कलीसिया, यहोवा की महिमा करे
कलीसिया, यहोवा की महिमा करे
“तेरा नाम मैं अपने भाइयों से बयान करूँगा, कलीसिया में तेरी स्तुति के गीत गाऊँगा।”—इब्रानियों 2:12, हिन्दुस्तानी बाइबल।
1, 2. कलीसिया के इंतज़ाम के क्या फायदे हैं, और उसका खास मकसद क्या है?
इंसान की शुरूआत से लेकर आज तक, परिवार, समाज का एक ऐसा अंग रहा है जिसमें लोगों को प्यार, अपनापन और सुरक्षा मिलती है। लेकिन बाइबल एक दूसरे अंग या समूह के बारे में बताती है, जिसमें आज दुनिया-भर के बेशुमार लोग ऐसे प्यार, अपनापन और सुरक्षा का आनंद ले रहे हैं, जो और कहीं नहीं पायी जाती। वह समूह है, मसीही कलीसिया। आप चाहे एक ऐसे परिवार का हिस्सा हों या ना हों, जिसमें सभी के बीच प्यार होता है और सब एक-दूसरे की मदद करते हैं, मगर फिर भी आप उन इंतज़ामों के लिए अपनी कदर दिखा सकते हैं जो परमेश्वर ने कलीसिया के ज़रिए किए हैं। और आपको ऐसा करना भी चाहिए। दूसरी तरफ, अगर आप कुछ समय से यहोवा के साक्षियों की एक कलीसिया के साथ संगति कर रहे हैं, तो आप खुद इस बात की गवाही दे सकते हैं कि उनके बीच प्यार और एकता है। साथ ही, आप उनके बीच सुरक्षित महसूस करते हैं।
2 कलीसिया, महज़ लोगों का एक गुट नहीं है। ना ही यह कोई संघ या क्लब है, जिसके सभी सदस्य एक ही माहौल से आए हों, या वे एक ही किस्म के खेल में दिलचस्पी रखते हों, या फिर उन सभी का एक ही शौक हो। इसके बजाय, कलीसिया का खास मकसद है, यहोवा परमेश्वर की महिमा करना। और जैसे भजनों की किताब में ज़ोर देकर बताया गया है, प्राचीन समय से सभा या कलीसिया का यही मकसद रहा है। मिसाल के लिए, भजन 35:18 में हम पढ़ते हैं: “मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगों के बीच मैं तेरी स्तुति करूंगा।” उसी तरह, भजन 107:31, 32 हमें बढ़ावा देता है: “लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें। और सभा में उसको सराहें।” *
3. पौलुस के मुताबिक, कलीसिया का एक और ज़रूरी मकसद क्या है?
3 मसीही प्रेरित पौलुस ने कलीसिया के एक और ज़रूरी मकसद के बारे में बताया था। उसने कहा: ‘परमेश्वर का घर, जीवते परमेश्वर की कलीसिया, सत्य का खंभा और नेव है।’ (1 तीमुथियुस 3:15) यहाँ पौलुस किस कलीसिया की बात कर रहा था? बाइबल में “कलीसिया” शब्द किन अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया गया है? कलीसिया का हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी पर क्या असर होना चाहिए? इन सारे सवालों के जवाब पाने के लिए, आइए हम सबसे पहले देखें कि बाइबल की मूल भाषाओं में “कलीसिया” शब्द का क्या अर्थ है।
4. इब्रानी शास्त्र में काहल शब्द ज़्यादातर किस पर लागू होता है?
4 इब्रानी शब्द, काहल जिसका अनुवाद अकसर “कलीसिया” किया गया है, उसका मूल अर्थ है, “इकट्ठा होने के लिए बुलाया जाना” या “एक-साथ जमा होना।” (व्यवस्थाविवरण 4:10; 9:10) भजनहार ने शब्द काहल का इस्तेमाल स्वर्गदूतों के लिए किया था। यही शब्द कुकर्मियों के दल के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। (भजन 26:5; 89:5-7) लेकिन इब्रानी शास्त्र में यह शब्द ज़्यादातर इस्राएलियों पर लागू होता है। परमेश्वर ने याकूब पर ज़ाहिर किया था कि वह “राज्य राज्य की मण्डली [इब्रानी में, काहल] का मूल” होगा। और यहोवा ने जो कहा था, वही हुआ। (उत्पत्ति 28:3; 35:11; 48:4) इस्राएलियों को “यहोवा की मण्डली [इब्रानी में, काहल]” और सच्चे “परमेश्वर की सभा [इब्रानी में, काहल]” बनने के लिए बुलाया या चुना गया था।—गिनती 20:4; नहेमायाह 13:1; यहोशू 8:35; 1 शमूएल 17:47; मीका 2:5.
5. किस यूनानी शब्द का अनुवाद “कलीसिया” किया गया है, और यह शब्द किसके लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है?
5 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कलीसिया” किया गया है, वह है एकलीसीआ। इस शब्द का अर्थ है, ‘बुलाया जाना।’ यह शब्द एक ऐसे समूह के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे धार्मिक मकसद से नहीं बल्कि किसी और मकसद से इकट्ठा किया जाता है। जैसे, इफिसुस में लोगों की वह “सभा” जिसे देमेत्रियुस नाम के आदमी ने पौलुस के खिलाफ भड़काया था। (प्रेरितों 19:32, 39, 41) लेकिन आम तौर पर बाइबल, एकलीसीआ शब्द मसीही कलीसिया के लिए इस्तेमाल करती है। कुछ बाइबल अनुवादों में इस शब्द का अनुवाद “गिरजा” किया गया है। मगर दी इमपीरियल बाइबल-डिक्शनरी के मुताबिक, शब्द एकलीसीआ का मतलब “एक ऐसी इमारत हरगिज़ नहीं है जिसमें ईसाई, उपासना के लिए इकट्ठा होते हैं।” मगर दिलचस्पी की बात तो यह है कि मसीही यूनानी शास्त्र में, शब्द एकलीसीआ चार अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया गया है।
अभिषिक्त मसीहियों से बनी परमेश्वर की कलीसिया
6. दाऊद और यीशु ने कलीसिया के बीच क्या किया?
6 प्रेरित पौलुस ने भजन 22:22 में लिखे दाऊद के शब्दों को यीशु पर लागू करते हुए कहा: “तेरा नाम मैं अपने भाइयों से बयान करूँगा, कलीसिया में तेरी स्तुति के गीत गाऊँगा।” (हिन्दुस्तानी बाइबल) उसने आगे कहा: “इस कारण [यीशु] को चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिस से वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने।” (इब्रानियों 2:12, 17) दाऊद ने प्राचीन इस्राएल की कलीसिया के बीच परमेश्वर की महिमा की थी। (भजन 40:9) मगर जब पौलुस ने कहा कि यीशु ने ‘कलीसिया के बीच’ परमेश्वर की महिमा की, तो उसके कहने का क्या मतलब था? वह किस कलीसिया की बात कर रहा था?
7. मसीही यूनानी शास्त्र में “कलीसिया” शब्द खासकर किस पर लागू होता है?
7 इब्रानियों 2:12, 17 में लिखी बात बहुत मायने रखती है। ये आयतें दिखाती हैं कि मसीह भी उस कलीसिया का एक सदस्य था, जिसके बीच वह परमेश्वर का नाम अपने भाइयों को सुनाता था। उसके भाई कौन हैं? उसके भाई आत्मा से अभिषिक्त मसीही हैं, जो “इब्राहीम के वंश” का हिस्सा और “स्वर्गीय बुलाहट में भागी” हैं। (इब्रानियों 2:16–3:1; मत्ती 25:40) इससे साफ पता चलता है कि मसीही यूनानी शास्त्र में, “कलीसिया” शब्द खासकर मसीह के आत्मा से अभिषिक्त चेलों के पूरे समूह पर लागू होता है। इन अभिषिक्त चेलों की गिनती 1,44,000 है और वे सब मिलकर ‘पहिलौठों की कलीसिया’ बनते हैं, “जिन के नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।”—इब्रानियों 12:23.
8. यीशु ने कैसे पहले से ज़ाहिर कर दिया था कि मसीही कलीसिया की शुरूआत आगे चलकर होगी?
8 यीशु ने पहले से ज़ाहिर कर दिया था कि इस मसीही “कलीसिया” की शुरूआत आगे चलकर होगी। अपनी मौत से करीब एक साल पहले, उसने अपने एक प्रेरित से कहा: “तू पतरस है और इसी चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।” (मत्ती 16:18, NHT) पतरस और पौलुस, दोनों ने बिलकुल ठीक ही समझा था कि इस भविष्यवाणी में बतायी चट्टान, यीशु ही है। पतरस ने लिखा था कि जो लोग, चट्टान यानी मसीह पर खड़े किए गए आत्मिक घर के ‘जीवित पत्थर’ हैं, वे “(परमेश्वर की) निज प्रजा” हैं। और उन्हें निज प्रजा इसलिए ठहराया गया ताकि वे “[परमेश्वर के] गुण प्रगट” कर सकें जिसने उन्हें बुलाया है।—1 पतरस 2:4-9; भजन 118:22; यशायाह 8:14; 1 कुरिन्थियों 10:1-4.
9. परमेश्वर की कलीसिया की शुरूआत कब हुई?
9 “(परमेश्वर की) निज प्रजा” कब मसीही कलीसिया बनी? सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, जब परमेश्वर ने यरूशलेम में इकट्ठा चेलों पर अपनी पवित्र आत्मा उँडेली। उसी दिन, बाद में पतरस ने यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों के सामने एक ज़बरदस्त भाषण दिया। उनमें से बहुतों ने जब यीशु की मौत के बारे में सुना, तो उनका दिल छलनी हो गया। फिर उन्होंने पश्चाताप किया और बपतिस्मा लिया। बाइबल बताती है कि तीन हज़ार लोगों ने ये कदम उठाए और उसके फौरन बाद वे परमेश्वर की नयी और बढ़ती कलीसिया के सदस्य बन गए। (प्रेरितों 2:1-4, 14, 37-47) यह कलीसिया इसलिए बढ़ रही थी, क्योंकि यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग इस सच्चाई को कबूल करके कलीसिया में आ रहे थे कि पैदाइशी इस्राएलियों से बनी पूरी जाति, अब परमेश्वर की कलीसिया नहीं रही। इसके बजाय, अभिषिक्त मसीहियों से बना ‘परमेश्वर का [आत्मिक] इस्राएल’ उसकी सच्ची कलीसिया बन गया है।—गलतियों 6:16; प्रेरितों 20:28.
10. यीशु का परमेश्वर की कलीसिया के साथ कैसा रिश्ता है?
10 बाइबल अकसर यीशु को अभिषिक्त जनों से अलग बताती है, जैसे हम इन शब्दों में देख सकते हैं: “मसीह और कलीसिया के विषय में।” दरअसल यीशु, आत्म से अभिषिक्त मसीहियों से बनी कलीसिया का मुखिया है। पौलुस ने लिखा: परमेश्वर ने यीशु को ‘सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर उस कलीसिया को दे दिया, जो उसकी देह है।’ (इफिसियों 1:22, 23; 5:23, 32; कुलुस्सियों 1:18, 24) आज धरती पर, उस कलीसिया के कुछ ही सदस्य बचे हैं। फिर भी, हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि उनका मुखिया, यीशु मसीह उनसे बेहद प्यार करता है। इफिसियों 5:25 कहता है: “मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।” यीशु उनसे इसलिए प्यार करता है क्योंकि वे ज़ोर-शोर से परमेश्वर को “स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल” चढ़ाते हैं, “जो [परमेश्वर के] नाम का अंगीकार करते हैं,” ठीक जैसे यीशु ने धरती पर रहते वक्त किया था।—इब्रानियों 13:15.
“कलीसिया” शब्द को और किन तरीकों से इस्तेमाल किया गया है?
11. मसीही यूनानी शास्त्र में, “कलीसिया” शब्द को किस दूसरे तरीके से इस्तेमाल किया गया है?
11 बाइबल में “कलीसिया” शब्द न सिर्फ 1,44,000 अभिषिक्त मसीहियों से बने पूरे समूह के लिए, बल्कि इसे कई बार सीमित अर्थ में भी इस्तेमाल किया गया है। मिसाल के लिए, पौलुस ने मसीहियों के एक समूह को लिखा: “तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्वर की कलीसिया के लिये ठोकर के कारण बनो।” (1 कुरिन्थियों 10:32) इसमें कोई शक नहीं कि प्राचीन समय में, कुरिन्थुस की कलीसिया में अगर कोई मसीही गलत काम करता, तो वह कुछ लोगों के लिए ठोकर का कारण बनता। लेकिन क्या वह मसीही, उस समय से लेकर आज तक के सभी यहूदियों, यूनानियों या अभिषिक्त जनों के लिए ठोकर का कारण बन सकता है? हरगिज़ नहीं। इससे पता चलता है कि इस आयत में शब्द “परमेश्वर की कलीसिया,” एक निश्चित समय में जीनेवाले मसीहियों पर लागू होते हैं। इसलिए जब यह कहा जाता है कि परमेश्वर कलीसिया को मार्गदर्शन देता है, उसकी मदद करता है या उसे आशीष देता है, तो यहाँ कलीसिया का मतलब यह हो सकता है, किसी भी एक वक्त में जीनेवाले सभी मसीही, फिर चाहे वे दुनिया के किसी भी हिस्से में रहते हों। या फिर जब यह कहा जाता है कि आज, परमेश्वर की कलीसिया में खुशी और शांति है, तो हम यह कह सकते हैं कि यहाँ मसीहियों की पूरी बिरादरी के बारे में बात की जा रही है।
12. बाइबल में, “कलीसिया” शब्द को किस तीसरे तरीके से इस्तेमाल किया गया है?
12 बाइबल में “कलीसिया” शब्द को एक और तरीके से इस्तेमाल किया गया है। वह है, एक ही इलाके में रहनेवाले सभी मसीहियों के लिए। हम पढ़ते हैं: “सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला।” (प्रेरितों 9:31) यहूदिया, गलील और सामरिया का पूरा इलाका बहुत ही बड़ा था और उसमें मसीहियों के एक-से-ज़्यादा समूह थे। फिर भी, उन सभी समूहों को एक “कलीसिया” कहा गया। इसके अलावा, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन और उसके फौरन बाद, जितने लोगों का बपतिस्मा हुआ, उससे ज़ाहिर है कि यरूशलेम में मसीहियों के एक-से-ज़्यादा समूह रहे होंगे। ये समूह नियमित तौर पर उपासना के लिए वहाँ इकट्ठा होते थे। (प्रेरितों 2:41, 46, 47; 4:4; 6:1, 7) राजा हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम ने सा.यु. 44 में अपनी मौत तक यहूदिया पर राज किया था और 1 थिस्सलुनीकियों 2:14 बताता है कि सा.यु. 50 के आते-आते यहूदिया में कई कलीसियाएँ बन चुकी थीं। इसलिए जब बाइबल कहती है कि हेरोदेस ने “कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुख” दिया, तो यहाँ कलीसिया का मतलब हो सकता है, यरूशलेम में इकट्ठा होनेवाले मसीहियों के एक-से-ज़्यादा समूह।—प्रेरितों 12:1.
13. बाइबल में “कलीसिया” शब्द को किस चौथे तरीके से इस्तेमाल किया गया है, जो बहुत ही आम है?
13 शब्द “कलीसिया” का और भी सीमित अर्थ है। यह आम तौर पर, मसीहियों से बनी इलाके की एक कलीसिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो शायद किसी के घर पर इकट्ठा होती हो। मिसाल के लिए, पौलुस ने “गलतिया की कलीसियाओं” का ज़िक्र किया था। गलतिया, रोम का एक बहुत बड़ा प्रांत था और वहाँ एक-से-ज़्यादा कलीसियाएँ थीं। इसलिए पौलुस ने गलतिया का ज़िक्र करते वक्त दो बार बहुवचन “कलीसियाओं” का इस्तेमाल किया। इन कलीसियाओं में अन्ताकिया, दिरबे, लुस्त्रा और इकुनियुम की कलीसियाएँ भी शामिल थीं। इनमें काबिल पुरुषों को प्राचीन या अध्यक्ष ठहराया गया था। (1 कुरिन्थियों 16:1; गलतियों 1:2; प्रेरितों 14:19-23) और बाइबल के मुताबिक, ये सभी कलीसियाएँ ‘परमेश्वर की कलीसियाएँ’ थीं।—1 कुरिन्थियों 11:16; 2 थिस्सलुनीकियों 1:4.
14. बाइबल की कुछ आयतों में “कलीसिया” शब्द को जिस तरीके से इस्तेमाल किया गया है, उससे हम क्या नतीजा निकाल सकते हैं?
14 पहली सदी में, मसीहियों के कुछ समूह काफी छोटे रहे होंगे, इसलिए वे किसी मसीही के घर पर सभाओं के लिए इकट्ठा होते थे। इसके बावजूद, इन समूहों को “कलीसिया” कहा जाता था। इस तरह की जिन कलीसियाओं के बारे में हम जानते हैं, वे हैं: अक्विला और प्रिसका, नुमफास और फिलेमोन के घरों पर मिलनेवाली कलीसियाएँ। (रोमियों 16:3-5; कुलुस्सियों 4:15; फिलेमोन 2) इस बात से आज, उन कलीसियाओं को हौसला मिलना चाहिए जो काफी छोटी हैं और जो शायद किसी भाई या बहन के घर पर नियमित तौर पर सभाएँ चलाती हैं। यहोवा ने जिस तरह पहली सदी की उन छोटी-छोटी कलीसियाओं को मंज़ूरी दी थी, उसी तरह वह आज की छोटी-छोटी कलीसियाओं को भी मंज़ूरी देता है। साथ ही, वह अपनी आत्मा के ज़रिए उन्हें मार्गदर्शन देता है और उनकी मदद करता है।
कलीसियाएँ, यहोवा की महिमा करती हैं
15. पहली सदी के कुछ मसीहियों में पवित्र आत्मा किस खास तरीके से काम करने लगी?
15 जैसे लेख की शुरूआत में बताया गया, यीशु ने भजन 22:22 में लिखी भविष्यवाणी को पूरा करते हुए, कलीसिया के बीच परमेश्वर की महिमा की। (इब्रानियों 2:12, हिन्दुस्तानी बाइबल) उसके वफादार चेलों को भी ऐसा करना था। पहली सदी में जब सच्चे मसीहियों को परमेश्वर के पुत्र और मसीह के भाई होने के लिए पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया गया, तब उनमें से कुछ मसीहियों में यह आत्मा खास तरीके से काम करने लगी। उन्हें आत्मा के कई चमत्कारिक वरदान मिले। जैसे, बुद्धि या ज्ञान की खास बातें कहने, चंगाई के काम करने या भविष्यवाणी करने की शक्ति। यहाँ तक कि उन्हें ऐसी भाषाएँ बोलने की शक्ति भी मिली, जिनसे वे बिलकुल अनजान थे।—1 कुरिन्थियों 12:4-11.
16. पवित्र आत्मा के चमत्कारिक वरदान देने का एक मकसद क्या था?
16 अलग-अलग भाषाओं में बोलने के वरदान के बारे में, पौलुस ने कहा: “मैं आत्मा [“आत्मा के वरदान,” NW] से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।” (1 कुरिन्थियों 14:15) पौलुस यह अच्छी तरह जानता था कि उसकी बातें दूसरों की समझ में आना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि तभी वे सीख पाएँगे। पौलुस का लक्ष्य था, कलीसिया में यहोवा की महिमा करना। उसने उन लोगों को, जिन्हें आत्मा के वरदान मिले थे, उकसाया: “ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे बरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो।” यहाँ कलीसिया का मतलब है, इलाके की कलीसिया जहाँ वे अपना वरदान ज़ाहिर करते थे। (1 कुरिन्थियों 14:4, 5, 12, 23) इससे साफ पता चलता है कि पौलुस को इलाके की कलीसियाओं में दिलचस्पी थी, क्योंकि वह जानता था कि हरेक कलीसिया में मसीहियों को परमेश्वर की महिमा करने के मौके मिलते।
17. आज की सभी कलीसियाओं के बारे में, हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?
17 यहोवा आज भी अपनी कलीसिया का इस्तेमाल कर रहा है और उसे मदद दे रहा है। वह धरती पर बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों के समूह को आशीष दे रहा है। इस बात का सबूत यह है कि परमेश्वर के लोग भरपूर आध्यात्मिक भोजन का आनंद ले रहे हैं। (लूका 12:42) वह दुनिया-भर में फैले भाइयों की पूरी बिरादरी के साथ-साथ, अलग-अलग इलाकों की कलीसियाओं को भी बरकत दे रहा है, जहाँ हम अपने कामों और हौसला बढ़ानेवाले जवाबों से अपने सिरजनहार की महिमा करते हैं। इसके अलावा, कलीसिया में हम यह शिक्षा और तालीम पाते हैं कि जब हम कलीसिया के बीच नहीं होते, तब भी हम कैसे परमेश्वर की स्तुति कर सकते हैं।
18, 19. हर कलीसिया के समर्पित मसीही क्या करना चाहते हैं?
18 याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने मकिदुनिया के फिलिप्पी नगर की कलीसिया को क्या बढ़ावा दिया। उसने कहा: “मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि [तुम] उस धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।” परमेश्वर की महिमा करने में यह भी शामिल था कि मसीही, बाहरवालों को गवाही दें और यीशु पर अपने विश्वास और अपनी शानदार आशा के बारे में उन्हें बताएँ। (फिलिप्पियों 1:9-11; 3:8-11) इसलिए पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को उकसाया: “हम [यीशु के] द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।”—इब्रानियों 13:15.
19 क्या आपको “कलीसिया में” परमेश्वर की महिमा करने से खुशी मिलती है, ठीक जैसे यीशु को मिलती थी? क्या आपको उन लोगों के सामने भी यहोवा की स्तुति करने से खुशी मिलती है, जो फिलहाल उसके बारे में कुछ नहीं जानते और उसकी महिमा नहीं करते? (इब्रानियों 2:12, हिन्दुस्तानी बाइबल; रोमियों 15:9-11) इन सवालों का हम क्या जवाब देंगे, यह कुछ हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर के मकसद में हमारी कलीसिया की जो भूमिका है, उसके बारे में हम कैसा महसूस करते हैं। आइए हम अगले लेख में देखें कि यहोवा कैसे हमारी कलीसिया का इस्तेमाल कर रहा है और उसे मार्गदर्शन दे रहा है। और यह भी कि इस कलीसिया की हमारी ज़िंदगी में क्या भूमिका होनी चाहिए। (w07 4/15)
[फुटनोट]
^ हमारी हिंदी बाइबल में, “कलीसिया” शब्द यूनानी शास्त्र में इस्तेमाल किया गया है। जबकि इब्रानी शास्त्र में, “कलीसिया” शब्द के मूल शब्द का अनुवाद संदर्भ के मुताबिक किया गया है। जैसे, “सभा,” “मण्डली,” “संगति” और “दल” वगैरह।
क्या आपको याद है?
• अभिषिक्त मसीहियों से बनी “परमेश्वर की कलीसिया” की शुरूआत कैसे हुई?
• बाइबल में, “कलीसिया” शब्द और किन तीन तरीकों से इस्तेमाल किया गया है?
• दाऊद, यीशु और पहली सदी के मसीही, कलीसिया के बीच क्या करना चाहते थे, और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीर]
यीशु किस कलीसिया की बुनियाद था?
[पेज 12 पर तसवीर]
बेनिन के मसीहियों की तरह, हम भी अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होकर यहोवा की महिमा कर सकते हैं