इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है, यह जानने से मेरी ज़िंदगी बदल गयी

परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है, यह जानने से मेरी ज़िंदगी बदल गयी

जीवन कहानी

परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है, यह जानने से मेरी ज़िंदगी बदल गयी

हैरी पलॉयन की ज़ुबानी

परमेश्‍वर, इंसानों पर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है? बचपन से ही यह सवाल मुझे परेशान करता था। मेरे माँ-बाप सीधे-सादे भले लोग थे और अपने परिवार की बहुत अच्छी देखभाल करते थे। लेकिन पिताजी को धर्म में दिलचस्पी नहीं थी, और माँ को थी भी तो बहुत कम। इसलिए वे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं दे सके।

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, मैं तीन साल से भी ज़्यादा समय तक अमरीकी नौ-सेना में रहा। मगर चाहे जंग का दौर हो या उसके बाद का, इस सवाल ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। जंग खत्म होने के बाद, मुझे राहत का सामान पहुँचानेवाले जहाज़ पर चीन भेजा गया। मैं वहाँ करीब एक साल तक रहा। वहाँ रहते हुए मैंने खुद अपनी आँखों से देखा कि किस कदर हज़ारों-लाखों लोग दुःख-तकलीफों से तड़प रहे हैं।

चीन के लोग मेहनती और होशियार होते हैं। मगर दूसरे विश्‍वयुद्ध में हुई मार-काट और उसके बाद फैली घोर तंगहाली की वजह से उनका बुरा हाल था। खासकर वहाँ के प्यारे-प्यारे बच्चों की हालत देखकर मेरा दिल पसीज उठता था। जब भी हम जहाज़ से उतरकर किनारे पर आते, तो चिथड़े पहने, भूख से बेहाल बच्चे हमसे भीख माँगने हमारे पीछे-पीछे आते थे।

आखिर क्यों?

मेरा जन्म सन्‌ 1925 में हुआ था। और मेरी परवरिश अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में हुई थी। इसलिए मैंने चीन में लोगों की जो दुर्दशा देखी, वैसी हालत मैंने ज़िंदगी में पहले कभी नहीं देखी थी। इसके बाद से यह खयाल रह-रहकर मुझे सताने लगा: ‘अगर इस दुनिया को बनानेवाला कोई सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है, तो वह इस कदर इंसानों पर, खासकर मासूम बच्चों पर तकलीफें क्यों आने देता है?’

मैं यह भी सोचा करता था कि अगर वाकई कोई परमेश्‍वर है, तो क्यों उसने सदियों से इंसानों पर इतनी तबाही आने दी, क्यों उसने पूरी-की-पूरी जातियों का कत्लेआम होने दिया, लोग क्यों तबाह-बरबाद हुए। खासकर उसने दूसरे विश्‍वयुद्ध जैसी बड़ी जंगें क्यों होने दीं, जिसमें पाँच करोड़ से ज़्यादा लोगों की जानें गयीं। और-तो-और, क्यों पादरियों के बहकावे में आकर एक ही मज़हब के लोग एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू हो गए, सिर्फ इसलिए कि वे अलग-अलग देशों के रहनेवाले थे?

मेरी दूरबीन

जब सन्‌ 1939 में दूसरा विश्‍वयुद्ध छिड़ गया, और मैंने देखा कि जंग की वेदी पर लाखों लोग बलि चढ़ रहे हैं, तो मुझे लगने लगा कि वाकई कोई परमेश्‍वर नहीं है। इसके बाद, अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान, एक दिन विज्ञान की क्लास में हमें बताया गया कि हर विद्यार्थी को कोई-न-कोई वैज्ञानिक उपकरण बनाना होगा। मुझे खगोल-विज्ञान में बहुत दिलचस्पी थी, इसलिए मैंने एक बड़ी-सी दूरबीन बनाने की सोची, जिसके अंदर 20 सेंटिमीटर व्यास का शीशा लगा हो।

दूरबीन बनाने के लिए मैंने 2.5 सेंटीमीटर मोटा और 20 सेंटीमीटर चौड़ा शीशा खरीदा और उसे गोल आकार में कटवाया। फिर मैंने एक अवतल लेंस (कॉनकेव मिरर, जिसकी सतह अंदर की तरफ दबी हुई होती है) बनाने के लिए, अपने हाथों से शीशे की घिसाई का काम शुरू किया। करीब साढ़े चार महीने तक मेरा सारा खाली वक्‍त इसे बनाने में लगा। जब लेंस बन गया, तो मैंने धातु की एक लंबी नली में उसे लगाया और उसमें अलग-अलग दूरी दिखानेवाले नेत्रिका लेंस (यानी आइपीस) लगाकर अपनी दूरबीन तैयार कर ली।

फिर एक अमावस की रात, मैं पहली बार अपनी दूरबीन बाहर लाया और आसमान को देखा। मैं यह देखकर दंग रह गया कि आसमान में कितने बेशुमार चाँद-सितारे हैं, और ये सब बड़ी व्यवस्था और तरतीब से घूम रहे हैं। फिर जब मैंने जाना कि इनमें से कई “तारे” असल में मंदाकिनियाँ हैं जो हमारी आकाश-गंगा जैसी हैं, और हरेक में अरबों तारे हैं, तो मैं और भी दंग रह गया।

मैंने सोचा, ‘ऐसा तो हो नहीं सकता कि ये सब अपने आप आ गया हो। क्योंकि क्रम या व्यवस्था से चलनेवाली कोई भी चीज़ अपने आप इत्तफाक से पैदा नहीं होती। इस पूरे विश्‍व में पायी जानेवाली व्यवस्था इतनी लाजवाब है कि ज़रूर इसके पीछे किसी महान रचनाकार का हाथ होगा। तो क्या ऐसा हो सकता है कि वाकई परमेश्‍वर जैसी कोई हस्ती है?’ मैं करीब-करीब एक नास्तिक बन चुका था, मगर मेरी दूरबीन ने मुझे दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया।

मगर फिर भी मेरे मन में सवाल उठा: ‘अगर वाकई कोई परमेश्‍वर है जो इतना शानदार जहान बनाने की काबिलीयत रखता है, तो क्या वह दुनिया की ऐसी बदतर हालत को सुधार नहीं सकता? दरअसल उसने दुनिया की ऐसी हालत होने ही क्यों दी?’ मैंने धर्म के माननेवालों से ये सवाल पूछे मगर उनके जवाबों से मुझे तसल्ली नहीं हुई।

हाई स्कूल और कई साल कॉलेज की पढ़ाई के बाद, मैं अमरीकी नौ-सेना में भर्ती हो गया। मगर फौज के पादरी भी मेरे सवालों के ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाए। अकसर उनका जवाब होता था, “प्रभु की माया को हम समझ नहीं सकते।”

मेरी तलाश जारी रही

चीन छोड़ने पर भी यह सवाल मेरे मन से नहीं गया कि परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है। खासकर, उस वक्‍त इस सवाल ने मुझे बहुत परेशान किया जब चीन से अमरीका लौटते वक्‍त, अपने सफर में हम प्रशांत महासागर के अलग-अलग द्वीपों पर फौजियों के कब्रिस्तानों में गए। ये कब्रें ज़्यादातर नौजवानों की थीं जिन्होंने अभी-अभी जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा था।

जब मैं अमरीका लौटा तो मुझे नौ-सेना से छुट्टी दे दी गयी। मुझे मैसाचुसेट्‌स, कैम्ब्रिज के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी स्कूल की पढ़ाई का एक साल पूरा करना था। उसके अगले साल मैंने ग्रेजुएशन किया, और डिगरी हासिल की। मगर इसके बाद मैं अपने घर कैलिफोर्निया नहीं गया। मैं अपने सवालों के जवाब जानना चाहता था, इसलिए मैंने न्यू यॉर्क शहर जाने का फैसला किया, क्योंकि वहाँ कई धर्मों को माना जाता है। मैंने सोचा कि अलग-अलग धार्मिक सभाओं में जाकर देखूँगा कि वे क्या बताते हैं। इसलिए मैंने पूर्वी अमरीका में ही रहने का फैसला किया।

जब मैं न्यू यॉर्क में था, तो मेरी मौसी, इज़बल कपीजियन ने मुझे अपने घर पर रहने के लिए बुलाया। मौसी और उसकी दो बेटियाँ, रोज़ और रूत, यहोवा की साक्षी थीं। मैं सोचता था कि मुझे उनके धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं होगी, इसलिए मैंने उनके धर्म को छोड़कर दूसरे धर्मों की सभाओं में जाना शुरू किया। उन धर्मों के लोगों के साथ मैं चर्चा करता और उनकी किताबें पढ़ता था। मैं उनसे पूछता था कि परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है, पर वे भी इसका जवाब नहीं जानते थे। तब मुझे यकीन हो चला था कि शायद कोई परमेश्‍वर नहीं है।

मुझे जवाब मिल गए

फिर मैंने मौसी और उसकी बेटियों से कहा कि मैं उनकी कुछ किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता था कि यहोवा के साक्षी क्या मानते हैं। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि साक्षी, दूसरे धर्मों के लोगों से बिलकुल अलग हैं। उनकी किताबों में दिए सारे जवाब बाइबल से थे, जिन्होंने मुझे कायल कर दिया था। परमेश्‍वर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है, इससे जुड़े तमाम सवालों के जवाब मुझे कुछ ही वक्‍त के अंदर मिल गए!

इतना ही नहीं, मैं देख सकता था कि यहोवा के साक्षी न सिर्फ बाइबल की शिक्षाएँ देते हैं, बल्कि खुद उनका पालन भी करते हैं। मिसाल के लिए, मैंने अपनी मौसी से सवाल किया कि दूसरे विश्‍वयुद्ध में जर्मनी के जवान साक्षियों ने क्या किया था। क्या वे जर्मनी की फौज में भर्ती हुए थे और क्या उन्होंने “हेल हिटलर!” का नारा लगाया और नात्ज़ियों के स्वस्तिक झंडे को सलामी दी थी? मौसी ने कहा, बिलकुल नहीं, वे निष्पक्ष रहे। और इसी वजह से उन्हें यातना शिविरों में भेज दिया गया, जहाँ उनमें से कइयों को मौत के घाट उतार दिया गया। मौसी ने मुझे बताया कि जंग के दौरान हर देश में यहोवा के साक्षियों ने यही रुख अपनाया: वे निष्पक्ष रहे। यहाँ तक कि जिन देशों में लोकतंत्र का राज है, वहाँ पर भी उनके निष्पक्ष रहने की वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया।

इसके बाद, मौसी ने मुझे यूहन्‍ना 13:35 पढ़ने को कहा, जो कहता है: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” उसने मुझे बताया कि एक-दूसरे के लिए प्यार ही दुनिया-भर में सच्चे मसीहियों की पहचान है। इसलिए वे कभी-भी देश के नाम पर, एक-दूसरे की जान नहीं लेंगे! मौसी ने मुझसे पूछा: “क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि यीशु मसीह और उसके चेले रोम की लड़ाइयों में तलवारें लेकर एक-दूसरे का सामना करने खड़े हों?”

मौसी ने मुझे 1 यूहन्‍ना 3:10-12 भी पढ़ने को कहा। वहाँ लिखा है: “इसी से परमेश्‍वर की सन्तान, और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धर्म के काम नहीं करता, वह परमेश्‍वर से नहीं, और न वह, जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता। . . . हम एक दूसरे से प्रेम रखें। और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई को घात किया।”

बाइबल में कितना साफ बताया गया है कि सच्चे मसीही चाहे किसी भी देश में क्यों न रहते हों, वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं। इसलिए वे न तो अपने आध्यात्मिक भाइयों की ना ही किसी और की जान ले सकते हैं। यही वजह है कि यीशु ने अपने चेलों के बारे में कहा: “जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।”—यूहन्‍ना 17:16.

मैंने जाना कि दुःख को इजाज़त क्यों दी गयी है

कुछ ही समय के अंदर मैंने जाना कि बाइबल इस सवाल का जवाब देती है कि परमेश्‍वर ने दुःख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं। यह बताती है कि जब परमेश्‍वर ने हमारे पहले माता-पिता की सृष्टि की तो उन्हें सिद्ध जीवन दिया और एक फिरदौस में रखा था। (उत्पत्ति 1:26; 2:15) इतना ही नहीं, उसने उन दोनों को आज़ाद मरज़ी भी दी थी, यानी अपने फैसले खुद करने की काबिलियत। मगर उन्हें अपनी इस काबिलीयत का सही इस्तेमाल करना था। अगर वे परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानते तो हमेशा के लिए उस फिरदौस में सिद्ध ज़िंदगी जी सकते थे। वे उस फिरदौस की सरहदों को बढ़ाकर एक दिन पूरी धरती को फिरदौस बना देते। उनके बच्चे भी सिद्ध होते, इसलिए यह खूबसूरत फिरदौस, हँसते-मुस्कराते सिद्ध इंसानों से आबाद हो जाता।—उत्पत्ति 1:28.

लेकिन अगर आदम और हव्वा परमेश्‍वर से नाता तोड़कर अपनी मरज़ी करने का चुनाव करते, तो वे सिद्ध जीवन से हाथ धो बैठते। (उत्पत्ति 2:16, 17) अफसोस कि हमारे पहले माता-पिता ने अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल किया और परमेश्‍वर से अलग होकर अपनी मरज़ी से जीने का फैसला किया। उन्होंने एक बगावती स्वर्गदूत के बहकावे में आकर ऐसा किया, जो बाद में शैतान इब्‌लीस कहलाया। शैतान के अंदर परमेश्‍वर से आज़ाद होकर जीने और इंसानों से अपनी उपासना करवाने का लोभ पैदा हो गया था, जबकि उपासना पाने का हकदार सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर है।—उत्पत्ति 3:1-19; प्रकाशितवाक्य 4:11.

इस तरह शैतान ‘इस संसार का ईश्‍वर’ बन गया। (2 कुरिन्थियों 4:4) बाइबल बताती है कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्‍ना 5:19) यीशु ने कहा था कि शैतान “इस संसार का सरदार” है। (यूहन्‍ना 14:30) शैतान और हमारे पहले माता-पिता की बगावत की वजह से सभी इंसान असिद्ध हो गए और उन पर हिंसा, मौत और दुःख-तकलीफों का कहर टूट पड़ा।—रोमियों 5:12.

‘इंसान अपनी ज़िन्दगी का मालिक नहीं है’

परमेश्‍वर ने यह दिखाने के लिए कि अगर इंसान, सिरजनहार के नियमों को न मानें, तो क्या अंजाम हो सकता है, आदम और हव्वा की बगावत की वजह से आयी दुःख-तकलीफों को हज़ारों साल चलने दिया है। इस वजह से सभी इंसानों को बाइबल में बतायी इस हकीकत को कबूल करने का पूरा-पूरा मौका मिला है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है [“अपनी जिन्दगी का मालिक नहीं है,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन], मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं। हे यहोवा, मेरी ताड़ना कर।”—यिर्मयाह 10:23, 24.

आज, जब दुनिया में दुःख-तकलीफों को शुरू हुए सदियाँ बीत गयी हैं, तो हम साफ देख सकते हैं कि इंसान परमेश्‍वर से अलग होकर खुद हुकूमत चलाने में बुरी तरह नाकाम रहा है। इसलिए, परमेश्‍वर ने ठान लिया है कि वह इंसान को अपनी मनमानी करके तबाही मचाने के लिए और ज़्यादा वक्‍त की मोहलत नहीं देगा।

एक शानदार भविष्य

मैंने सीखा कि बाइबल की भविष्यवाणियों के मुताबिक जल्द ही परमेश्‍वर इस खूँखार दुनिया का नाश कर देगा: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन 37:10, 11.

दानिय्येल 2:44 की भविष्यवाणी कहती है: “उन राजाओं [हर किस्म की मौजूदा सरकारों] के दिनों में स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” इसके बाद, फिर कभी इंसान को खुद पर हुकूमत करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। सारी धरती पर सिर्फ परमेश्‍वर का राज होगा। उसकी हुकूमत में धरती एक फिरदौस बना दी जाएगी और इंसान सिद्ध हो जाएँगे और हमेशा के लिए खुशी-खुशी जीएँगे। बाइबल में यह वादा किया गया है: “[परमेश्‍वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य 21:4) परमेश्‍वर हमें कितना शानदार भविष्य देनेवाला है!

मेरी ज़िंदगी बदल गयी

जब मुझे अपने सवालों के सही-सही जवाब मिल गए, तो इसका मेरी ज़िंदगी पर गहरा असर हुआ। अब मेरे अंदर यह इच्छा पैदा हुई कि मैं परमेश्‍वर की सेवा करूँ और दूसरों को भी इन सवालों के जवाब पाने में मदद दूँ। मैंने 1 यूहन्‍ना 2:17 में बतायी इस बात की गंभीरता को समझा: “संसार [यानी मौजूदा व्यवस्था जिस पर शैतान का राज है] और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” मेरी यह दिली तमन्‍ना थी कि मैं परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाऊँ। मैंने फैसला किया कि मैं न्यू यॉर्क में ही रहूँगा। मैं वहाँ पर यहोवा के साक्षियों की एक कलीसिया के साथ संगति करने लगा। और वहाँ रहते वक्‍त मुझे दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने में कई अच्छे अनुभव मिले।

सन्‌ 1949 में रोज़मेरी लूइस नाम की एक बहन से मेरी मुलाकात हुई। रोज़, उसकी माँ सेडी और छः बहनें यहोवा की साक्षी थीं। रोज़ पूरे समय की प्रचारक थी। उसमें बहुत-से अच्छे गुण थे, इसलिए जल्द ही मुझे उससे प्यार हो गया। हमने जून 1950 में शादी कर ली और हम न्यू यॉर्क में ही रहने लगे। परमेश्‍वर की सेवा में हम जो कर रहे थे, उससे हमें बहुत खुशी मिलती थी और हम परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा तक जीने की आशा को मन में संजोए हुए थे।

सन्‌ 1957 में हम दोनों को न्यू यॉर्क, ब्रुकलिन में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में पूरे समय की सेवा करने का न्यौता मिला। तब से हम ब्रुकलिन के मुख्यालय में सेवा करने लगे। जून 2004 तक हमारी शादी को 54 साल हो गए थे, जिनमें से 47 साल हमने ब्रुकलिन मुख्यालय में बिताए थे। इन सालों के दौरान हमें हज़ारों भाई-बहनों के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करने का मौका मिला।

मेरा ज़िंदगी का सबसे बड़ा गम

दुःख की बात है कि दिसंबर 2004 की शुरूआत में जब रोज़मेरी की डॉक्टरी जाँच की गयी तो पता चला कि उसे फेफड़ों में कैंसरवाला ट्यूमर हो गया है। डॉक्टरों ने कहा कि ट्यूमर तेज़ी से फैल रहा है और उसे फौरन निकालने की ज़रूरत है। उसी महीने, रोज़मेरी का ऑपरेशन किया गया और करीब एक हफ्ते बाद, जब मैं अस्पताल में रोज़मेरी के पास था, तब सर्जन ने आकर उससे कहा: “रोज़मेरी, आप बिलकुल ठीक हो गयी हैं! अब आप घर जा सकती हैं!”

मगर हुआ यह कि घर लौटने के कुछ ही दिनों बाद रोज़मेरी को पेट में और शरीर के दूसरे अंगों में बहुत ज़ोर का दर्द उठने लगा। दर्द रुकने का नाम नहीं ले रहा था, इसलिए वह दोबारा जाँच के लिए अस्पताल गयी। पता चला कि उसके शरीर के बहुत-से खास अंगों में खून के थक्के जम रहे थे, जिस वजह से इन अंगों को ऑक्सिजन नहीं मिल रहा था। डॉक्टरों ने इसका इलाज करने के लिए अपनी तरफ से पूरी-पूरी कोशिश की, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर कुछ हफ्तों बाद, जनवरी 30,2005 को मेरे साथ ज़िंदगी का सबसे दर्दनाक हादसा हुआ। मेरी प्यारी रोज़मेरी की मौत हो गयी।

उस वक्‍त मैं करीब 80 साल का था। मैंने सारी ज़िंदगी लोगों को दुःख से तड़पते देखा था, मगर अब रोज़मेरी की मौत से मुझे जो सदमा पहुँचा, वह बयान से बाहर है। बाइबल के शब्दों में कहूँ तो रोज़मेरी और मैं “एक ही तन” थे। (उत्पत्ति 2:24) मैंने कितने ही लोगों को दुःख झेलते देखा था और मेरे कुछ दोस्तों-रिश्‍तेदारों की मौत से मुझे भी बहुत दुःख हुआ था। मगर मेरी पत्नी के गुज़र जाने से मुझे जो गम हुआ, उसे सहना मेरे लिए बहुत मुश्‍किल रहा है। अब मैं समझ सकता हूँ कि हज़ारों सालों से इंसानों ने अपने अज़ीज़ों की मौत की वजह से कितना दुःख सहा है।

फिर भी, मैं अपनी भावनाओं पर काफी हद तक काबू कर पाया हूँ, क्योंकि मैंने जान लिया है कि इंसानों पर दुःख-तकलीफों का कहर कैसे टूटा और यह कैसे बहुत जल्द मिटनेवाला है। भजन 34:18 कहता है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” मुझे अपना दुःख सहने में जो बात खासकर मदद देती है, वह है बाइबल में बतायी पुनरुत्थान की आशा, कि आज जो कब्रों में हैं उन्हें परमेश्‍वर की नयी दुनिया में दोबारा ज़िंदा किया जाएगा और हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका दिया जाएगा। प्रेरितों 24:15 कहता है: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” रोज़मेरी, यहोवा परमेश्‍वर से बहुत प्यार करती थी। और मुझे पूरा भरोसा है कि परमेश्‍वर भी उससे उतना ही प्यार करता था और अपने ठहराए वक्‍त पर उसे दोबारा ज़िंदा करेगा। उम्मीद है कि वह दिन बहुत करीब है।—लूका 20:38; यूहन्‍ना 11:25.

जब हमारा कोई अपना मर जाता है, तो बेशक हमें बहुत दुःख होता है, मगर जब उनका पुनरुत्थान होगा, तो उन्हें दोबारा पाकर हमें इतनी खुशी होगी कि आज हम उसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। (मरकुस 5:42) परमेश्‍वर के वचन में यह वादा किया गया है: “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, . . . और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी।” (यशायाह 26:19) प्रेरितों 24:15 में बताए “धर्मी” लोगों में से कइयों को शायद दूसरों से पहले ज़िंदा किया जाएगा। वह क्या ही खुशियों भरा वक्‍त होगा! दोबारा ज़िंदा होनेवाले उन लोगों में रोज़मेरी भी होगी। वह भी क्या दिन होगा जब उसके सारे अज़ीज़ उसे अपनी बाँहों में भर लेंगे! वाकई, एक ऐसी दुनिया में जीना जहाँ कोई गम न हो, कितना बढ़िया रहेगा!

[पेज 9 पर तसवीरें]

चीन में रहते वक्‍त मैंने देखा कि वहाँ लोगों की हालत कितनी खराब थी

[पेज 10 पर तसवीरें]

सन्‌ 1957 से मैं ब्रुकलिन में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में सेवा कर रहा हूँ

[पेज 12 पर तसवीर]

सन्‌ 1950 में मैंने रोज़मेरी से शादी की

[पेज 13 पर तसवीर]

सन्‌ 2000 में हमारी शादी की 50वीं सालगिरह पर