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अपने साथी से बात करने के लिए क्या ज़रूरी है?

अपने साथी से बात करने के लिए क्या ज़रूरी है?

अपने साथी से बात करने के लिए क्या ज़रूरी है?

‘मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।’ ‘मैं अपनी बात ठीक से नहीं कह पायी।’ अपने साथी से बात करने के बाद, क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है? यह दिखाता है कि अपनी बात सही तरीके से कहने का हुनर बढ़ाना कितना ज़रूरी है। कुछ लोगों के लिए अपनी बात कहना काफी आसान होता है, जबकि दूसरों को यह बहुत मुश्‍किल लगता है। अगर आपके लिए यह मुश्‍किल काम है, तो यकीन मानिए आप भी अपनी बात इस तरीके से कहना सीख सकते हैं कि लोगों को आपकी बात अच्छी लगे और सही-सही समझ भी आए।

इंसान जिस संस्कृति और समाज में पलता-बढ़ता है, अकसर उसी के हिसाब से वह अपने साथी के साथ पेश आता है। लड़कों को बचपन से सिखाया जाता है कि ‘मर्दों को बातूनी नहीं होना चाहिए।’ और जो मर्द बातूनी होते हैं, उन्हें शायद लोग छिछोरा समझें। बेशक बाइबल कहती है: “हर आदमी [को] सुनने में तेज़ और बोलने में धीरा” होना चाहिए। (याकूब 1:19, हिन्दुस्तानी बाइबल) मगर यह सलाह स्त्री-पुरुष दोनों पर लागू होती है। और यह दिखाती है कि बातचीत का मतलब यह नहीं कि कोई अपना ही राग अलापता रहे। दो लोग शायद घंटों एक-दूसरे से बात करते रहें, लेकिन अगर वे एक-दूसरे की न सुनें तो क्या यह सही मायने में बातचीत होगी? नहीं। जैसा कि ऊपर की आयत दिखाती है, अच्छी बातचीत के लिए दूसरे की सुनना भी बहुत ज़रूरी है।

बिना कुछ कहे अपनी बात कहना

कई समाज ऐसे हैं जिनमें पत्नियों से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वे जो सोचती या महसूस करती हैं, वह दूसरों को बताएँ। दूसरी तरफ, पतियों का घर-गृहस्थी के मामलों में उलझना अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे में पति-पत्नी को सिर्फ यह अंदाज़ा लगाना पड़ता है कि उसके साथी को किस वक्‍त क्या चाहिए। कई पत्नियाँ, अपने पति की ज़रूरतों को भाँप लेने में बहुत माहिर हो जाती हैं और फौरन उन्हें पूरा कर देती हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि पति-पत्नी के बीच बिना कुछ कहे बातचीत होती है। मगर, आम तौर पर यह एकतरफा होती है यानी सिर्फ पत्नी ही समझने की कोशिश करती है कि उसका पति क्या सोच रहा है या महसूस कर रहा है। मगर दूसरी तरफ, पति से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह अपनी पत्नी के जज़बातों को समझे।

यह सच है कि कुछ संस्कृतियाँ ऐसी भी हैं जहाँ पति अपनी पत्नी के जज़बातों को समझने और उस हिसाब से उसकी ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश करता है। लेकिन ऐसी संस्कृतियों में भी अगर बहुत-से शादीशुदा जोड़े अपनी बात अच्छी तरह कहें और दूसरे की सुनें, तो उन्हें काफी फायदा होगा।

बातचीत करना बेहद ज़रूरी

खुली बातचीत से गलतफहमियाँ पैदा ही नहीं होतीं, ना ही हमारी बात का गलत मतलब निकाला जाता है। इसकी एक मिसाल इस्राएल देश के शुरू के इतिहास में देखी जा सकती है। इस्राएलियों के ज़्यादातर गोत्र यरदन नदी के पश्‍चिम में बस गए मगर रूबेन, गाद और मनश्‍शे के आधे गोत्र को यरदन के पूर्व में इलाके दिए गए। पूर्व के इन गोत्रों ने यरदन के किनारे पर “देखने के योग्य एक बड़ी वेदी” बनायी। बाकी गोत्रों ने उनके इस काम का गलत मतलब निकाला। उन्हें लगा कि यरदन के पार उनके भाई सच्ची उपासना के खिलाफ जा रहे हैं, इसलिए उन्हें सज़ा देने के लिए वे उनसे लड़ने को तैयार हो गए। मगर लड़ाई पर जाने से पहले उन्होंने पूर्वी गोत्रों से बात करने के लिए अपना एक दल भेजा। यह वाकई अक्लमंदी का काम था! क्यों? क्योंकि उनसे बात करने पर उन्हें पता चला कि वह वेदी ऐसे बलिदान चढ़ाने के लिए नहीं बनायी गयी थी, जिन्हें चढ़ाना परमेश्‍वर की कानून-व्यवस्था के मुताबिक गलत होता। दरअसल, पूर्वी गोत्रों को डर था कि आगे चलकर पश्‍चिम के गोत्र उनसे कहेंगे: “यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं है।” इसलिए यह वेदी पश्‍चिम के गोत्रों को गवाही देती कि यरदन के पूर्व में रहनेवाले उनके भाई भी यहोवा के उपासक हैं। (यहोशू 22:10-29) उन्होंने इस वेदी का नाम साक्षी रखा शायद इसलिए कि वह वेदी इस बात की शहादत देती कि पूर्वी गोत्र, यहोवा को सच्चा परमेश्‍वर मानते थे।—यहोशू 22:34, फुटनोट।

पूर्व के ढाई गोत्रों से यह सफाई सुनकर बाकी गोत्रों की गलतफहमी दूर हुई और वे उनसे लड़ने नहीं गए। जी हाँ, खुली बातचीत ने एक जंग को शुरू होने से रोक दिया। बाद में, जब इस्राएल ने यहोवा के खिलाफ बगावत की, जो आध्यात्मिक मायने में उनका पति था, तो यहोवा ने उनसे कहा कि वह उन्हें दया दिखाएगा और ‘अपनी बात उनके दिल तक पहुँचाएगा।’ (होशे 2:14, NW) शादीशुदा जोड़ों के लिए यह क्या ही बेहतरीन मिसाल है! आप भी अपनी बात अपने साथी के दिल तक पहुँचाने की कोशिश कीजिए ताकि वह आपके जज़बात समझ सके। ऐसा करना तब ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है, जब आप दोनों किसी नाज़ुक मसले पर बात कर रहे हों। अमरीका की एक पत्रकार, पैटी मिहालिक कहती हैं: “कुछ लोगों का मानना है कि शब्दों का क्या, उनकी कोई कीमत नहीं होती, मगर अकसर शब्द ही ऐसे काम कर जाते हैं जिनकी कीमत पैसों से आँकी नहीं जा सकती। शायद कुछ लोगों को अपने दिल की बात कहने के लिए सही शब्द चुनना बहुत मुश्‍किल लगे, मगर ऐसा करने से उन्हें जितने फायदे मिलेंगे, उतने बैंक में रखी उनकी जमा-पूँजी से भी न मिलेंगे।”

अपनी बात कहने और दूसरे की सुनने की कला सीखिए

कुछ पति-पत्नियों का मानना है कि शादी के बाद बातचीत करने के तरीकों में सुधार लाना मुमकिन नहीं है। इसलिए ऐसे लोग शायद कहें: ‘पहले दिन से ही हमारी शादी बरबादी बनकर रह गयी।’ कुछ और शायद यह मान लें: ‘अब कुछ नहीं हो सकता, हमारा अलग होना तय है।’ मगर ज़रा उन लोगों के बारे में सोचिए जिनके समाज में शादियाँ घर-परिवार के लोग तय करते हैं। उनमें से कइयों ने शादी के बाद अपने साथी से अच्छी बातचीत करने में कामयाबी पायी है।

पूर्वी देश में एक जोड़े की शादी उनके परिवार के लोगों ने तय की। एक बिचौलिए को दूर देश जाकर लड़के के लिए दुल्हन ढूँढ़नी थी। दूल्हा-दुल्हन ने एक-दूसरे को कभी नहीं देखा था, फिर भी शादी के बाद उन्होंने बड़े लाजवाब ढंग से दिखाया कि वे अपनी बात कहने और दूसरे की सुनने-समझने की कला बखूबी जानते हैं। दूल्हे का नाम था इसहाक और दुल्हन थी रिबका। जब बिचौलिया दुल्हन को ला रहा था, तो इसहाक उन्हें मैदान में मिला। बिचौलिए ने “जो कुछ किया था वह सब इसहाक को कह सुनाया।” (NHT) चार हज़ार साल पहले की इस शादी के बारे में बाइबल बताती है: “तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याहकर उस से प्रेम किया।”—उत्पत्ति 24:62-67.

गौर कीजिए कि इसहाक ने पहले बिचौलिए से पूरा किस्सा सुना और इसके बाद ही रिबका को अपनी पत्नी बनाया। यह बिचौलिया भरोसेमंद सेवक था और इसहाक की तरह ही यहोवा परमेश्‍वर का उपासक था। इस वजह से इसहाक उस पर भरोसा कर सकता था। और फिर शादी के बाद इसहाक रिबका से ‘प्रेम करने लगा।’

हम कैसे कह सकते हैं कि इसहाक और रिबका ने अपनी बात अच्छी तरह कहने और एक-दूसरे को समझने का हुनर बढ़ाया था? जब उनके बड़े बेटे एसाव ने हित्ती जाति की दो लड़कियों से शादी की, तो उनके परिवार में कलह मच गयी। रिबका इसहाक से बार-बार कहती रही: “मैं हित्ती लड़कियों के साथ रहते रहते उकता गई हूं! यदि याकूब [उनका छोटा बेटा] भी . . . किसी हित्ती लड़की से विवाह कर लेता है, तब मेरे जीवन में मुझे कौन-सा सुख मिलेगा?” (उत्पत्ति 26:34; 27:46, NHT) ज़ाहिर है, रिबका ने साफ शब्दों में अपनी परेशानी इसहाक को बतायी।

इसहाक ने अपने दूसरे बेटे, याकूब को आज्ञा दी कि वह किसी कनानी लड़की से शादी न करे। (उत्पत्ति 28:1, 2) इससे पता चलता है कि इसहाक ने रिबका की बात को अच्छी तरह समझा और फिर ज़रूरी कदम उठाया। इस जोड़े ने अपने परिवार के एक बहुत ही नाज़ुक मसले पर बात करने और एक-दूसरे की बात समझने में कामयाबी पायी। यह हमारे लिए एक बहुत बढ़िया मिसाल है। लेकिन अगर पति-पत्नी किसी मसले पर एक-दूसरे से सहमत नहीं होते, तब क्या किया जा सकता है?

झगड़ों से कैसे निपटा जाए

अगर आपका अपने साथी के साथ किसी बात पर ज़बरदस्त झगड़ा हुआ है, तो उससे बात करना बंद मत कीजिए। क्योंकि आपकी चुप्पी आपके साथी को यह ज़बरदस्त एहसास दिला सकती है: जब मैं खुश नहीं हूँ तो तुम कैसे खुश रह सकते हो। मगर हो सकता है कि आपके साथी को आपकी नाराज़गी की वजह और आप क्या चाहते हैं और कैसा महसूस कर रहे हैं, यह सही-सही समझ ही न आया हो।

आप दोनों को शायद एक-दूसरे से खुलकर बात करने की ज़रूरत हो। अगर मसला ऐसा है जिससे आपके साथी को ठेस पहुँच सकती है, तो ऐसे में शांत रहना मुश्‍किल हो सकता है। इसहाक के माता-पिता, इब्राहीम और सारा को एक बार ऐसी ही मुश्‍किल का सामना करना पड़ा। सारा की औलाद नहीं थी, इसलिए उसने उन दिनों के दस्तूर को मानते हुए इब्राहीम को अपनी दासी, हाजिरा दी ताकि वह उनका वारिस पैदा करे। हाजिरा से इब्राहीम को एक बेटा हुआ जिसका नाम इश्‍माएल रखा गया। मगर बाद में, सारा भी गर्भवती हुई और उसने इब्राहीम के बेटे, इसहाक को जन्म दिया। जब इसहाक का दूध छुड़ाने का दिन आया, तो सारा ने देखा कि इश्‍माएल उसके बेटे की हँसी उड़ा रहा था और उसे सता रहा था। सारा समझ गयी कि उसके बेटे को इश्‍माएल से खतरा हो सकता है, इसलिए उसने इब्राहीम से कहा कि वह हाजिरा और इश्‍माएल को घर से निकाल दे। जी हाँ, सारा ने अपने दिल की बात इब्राहीम से साफ-साफ कही। मगर यह बात इब्राहीम को बहुत बुरी लगी।

तो फिर, यह झगड़ा कैसे मिटाया गया? बाइबल बताती है: “परमेश्‍वर ने इब्राहीम से कहा, उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा।” इब्राहीम ने यहोवा परमेश्‍वर की आज्ञा मानी और उसी के मुताबिक काम किया।—उत्पत्ति 16:1-4; 21:1-14.

आप शायद कहें: ‘अगर हमें भी आसमान से ईश्‍वर की आवाज़ सुनायी देती, तो हम अपने झगड़ों को मिटा सकते हैं!’ अगर ऐसा है, तो गौर कीजिए कि इन झगड़ों को मिटाने के लिए और क्या ज़रूरी है। आज भी, जी हाँ, अभी-भी शादीशुदा जोड़े परमेश्‍वर की आवाज़ सुन सकते हैं। कैसे? साथ बैठकर परमेश्‍वर का वचन पढ़ने से और यह कबूल करने से कि उसमें जो भी लिखा है, वह परमेश्‍वर की ही आज्ञा है।—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.

एक तजुरबेकार मसीही बहन कहती है: “जब कोई जवान बहन अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में मुझसे सलाह माँगने आती है, तो मैं उससे पूछती हूँ कि क्या वे दोनों साथ-साथ बाइबल पढ़ते हैं। मैंने पाया है कि अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलों से गुज़रनेवाले ज़्यादातर जोड़े ऐसा नहीं करते।” (तीतुस 2:3-5) इस बहन ने जो कहा उससे हम सब फायदा पा सकते हैं। अपने पति या पत्नी के साथ मिलकर हर दिन परमेश्‍वर का वचन पढ़िए। इस तरह आप परमेश्‍वर की बातें “सुनेंगे” कि आपको हर दिन कैसे पेश आना चाहिए। (यशायाह 30:21, NHT) मगर सावधान: आप बाइबल को एक डंडे की तरह इस्तेमाल मत कीजिए और बार-बार अपने साथी को ऐसी आयतें न दिखाइए जिन पर आपके हिसाब से वह नहीं चल रहा/रही। इसके बजाय, यह समझने की कोशिश कीजिए कि आप जो पढ़ रहे हैं, उस पर आप दोनों कैसे अमल कर सकते हैं।

अगर आप कोई बड़ी समस्या सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं, तो क्यों न उस समस्या के बारे में वॉच टावर पब्लिकेशन्स्‌ इंडैक्स * की मदद लें? मान लीजिए, आप बुज़ुर्ग माता-पिता की देखरेख कर रहे हैं और इस वजह से आपके और आपके साथी के बीच तनाव बढ़ रहा है। इस बात पर झगड़ा करने के बजाय कि आपके साथी को क्या करना चाहिए और क्या नहीं, क्यों न आप दोनों साथ बैठकर इंडैक्स में छानबीन करें? सबसे पहले, मुख्य शीर्षक “Parents” (माता-पिता) देखिए। फिर, “caring for aged parents” (बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल करना) जैसे उपशीर्षक के नीचे दिए हवालों को देखिए। यहोवा के साक्षियों की किताबों-पत्रिकाओं में से ऐसे लेख साथ-साथ पढ़िए जो आपके हालात के लिए बढ़िया सलाह देते हैं। आपको यह देखकर शायद ताज्जुब हो कि बाइबल से ली गयी इस जानकारी से आपको और आपके साथी को कितना फायदा हो सकता है। और हाँ, ऐसी जानकारी से कई नेकदिल मसीही फायदा पा चुके हैं।

जिन लेखों का हवाला दिया गया है, उन्हें निकालकर साथ-साथ पढ़ने से आप अपनी समस्या को वैसे समझ पाएँगे जैसे समझना चाहिए। इन लेखों में आपको बाइबल के वचन लिखे हुए मिलेंगे या सिर्फ उनके हवाले मिलेंगे और इनकी मदद से आप जान पाएँगे कि परमेश्‍वर की सोच क्या है। बाइबल खोलकर ये हवाले साथ-साथ पढ़िए। जी हाँ, ऐसा करने से आपको परमेश्‍वर की आवाज़ ज़रूर सुनायी देगी कि आप अपनी समस्या को कैसे हल कर सकते हैं।

बातचीत का रास्ता खुला रखिए

क्या आपने कभी ऐसा दरवाज़ा खोलने की कोशिश की है जो काफी समय से बंद पड़ा हो? दरवाज़ा खुलते वक्‍त बहुत चरमराएगा क्योंकि कब्ज़ों पर ज़ंग लगा हुआ है। लेकिन अगर वह दरवाज़ा रोज़ खोला या बंद किया जाता और साथ ही उसके कब्ज़ों में तेल डाला जाता, तो उसे खोलने में कोई परेशानी नहीं होती। बातचीत करना भी बंद दरवाज़े को खोलने जैसा है। जो काम कब्ज़ों में तेल का होता है, वही बातचीत में प्यार का होता है। अगर आप अपने साथी के साथ लगातार बात करते हैं, और अपनी बातचीत में मसीही प्यार दिखाते हैं, तो आप ऐसे वक्‍त पर भी अपनी बात आसानी से कह पाएँगे, जब किसी अहम मसले को लेकर आप दोनों में ज़ोरदार बहस छिड़ी हुई हो।

आपको अपनी बात कहने के तरीके में सुधार कहीं-न-कहीं से तो शुरू करना ही होगा। हालाँकि अपनी बात सही तरह से कहने में आपको शुरू में काफी जद्दोजेहद करनी पड़े, मगर कोशिश करना मत छोड़िए। तब आप देख सकेंगे कि अपने साथी के साथ बात करने में आपको कोई खास दिक्कत नहीं आती और इस वजह से आप एक-दूसरे को ज़्यादा अच्छी तरह समझ पा रहे हैं।

[फुटनोट]

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 7 पर तसवीर]

जब आपके बीच झगड़ा होता है, तब क्या आप परमेश्‍वर से मदद लेने की कोशिश करते हैं?