा करने से हम अपनी समझ बढ़ाते हैं ताकि ज़िंदगी में हम सही चीज़ों को पहला स्थान दें। यह बेहद ज़रूरी है, क्योंकि ज़्यादातर लोगों ने तजुरबे से जाना है कि जब वे जानबूझकर या अनजाने में सही चीज़ों को पहला स्थान नहीं देते, तो समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। शैतान की दुनिया हमें लुभाने के लिए धन-दौलत, शोहरत और ताकत का लालच देती है, जबकि यहोवा हमें उकसाता है कि हम अपना ध्यान आध्यात्मिक लक्ष्यों पर बनाए रखें जो दुनिया की इन चीज़ों से कहीं बढ़कर हैं। अगर हम अपनी उपासना से ज़्यादा धन-दौलत या शोहरत जैसी चीज़ों को अहमियत देते हैं, तो इससे हमारा परिवार टूटकर बिखर सकता है, दोस्त हमें छोड़कर जा सकते हैं और परमेश्वर की सेवा में धीरे-धीरे हमारे आगे कोई भी लक्ष्य नहीं रहेगा। और फिर हमें उस हकीकत का सामना करना पड़ेगा जिसके बारे में यीशु ने बताया था: “मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा?” (मरकुस 8:36) बुद्धि यही कहती है कि हम यीशु की इस सलाह पर चलेंगे: “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज [करते रहो] तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।”—मत्ती 6:33.
खुदगर्ज़ होने का खतरा
13, 14. खुदगर्ज़ होने का क्या मतलब है, और खुदगर्ज़ होना क्यों समझदारी की बात नहीं है?
13 इंसान की यह फितरत है कि वह पहले अपने बारे में सोचता है। लेकिन, जब हमारी ख्वाहिशें और खुशियाँ ज़िंदगी में सबसे बड़ी बात बन जाती हैं तब मुसीबतें शुरू होती हैं। इसलिए यहोवा हमसे कहता है कि अगर हम उसके साथ अपनी दोस्ती को मज़बूत बनाए रखना चाहते हैं तो हमें खुदगर्ज़ नहीं होना चाहिए। खुदगर्ज़ी का मतलब है “सिर्फ अपनी गरज़, या मतलब देखनेवाला।” क्या आज ज़्यादातर लोग ऐसे ही नहीं हैं? गौर कीजिए, बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि शैतान की इस दुष्ट व्यवस्था के “अन्तिम दिनों में” “आदमी खुदग़र्ज़” (हिन्दुस्तानी बाइबिल) या सिर्फ खुद से प्यार करनेवाले हो जाएँगे।—2 तीमुथियुस 3:1, 2.
14 मसीही जानते हैं कि बाइबल की इस आज्ञा को मानने में कितनी समझदारी है कि हम दूसरों में दिलचस्पी लें और उनसे ऐसे प्यार करें जैसे हम खुद से करते हैं। (लूका 10:27; फिलिप्पियों 2:4) ज़्यादातर लोगों को लगता है कि आज के ज़माने में ऐसी सलाह मानना नामुमकिन है। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि हमारा शादीशुदा जीवन कामयाब हो, परिवार में सुख-शांति हो और हमारे ऐसे दोस्त हों जिनसे हमें सच्चा सुख मिले तो यही सलाह हमारे काम आएगी। इसलिए, यहोवा का सच्चा सेवक अपने बारे में भी सोचता है, मगर इतना ज़्यादा भी नहीं कि बाकी ज़रूरी कामों पर वह बिलकुल भी ध्यान न दे। इन ज़रूरी कामों में सबसे पहले आती है, यहोवा परमेश्वर की उपासना और उसकी सेवा।
15, 16. (क) खुदगर्ज़ी की वजह से इंसान कैसा बन जाता है, और कौन इसकी मिसाल है? (ख) जब एक इंसान दूसरों का न्याय करने में जल्दबाज़ी करता है, तो वह दरअसल क्या करता है?
15 एक खुदगर्ज़ इंसान खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी समझने लगता है, जिसकी वजह से वह तंगदिल और अक्खड़ बन जाता है। बाइबल बिलकुल सही कहती है: “सो हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्यों न हो; तू निरुत्तर है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिये कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।” (रोमियों 2:1; 14:4, 10) यीशु के दिनों के धर्म-गुरुओं को अपने धर्मी होने पर इतना यकीन था कि वे यह मान बैठे थे कि यीशु और उसके चेलों की बुराई करने का उन्हें पूरा हक है। ऐसा करके वे खुद-ब-खुद न्यायी बन बैठे। अपनी कमियाँ न देख पाने की वजह से, वे खुद पर दंड ले आए।
16 यीशु का चेला, यहूदा जिसने उससे गद्दारी की, उसने भी दूसरों का न्याय करने की गुस्ताखी की। एक बार जब बैतनिय्याह में, लाजर की बहन मरियम ने यीशु के सिर पर सुगंधित तेल डाला तो यहूदा ने कड़े शब्दों में उसका विरोध किया। उसने अपना गुस्सा यह दलील देकर ज़ाहिर किया: “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?” मगर बाइबल का यह वृत्तांत आगे कहता है: “उस ने यह बात इसलिये न कही, कि उसे कंगालों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिये कि वह चोर था और उसके पास उन की थैली रहती थी, और उस में जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था।” (यूहन्ना 12:1-6) हम यहूदा या उन धर्म-गुरुओं जैसे न हों जो जल्दबाज़ी में दूसरों का न्याय करते थे और खुद दंड के लायक ठहरते थे।
17. डींगें मारने या खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा होने का खतरा क्या है, यह एक उदाहरण देकर समझाइए।
17 अफसोस की बात है कि पहली सदी के कुछ मसीही, यहूदा की तरह चोर तो नहीं थे, मगर वे घमंडी हो गए और डींगें मारने लगे थे। याकूब ने ऐसों के बारे में लिखा: “पर अब तुम अपनी डींग पर घमण्ड करते हो।” फिर उसने आगे कहा: “ऐसा सब घमण्ड बुरा होता है।” (याकूब 4:16) यहोवा की सेवा में हमने जो हासिल किया है या हम ज़िम्मेदारी के जिन पदों पर हैं, उनके बारे में डींगें मारने से हम खुद अपना ही नुकसान करते हैं। (नीतिवचन 14:16) याद कीजिए कि प्रेरित पतरस को क्या हुआ था। एक पल के लिए उसने खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा किया और यह डींग मारी: “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएं तो खाएं, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊंगा। . . . यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तौभी मैं तुझ से कभी न मुकरूंगा।” दरअसल हममें ऐसा कुछ नहीं है जिस पर हम घमंड करें। हमारे पास जो कुछ है वह यहोवा के अनुग्रह से हमें मिला है। यह याद रखने से हम डींगें नहीं मारेंगे।—मत्ती 26:33-35, 69-75.
18. यहोवा घमंड के बारे में कैसा महसूस करता है?
18 हमसे कहा गया है: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।” क्यों? यहोवा जवाब देता है: ‘घमण्ड, अहंकार से मैं बैर रखता हूं।’ (नीतिवचन 8:13; 16:18) तभी तो ‘अश्शूर के राजा के गर्व की बातों, और उसकी घमण्ड भरी आंखों’ को देखकर यहोवा के क्रोध की ज्वाला भड़क उठी! (यशायाह 10:12) यहोवा ने उसके घमंड के लिए उसे सज़ा दी। बहुत जल्द शैतान की यह दुनिया, और इसके घमंडी और अहंकारी अगुवे, देखे-अनदेखे सभी को सज़ा दी जाएगी। यहोवा के दुश्मनों जैसे हम कभी ढीठ और घमंडी न बनें!
19. किस मायने में परमेश्वर के लोग गर्व करते हैं मगर फिर भी नम्र रहते हैं?
19 सच्चे मसीही इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि वे यहोवा की सेवा करते हैं। (यिर्मयाह 9:24) साथ ही, उनके पास नम्र होने की भी वजह हैं। क्यों? क्योंकि “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23) इसलिए अगर हम यहोवा की सेवा में अपनी जगह को बरकरार रखना चाहते हैं, तो हमारा रवैया प्रेरित पौलुस जैसा होना चाहिए। जब उसने कहा कि “मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया,” तो उसने यह भी कहा: “जिन में सब से बड़ा [पापी] मैं हूं।”—1 तीमुथियुस 1:15.
20. यहोवा आज अपने लोगों की किस तरह हिफाज़त करता है, और भविष्य में वह कैसे करेगा?
20 यहोवा के लोग खुशी-खुशी अपनी ख्वाहिशों को पीछे रखकर परमेश्वर के काम को आगे रखते हैं। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आध्यात्मिक मायने में उनकी हिफाज़त करता रहेगा। हम यह भी यकीन रख सकते हैं कि जब भारी क्लेश शुरू होगा, तब यहोवा अपने लोगों की न सिर्फ आध्यात्मिक मायने में बल्कि शारीरिक मायने में भी रक्षा करेगा। और जब वे परमेश्वर की नयी दुनिया में दाखिल होंगे, तो खुशी से पुकार उठेंगे: “देखो, हमारा परमेश्वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।”—यशायाह 25:9.
क्या आपको याद है?
• राजा दाऊद और यीशु मसीह की हिफाज़त कैसे की गयी?
• आज यहोवा के सेवकों की हिफाज़त कैसे होती है?
• हमें क्यों खुदगर्ज़ नहीं होना चाहिए?
• हम किस मायने में गर्व करते हैं, फिर भी नम्र रहते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीरें]
यहोवा ने दाऊद और यीशु की हिफाज़त कैसे की?
[पेज 10, 11 पर तसवीरें]
आज परमेश्वर के लोग आध्यात्मिक मायने में हिफाज़त किन तरीकों से पाते हैं?
[पेज 12 पर तसवीरें]
हमें गर्व है कि हम यहोवा की सेवा करते हैं, मगर हमें हमेशा नम्र बने रहना चाहिए