‘यहोवा ने उन पर अपने मुख का प्रकाश चमकाया है’
‘यहोवा ने उन पर अपने मुख का प्रकाश चमकाया है’
क्या आप जानते हैं कि हमारे चेहरे पर कितनी माँस-पेशियाँ हैं? 30 से भी ज़्यादा। और सिर्फ मुस्कुराने में 14 माँस-पेशियाँ काम करती हैं। सोचिए कि इन माँस-पेशियों के बगैर क्या हमारी बातचीत दिलचस्प होती? बिलकुल नहीं। लेकिन जो लोग बधिर हैं, वे चेहरे की पेशियों का इस्तेमाल सिर्फ बातचीत को जानदार बनाने के लिए नहीं करते। बल्कि हाथों के इशारों के साथ-साथ वे इन पेशियों का इस्तेमाल अपने सोच-विचारों को ज़ाहिर करने के लिए करते हैं। कई लोगों को ताज्जुब होता है कि कैसे साइन लैंग्वेज में मुश्किल-से-मुश्किल विचारों के अलावा हर बारीकी को भी समझाया जा सकता है।
हाल के सालों में दुनिया-भर के बधिर एक ऐसा चेहरा देख पाए हैं जो इंसानों के चेहरे के बनिस्बत कहीं ज़्यादा दिलचस्प और भावनाओं से भरपूर है। वे सचमुच में नहीं, लाक्षणिक मायने में ‘यहोवा का चेहरा’ देख पाए हैं। (विला. 2:19, NW) ऐसा इत्तफाक से नहीं हुआ है। यहोवा को शुरू से ही बधिरों से लगाव रहा है। प्राचीन समय में उसने इसराएल में बधिरों के लिए अपने प्यार का सबूत दिया था। (लैव्य. 19:14) आज हमारे समय में भी उसने साफ दिखाया है कि उसे बधिरों से प्यार है। “[परमेश्वर की] यही मरज़ी है कि सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करें।” (1 तीमु. 2:4) परमेश्वर के बारे में सही ज्ञान हासिल करने से कई बधिर, एक तरह से यहोवा का चेहरा देख पाए हैं। वे परमेश्वर का ज्ञान कैसे ले पाए, जबकि उनमें सुनने की शक्ति नहीं? इस सवाल का जवाब देने से पहले आइए देखें कि साइन लैंग्वेज बधिरों के लिए क्यों ज़रूरी है।
सुनकर नहीं, देखकर सीखना
बधिरों और साइन लैंग्वेज को लेकर कई गलतफहमियाँ हैं। चलिए, हम आपके लिए कुछ गलतफहमियाँ दूर कर दें। बधिर लोग गाड़ी चला सकते हैं। दूसरों के होंठ पढ़कर बात समझना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। साइन लैंग्वेज और ब्रेल भाषा में कोई समानता नहीं और साइन लैंग्वेज का मतलब सिर्फ मूक अभिनय करना नहीं है। दुनिया-भर में एक ही साइन लैंग्वेज इस्तेमाल नहीं की जाती। यही नहीं, एक ही देश के अलग-अलग क्षेत्रों की साइन लैंग्वेज में भी थोड़ा-बहुत फर्क होता है।
क्या बधिर लोग पढ़ सकते हैं? हालाँकि कुछ बधिरों को अच्छी तरह पढ़ना आता है, लेकिन ज़्यादातर को इसमें बड़ी दिक्कत होती है। क्यों? क्योंकि लिखित भाषा, बोलचाल की भाषा से ही निकली है। इसे समझने के लिए गौर कीजिए कि एक बच्चा जो ठीक से सुन पाता है, भाषा कैसे सीखता है। जन्म से ही वह ऐसे लोगों के बीच रहता है, जो वहाँ की भाषा बोलते हैं। फिर वह भी धीरे-धीरे शब्दों को वाक्य में पिरोकर बोलने लगता है। वह सुनने-भर से भाषा बोलना सीख जाता है। यही वजह है कि जब बच्चा पढ़ना-लिखना शुरू करता है, तो वह देख पाता है कि पन्ने पर जो अक्षर दिए गए हैं, वे उन आवाज़ों और शब्दों से मेल खाते हैं जिन्हें वह बचपन से सुनता आया है।
अब मान लीजिए कि एक पराए देश में आपको शीशे के एक कमरे में रखा गया है, जहाँ से आवाज़ न तो बाहर जा सकती है और न ही अंदर आ सकती है। आपने उस देश की भाषा कभी नहीं सुनी है। हर दिन वहाँ के निवासी आते हैं और आपसे बात करने की कोशिश करते हैं। मगर शीशे की वजह
से आप उनको नहीं सुन पाते, सिर्फ उनके होंठ हिलते देखते हैं। जब उन्हें लगता है कि आप उनकी बात नहीं समझ पा रहे हैं, तो वे वही बात एक कागज़ पर लिखकर आपको दिखाते हैं। वे सोचते हैं कि इस बार आप उनकी बात ज़रूर समझ लेंगे। लेकिन क्या आप समझ लेंगे? नहीं। क्योंकि उन्होंने कागज़ पर जो लिखा, वह वही भाषा है जिसे आपने कभी नहीं सुनी है। ऐसे में उनके साथ बातचीत करना आपको नामुमकिन लग सकता है। ज़्यादातर बधिर ठीक ऐसा ही महसूस करते हैं।इस समस्या का सबसे बेहतरीन हल है, साइन लैंग्वेज। इसमें एक व्यक्ति इशारों के ज़रिए विचारों को समझाने की कोशिश करता है। वह साइन लैंग्वेज के व्याकरण के नियमों के मुताबिक अपने हाथों और शरीर, साथ ही अपने चेहरे के भावों का इस्तेमाल करता है। इस तरह एक ऐसी भाषा बनती है, जो सुनकर नहीं, देखकर समझी जाती है।
एक बधिर व्यक्ति अपने हाथों, शरीर और चेहरे से जो भी इशारा करता है, उसका कोई-न-कोई मतलब होता है। वह चेहरे के भावों का इस्तेमाल सिर्फ लोगों को प्रभावित करने के लिए नहीं करता। ये भाव साइन लैंग्वेज के व्याकरण का एक अहम हिस्सा हैं। मिसाल के लिए, अपनी भौंहें ऊपर करके सवाल पूछने का मतलब है कि आप ऐसा सवाल कर रहे हैं जिसका जवाब लोग अपने मन में दें या फिर ‘हाँ’ या ‘ना’ में। अगर भौंहें सिकोड़ी जाएँ, तो इसका मतलब है कि आप ऐसे सवाल पूछ रहे हैं जैसे कौन, क्या, कहाँ, कब, क्यों, या कैसे। मुँह हिलाने के कुछ तरीकों से पता चलता है कि कोई चीज़ छोटी है या बड़ी या कोई काम धीरे से किया जा रहा है या तेज़ी से। एक बधिर अपना सिर हिलाकर, अपने कंधों को उचकाकर, गालों को फुलाकर और पिचकाकर और अपनी पलकें झपकाकर किसी भी बात की जानकारी बारीकी से दे पाता है।
इस तरह देखनेवाले को जानकारी बहुत ही दिलचस्प तरीके से समझ आती है। जो बधिर साइन लैंग्वेज अच्छी तरह जानते हैं, उनके लिए अपने हाथों, आँखों वगैरह का इस्तेमाल कर कोई भी बात समझा पाना नामुमकिन नहीं। फिर चाहे वह कविता हो या तकनीकी जानकारी हो, प्यार-मुहब्बत की बातें हों या हँसी-मज़ाक की, देखी या अनदेखी चीज़ों की बात हो।
साइन लैंग्वेज प्रकाशन ने किया गहरा असर
जब एक बधिर इंसान को साइन लैंग्वेज में यहोवा के बारे में बताया जाता है, तो यह ऐसा है मानो वह खुशखबरी सुन पाता है और इस तरह वह परमेश्वर पर ‘विश्वास कर’ पाता है। (रोमि. 10:14) इसलिए यहोवा के साक्षियों ने दुनिया-भर में बधिर लोगों को प्रचार करने की जी-तोड़ मेहनत की है और उनके फायदे के लिए प्रकाशन भी तैयार किए हैं। फिलहाल पूरी दुनिया में 58 टीम हैं जो साइन लैंग्वेज में अनुवाद करती हैं और 40 साइन लैंग्वेज में हमारे प्रकाशन डी.वी.डी. पर उपलब्ध हैं। इन प्रकाशनों को तैयार करने में जो मेहनत लगी, क्या वह रंग लायी?
जेरमी, जिसके माँ-बाप बधिर हैं कहता है: “मुझे आज भी वह समय याद है जब पापा प्रहरीदुर्ग के एकाध पैराग्राफ समझने के लिए अपने कमरे में घंटों अध्ययन करते थे। ऐसे ही एक दिन की बात है। पापा अचानक अपने कमरे से निकलकर इशारा करने लगे, ‘समझ आ गया! मुझे समझ आ गया!’ तब वे मुझे बताने लगे कि उन्होंने लेख से क्या समझा है। उस
वक्त मैं सिर्फ 12 साल का था। मैंने पैराग्राफ पर एक सरसरी नज़र दौड़ाकर पापा को इशारा किया: ‘पापा, मुझे नहीं लगता कि इन पैराग्राफों का यह मतलब है। इनका मतलब है . . .।’ इससे पहले कि मैं आगे कुछ कह पाता पापा ने मुझे वहीं रुक जाने का इशारा किया और अपने कमरे में लौट गए ताकि वे खुद उसका मतलब समझ सकें। मैं पापा का उदास चेहरा कभी नहीं भूल सकता और न ही यह भूल सकता हूँ कि उन्हें हिम्मत न हारते देख कैसे उनके लिए मेरी इज़्ज़त और भी बढ़ गयी। लेकिन जब से डी.वी.डी. पर साइन लैंग्वेज प्रकाशन उपलब्ध हुए हैं, पापा के लिए जानकारी को समझना आसान हो गया है। अब जब पापा ज़ाहिर करते हैं कि वे यहोवा के बारे में कैसा महसूस करते हैं, तब उनके चेहरे पर जो रौनक छा जाती है, उसे देखकर मेरा दिल कहता है शुक्रिया यहोवा।”दक्षिण अमरीका के चिली देश के एक अनुभव पर ध्यान दीजिए। एक साक्षी जोड़े ने हेसेन्या नाम की एक बधिर लड़की से बात की। उन्होंने उसकी माँ से पूछकर उसे चिलियन साइन लैंग्वेज में बाइबल कहानियों की मेरी मनपसंद किताब की डी.वी.डी. दिखायी। इस बारे में साक्षी बताते हैं: “जब हेसेन्या ने डी.वी.डी. देखना शुरू किया, तो पहले उसके चेहरे पर खुशी छा गयी, फिर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। जब उसकी मम्मी ने उससे पूछा कि वह क्यों रो रही है, तब उसने बताया कि उसे कहानियाँ बड़ी अच्छी लग रही हैं। उसकी मम्मी को तब एहसास हुआ कि हेसेन्या डी.वी.डी. पर दिखायी सारी बातें साफ-साफ समझ पा रही है।”
वेनेज़ुएला के देहाती इलाके में एक बधिर स्त्री रहती है। उसकी एक बेटी है और उसे दूसरा बच्चा होनेवाला था। उसे और उसके पति को लगा कि एक और बच्चे का खर्च उठाना उनके लिए भारी पड़ेगा, इसलिए वे गर्भपात कराने की सोच रहे थे। इसी बीच यहोवा के साक्षी उनके घर आए और उन्हें परमेश्वर हमसे क्या माँग करता है? डी.वी.डी. वेनेज़ुएलन साइन लैंग्वेज में दिखाने की पेशकश की। उस जोड़े के हालात से अनजान साक्षियों ने अध्याय 12 चलाया, जिसमें गर्भपात और हत्या के बारे में परमेश्वर का नज़रिया बताया गया है। कुछ समय बाद, स्त्री ने साक्षियों को बताया कि वह इस अध्याय के लिए कितनी शुक्रगुज़ार है। अध्याय देखने के बाद उन्होंने फैसला किया कि वे गर्भपात नहीं कराएँगे। ज़रा सोचिए, साइन लैंग्वेज डी.वी.डी. से एक बच्चे की जान बच गयी!
लॉरेन नाम की एक बधिर साक्षी बहन कहती है: “बाइबल का अध्ययन करना ऐसा था मानो एक तसवीर के बहुत-से टुकड़ों को जोड़कर पूरी तसवीर बनाना। कभी-कभी मुझे लगता था कि कुछ टुकड़े गायब हैं यानी कुछ बातें मैं पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी। लेकिन जब बाइबल की सच्चाइयाँ साइन लैंग्वेज में और भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध हुईं तो मुझे उन बातों की समझ मिली।” एक बधिर भाई जॉर्ज जो 38 सालों से साक्षी है, कहता है: “इसमें कोई दो राय नहीं कि जब हम किसी मामले को खुद समझ पाते हैं, तो हमारा आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास बढ़ता है। मैं मानता हूँ कि यहोवा के करीब आने में साइन लैंग्वेज डी.वी.डी. से मुझे सबसे ज़्यादा मदद मिली है।”
“मेरी अपनी भाषा में सभा”
साइन लैंग्वेज प्रकाशन तैयार करने के अलावा यहोवा के साक्षियों ने ऐसी मंडलियाँ शुरू की हैं, जहाँ सारी सभाएँ
साइन लैंग्वेज में होती हैं। फिलहाल पूरी दुनिया में 1,100 से भी ज़्यादा साइन लैंग्वेज मंडलियाँ हैं। हाज़िर बधिर लोगों से उनकी भाषा में बात की जाती है और बाइबल की सच्चाइयाँ इस तरह पेश की जाती हैं, जिससे वे आसानी से समझ सकें। ये सच्चाइयाँ उनकी संस्कृति और जीवन के अनुभवों को ध्यान में रखकर सिखायी जाती हैं।साइन लैंग्वेज मंडलियों के शुरू होने से क्या कोई फायदा हुआ है? सिरिल की मिसाल लीजिए जो 1955 में बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बना। बरसों तक उससे जितना बन पड़ा, उसने किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करने की कोशिश की और बिना नागा सभाओं में हाज़िर हुआ। सभाओं का कार्यक्रम साइन लैंग्वेज में समझाने के लिए कभी भाई-बहन होते तो कभी कोई नहीं होता। जब साइन लैंग्वेज में समझानेवाला कोई नहीं होता, तब उसे उन साक्षियों पर निर्भर होना पड़ता जो उसे लिखकर दिखाते कि स्टेज से क्या बताया जा रहा है। सन् 1989 में जब उसे साक्षी बने करीब 34 साल हो गए थे, तब जाकर अमरीका के न्यू यॉर्क शहर में पहली साइन लैंग्वेज मंडली बनी। उस मंडली का सदस्य बनने पर सिरिल को कैसा लगा? वह कहता है: “मुझे ऐसा लगा जैसे मैं घने जंगल से निकलकर . . . उजियाले में आ गया हूँ। मेरी अपनी भाषा में सभा, वाह क्या बात है!”
यहोवा के साक्षियों की साइन लैंग्वेज मंडली वह जगह है, जहाँ बधिर लोग नियमित तौर पर इकट्ठे होकर परमेश्वर के बारे में सीखते हैं और उसकी उपासना करते हैं। यहाँ परमेश्वर के लोग एक-दूसरे से प्यार और अपनापन पाते हैं। सामान्य लोगों की दुनिया में बधिर दूसरों के साथ आसानी से बातचीत नहीं कर पाते और शायद इस वजह से वे अकेला महसूस करें। लेकिन साइन लैंग्वेज मंडली ऐसा आशियाना है जहाँ वे दूसरों के साथ अपनी भाषा में बात कर सकते हैं और अच्छे दोस्त बना सकते हैं। उन्हें यहोवा के बारे में जानने, उस ज्ञान में बढ़ते जाने और उसकी सेवा में लक्ष्य रखने का अच्छा माहौल मिलता है। कई बधिर पूरे समय की सेवा कर पाए हैं। कुछ ने तो दूसरे देश जाकर और भी बधिरों को यहोवा के बारे में सीखने में मदद दी है। बधिर भाई कुशल शिक्षक, अच्छी व्यवस्था करनेवाले और चरवाहे बनना सीखते हैं। और फिर उनमें से कई, मंडली में ज़िम्मेदारी सँभालने के योग्य बनते हैं।
अमरीका में 100 से भी ज़्यादा साइन लैंग्वेज मंडलियाँ और करीब 80 समूह हैं। ब्राज़ील में तकरीबन 300 साइन लैंग्वेज मंडलियाँ और 400 से भी ज़्यादा समूह हैं। मेक्सिको में ऐसी मंडलियों की गिनती करीब 300 है। और रशिया में 30 से भी ज़्यादा मंडलियाँ और 113 समूह हैं। ये चंद उदाहरण दिखाते हैं कि कैसे दुनिया-भर में साइन लैंग्वेज के क्षेत्र में कमाल की बढ़ोतरी हो रही है।
प्रकाशनों और सभाओं के अलावा, यहोवा के साक्षी साइन लैंग्वेज में सम्मेलन और अधिवेशन भी रखते हैं। पिछले साल, दुनिया-भर में अलग-अलग साइन लैंग्वेज में 120 से भी ज़्यादा अधिवेशन रखे गए। ये सभाएँ बधिर साक्षियों को एहसास दिलाती हैं कि वे भी दुनिया-भर में फैली उस मसीही बिरादरी का हिस्सा हैं, जिसे समय पर आध्यात्मिक खुराक दी जा रही है।
लेनार्ड एक बधिर भाई है जिसे साक्षी बने 25 से ज़्यादा साल हो चुके हैं। वह बताता है: “मुझे हमेशा से यकीन था कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है। फिर भी, मुझे यह बात साफ-साफ समझ नहीं आयी कि उसने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं। इसलिए कभी-कभी मुझे यहोवा पर बहुत गुस्सा आता था। लेकिन फिर एक भाषण के दौरान मुझे आखिरकार समझ आया कि किन वजहों से यहोवा ने दुख-तकलीफें रहने दी हैं। यह भाषण साइन लैंग्वेज के एक ज़िला अधिवेशन में दिया जा रहा था। भाषण खत्म होने पर मेरी पत्नी ने मुझे कोहनी मारी और पूछा, ‘क्या अब आपको तसल्ली हुई?’ मैं सच्चे दिल से ‘हाँ’ कह सका। मुझे खुशी है कि इन 25 सालों में मैंने यहोवा को कभी नहीं छोड़ा। मुझे हमेशा से यहोवा से प्यार था, लेकिन मैं उसे कभी पूरी तरह समझ नहीं पाया। मगर आज मैं उसे अच्छी तरह समझता हूँ।”
तहेदिल से एहसानमंद
यहोवा के बारे में जानकर बधिर उसके चेहरे के किन “भावों” को देख पा रहे हैं? प्यार, करुणा, न्याय, वफादारी, अटल-कृपा और दूसरे कई भावों को।
दुनिया-भर में बधिर साक्षी यहोवा के चेहरे को देख रहे हैं और आगे और भी साफ तरीके से देख पाएँगे। यहोवा बधिरों से प्यार करता है, इसलिए उसने ‘उन पर अपने मुख का प्रकाश चमकाया है।’ (गिन. 6:25) ये बधिर तहेदिल से एहसानमंद हैं कि वे यहोवा को जान पाए हैं।
[पेज 24, 25 पर तसवीरें]
दुनिया-भर में 1,100 से भी ज़्यादा साइन लैंग्वेज मंडलियाँ हैं
[पेज 26 पर तसवीरें]
यहोवा ने बधिरों पर अपने मुख का प्रकाश चमकाया है