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आप किसकी आज्ञा मानेंगे—परमेश्‍वर की या मनुष्यों की?

आप किसकी आज्ञा मानेंगे—परमेश्‍वर की या मनुष्यों की?

आप किसकी आज्ञा मानेंगे—परमेश्‍वर की या मनुष्यों की?

“मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”प्रेरितों 5:29.

1. (क) इस अध्ययन का मुख्य वचन क्या है? (ख) प्रेरितों को क्यों गिरफ्तार किया गया था?

 यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत ने कुछ ही हफ्ते पहले यीशु मसीह को मौत की सज़ा सुनायी थी। अब यह अदालत उसके सबसे करीबी चेलों यानी प्रेरितों पर मुकदमा चलाने को तैयार थी। उन्हें अदालत लाने के लिए पहरेदारों को जेल भेजा गया। मगर, जेल का नज़ारा देखकर पहरेदार दंग रह गए! कैदियों का कोई अता-पता नहीं था! और जेल के दरवाज़ों पर ताले लगे हुए थे। जब यहूदी अदालत के न्यायाधीशों को इस बात का पता चला तो वे आग-बबूला हो गए होंगे। मगर पहरेदारों को जल्द ही खबर मिली कि प्रेरित यरूशलेम के मंदिर में हैं और वही काम कर रहे हैं जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था—वे लोगों को बेधड़क यीशु मसीह के बारे में सिखा रहे थे। पहरेदार बड़ी फुर्ती से मंदिर में पहुँचे, प्रेरितों को दोबारा हिरासत में लिया और अदालत के सामने पेश किया।—प्रेरितों 5:17-27.

2. एक स्वर्गदूत ने प्रेरितों को क्या आदेश दिया?

2 प्रेरित जेल से छूट कैसे गए थे? दरअसल एक स्वर्गदूत ने आकर उन्हें जेल से निकाला था। क्या उन्हें ज़ुल्म से बचाने के लिए रिहा किया गया था? नहीं, बल्कि इसलिए कि वे यरूशलेम के निवासियों को यीशु मसीह के बारे में खुशखबरी सुना सकें। स्वर्गदूत ने प्रेरितों को यह आदेश दिया: “इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” (प्रेरितों 5:19, 20) इसलिए जब पहरेदार मंदिर आए, तो उन्होंने प्रेरितों को उसी आज्ञा का पालन करते हुए पाया।

3, 4. (क) जब पतरस और यूहन्‍ना को प्रचार बंद करने का हुक्म दिया गया, तो उन्होंने क्या जवाब दिया? (ख) बाकी प्रेरितों ने क्या जवाब दिया?

3 पक्का इरादा रखनेवाले इन प्रचारकों में से प्रेरित पतरस और यूहन्‍ना को पहले भी अदालत के सामने पेश किया गया था। मुख्य न्यायाधीश यूसुफ कैफा ने उस वाकये की याद दिलाते हुए कड़ाई से कहा: “क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम [यीशु के नाम] से उपदेश न करना? तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है।” (प्रेरितों 5:28) पतरस और यूहन्‍ना को दोबारा अदालत में देखकर कैफा को ताज्जुब नहीं होना चाहिए था। क्योंकि जब पहली दफा उन्हें प्रचार बंद करने का हुक्म दिया गया था, तब दोनों प्रेरितों ने अदालत से कहा था: “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्‍वर के निकट भला है, कि हम परमेश्‍वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें। क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें।” प्राचीन समय के नबी यिर्मयाह की तरह, पतरस और यूहन्‍ना भी प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने से खुद को रोक न सके।—प्रेरितों 4:18-20; यिर्मयाह 20:9.

4 अब इस बार, न सिर्फ पतरस और यूहन्‍ना को बल्कि सभी प्रेरितों को, यहाँ तक कि नए प्रेरित मत्तिय्याह को भी यह दिखाने का मौका मिला कि वे अदालत के इस हुक्म को मानेंगे या नहीं। (प्रेरितों 1:21-26) जब उन्हें प्रचार बंद करने का हुक्म सुनाया गया तो उन्होंने भी निडर होकर जवाब दिया: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 5:29.

परमेश्‍वर की आज्ञा मानना या मनुष्य की?

5, 6. प्रेरितों ने अदालत का हुक्म क्यों नहीं माना?

5 ऐसी बात नहीं कि प्रेरित बागी थे। वे देश के कायदे-कानून मानते थे और आम तौर पर अदालत के हुक्म के खिलाफ नहीं जाते थे। मगर कोई भी इंसान, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो, किसी दूसरे इंसान को परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने का हुक्म नहीं दे सकता। क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर “सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” (भजन 83:18) वह न सिर्फ “सारी पृथ्वी का न्यायी” है, बल्कि सबसे बड़ा कानून-साज़ और सनातन राजा भी है। अगर अदालत का कोई भी हुक्म परमेश्‍वर की किसी आज्ञा को रद्द करने की कोशिश करता है, तो वह हुक्म परमेश्‍वर की नज़र में खारिज होता है।—उत्पत्ति 18:25; यशायाह 33:22.

6 इस सच्चाई को कानून के कुछ जाने-माने विद्वानों ने भी कबूल किया है। एक मिसाल है, 18वीं सदी के अँग्रेज़ न्याय-शास्त्री, विलियम ब्लैकस्टोन। उन्होंने लिखा कि इंसान के किसी भी कानून को बाइबल में दिए “परमेश्‍वर के कानून” को खारिज करने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए। यह दिखाता है कि यहूदी महासभा ने प्रेरितों को प्रचार न करने का हुक्म सुनाकर अपने अधिकार की हद पार कर ली थी। इसलिए प्रेरित, किसी भी सूरत में उस हुक्म को नहीं मान सकते थे।

7. प्रचार काम से याजक क्यों क्रोधित हो उठे?

7 प्रचार करते रहने का प्रेरितों का पक्का इरादा देखकर याजक क्रोधित हो उठे। उनमें से कुछ याजक और खुद कैफा भी सदूकी थे जो पुनरुत्थान पर विश्‍वास नहीं करते थे। (प्रेरितों 4:1, 2; 5:17) मगर, प्रेरित बार-बार यही प्रचार कर रहे थे कि यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है। इसके अलावा, याजकों के भड़क उठने की एक और वजह थी। कुछ याजकों ने रोमी अधिकारियों की चापलूसी करके उनका दिल जीतने के लिए बहुत जतन किए थे। यीशु के मुकदमे के वक्‍त जब उन्हें यीशु को अपना राजा चुनने का मौका दिया गया, तब उन्होंने चिल्लाकर यहाँ तक कहा कि “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” (यूहन्‍ना 19:15) * मगर प्रेरित अपने प्रचार से न सिर्फ यह दावा कर रहे थे कि यीशु को मरे हुओं में से जिलाया गया है, बल्कि वे यह भी सिखा रहे थे कि यीशु के नाम को छोड़ “स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।” (प्रेरितों 2:36; 4:12) इसलिए, याजकों को डर था कि अगर लोग पुनरुत्थान पाए यीशु को अपना अगुवा मानने लगें, तो हो सकता है रोमी आकर उनकी “जगह और जाति दोनों” छीन लें।—यूहन्‍ना 11:48.

8. गमलीएल ने महासभा को कौन-सी बुद्धि-भरी सलाह दी?

8 यीशु मसीह के प्रेरितों का भविष्य अंधकारमय लग रहा था। महासभा के न्यायाधीशों ने उन्हें मार डालने की ठान ली थी। (प्रेरितों 5:33) मगर अचानक हालात बदल गए। व्यवस्था के एक बड़े ज्ञानी, गमलीएल ने महासभा में खड़े होकर अपने साथी याजकों को खबरदार किया कि वे प्रेरितों के मामले में जल्दबाज़ी में कोई कदम न उठाएँ। उसने यह बुद्धि-भरी बात कही: “यदि यह धर्म या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा। परन्तु यदि परमेश्‍वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे।” फिर गमलीएल ने एक बहुत बड़ी बात कही: “कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्‍वर से भी लड़नेवाले ठहरो।”—प्रेरितों 5:34, 38, 39.

9. क्या साबित करता है कि प्रेरितों का काम परमेश्‍वर की ओर से था?

9 ताज्जुब की बात है कि अदालत ने गमलीएल की सलाह मान ली। महासभा ने “प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।” मगर, इस घटना से सहम जाने के बजाय, प्रेरितों का यह इरादा और भी मज़बूत हो गया कि वे स्वर्गदूत का आदेश मानते रहेंगे और प्रचार करते रहेंगे। इसलिए रिहा होने के बाद, वे “प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रुके।” (प्रेरितों 5:40, 42) यहोवा ने उनकी मेहनत पर आशीष दी। कितनी आशीष? बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई।” दरअसल, “याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।” (प्रेरितों 6:7) यह देखकर बाकी याजकों को कैसा झटका लगा होगा! एक-के-बाद-एक ढेरों सबूत यही दिखा रहे थे कि प्रेरितों का काम सचमुच परमेश्‍वर की ओर से था!

परमेश्‍वर से लड़नेवाले कभी कामयाब नहीं हो सकते

10. इंसानी नज़रिए से देखें, तो कैफा क्यों अपने पद पर सुरक्षित महसूस कर सकता था, मगर उसका भरोसा क्यों गलत साबित हुआ?

10 पहली सदी में, यहूदियों के महायाजक को रोम के अधिकारी चुनते थे। रोमी अधिकारी, वालेरयुस ग्राटुस ने धनवान यूसुफ कैफा को महायाजक के पद के लिए चुना था। पिछले महायाजकों के मुकाबले कैफा ज़्यादा समय तक महायाजक बना रहा। इस कामयाबी के लिए कैफा ने परमेश्‍वर को श्रेय नहीं दिया बल्कि रोम के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के अपने हुनर और पीलातुस के साथ अपनी दोस्ती को दिया। मगर इंसान पर भरोसा रखकर उसने बड़ी गलती की थी। महासभा के सामने प्रेरितों के पेश होने के सिर्फ तीन साल बाद, कैफा रोमी अधिकारियों की नज़रों से गिर गया और उसे महायाजक के पद से हटा दिया गया।

11. पुन्तियुस पीलातुस और यहूदी व्यवस्था का क्या अंजाम हुआ और इन मिसालों को देखकर आप किस नतीजे पर पहुँचते हैं?

11 कैफा को महायाजक के पद से हटाने का हुक्म पीलातुस से ऊँचे अधिकारी यानी सीरिया के गवर्नर, लूक्युस वीतलीयुस ने दिया था और पीलातुस, कैफा का करीबी दोस्त होते हुए भी कुछ न कर सका। दरअसल, कैफा के हटाए जाने के सिर्फ एक साल बाद, पीलातुस को भी अपने पद से हटाया गया और उसे कई संगीन इलज़ामों के लिए अपनी सफाई पेश करने के वास्ते वापस रोम बुलाया गया। कैसर पर भरोसा रखनेवाले बाकी यहूदी अगुवों का क्या हुआ? रोमियों ने सचमुच आकर ‘उनकी जगह और जाति’ उनसे छीन ली। यह सा.यु. 70 में हुआ जब रोमी सेना ने यरूशलेम शहर को और उसके मंदिर और महासभा के भवन को खाक में मिला दिया। इस मामले में भजनहार के ये शब्द कितने सच साबित हुए: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं”!—यूहन्‍ना 11:48; भजन 146:3.

12. यीशु का मामला कैसे साबित करता है कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानना ही बुद्धिमानी है?

12 इसके बिलकुल उलट, गौर कीजिए कि यीशु का क्या हुआ। परमेश्‍वर ने पुनरुत्थान पाए यीशु मसीह को महान आत्मिक मंदिर का महायाजक ठहराया। कोई भी इंसान यीशु को इस पद से खारिज नहीं कर सकता। यीशु का “याजक पद अटल है।” (इब्रानियों 2:9; 7:17, 24; 9:11) परमेश्‍वर ने यीशु को जीवितों और मरे हुओं का न्यायी भी ठहराया है। (1 पतरस 4:5) अपने इस ओहदे पर रहकर यीशु तय करेगा कि यूसुफ कैफा और पुन्तियुस पीलातुस को भविष्य में जीवन मिलना चाहिए या नहीं।—मत्ती 23:33; प्रेरितों 24:15.

हमारे ज़माने के निडर राज्य प्रचारक

13. हमारे ज़माने में कौन-सा काम इंसान की ओर से था, और कौन-सा परमेश्‍वर की ओर से? यह आप कैसे जानते हैं?

13 पहली सदी की तरह हमारे ज़माने में भी, ‘परमेश्‍वर से लड़नेवालों’ की कमी नहीं रही है। (प्रेरितों 5:39) मिसाल के लिए, जर्मनी में जब यहोवा के साक्षियों ने अडॉल्फ हिटलर को अपना अगुवा न मानकर उसे सलामी देने से इनकार किया, तो हिटलर ने उनका नामो-निशान मिटा देने की कसम खायी। (मत्ती 23:10) उन दिनों जो मुट्ठी भर यहोवा के साक्षी थे, उनके मुकाबले हिटलर के ठहराए मौत के सौदागर कहीं ज़्यादा ताकतवर थे। नात्ज़ी लोग, हज़ारों साक्षियों को गिरफ्तार करने और उन्हें यातना शिविरों में भेजने में कामयाब हुए। उन्होंने कुछ साक्षियों को मार भी डाला। मगर वे साक्षियों के इस अटल इरादे को तोड़ने में नाकाम रहे कि वे परमेश्‍वर को छोड़ किसी और की उपासना नहीं करेंगे। यही नहीं, नात्ज़ी लोग परमेश्‍वर के सेवकों के पूरे समूह को मिटाने में भी नाकाम रहे। इन मसीहियों का काम इंसान की तरफ से नहीं बल्कि परमेश्‍वर की तरफ से था और परमेश्‍वर के कामों को मिटाया नहीं जा सकता। हिटलर के यातना शिविरों से बचनेवाले वफादार साक्षी, आज साठ साल बाद भी “अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ” यहोवा की सेवा कर रहे हैं। जबकि हिटलर और उसकी नात्ज़ी पार्टी कबके मर-खप चुके हैं और उन्हें याद भी किया जाता है तो सिर्फ उनकी काली करतूतों के लिए।—मत्ती 22:37.

14. (क) परमेश्‍वर के सेवकों को बदनाम करने के लिए विरोधियों ने क्या कोशिशें की हैं और इसका क्या नतीजा हुआ है? (ख) क्या इन कोशिशों से परमेश्‍वर के लोगों को हमेशा का नुकसान पहुँचेगा? (इब्रानियों 13:5, 6)

14 नात्ज़ियों के बाद, और भी कई लोगों ने यहोवा और उसके लोगों के खिलाफ लड़ने की कोशिश की है और वे हमेशा हारते आए हैं। यूरोप के कई देशों में, धर्म और राजनीति के चालाक तत्त्वों ने यहोवा के साक्षियों को एक ‘खतरनाक पंथ’ कहा है, ठीक जैसे पहली सदी के मसीहियों पर भी यही इलज़ाम लगाया गया था। (प्रेरितों 28:22) मगर सच्चाई तो यह है कि ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ ने यहोवा के साक्षियों को एक जाने-माने धर्म की मान्यता दी है, न कि एक पंथ समझा है। विरोधियों को भी यह बात अच्छी तरह पता है। फिर भी, वे साक्षियों को बदनाम करने से बाज़ नहीं आते। इस तरह साक्षियों के नाम पर कीचड़ उछालने की वजह से कुछ मसीहियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। स्कूल में साक्षी बच्चों को तंग किया गया है। साक्षी बरसों से जिन इमारतों में सभाएँ चलाते आए हैं, उन इमारतों के मकान-मालिकों ने डर के मारे साक्षियों के साथ अपने कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिए हैं। कुछ मामलों में, सरकारी एजेन्सियों ने लोगों को देश की नागरिकता देने से सिर्फ इसलिए इनकार किया क्योंकि वे यहोवा के साक्षी हैं! इन सारी मुश्‍किलों के बावजूद साक्षियों ने हार नहीं मानी।

15, 16. फ्रांस में यहोवा के साक्षियों के मसीही काम का विरोध किए जाने पर उन्होंने क्या किया, और वे क्यों प्रचार करते रहते हैं?

15 फ्रांस की मिसाल लीजिए। आम तौर पर यहाँ के लोग समझदार और खुले विचारोंवाले हैं। मगर कुछ विरोधियों ने ऐसे कानून पारित करने पर ज़ोर दिया है जिनसे साक्षियों के राज्य काम में रुकावट आ जाए। ऐसे में यहोवा के साक्षियों ने क्या किया? वे प्रचार काम और भी जोश के साथ करने लगे और इसका उन्हें बढ़िया नतीजा मिला। (याकूब 4:7) सिर्फ छः महीने के अंदर, उस देश में बाइबल अध्ययनों की गिनती 33 प्रतिशत बढ़ गयी, जो वाकई कमाल की बात है! यह देखकर शैतान गुस्से से पागल हो रहा होगा कि फ्रांस में इतने सारे नेकदिल लोग सुसमाचार में दिलचस्पी ले रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:17) फ्रांस में रहनेवाले हमारे मसीही भाई-बहनों को पूरा भरोसा है कि यशायाह नबी के ये शब्द उनके मामले में सच साबित होंगे: “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा।”—यशायाह 54:17.

16 ऐसा नहीं है कि यहोवा के साक्षियों को ज़ुल्म सहना अच्छा लगता है। लेकिन परमेश्‍वर ने सभी मसीहियों को जो आज्ञा दी है, उसे वे मानते रहेंगे और जो बातें उन्होंने सीखी हैं उनके बारे में दूसरों को बताने से वे न तो चुप रह सकते हैं और ना ही चुप रहेंगे। वे अच्छे नागरिक बने रहने की भरसक कोशिश करते हैं। लेकिन अगर इंसान के किसी कानून को मानना, परमेश्‍वर के नियम का उल्लंघन करना होगा, तो ऐसे में परमेश्‍वर की आज्ञा मानना ही मसीहियों का फर्ज़ है।

उनसे मत डरो

17. (क) हमें अपने दुश्‍मनों से क्यों डरना नहीं चाहिए? (ख) अपने सतानेवालों की तरफ हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

17 हमारे दुश्‍मन बहुत खतरनाक हालत में हैं। वे परमेश्‍वर के खिलाफ लड़ रहे हैं। इसलिए जैसे यीशु ने आज्ञा दी थी, हम अपने सतानेवालों से डरने के बजाय उनके लिए प्रार्थना करते हैं। (मत्ती 5:44) हम यह प्रार्थना करते हैं कि अगर कोई, तरसुस के शाऊल की तरह अनजाने में परमेश्‍वर का विरोध कर रहा है, तो यहोवा उस पर दया दिखाए और उसकी आँखें खोल दे ताकि वह सच्चाई को पहचान सके। (2 कुरिन्थियों 4:4) शाऊल मसीही प्रेरित पौलुस बना और अपने ज़माने के अधिकारियों के हाथों उसने कई ज़ुल्म सहे। फिर भी, उसने अपने मसीही भाई-बहनों को बार-बार याद दिलाया कि वे “हाकिमों और अधिकारियों के आधीन रहें, और उन की आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रहें। किसी को [यहाँ तक कि उन्हें सतानेवाले कट्टर दुश्‍मनों को भी] बदनाम न करें; झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।” (तीतुस 3:1, 2) फ्रांस और बाकी जगहों में यहोवा के साक्षी इस सलाह को मानने की पूरी कोशिश करते हैं।

18. (क) यहोवा किन तरीकों से अपने लोगों को छुड़ा सकता है? (ख) आखिरी अंजाम क्या होगा?

18 परमेश्‍वर ने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह से कहा: “तुझे छुड़ाने के लिये मैं तेरे साथ हूं।” (यिर्मयाह 1:8) आज यहोवा हमें ज़ुल्मों से कैसे छुड़ा सकता है? वह शायद ऐसा न्यायाधीश खड़ा कर दे जो गमलीएल की तरह बिना पक्षपात के फैसला करे। या वह कुछ ऐसा कर सकता है जिससे एक भ्रष्ट या विरोध करनेवाले अधिकारी की जगह दूसरा अधिकारी आए जो नरमी से पेश आनेवाला हो। लेकिन, कभी-कभी यहोवा अपने लोगों को ज़ुल्म सहने देता है और कोई दखल नहीं देता। (2 तीमुथियुस 3:12) अगर परमेश्‍वर हम पर ज़ुल्म आने देता है, तो वह हमें ज़रूर सहने की ताकत भी देगा। (1 कुरिन्थियों 10:13) परमेश्‍वर हम पर चाहे जो भी ज़ुल्म आने की इजाज़त दे, हमें पता है कि आखिरी अंजाम यही होगा: परमेश्‍वर के लोगों से लड़नेवाले दरअसल परमेश्‍वर के खिलाफ लड़ रहे हैं और परमेश्‍वर के खिलाफ लड़नेवाले कभी जीत नहीं सकते।

19. सन्‌ 2006 का सालाना वचन क्या है, और इसे चुनना क्यों बिलकुल सही है?

19 यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि उन पर क्लेश ज़रूर आएँगे। (यूहन्‍ना 16:33) इस बात को मद्देनज़र रखते हुए, प्रेरितों 5:29 के शब्द पहले से कहीं ज़्यादा आज हमारे लिए मायने रखते हैं: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” यही वजह है कि इन शब्दों को सन्‌ 2006 के लिए, यहोवा के साक्षियों का सालाना वचन चुना गया है। आइए ठान लें कि हम इस आनेवाले साल के दौरान और हमेशा के लिए, हर हाल में परमेश्‍वर की आज्ञा मानेंगे!

[फुटनोट]

^ उस मौके पर याजकों ने जिस “कैसर” को सरेआम अपना राजा माना, वह था रोमी सम्राट तिबिरियुस। वह तुच्छ और पाखंडी इंसान था और एक खूनी भी। तिबिरियुस अपनी घृणित लैंगिक बदचलनी के लिए भी बदनाम था।—दानिय्येल 11:15, 21.

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

• प्रेरितों ने जिस तरह विरोध का सामना किया, उससे हमें क्या हौसला मिलता है?

• हमें हर वक्‍त मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा क्यों माननी चाहिए?

• हमारे दुश्‍मन असल में किसके खिलाफ लड़ रहे हैं?

• जो लोग ज़ुल्म सहते हैं, उनके मामले में हम किस अंजाम की उम्मीद कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2006 का सालाना वचन है: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों 5:29

[पेज 19 पर तसवीर]

“मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है”

[पेज 21 पर तसवीर]

कैफा ने परमेश्‍वर के बजाय इंसानों पर भरोसा रखा