आज्ञा मानने और हिम्मत दिखाने में यीशु के जैसे बनिए
आज्ञा मानने और हिम्मत दिखाने में यीशु के जैसे बनिए
“हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल की है।”—यूह. 16:33.
1. यीशु ने किस हद तक परमेश्वर की आज्ञा मानी?
यीशु मसीह ने हमेशा परमेश्वर की मरज़ी पूरी की। एक बार को भी उसके मन में अपने पिता की आज्ञा टालने का खयाल नहीं आया। (यूह. 4:34; इब्रा. 7:26) मगर धरती पर रहते वक्त उसने जिन हालात का सामना किया, उनमें परमेश्वर का आज्ञाकारी रहना उसके लिए आसान नहीं था। यीशु के प्रचार काम की शुरूआत से ही शैतान और उसके बाकी दुश्मनों ने उस पर दबाव डालने, उसे कायल करने के ज़रिए या चालाकी से उसे परमेश्वर के खिलाफ ले जाने की कोशिश की। (मत्ती 4:1-11; लूका 20:20-25) इन दुश्मनों ने यीशु को असहनीय वेदना और शारीरिक पीड़ा दी। और आखिरकार उसे सूली पर चढ़ा दिया। (मत्ती 26:37, 38; लूका 22:44; यूह. 19:1, 17, 18) इन कड़ी आज़माइशों में दर्द और पीड़ाएँ झेलते वक्त यीशु “इस हद तक आज्ञा माननेवाला बना कि उसने मौत भी . . . सह ली।”—फिलिप्पियों 2:8 पढ़िए।
2, 3. आज़माइशों के बावजूद आज्ञाकारी रहने के बारे में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?
2 धरती पर इंसान की ज़िंदगी जीकर यीशु ने नए तरीके से आज्ञा मानना सीखा। (इब्रा. 5:8) स्वर्ग में वह अरबों-खरबों साल तक यहोवा के साथ था और सृष्टि के दौरान उसका “कुशल कारीगर” भी था। (नीति. 8:30, NHT) इसलिए हमें शायद लगे कि यहोवा की सेवा के बारे में यीशु को जो सीखना था, वह सबकुछ उसने स्वर्ग में सीख लिया होगा। लेकिन धरती पर उसने मुश्किल हालात में आज्ञा मानना सीखा। और आज़माइशों के बावजूद विश्वास में डटे रहकर उसकी खराई सिद्ध या परिपूर्ण साबित हुई। इससे अपने पिता यहोवा के साथ उसका रिश्ता पहले से ज़्यादा मज़बूत हुआ। हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?
3 हालाँकि यीशु सिद्ध इंसान था, मगर उसने अपने बलबूते परमेश्वर की आज्ञा मानने की कोशिश नहीं की। बल्कि उसने परमेश्वर से मदद माँगी। (इब्रानियों 5:7 पढ़िए।) उसी तरह, अगर हम आज्ञाकारी रहना चाहते हैं, तो हमें भी नम्र होकर लगातार परमेश्वर से मदद माँगनी चाहिए। इसलिए प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी, “तुम मन का वैसा स्वभाव पैदा करो जैसा मसीह यीशु का था,” जिसने “खुद को नम्र किया और इस हद तक आज्ञा माननेवाला बना कि उसने मौत भी . . . सह ली।” (फिलि. 2:5-8) यीशु ने साबित किया कि इस दुष्ट संसार में रहते हुए भी एक इंसान परमेश्वर का आज्ञाकारी बना रह सकता है। सिद्ध इंसान के नाते यीशु परमेश्वर का आज्ञाकारी रहा। लेकिन हम असिद्ध इंसानों के बारे में क्या?
असिद्ध होने के बावजूद आज्ञा माननेवाले बनना
4. आज़ाद मरज़ी के साथ बनाए जाने का क्या मतलब है?
4 परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बुद्धिमान प्राणी के तौर पर और आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया था। उनकी संतान होने के नाते हमें भी आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया गया है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हम खुद फैसला कर सकते हैं कि हम सही काम करेंगे या नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो परमेश्वर ने हमें उसकी बात मानने या न मानने की आज़ादी दी है। लेकिन इस आज़ाद मरज़ी के साथ एक जवाबदारी भी आती है। हम इस आज़ादी का कैसे इस्तेमाल करते हैं, इसका हमें यहोवा को लेखा देना होगा। वाकई, अच्छे-बुरे के बारे में हम जो फैसले लेते हैं, उनसे तय होगा कि हमें ज़िंदगी मिलेगी या मौत। इतना ही नहीं, हमारे फैसलों का उन लोगों पर भी असर होगा जो हमारे करीब हैं।
5. हमारे लिए क्या करना आसान नहीं? और इसमें कामयाब होने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
5 हमें आदम से असिद्धता मिली है, इसलिए परमेश्वर की आज्ञाएँ मानना हमारे लिए हमेशा आसान नहीं होता। प्रेषित पौलुस के लिए भी यह एक संघर्ष था। उसने लिखा: “मैं अपने अंगों में दूसरे कानून को काम करता हुआ पाता हूँ, जो मेरे सोच-विचार पर राज करनेवाले कानून से लड़ता है और मुझे पाप के उस कानून का गुलाम बना लेता है जो मेरे अंगों में है।” (रोमि. 7:23) यह सच है कि जब हमें कोई त्याग नहीं करना पड़ता, कोई दिक्कत या तकलीफ नहीं उठानी पड़ती, तब आज्ञा मानना आसान होता है। लेकिन तब क्या जब आज्ञा मानने की हमारी ख्वाहिश और शरीर की ख्वाहिशों के बीच टकराव होता है? असिद्धता और “दुनिया की फितरत” की वजह से हमारे अंदर ‘शरीर की ख्वाहिशें और आँखों की ख्वाहिशें’ पैदा होती हैं। ये ख्वाहिशें हम पर ज़बरदस्त असर कर सकती हैं। (1 यूह. 2:16; 1 कुरिं. 2:12) इन गलत ख्वाहिशों से लड़ने के लिए, हमें किसी परीक्षा या मुश्किल हालात में पड़ने से बहुत पहले ‘अपना हृदय तैयार करना’ चाहिए। और ठान लेना चाहिए कि हम हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानेंगे। (भज. 78:8, NHT) बाइबल में ऐसे बहुत-से लोगों की मिसालें दी गयी हैं जो अपना हृदय तैयार कर आज्ञा मानने में कामयाब हुए।—एज्रा 7:10; दानि. 1:8.
6, 7. उदाहरण देकर समझाइए कि किस तरह निजी अध्ययन से हमें सही फैसले लेने में मदद मिलती है?
6 अपना हृदय तैयार करने का एक तरीका है, बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली किताबों-पत्रिकाओं का मन लगाकर अध्ययन करना। मान लीजिए आप निजी अध्ययन कर रहे हैं। अध्ययन से पहले आपने यहोवा से उसकी पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना की है ताकि आप उसके वचन से जो सीखेंगे, उसे लागू कर सकें। अगली शाम आपने टी.वी. पर कोई फिल्म देखने की सोची है। इस फिल्म के बारे में आपने अच्छी बातें पढ़ी या सुनी हैं, लेकिन आपने यह भी सुना है कि इसमें कुछ मार-धाड़वाले और गंदे सीन हैं।
7 अध्ययन के दौरान आप इफिसियों 5:3 में दी पौलुस की इस बात पर मनन करते हैं, “जैसा पवित्र लोगों को शोभा देता है, तुम्हारे बीच व्यभिचार और किसी भी तरह की अशुद्धता या लालच का ज़िक्र तक न हो।” आप पौलुस की उस सलाह को भी याद करते हैं जो फिलिप्पियों 4:8 में दर्ज़ है। (पढ़िए।) परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी इस सलाह पर मनन करते वक्त, आप खुद से पूछते हैं, ‘क्या यह फिल्म देखकर मैं कह सकूँगा कि मैंने पूरी तरह से परमेश्वर की आज्ञा मानी है, ठीक जैसे यीशु ने मानी थी?’ तो अब आप क्या करेंगे? क्या आप फिर भी वह फिल्म देखेंगे?
8. हमें क्यों यहोवा के ऊँचे स्तरों पर चलते रहने की ज़रूरत है?
8 अगर हम सोचें कि बुरी संगति का हम पर कोई असर नहीं होगा और हम यहोवा के स्तरों पर चलने में ढिलाई बरतें, तो यह हमारी भूल होगी। यह बात तब भी सच है जब हम हिंसा या अश्लीलता को बढ़ावा देनेवाले मनोरंजन के ज़रिए उन लोगों की संगति करते हैं जो यहोवा के स्तरों की कदर नहीं करते। हमें चाहिए कि हम खुद को और अपने बच्चों को शैतान और उसकी दुनिया के बुरे असर से बचाए रखें। ज़रा इस बात पर ध्यान दीजिए। कंप्यूटर इस्तेमाल करनेवाले अपने कंप्यूटर को खतरनाक वायरस से बचाने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि कंप्यूटर में वायरस आ जाने से उसमें रखी जानकारी नष्ट हो जाती है, कंप्यूटर ठीक से काम नहीं कर पाता और दूसरे कंप्यूटर में भी वायरस फैलने का खतरा बढ़ जाता है। अगर लोग एक कंप्यूटर को बचाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं, तो सोचिए हमें शैतान की “धूर्त चालों” से सतर्क रहने में और कितनी मेहनत करनी चाहिए?—इफि. 6:11, फुटनोट।
9. हमें हर दिन यहोवा की आज्ञा मानने का पक्का इरादा क्यों करना चाहिए?
9 हर दिन हमें किसी-न-किसी मामले में यह फैसला लेना पड़ता है कि हम यहोवा के कहे मुताबिक काम करेंगे या नहीं। उद्धार पाने के लिए, हमें परमेश्वर की हर बात माननी चाहिए और उसके ऊँचे स्तरों पर चलना चाहिए। अगर हम यीशु की तरह ‘मौत तक’ परमेश्वर के आज्ञा माननेवाले बनें, तो हम दिखाएँगे कि हमारा विश्वास सच्चा है। हमारी इस वफादारी के लिए यहोवा हमें इनाम देगा। यीशु ने वादा किया: “जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा।” (मत्ती 24:13) इन बातों से पता चलता है कि आज्ञा मानने के लिए हमें सही किस्म की हिम्मत दिखाने की ज़रूरत है, ठीक जैसे यीशु ने दिखायी थी।—भज. 31:24.
हिम्मत दिखाने में सबसे बेहतरीन मिसाल—यीशु
10. हम मसीहियों पर किस तरह के दबाव आ सकते हैं? और ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?
10 आज जहाँ देखो, वहाँ ऐसा रवैया और चालचलन देखने को मिलता है जिसका हम पर बुरा असर हो सकता है। इससे बचने के लिए हमें हिम्मत की ज़रूरत है। सच्चे मसीहियों पर कई तरह के दबाव आते हैं जो उन्हें यहोवा के नेक स्तरों से दूर ले जा सकते हैं। जैसे, उन पर गलत काम करने या झूठे धर्म के रस्म-रिवाज़ों में शरीक होने का दबाव आ सकता है। या फिर उन्हें पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा कई मसीही, अपने ही घर के लोगों से विरोध का सामना करते हैं। कुछ देशों के स्कूल-कॉलेजों में विकासवाद के बारे में बढ़-चढ़कर सिखाया जाता है। और नास्तिक होना आज के समाज में बुरा नहीं माना जाता। ऐसे दबावों का सामना करते वक्त हम मसीहियों के लिए हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहना सही नहीं होगा। हमें इनका विरोध करने और इनसे अपनी हिफाज़त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। यीशु की मिसाल दिखाती है कि हम इसमें कैसे कामयाब हो सकते हैं।
11. यीशु की मिसाल पर मनन करने से हमें कैसे और भी हिम्मत मिलेगी?
11 यीशु ने अपने चेलों से कहा, “दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल की है।” (यूह. 16:33) यीशु ने दुनिया के बुरे असर को कभी-भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यह दुनिया उसे प्रचार काम करने से नहीं रोक पायी और न ही उसे उपासना और चालचलन के मामले में समझौता करवाने में कामयाब हो पायी। हमारे बारे में भी यह बात सच होनी चाहिए। यीशु ने प्रार्थना में अपने चेलों के बारे में कहा, “वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।” (यूह. 17:16) यीशु ने जिस तरह हिम्मत दिखायी, उस बारे में सीखने और उस पर मनन करने से हमें खुद को दुनिया से अलग रखने की हिम्मत मिलेगी।
यीशु से सीखिए हिम्मत दिखाना
12-14. यीशु ने किस तरह हिम्मत दिखायी, इसके कुछ उदाहरण बताइए।
12 यीशु ने धरती पर अपनी सेवा के दौरान बड़ी हिम्मत दिखायी। परमेश्वर का बेटा होने के नाते वह बेखौफ “मंदिर के अंदर गया। मंदिर में जो लोग बिक्री कर रहे थे, और जो खरीदारी कर रहे थे, उन सबको उसने खदेड़ दिया और पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं।” (मत्ती 21:12) यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात जब सैनिक उसे गिरफ्तार करने आए, तो उसने अपने चेलों को बचाने के लिए हिम्मत दिखायी और आगे आकर सैनिकों से कहा, “अगर तुम मुझे ही ढूँढ़ रहे हो, तो इन्हें जाने दो।” (यूह. 18:8) थोड़ी ही देर बाद जब पतरस ने बचाव के लिए तलवार चलायी, तो यीशु ने उससे तलवार म्यान में रखने को कहा। यह कहकर यीशु ने जताया कि उसे हथियारों पर नहीं, बल्कि यहोवा पर भरोसा था।—यूह. 18:11.
13 यीशु ने बड़ी निडरता से अपने ज़माने के धर्म-गुरुओं की निंदा की और उनकी झूठी शिक्षाओं का भंडाफोड़ किया। यीशु ने उनसे कहा, “अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम लोगों के सामने स्वर्ग के राज का दरवाज़ा बंद कर देते हो।” उसने यह भी कहा, “मूसा के कानून की ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को, यानी न्याय और दया और विश्वासयोग्य होने को तुमने दरकिनार कर दिया है। . . . तुम उन प्यालों और थालियों की तरह हो जिन्हें सिर्फ बाहर से साफ किया जाता है, मगर अंदर से वे लूट के माल और बेलगाम ऐयाशी से भरे हैं।” (मत्ती 23:13, 23, 25) यीशु के चेलों को उसके जैसी हिम्मत दिखाने की ज़रूरत है, क्योंकि झूठे धर्म-गुरु उन्हें सताएँगे और कुछ चेलों को मार भी डालेंगे।—मत्ती 23:34; 24:9.
14 यीशु ने बेधड़क होकर दुष्ट स्वर्गदूतों का भी मुकाबला किया। एक बार उसका सामना एक ऐसे खूँखार आदमी से हुआ जो दुष्ट स्वर्गदूतों के वश में था। वह आदमी इतना ताकतवर हो गया था कि कोई भी उसे बाँधकर रखने में कामयाब नहीं हो सका था। यीशु उस आदमी से डरा नहीं, बल्कि उसमें समाए कई दुष्ट दूतों को बाहर निकाला। (मर. 5:1-13) आज हम मसीहियों को ऐसे चमत्कार करने की शक्ति नहीं मिली है। लेकिन प्रचार और सिखाने के काम में हमें भी शैतान से लड़ना पड़ता है जिसने ‘अविश्वासियों के मन को अंधा कर दिया है।’ (2 कुरिं. 4:4) यीशु की तरह, हमारे हथियार “शारीरिक नहीं हैं, बल्कि ऐसे शक्तिशाली हथियार हैं जो परमेश्वर ने हमें दिए हैं कि हम गहराई तक समायी हुई बातों” यानी झूठी शिक्षाओं को “जड़ से उखाड़ सकें।” (2 कुरिं. 10:4) यहोवा के दिए ये हथियार हम कैसे इस्तेमाल करेंगे, इस बारे में हम यीशु से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
15. यीशु ने किस वजह से हिम्मत दिखायी?
15 यीशु ने दूसरों की नज़रों में छाने के लिए दिलेरी नहीं दिखायी, बल्कि इसलिए दिखायी क्योंकि उसमें सच्चा विश्वास था। हममें भी ऐसी हिम्मत होनी चाहिए जो सच्चे विश्वास पर आधारित हो। (मर. 4:40) हम अपने अंदर ऐसा विश्वास कैसे पैदा कर सकते हैं? इस मामले में भी यीशु की मिसाल हमारी मदद करती है। यीशु ने दिखाया कि उसे शास्त्र का अच्छा ज्ञान था और वह उस पर पूरी तरह निर्भर था। उसने सचमुच की तलवार नहीं, बल्कि पवित्र शक्ति की तलवार चलायी यानी परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल किया। कई मौकों पर उसने शास्त्र का हवाला देकर दिखाया कि उसकी शिक्षाएँ परमेश्वर की तरफ से हैं। इसलिए अपनी बात कहने से पहले यीशु अकसर कहता था, “यह लिखा है” यानी परमेश्वर के वचन में लिखा है। *
16. हम मज़बूत विश्वास कैसे पैदा कर सकते हैं?
16 अगर हम अपने अंदर ऐसा विश्वास पैदा करना चाहते हैं, जो हमें परीक्षाओं का सामना करने में मदद दे, तो हमें रोज़ बाइबल पढ़नी चाहिए और उसका अध्ययन करना चाहिए। साथ ही, हमें मसीही सभाओं में हाज़िर होना चाहिए। इस तरह हमें अपना दिमाग उन सच्चाइयों से भरना चाहिए जिनसे हमारा विश्वास मज़बूत होगा। (रोमि. 10:17) हमें सीखी हुई बातों पर मनन भी करना चाहिए ताकि ये हमारे दिल में गहराई तक उतर जाएँ। ऐसा ज़िंदा विश्वास हमें हिम्मत दिखाने के लिए उकसाएगा। (याकू. 2:17) हमें पवित्र शक्ति के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि विश्वास पवित्र शक्ति के फल का एक गुण है।—गला. 5:22.
17, 18. बताइए कि एक जवान बहन ने कैसे स्कूल में हिम्मत दिखायी।
17 किटी नाम की एक जवान बहन ने अनुभव किया कि कैसे सच्चा विश्वास हमें हिम्मत देता है। बचपन से ही वह जानती थी कि उसे स्कूल में “खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं” होनी चाहिए। और वह अपनी क्लास के साथियों को अच्छी गवाही देना चाहती थी। (रोमि. 1:16) हर साल वह गवाही देने का पक्का इरादा करती थी मगर हिम्मत न जुटा पाने की वजह से नाकाम रह जाती। कुछ साल बाद उसने दूसरे स्कूल में दाखिला लिया। उसने कहा, “इस बार मैं गवाही देने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दूँगी।” किटी ने यीशु के जैसी हिम्मत दिखाने, सूझ-बूझ से काम लेने और एक सही मौके के लिए प्रार्थना की।
18 स्कूल के पहले दिन, विद्यार्थियों से कहा गया कि वे एक-एक करके अपने बारे में बताएँ। कइयों ने बताया कि वे किस धर्म से हैं, मगर यह भी कहा कि उन्हें अपने धर्म में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। किटी को एहसास हुआ कि यही वह मौका है जिसके लिए उसने प्रार्थना की थी। जब उसकी बारी आयी, तो उसने पूरे यकीन के साथ कहा, “मैं यहोवा की साक्षी हूँ। मैं उपासना और चालचलन के मामले में बाइबल की बतायी राह पर चलती हूँ।” जब वह इस बारे में और बताने लगी तो कुछ विद्यार्थी मुँह बनाने लगे। लेकिन कुछ उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे और बाद में उन्होंने किटी से सवाल भी किए। किटी ने अपने विश्वास के पक्ष में जो गवाही दी, उसके लिए उसके टीचर ने सबके सामने उसकी तारीफ की। किटी को इस बात से बेहद खुशी हुई कि वह यीशु के जैसी हिम्मत दिखा सकी।
यीशु की तरह विश्वास और हिम्मत दिखाइए
19. (क) सच्चा विश्वास होने का क्या मतलब है? (ख) हम कैसे यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं?
19 यीशु के चेलों को भी इस बात का एहसास था कि हिम्मत दिखाने के लिए विश्वास होना ज़रूरी है। इसलिए उन्होंने यीशु से बिनती की, “हमारा विश्वास बढ़ा।” (लूका 17:5, 6 पढ़िए।) सच्चा विश्वास होने का मतलब सिर्फ यह यकीन करना नहीं कि परमेश्वर सचमुच में है। इसमें यहोवा पर भरोसा करना और उसके साथ एक करीबी रिश्ता जोड़ना भी शामिल है, ठीक जैसे एक बच्चे का अपने पिता के साथ करीबी रिश्ता होता है। परमेश्वर की प्रेरणा से सुलैमान ने लिखा, “हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो, तो विशेष करके मेरा ही मन आनन्दित होगा। और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा।” (नीति. 23:15, 16) जी हाँ, जब हम हिम्मत दिखाते हुए परमेश्वर के वचन में दिए सिद्धांतों पर चलते हैं तो हम यहोवा का दिल खुश करते हैं। और इस बात से हमारी हिम्मत और भी बढ़ती है। तो आइए, हम हमेशा परमेश्वर के सिद्धांतों को मानने में यीशु के जैसी हिम्मत दिखाएँ!
[फुटनोट]
^ उदाहरण के लिए मत्ती 4:4, 7, 10; 11:10; 21:13; 26:31; मर. 9:13; 14:27; लूका 24:46; यूह. 6:45; 8:17 देखिए।
क्या आप समझा सकते हैं?
• असिद्ध होने के बावजूद आज्ञा मानने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
• सच्चे विश्वास का आधार क्या है? और यह विश्वास किस तरह हमें हिम्मत दिखाने में मदद कर सकता है?
• हमारे आज्ञाकारी रहने से और यीशु की तरह हिम्मत दिखाने से क्या नतीजे निकलेंगे?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
क्या आप गलत काम का विरोध करने के लिए ‘अपना हृदय तैयार कर’ रहे हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
हम यीशु की तरह हिम्मत दिखा सकते हैं जो सच्चे विश्वास पर आधारित है