क्या आप “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” हैं?
क्या आप “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” हैं?
“ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका 12:21.
1, 2. (क) लोग किस चीज़ के लिए बड़ी-बड़ी कुरबानियाँ देने के लिए तैयार हो जाते हैं? (ख) मसीहियों को कौन-सी चुनौती और खतरे का सामना करना पड़ता है?
मुद्दतों से कई देशों के लोगों ने धन-संपत्ति पाने की धुन में खून-पसीना बहाया है। मिसाल के लिए, 19वीं सदी में ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, कैनडा और अमरीका जैसे देशों में सोने के लिए भागदौड़ मच गयी थी। दुनिया के कोने-कोने से ऐसे लोग आए थे, जिन्होंने सोना पाने के लिए अपना घरबार, यहाँ तक कि अपने अज़ीज़ों को छोड़ दिया था। यही नहीं, उन्हें एक अनजान देश के खतरनाक माहौल में रहना भी मंज़ूर था। जी हाँ, दौलत हासिल करने के जुनून में कई लोग बड़े-से-बड़े खतरे मोल लेने और बड़ी-बड़ी कुरबानियाँ तक देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
2 हालाँकि आज, ज़्यादातर लोग खज़ाने की खोज में नहीं लगे हुए हैं, फिर भी उन्हें अपना गुज़ारा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। इस मौजूदा संसार में रोज़ी रोटी कमाना काफी चुनौती-भरा हो सकता है, इसमें एक इंसान का लगभग पूरा समय और पूरी ताकत खर्च हो सकती है, यहाँ तक कि यह एक भारी बोझ बन सकता है। एक इंसान रोटी, कपड़ा और मकान जैसी ज़रूरतों को पूरा करने में इस कदर डूब सकता है कि वह ज़िंदगी की और भी ज़रूरी बातों को या तो नज़रअंदाज़ कर देता है, या फिर उन्हें पूरी तरह भूल जाता है। (रोमियों 14:17) इंसान के इसी रुझान के बारे में यीशु ने एक दृष्टांत दिया था। यह दृष्टांत लूका 12:16-21 में दर्ज़ है।
3. लूका 12:16-21 में दर्ज़ यीशु के दृष्टांत का सार बताइए।
3 यीशु ने यह दृष्टांत उस वक्त दिया था, जब उसने लोभ से खबरदार रहने की बात कही थी, जिसके बारे में हम पिछले लेख में बारीकी से जाँच कर चुके हैं। यीशु ने उस दृष्टांत में एक धनवान आदमी के बारे में बताया, जिसके गोदाम पहले से अनाज और सामान से भरे हुए थे। मगर इतना सब होकर भी वह संतुष्ट नहीं था। वह अपने पुराने गोदामों को तोड़कर, उनसे भी बड़े-बड़े गोदाम बनवाना चाहता था, ताकि वह उनमें और भी ज़्यादा अनाज और सामान रख सके। इस तरह, वह अपनी बाकी की ज़िंदगी आराम से बिताने की योजना बना ही रहा था कि उसी वक्त परमेश्वर ने उससे कहा कि उसकी मौत होनेवाली है और जो कुछ उसने जमा किया है, वह किसी और का हो जाएगा। फिर, दृष्टांत के आखिर में यीशु ने कहा: “ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।” (लूका 12:21) इस दृष्टांत से हमें क्या सीख मिलती है? और इससे हम कैसे फायदा पा सकते हैं?
समस्या में उलझा धनवान
4. यीशु के दृष्टांत में बताए धनवान आदमी के बारे में हम क्या कह सकते हैं?
4 कई देशों के लोग यीशु के इस दृष्टांत से अच्छी तरह वाकिफ हैं। गौर कीजिए कि यीशु ने इस दृष्टांत की शुरूआत बहुत ही सरल तरीके से की। उसने कहा: “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई।” यीशु ने यह नहीं कहा कि उस आदमी ने कोई तिकड़म आज़माकर या फिर गैर-कानूनी तरीकों से अपनी दौलत कमायी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो वह बुरा आदमी नहीं था। इसके बजाय, यीशु के शब्दों से हमारा इस नतीजे पर पहुँचना सही होगा कि उसने बड़ी लगन के साथ काम किया था। उसने भविष्य के लिए न सिर्फ योजना बनायी बल्कि धन-संपत्ति भी बटोरी। हो सकता है, उसने यह सब अपने परिवार के लिए किया हो। इसलिए अगर दुनिया के नज़रिए से देखा जाए, तो वह धनवान आदमी काफी मेहनती था और अपनी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से लेता था।
5. यीशु के दृष्टांत में बताए आदमी के आगे क्या समस्या थी?
5 चाहे वह आदमी मेहनती रहा हो या नहीं, मगर एक बात तय है कि यीशु ने उसे धनवान कहा। इसका मतलब है कि उसके पास पहले से ढेर सारी धन-संपत्ति थी। लेकिन यीशु ने यह भी कहा कि उस धनवान के आगे एक बड़ी समस्या थी। उसके खेत में इतनी फसल हुई जितनी कि उसे उम्मीद भी नहीं थी और जिसे रखने के लिए उसके पास जगह भी कम पड़ गयी। ऐसे में उसे क्या करना चाहिए था?
6. आज, परमेश्वर के बहुत-से सेवकों को किस तरह के चुनाव करने पड़ते हैं?
6 आज, यहोवा के बहुत-से सेवक भी उस धनवान के जैसे हालात का सामना करते हैं। सच्चे मसीही अपना काम पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करते हैं। (कुलुस्सियों 3:22, 23) चाहे वे नौकरी करते हों या उनका खुद का कारोबार हो, वे अकसर कामयाब होते हैं। और कुछ तो अपने काम में माहिर हो जाते हैं। इसलिए जब उनके सामने प्रमोशन की पेशकश रखी जाती है या कारोबार बढ़ाने के नए मौके आते हैं, तो वे कशमकश में पड़ जाते हैं। क्या उन्हें तरक्की करने के इस मौके का फायदा उठाकर ज़्यादा पैसा कमाने में लग जाना चाहिए या उसे ठुकरा देना चाहिए? उसी तरह, कई जवान साक्षी स्कूल की पढ़ाई में अव्वल होते हैं। नतीजा, उन्हें इनाम या वज़ीफा मिलता है, ताकि वे बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में ऊँची शिक्षा हासिल कर सकें। ऐसे में क्या उन्हें दूसरे जवानों की तरह इनाम या वज़ीफा कबूल कर लेना चाहिए?
7. यीशु के दृष्टांत में बताए आदमी ने अपनी समस्या का क्या हल निकाला?
7 अब आइए हम वापस यीशु के दृष्टांत में जाएँ। जब उस धनवान के खेत में बड़ी फसल हुई और अनाज रखने की जगह कम पड़ गयी, तब उसने क्या किया? उसने अपने पुराने गोदामों को तोड़कर उनसे भी बड़े-बड़े गोदाम बनवाने का फैसला किया, ताकि वह उनमें अपना सारा अनाज और सामान रख सके। ज़ाहिर है कि वह अपनी इस योजना से खुश था और खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा था। इसलिए उसने मन-ही-मन सोचा: “[मैं] अपने प्राण से कहूंगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।”—लूका 12:19.
उसे “मूर्ख” क्यों कहा गया?
8. यीशु के दृष्टांत में बताया आदमी कौन-सी अहम बात भूल गया था?
8 मगर जैसे यीशु ने ज़ाहिर किया, उस धनवान आदमी को उसकी योजना ने सुरक्षा का जो एहसास दिलाया था, वह झूठा था। उसने चाहे कितनी ही व्यावहारिक योजना क्यों न बनायी हो, मगर वह एक अहम बात भूल गया। उसने परमेश्वर की मरज़ी के बारे में बिलकुल भी नहीं सोचा। इसके बजाय, उसने सिर्फ अपने बारे में सोचा कि वह कैसे अपनी बाकी की ज़िंदगी खाने-पीने और सुख-चैन से जीने में बिताएगा। वह मान बैठा कि “बहुत संपत्ति” होने की वजह से वह ‘बहुत वर्ष’ जी पाएगा। मगर अफसोस, उसने जैसा सोचा वैसा नहीं हुआ। यीशु ने दृष्टांत बताने से पहले कहा था: “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।” (लूका 12:15) यही बात उस धनवान के मामले में सच साबित हुई। जब उस धनवान ने अपने गोदामों को बड़ा करने की योजना बनायी, तब उसी रात को उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। क्योंकि परमेश्वर ने उससे कहा: “हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा?”—लूका 12:20.
9. दृष्टांत में बताए धनवान को मूर्ख क्यों कहा गया था?
9 यही है यीशु के दृष्टांत का असली मुद्दा: परमेश्वर ने उस धनवान को मूर्ख कहा। एक्सजेटिकल डिक्शनरी ऑफ द न्यू टेस्टमेंट (यूनानी शास्त्र का शब्दकोश) के मुताबिक, जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मूर्ख” किया गया है, उसके अलग-अलग रूप हैं और उन सबका “हमेशा एक ही मतलब होता है, वह है समझ की कमी।” यह शब्द एक ऐसे इंसान के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जो अक्ल का अंधा हो। इसके बजाय, यह शब्द उस इंसान के लिए इस्तेमाल किया जाता है, “जो परमेश्वर पर निर्भर रहने की बात से इनकार करता है।” शब्दकोश बताता है कि दृष्टांत में, परमेश्वर ने “मूर्ख” शब्द का इस्तेमाल इस बात का परदाफाश करने के लिए किया कि “उस धनवान ने भविष्य के लिए जो भी योजनाएँ बनायीं, वे बेकार थीं।” धनवान आदमी के ब्यौरे से हमें यीशु की वह बात याद आती है, जो उसने कुछ सालों बाद एशिया माइनर की लौदीकिया कलीसिया से कही थी। यीशु ने पहली सदी की उस कलीसिया के मसीहियों से कहा था: “तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नङ्गा है।”—प्रकाशितवाक्य 3:17.
10. “बहुत संपत्ति” का होना इस बात की गारंटी क्यों नहीं देता कि हम ‘बहुत वर्ष’ तक जीएँगे?
10 इस दृष्टांत से मिले सबक को हमें अपने दिल में गाँठ बाँध लेनी चाहिए। क्या ऐसा हो सकता है कि हम भी उस धनवान आदमी की तरह “बहुत संपत्ति” बटोरने के लिए मेहनत करने लगें, जबकि ‘बहुत वर्ष’ तक जीने की आशा पाने के लिए जो ज़रूरी है, वही करने से चूक जाएँ? (यूहन्ना 3:16; 17:3) बाइबल कहती है: “कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता” और “जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है।” (नीतिवचन 11:4, 28) इसलिए दृष्टांत सुनाने के बाद, यीशु ने आखिर में यह चेतावनी दी: “ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका 12:21.
11. धन-दौलत पर आस लगाना और उसी को सुरक्षा का ज़रिया मानना क्यों व्यर्थ है?
11 जब यीशु ने कहा कि “ऐसा ही वह मनुष्य भी है,” तो उसके कहने का यह मतलब था कि उस धनवान का जो अंजाम हुआ, वही अंजाम उन लोगों का भी होगा, जिनके लिए दौलत ही सबकुछ है। ऐसे लोग अपनी धन-संपत्ति पर आस लगाए रखते हैं और उसी को अपनी सुरक्षा का ज़रिया मानते हैं। ‘अपने लिये धन बटोरना’ अपने आपमें गलत नहीं है, मगर “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” बनने से चूक जाना बहुत बड़ी गलती है। शिष्य याकूब ने भी इससे मिलती-जुलती चेतावनी देते हुए लिखा: “तुम जो यह कहते हो, कि आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएंगे, और ब्योपार करके लाभ उठाएंगे। और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा: सुन तो लो, तुम्हारा जीवन है ही क्या?” तो फिर, इन लोगों को क्या करना चाहिए? याकूब ने आगे लिखा: “इस के विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए, कि यदि प्रभु [यहोवा] चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे।” (याकूब 4:13-15) एक इंसान के पास चाहे कितनी ही धन-संपत्ति क्यों न हो, अगर वह परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है, तो उसकी सारी संपत्ति बेकार है। तो फिर, परमेश्वर की दृष्टि में धनी होने का क्या मतलब है?
परमेश्वर की दृष्टि में धनी होना
12. क्या करने से हम परमेश्वर की दृष्टि में धनी होंगे?
12 लूका 12:21 में दर्ज़ यीशु की बात दिखाती है कि परमेश्वर की दृष्टि में धनी होना, अपने लिए धन बटोरने या अमीर बनने के उलट है। इस तरह, उसने ज़ाहिर किया कि हमें अपनी ज़िंदगी में धन-दौलत कमाने या ऐशो-आराम की चीज़ों का मज़ा लूटने को ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। इसके बजाय, हमें अपने साधनों का इस्तेमाल इस तरह से करना चाहिए जिससे कि यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत हो। नतीजा, हम परमेश्वर की दृष्टि में धनी होंगे। यह हम इतने पक्के यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं? अगर हम परमेश्वर के साथ एक मज़बूत रिश्ता बनाए रखेंगे, तो वह हम पर आशीषों की बौछार करेगा। और बाइबल कहती है: “प्रभु [यहोवा] की आशीष से मनुष्य धनवान बनता है, प्रभु धन के साथ उसको दुःख नहीं देता।”—नीतिवचन 10:22, नयी हिन्दी बाइबिल।
13. यहोवा की आशीष से इंसान कैसे “धनवान बनता है”?
13 यहोवा हमेशा अपने लोगों को सबसे बेहतरीन आशीषें देता है। (याकूब 1:17) मिसाल के लिए, उसने इस्राएलियों को एक ऐसे देश में बसाया था, जिसमें “दूध और मधु की धाराएं बहती” थीं। हालाँकि मिस्र देश के बारे में भी यही कहा जाता था, मगर उसमें और इस्राएलियों को दिए गए देश में कम-से-कम एक बड़ा फर्क ज़रूर था। वह फर्क क्या था? मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “वह ऐसा देश है जिसकी देखभाल तुम्हारा परमेश्वर यहोवा करता है।” (NHT) दूसरे शब्दों में कहें तो इस्राएली इसलिए फलते-फूलते, क्योंकि यहोवा उनकी देखभाल करता। इसलिए जब तक वे यहोवा के वफादार बने रहे, तब तक वह उन्हें भरपूर आशीषें देता रहा। साथ ही, यह साफ ज़ाहिर था कि आस-पास की जातियों के मुकाबले, उनके जीने का स्तर कहीं ज़्यादा ऊँचा था। वाकई, यहोवा की आशीष की बदौलत ही इंसान “धनवान बनता है”!—गिनती 16:13; व्यवस्थाविवरण 4:5-8; 11:8-15.
14. जो लोग परमेश्वर की दृष्टि में धनी होते हैं, उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?
14 आम तौर पर, रईस लोगों को दूसरों की नज़रों में इज़्ज़त या अच्छा नाम कमाने की फिक्र लगी रहती है। उनका यह रवैया अकसर उनके जीने के तरीके से साफ झलकता है। बाइबल के मुताबिक, वे लोगों पर अपनी धाक जमाने के लिए अपनी ‘जीविका का घमण्ड’ करते हैं। (1 यूहन्ना 2:16) दूसरी तरफ, जो लोग परमेश्वर की दृष्टि में धनी होते हैं, उन्हें परमेश्वर की मंज़ूरी और उसका अनुग्रह मिलता है। साथ ही, उन्हें भरपूर मात्रा में उसकी अपार कृपा भी मिलती है। यही नहीं, यहोवा और उनके बीच एक प्यार-भरा रिश्ता कायम होता है। ये सब अनमोल आशीषें हैं, जिनसे उन्हें खुशी मिलती है और वे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। दुनिया-जहान की दौलत उन्हें कभी यह एहसास नहीं दे सकती। (यशायाह 40:11) तो फिर सवाल उठता है कि परमेश्वर की दृष्टि में धनी होने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
परमेश्वर की दृष्टि में धनी होने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
15. परमेश्वर की दृष्टि में धनी होने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
15 यीशु के दृष्टांत में बताए आदमी ने बस खुद को मालामाल करने के लिए योजना बनायी और मेहनत की। इसलिए उसे मूर्ख कहा गया। इससे साफ ज़ाहिर है कि अगर हम परमेश्वर की दृष्टि में धनी होना चाहते हैं, तो हमें उन कामों में पूरी लगन के साथ हिस्सा लेना होगा, जो उसकी नज़र में कहीं ज़्यादा अनमोल और फायदेमंद हैं। इन कामों में से एक की आज्ञा यीशु ने दी थी: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” (मत्ती 28:19) हमें अपना समय, अपनी ताकत और काबिलीयतें, अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने में नहीं, बल्कि राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के काम में लगानी चाहिए। ऐसा करना, किसी फायदेमंद स्कीम में अपनी जमा-पूँजी लगाने के बराबर है। जिन लोगों ने ऐसा किया है, उन्हें अभी से आध्यात्मिक मायनों में इसका बड़ा मुनाफा मिल रहा है। आइए इसकी कुछ मिसालों पर गौर करें।—नीतिवचन 19:17.
16, 17. जीवन का कौन-सा मार्ग चुनने पर एक इंसान परमेश्वर की दृष्टि में धनी हो सकता है, यह समझाने के लिए अनुभव बताइए।
16 एशिया के एक देश में, एक मसीही भाई कंप्यूटर टेकनीशियन के तौर पर काम करता था। इसके लिए उसे मोटी तनख्वाह मिलती थी। मगर उसका लगभग पूरा समय काम में ही चला जाता था, जिस वजह से वह आध्यात्मिक तौर पर बहुत कमज़ोर हो गया था। वह भाई चाहता तो अपनी नौकरी में तरक्की कर सकता था, पर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उसने अपनी नौकरी ही छोड़ दी और गुज़ारे के लिए, आइसक्रीम बनाकर सड़कों पर बेचने लगा। ऐसा उसने इसलिए किया ताकि वह अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों और ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में ज़्यादा वक्त बिता सके। पिछली नौकरी के कर्मचारी जब भी उसे आइसक्रीम बेचते देखते, तो वे उसका मज़ाक उड़ाते। मगर इस भाई के फैसले का क्या नतीजा निकला? वह खुद कहता है: “असल में देखा जाए तो कंप्यूटर के काम में मुझे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उससे कहीं ज़्यादा पैसे मैं आइसक्रीम बेचकर कमा रहा था। अब मैं ज़्यादा खुश भी था, क्योंकि पिछली नौकरी में मुझे जो तनाव होता था और जो चिंताएँ लगी रहती थीं, वे इस काम में नहीं थे। मगर इन सबसे बढ़कर मैं खुद को यहोवा के और भी करीब महसूस कर रहा था।” इस बदलाव की वजह से यह मसीही भाई पूरे समय की सेवा शुरू कर पाया। और आज वह अपने देश में, यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में सेवा कर रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा की आशीष से एक इंसान “धनवान बनता है।”
17 अब एक स्त्री की मिसाल लीजिए, जिसकी परवरिश एक ऐसे परिवार में हुई जहाँ शिक्षा को बहुत अहमियत दी जाती थी। फ्रांस, मेक्सिको और स्विट्ज़रलैंड के विश्वविद्यालयों में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उसने एक ऐसा करियर चुना जिसमें उसे नाम और शोहरत मिलती। वह कहती है: “कामयाबी मेरे कदम चूम रही थी। मेरे पास नाम, रुतबा, सबकुछ था। मगर फिर भी मुझे ज़िंदगी अधूरी-सी लगती थी। मैं अंदर-ही-अंदर दुःखी थी।” कुछ समय बाद, वह यहोवा के बारे में सीखने लगी। वह बताती है: “जैसे-जैसे मैं आध्यात्मिक तरक्की करती गयी, मुझमें यहोवा को खुश करने और उसने मुझे जो कुछ दिया है, उसके लिए अपना एहसान ज़ाहिर करने की तमन्ना जागी। इसी तमन्ना की वजह से मैं साफ देख पायी कि मुझे कौन-सा रास्ता चुनना है। वह था, पूरे समय की सेवा करना।” इसलिए उसने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कुछ ही समय के अंदर बपतिस्मा लिया। पिछले 20 सालों से वह खुशी-खुशी पूरे समय की सेवा कर रही है। वह कहती है: “कुछ लोग सोचते हैं कि मैंने अपनी काबिलीयतों को बरबाद कर दिया है। मगर वे देख पाते हैं कि मैं कितनी खुश हूँ। साथ ही, जिन सिद्धांतों के मुताबिक मैं जीती हूँ, उनकी वे तारीफ भी करते हैं। हर दिन मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे नम्र बने रहने में मदद दे, ताकि उसका अनुग्रह मुझ पर हमेशा बना रहे।”
18. पौलुस की तरह, हम भी परमेश्वर की दृष्टि में कैसे धनी हो सकते हैं?
18 शाऊल ने भी, जो आगे चलकर प्रेरित पौलुस बना, एक ऐसे करियर का त्याग किया था, जिससे वह काफी मशहूर हो सकता था। उसने बाद में लिखा: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के ज्ञान की श्रेष्ठता के कारण सब बातों को तुच्छ समझता हूं।” (फिलिप्पियों 3:7, 8, NHT) पौलुस ने मसीह के ज़रिए जो आध्यात्मिक दौलत पायी थी, वह उसके लिए दुनिया की किसी भी दौलत से कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ थी। उसी तरह, अगर हम धन-दौलत, नाम और शोहरत के पीछे भागने के बजाय, परमेश्वर की भक्ति करते हुए ज़िंदगी बिताएँ, तो हम भी उम्र-भर परमेश्वर की दृष्टि में धनी बने रहेंगे। परमेश्वर का वचन हमें यकीन दिलाता है: “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।”—नीतिवचन 22:4. (w07 8/1)
क्या आप समझा सकते हैं?
• यीशु के दृष्टांत में बताए आदमी की क्या समस्या थी?
• दृष्टांत में बताए आदमी को मूर्ख क्यों कहा गया था?
• परमेश्वर की दृष्टि में धनी होने का मतलब क्या है?
• हम परमेश्वर की दृष्टि में धनी कैसे हो सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]