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“सोचो कि . . . तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए!”

“सोचो कि . . . तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए!”

“सोचो कि . . . तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए!”

“इसलिए, जब ये सारी चीज़ें इस तरह पिघल जाएँगी, तो सोचो कि आज तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए! तुम्हें पवित्र चालचलन रखनेवाले और परमेश्‍वर की भक्‍ति के काम करनेवाले इंसान होना चाहिए।”—2 पत. 3:11.

1. पतरस का दूसरा खत मसीहियों के लिए क्यों बिलकुल समय पर था?

 जब प्रेषित पतरस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से दूसरा खत लिखा, तब तक मसीही मंडली बहुत-से अत्याचार सह चुकी थी। फिर भी, मसीहियों का जोश कम नहीं हुआ था और उनकी संख्या बढ़ती गयी। इसलिए उनकी खराई तोड़ने के लिए शैतान ने एक और पैंतरा अपनाया, जिसमें वह पहले कई बार कामयाब हुआ था। उसका पतरस ने खुलासा किया कि शैतान, झूठे शिक्षकों के ज़रिए परमेश्‍वर के लोगों को भ्रष्ट करता है। इन झूठे शिक्षकों की “आँखों में वासना भरी” होती है और वे “लालच के काम करने में अपने दिलों को माहिर कर” लेते हैं। (2 पत. 2:1-3, 14; यहू. 4) इसीलिए पतरस ने दिल से अपने दूसरे खत में मसीहियों को वफादार रहने का बढ़ावा दिया।

2. दूसरा पतरस अध्याय 3 किस बात पर हमारा ध्यान खींचता है और हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

2 पतरस ने लिखा: “मैं ऐसा करना सही समझता हूँ कि मैं जब तक शरीर के इस डेरे में हूँ तुम्हें इन बातों की याद दिलाकर जोश दिलाता रहूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे शरीर का यह डेरा गिराए जाने का वक्‍त करीब आ पहुँचा है, . . . इसलिए मैं हर वक्‍त तुम्हें याद दिलाने के लिए अपना भरसक करूँगा, ताकि मेरे चले जाने के बाद तुम खुद को इन बातों की याद दिला सको।” (2 पत. 1:13-15) जी हाँ, पतरस जानता था कि उसकी मौत करीब है, पर वह चाहता था कि मसीही उसकी बातें याद रखें जो उस वक्‍त के लिए बहुत कारगर थीं। और बेशक उसकी बातें बाइबल का हिस्सा बनीं और आज हम भी उन्हें पढ़ सकते हैं। पतरस के दूसरे खत का तीसरा अध्याय हमारे लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि वह मौजूदा व्यवस्था के “आखिरी दिनों” के बारे में और लाक्षणिक आकाश और धरती के विनाश के बारे में बताता है। (2 पत. 3:3, 7, 10) पतरस हमें क्या सलाह देता है? उसकी सलाह को लागू करने से हमें यहोवा की मंज़ूरी कैसे मिलेगी?

3, 4. (क) पतरस ने मसीहियों को क्या सोचने के लिए उभारा और कौन-सी चेतावनी दी? (ख) हम किन तीन मुद्दों पर गौर करेंगे?

3 शैतान की दुनिया के खत्म होने का ज़िक्र करने के बाद पतरस कहता है: “सोचो कि आज तुम्हें कैसे इंसान होना चाहिए! तुम्हें पवित्र चालचलन रखनेवाले और परमेश्‍वर की भक्‍ति के काम करनेवाले इंसान होना चाहिए।” (2 पत. 3:11, 12) बेशक पतरस सवाल नहीं पूछ रहा था पर हमें सोचने के लिए उभार रहा था। पतरस जानता था कि जो यहोवा की इच्छा पूरी करते हैं और परमेश्‍वर जैसे गुण दिखाते हैं, सिर्फ वे लोग “पलटा लेने के दिन” में बचाए जाएँगे। (यशा. 61:2) इसलिए प्रेषित ने आगे कहा: “मेरे प्यारो, तुम पहले से इन बातों की जानकारी रखते हुए खबरदार रहो कि तुम दुराचारियों [झूठे शिक्षकों] के गलत कामों में न पड़ो और गुमराह न हो जाओ और जिस स्थिरता से तुम अटल खड़े हो उससे गिर न जाओ।”—2 पत. 3:17.

4 पतरस को भी ‘पहले से जानकारी’ थी कि आगे क्या होनेवाला है। उसे मालूम था कि आखिरी दिनों में मसीहियों को सावधान रहने की ज़रूरत होगी ताकि वे अपनी खराई बनाए रख सकें। आगे चलकर प्रेषित यूहन्‍ना ने इसी बात को समझाया कि उन्हें सावधान रहने की ज़रूरत क्यों होगी। उसने पहले से देखा कि स्वर्ग से शैतान को खदेड़ दिया गया है और उसका ‘बड़ा क्रोध’ उन पर भड़का है “जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं और जिनके पास यीशु की गवाही देने का काम है।” (प्रका. 12:9, 12, 17) लेकिन परमेश्‍वर के वफादार अभिषिक्‍त सेवक, ‘दूसरी भेड़ों’ यानी अपने विश्‍वासी साथियों के साथ मिलकर शैतान पर ज़रूर फतह हासिल करेंगे। (यूह. 10:16) मगर व्यक्‍तिगत तौर पर हमारे बारे में क्या? क्या हम अपनी खराई बनाए रखेंगे? हाँ, यह मुमकिन है अगर हम (1) परमेश्‍वर जैसे गुण बढ़ाने, (2) नैतिक और आध्यात्मिक तौर पर निष्कलंक और बेदाग रहने और (3) अपनी आज़माइशों के बारे में सही नज़रिया रखने की कोशिश करें। आइए इन मुद्दों पर गौर करें।

परमेश्‍वर जैसे गुण बढ़ाइए

5, 6. हमें कैसे गुण पैदा करने चाहिए और इसके लिए “जी-जान से कोशिश” करना क्यों ज़रूरी है?

5 पतरस ने अपने दूसरे खत की शुरूआत में कुछ इस तरह से लिखा: “परमेश्‍वर ने तुम्हारे लिए जो किया है उसके बदले में तुम भी जी-जान से कोशिश करो ताकि तुम अपने विश्‍वास में हर तरह से सद्‌गुण, और सद्‌गुण में हर तरह से ज्ञान, ज्ञान में हर तरह से संयम, संयम में हर तरह से धीरज, धीरज में हर तरह से परमेश्‍वर की भक्‍ति और परमेश्‍वर की भक्‍ति में हर तरह से भाइयों जैसा लगाव और भाइयों जैसे लगाव में प्यार बढ़ाते जाओ। अगर ये गुण तुममें मौजूद हों, और तुममें उमड़ते रहें तो ये तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के बारे में सही ज्ञान को अमल में लाने में ठंडे पड़ने या निष्फल होने नहीं देंगे।”—2 पत. 1:5-8.

6 जिन कामों से परमेश्‍वर जैसे गुण पैदा हो सकते हैं, बेशक उनके लिए हमें “जी-जान से कोशिश” करने की ज़रूरत होती है। मसलन, सारी मसीही सभाओं में हाज़िर होने, रोज़ाना बाइबल पढ़ने और निजी बाइबल अध्ययन का अच्छा कार्यक्रम रखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। पारिवारिक उपासना की शाम को नियमित तौर पर अध्ययन करने, उसे मज़ेदार बनाने और फायदा पाने के लिए मेहनत के साथ-साथ अच्छी योजना बनाने की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन अगर एक बार हमने इसे नियम से करना शुरू कर दिया तो यह हमारी आदत में शुमार हो जाएगी खासकर तब जब हम देखेंगे कि इसके कितने फायदे हैं।

7, 8. (क) पारिवारिक उपासना के बारे में कुछ लोगों का क्या कहना है? (ख) आप अपनी पारिवारिक उपासना की शाम से कैसे फायदा पा रहे हैं?

7 पारिवारिक उपासना के इंतज़ाम के बारे में एक बहन लिखती है: “हम इस दौरान बहुत-से विषयों के बारे में सीख लेते हैं।” एक और बहन कहती है: “सच कहूँ तो मुझे पुस्तक अध्ययन बहुत अच्छा लगता था और मैं नहीं चाहती थी कि वह बंद हो। लेकिन जब हम पारिवारिक उपासना करने लगे, तब मैं समझी कि यहोवा जानता है हमें कब किस चीज़ की ज़रूरत है।” एक परिवार का मुखिया कहता है: “पारिवारिक उपासना से हमें बहुत फायदा होता है। इस सभा को अपनी ज़रूरत के हिसाब से तैयार करने में मुझे और मेरी पत्नी को बड़ा मज़ा आता है। हम दोनों ही महसूस करते हैं कि हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का फल बेहतर तरीके से दिखा पा रहे हैं और अपने प्रचार काम में भी हमें पहले से ज़्यादा खुशी मिल रही है।” एक और परिवार का मुखिया कहता है: “बच्चे खुद खोजबीन करते हैं और बहुत कुछ सीखते हैं और उन्हें बड़ा मज़ा आता है। इस इंतज़ाम से यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ा है कि वह हमारी चिंताओं को समझता है और हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है।” क्या इस बेहतरीन इंतज़ाम के लिए आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं?

8 पारिवारिक उपासना में किसी भी छोटी-मोटी चीज़ को आड़े आने मत दीजिए। एक शादीशुदा जोड़े ने कहा: “पिछले चार हफ्तों से हर गुरुवार की रात को हमारे परिवार में कुछ ऐसा हो रहा था जिसकी वजह से हमें लगा कि हम शायद अपनी पारिवारिक उपासना नहीं कर पाएँगे फिर भी हमने हर हफ्ते पारिवारिक उपासना की। यह सही है कि कई बार पारिवारिक उपासना के समय में कुछ फेर-बदल करनी पड़े। लेकिन फिर भी ठान लीजिए कि आप एक भी हफ्ते अपनी उपासना की शाम को रद्द नहीं करेंगे।”

9. यहोवा ने यिर्मयाह को कैसे ताकत दी और उसके उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?

9 भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह हमारे लिए एक बहुत बढ़िया उदाहरण है। उसे आध्यात्मिक ताकत की ज़रूरत थी जो उसे यहोवा ने दी और जिसकी उसने बहुत कदर की। उसने कहा: “यहोवा का वचन . . . मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग” है। (यिर्म. 20:8, 9) उसके वचन की ताकत से वह धीरज के साथ ऐसे लोगों को भी प्रचार कर सका जो दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। जब यरूशलेम का विनाश हुआ, उस वक्‍त हालात बहुत मुश्‍किल भरे थे, मगर उस दौर में भी यिर्मयाह को सहने की ताकत मिली। आज हमारे पास परमेश्‍वर का पूरा लिखित वचन है। जब हम ध्यान से उसका अध्ययन करेंगे और हर मामले में परमेश्‍वर की सोच को अपनी सोच में ढालेंगे तो हम यिर्मयाह की तरह प्रचार में धीरज रख पाएँगे, परीक्षाओं के दौर में भी वफादार रहेंगे, साथ ही नैतिक और आध्यात्मिक तौर पर पवित्र बने रहेंगे।—याकू. 5:10.

“निष्कलंक और बेदाग” बने रहो

10, 11. “निष्कलंक और बेदाग” बने रहने के लिए हमें अपना भरसक क्यों करना है और इसके लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

10 मसीही होने के नाते हम जानते हैं कि हम अंत के समय में जी रहे हैं। इसलिए हमें ताज्जुब नहीं होता जब हम देखते हैं कि दुनिया के लोग लालची होते जा रहे हैं, उन पर लैंगिक अनैतिकता और हिंसा का जुनून सवार है। ये ऐसी बातें हैं जिनसे यहोवा को घिन आती है। शैतान के दाँव को इन शब्दों में बयान किया जा सकता है: ‘अगर परमेश्‍वर के सेवकों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता तो उन्हें भ्रष्ट कर दो।’ (प्रका. 2:13, 14) इसलिए हमें पतरस की इस प्यार भरी सलाह को दिल में उतारने की ज़रूरत है: “अपना भरसक करो कि आखिरकार [परमेश्‍वर] के सामने तुम निष्कलंक और बेदाग और शांति में पाए जाओ।”—2 पत. 3:14.

11 पतरस ने हमें पहले “जी-जान से कोशिश” करने का बढ़ावा दिया था और अब वह फिर से कुछ इसी तरह की सलाह देता है कि “अपना भरसक करो।” यह बातें लिखने के लिए यहोवा ने पतरस को उभारा था, इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा जानता है कि हमें शैतान की गंदी दुनिया में खुद को “निष्कलंक और बेदाग” रखने के लिए बहुत संघर्ष करना होगा। संघर्ष करने में दुनिया की गंदी इच्छाओं से अपने दिल की रक्षा करना शामिल है। (नीतिवचन 4:23; याकूब 1:14, 15 पढ़िए।) इसके अलावा जो हमारी मसीही ज़िंदगी से नाखुश हैं और “बुरा-भला कहते हैं” ऐसों के खिलाफ भी खड़े रहने के लिए हमें संघर्ष करते रहने की ज़रूरत है।—1 पत. 4:4.

12. लूका 11:13 से हमें क्या भरोसा मिलता है?

12 हमारी असिद्धता की वजह से हमारे लिए सही काम करना एक संघर्ष है। (रोमि. 7:21-25) अगर हम यहोवा से मदद माँगें तभी हम इसमें सफल हो सकते हैं और सच्चे दिल से मदद माँगनेवालों को वह अपनी पवित्र शक्‍ति ज़रूर देता है। (लूका 11:13) यह शक्‍ति हमारे अंदर ऐसे गुण पैदा करती है जिनसे हमें परमेश्‍वर की मंज़ूरी मिलती है और ज़िंदगी में कभी लुभाए जाने या आज़माइशें आने पर उनका सामना करने में हमें मदद देती है। और जैसे-जैसे यहोवा का दिन नज़दीक आ रहा है, ये प्रलोभन और आज़माइशें बढ़ती जाएँगी।

परीक्षाओं से आपको मज़बूती मिले

13. जब जीवन में परीक्षाएँ आती हैं तो क्या बात धीरज रखने में हमारी मदद कर सकती है?

13 जब तक हम इस पुरानी व्यवस्था में जीएँगे हम पर किसी-न-किसी तरह की परीक्षा आती रहेगी। लेकिन निराश होने के बजाय क्यों न हम इस तरह सोचें कि ये परीक्षाएँ हमें परमेश्‍वर के लिए अपने प्यार का सबूत देने, उसके वचन को बेहतर तरीके से समझने, साथ ही अपने विश्‍वास को निखारने का मौका देती हैं। चेले याकूब ने लिखा: “मेरे भाइयो, जब तरह-तरह की परीक्षाओं से तुम्हारा सामना हो तो इसे पूरी खुशी की बात समझो, क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारे परखे हुए विश्‍वास का यह खरापन धीरज पैदा करने का काम करता है।” (याकू. 1:2-4) यह भी याद रखिए कि “यहोवा जानता है कि जो उसकी भक्‍ति करते हैं [वह] उन्हें परीक्षा से कैसे निकाले।”—2 पत. 2:9.

14. यूसुफ का उदाहरण कैसे हमारी हिम्मत बढ़ाता है?

14 याकूब के बेटे यूसुफ के उदाहरण पर गौर कीजिए जिसके भाइयों ने उसे गुलामी में बेच दिया था। (उत्प. 37:23-28; 42:21) इतना बुरा व्यवहार सहने की वजह से क्या यूसुफ का विश्‍वास डगमगा गया? क्या यहोवा के खिलाफ उसका दिल कड़वाहट से भर गया कि उसने उसके ऊपर परीक्षा क्यों आने दी? परमेश्‍वर का वचन साफ शब्दों में जवाब देता है, नहीं! इसके अलावा यूसुफ की परीक्षाओं का यहीं अंत नहीं हुआ। आगे चलकर उस पर बलात्कार का झूठा इलज़ाम भी लगाया गया, उसे कैद में डाल दिया गया मगर फिर भी उसने परमेश्‍वर की भक्‍ति करनी नहीं छोड़ी। (उत्प. 39:9-21) इसके बजाय अपनी सारी परीक्षाओं के दौरान उसने खुद को और मज़बूत किया जिसके लिए उसे ढेरों आशीषें मिलीं।

15. नाओमी के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?

15 बेशक परीक्षाएँ हमें दुखी या निराश कर सकती हैं। और यूसुफ ने भी ऐसा महसूस किया होगा। परमेश्‍वर के दूसरे सेवकों ने वाकई ऐसा महसूस किया। नाओमी पर गौर कीजिए, जो अपने पति और दो बेटों को खो चुकी थी। उसने कहा: “मुझे नाओमी न कहो, मुझे मारा [मतलब ‘कड़ुवा’] कहो, क्योंकि सर्वशक्‍तिमान ने मुझ को बड़ा दुःख दिया है।” (रूत 1:20, 21) नाओमी का ऐसा कहना स्वाभाविक था और हम उसे समझ सकते हैं। पर उसने भी यूसुफ की तरह न तो अपनी खराई तोड़ी और न ही परमेश्‍वर की राह पर चलना छोड़ा। इसके लिए यहोवा ने इस वफादार स्त्री को आशीष दी। (रूत 4:13-17, 22) शैतान और उसकी दुष्ट दुनिया ने इंसान का जो भी नुकसान किया है परमेश्‍वर अपनी नयी दुनिया में उसकी भरपायी करेगा। इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है! परमेश्‍वर कहता है: “पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।”—यशा. 65:17.

16. प्रार्थना के प्रति हमारा रवैया कैसा होना चाहिए और क्यों?

16 चाहे हम पर कैसी भी परीक्षा क्यों न आए उसे सहने के लिए परमेश्‍वर के प्यार से हमें ताकत मिलती है। (रोमियों 8:35-39 पढ़िए।) हालाँकि शैतान हमें निराश करने के लिए अपनी कोशिश बंद नहीं करेगा लेकिन अगर हम “स्वस्थ मन” रखें और “प्रार्थना करने के लिए चौकस” रहें तो उसकी कोई भी कोशिश कामयाब नहीं होगी। (1 पत. 4:7) यीशु ने कहा: “इसलिए, आँखों में नींद न आने दो, और हर घड़ी प्रार्थना और मिन्‍नत करते रहो ताकि जिन बातों का होना तय है, उन सबसे बचने और इंसान के बेटे के सामने खड़े रहने में तुम कामयाब हो सको।” (लूका 21:36) ध्यान दीजिए यहाँ पर यीशु ने शब्द “मिन्‍नत” इस्तेमाल किया है, जो बहुत गिड़गिड़ाकर की गयी प्रार्थना को कहते हैं। जब यीशु मिन्‍नतें करने की सलाह दे रहा था तो दरअसल वह ज़ोर दे रहा था कि हमें इस बात को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है कि हमारा उसके और उसके पिता के सामने कैसा नाम है। क्योंकि जिनका परमेश्‍वर के सामने अच्छा नाम है और उसकी मंज़ूरी है, सिर्फ वही उसके दिन से बच पाएँगे।

यहोवा की सेवा जोश से करते रहो

17. अगर आपको प्रचार में मुश्‍किल होती है तो आप पुराने ज़माने के भविष्यवक्‍ताओं के उदाहरण से कैसे फायदा पा सकते हैं?

17 जब पतरस ने कहा कि “तुम्हें पवित्र चालचलन रखनेवाले और परमेश्‍वर की भक्‍ति के काम करनेवाले इंसान होना चाहिए,” तो उसके शब्दों से हमें याद आना चाहिए कि परमेश्‍वर की सेवा करना बहुत ज़रूरी है जिससे हमें ताज़गी मिलती है। (2 पत. 3:11) उनमें सबसे ज़रूरी सेवा है, खुशखबरी का ऐलान करना। (मत्ती 24:14) यह सच है कि कई इलाकों में प्रचार करना इतना आसान नहीं है क्योंकि शायद लोगों को हमारे संदेश में दिलचस्पी न हो या वे इसका विरोध करें या हो सकता है कि वे अपने रोज़ाना के कामों में बहुत ज़्यादा व्यस्त हों। पुराने समय में यहोवा के सेवकों ने भी इस तरह के लोगों का सामना किया था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी बल्कि वे “बड़ा यत्न करके” यानी “बार बार” (NHT) लोगों के पास परमेश्‍वर का संदेश लेकर जाते रहे। (2 इतिहास 36:15, 16 पढ़िए; यिर्म. 7:24-26) उन्हें धीरज धरने में कैसे मदद मिली? उन्होंने इस काम को दुनिया के नहीं, बल्कि परमेश्‍वर के नज़रिए से देखा। इसके अलावा परमेश्‍वर का नाम धारण करना उन्होंने बड़े सम्मान की बात समझी।—यिर्म. 15:16.

18. हमारे प्रचार काम से आगे चलकर किस तरह परमेश्‍वर के नाम की महिमा होगी?

18 आज हमें भी यहोवा के नाम और उसके मकसद को ऐलान करने का सम्मान मिला है। ज़रा इसके बारे में सोचिए: हमारे प्रचार काम का साफ-साफ असर न्याय के दिन नज़र आएगा क्योंकि तब परमेश्‍वर के दुश्‍मन यह नहीं कह पाएँगे कि उन्हें उसके नाम और मकसद के बारे में नहीं बताया गया था। वास्तव में पुराने ज़माने के फिरौन की तरह वे जान लेंगे कि यहोवा ही है जो उनके खिलाफ लड़ रहा है। (निर्ग. 8:1, 20; 14:25) उसी समय यहोवा लोगों को साफ तौर पर यह दिखा देगा कि उसके नाम का ऐलान करनेवाले ही उसके प्रतिनिधि थे और इस तरह वह अपने वफादार सेवकों का सम्मान करेगा।यहेजकेल 2:5; 33:33 पढ़िए।

19. हम कैसे दिखा सकते हैं कि यहोवा के धीरज धरने के वक्‍त का हम सही इस्तेमाल करना चाहते हैं?

19 पतरस ने अपने दूसरे खत के आखिर में अपने संगी विश्‍वासियों को लिखा: “समझो कि हमारे प्रभु का सब्र तुम्हें उद्धार पाने का मौका दे रहा है।” (2 पत. 3:15) जी हाँ, आइए हम इस वक्‍त का सही इस्तेमाल करें जिसमें यहोवा धीरज धर रहा है। वह कैसे? अपने अंदर ऐसे गुण पैदा करके जो उसे भाते हैं, “निष्कलंक और बेदाग” रहकर, परीक्षाओं में सही नज़रिया रखकर और राज की सेवा में व्यस्त रहकर। ऐसा करने से “नए आकाश और नयी पृथ्वी” की बदौलत इंसानों को जो आशीषें मिलनेवाली हैं उनके हम भागी होंगे।—2 पत. 3:13.

क्या आपको याद है?

• हम परमेश्‍वर जैसे गुण कैसे बढ़ा सकते हैं?

• हम “निष्कलंक और बेदाग” कैसे रह सकते हैं?

• यूसुफ और नाओमी से हम क्या सीख सकते हैं?

• प्रचार काम में हिस्सा लेना क्यों बड़े सम्मान की बात है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

आप पतियों को अपने और परिवार के लोगों में परमेश्‍वर जैसे गुण बढ़ाने में क्या बात मदद करेगी?

[पेज 10 पर तसवीरें]

यूसुफ ने जिस तरह परीक्षाओं का सामना किया उससे हम क्या सीख सकते हैं?