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कमाल की बढ़ोतरी के समय में सेवा करना

कमाल की बढ़ोतरी के समय में सेवा करना

कमाल की बढ़ोतरी के समय में सेवा करना

हारली हैरिस की ज़ुबानी

दो सितंबर 1950 की बात है, हम अमरीका के मिज़ूरी राज्य के केनट शहर में सर्किट सम्मेलन में थे और गुस्से से पागल भीड़ ने हमें घेर रखा था। इनसे हमारी हिफाज़त करने के लिए वहाँ के मेयर ने राष्ट्रीय सुरक्षा कर्मी दल बुलाया। संगीन से जुड़ी रायफलों से लैस सिपाहियों की लंबी कतार सड़क पर लग गयी। इस बेइज़्ज़ती भरे माहौल से निकलकर हम अपनी कार तक पहुँचे। फिर वहाँ से हम मिज़ूरी के केप गरारडो शहर में सम्मेलन का बाकी भाग सुनने गए। चौदह साल की उम्र में यहीं मेरा बपतिस्मा हुआ, लेकिन आइए पहले मैं आपको यह बताऊँ कि मैंने कैसे इस उथल-पुथल भरे माहौल में यहोवा की सेवा शुरू की।

सन्‌ 1930 की शुरूआत में मेरे दादा-दादी और उनके आठ बच्चों ने भाई रदरफर्ड के भाषणों की रिकॉर्डिंग सुनी और उन्हें पूरा भरोसा हो गया कि उन्होंने सच्चाई पा ली है। मेरे पिताजी बे और माँ मिलड्रैड हैरिस ने वॉशिंगटन डी.सी. में सन्‌ 1935 में हुए अधिवेशन में बपतिस्मा लिया। वे बहुत खुश थे कि अब वे यहोवा की “बड़ी भीड़” का हिस्सा थे, जिसे उस अधिवेशन में पहचान मिली थी।—प्रका. 7:9, 14.

अगले साल मेरा जन्म हुआ। और एक साल के बाद मेरे माता-पिता एक अलग-थलग इलाके मिसिसिप्पी चले गए। हम जहाँ रहते थे वहाँ सर्किट निगरान का दौरा तक नहीं होता था। मेरा परिवार चिट्ठियों के ज़रिए बेथेल से संपर्क रखता था और सम्मेलनों में जाता था। उन दिनों भाई-बहनों के साथ हमारा बस इतना ही मेलजोल था।

मुसीबतों के दौर में धीरज

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान निष्पक्ष रहने की वजह से साक्षियों को बहुत से ज़ुल्म सहने पड़े। हमें आरकनज़ॉ के पहाड़ इलाके में आना पड़ा। एक दिन मैं और मेरे पिता सड़क गवाही दे रहे थे कि एक आदमी ने अचानक मेरे पिता की पत्रिकाएँ छीन लीं और उन्हें वहीं जला डाला। उन्होंने हमें कायर कहा क्योंकि हमने युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था। मैं उस वक्‍त सिर्फ पाँच साल का था इसलिए रोने लगा। मेरे पिता बस चुपचाप उसकी तरफ देखते रहे, जब तक कि वह वहाँ से चला नहीं गया।

वहाँ कुछ नेक लोग भी थे जो हमें पसंद करते थे। एक बार भीड़ ने हमारी गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया था, तभी एक सरकारी वकील वहाँ से गुज़रा और उसने पूछा: “क्या हो रहा है यहाँ?” एक आदमी ने जवाब दिया: “ये यहोवा के साक्षी अपने देश के लिए नहीं लड़ते!” यह सुनकर वह वकील हमारी गाड़ी के पायदान पर खड़ा हो गया और चिल्लाया: “मैंने पहला विश्‍वयुद्ध लड़ा था और दूसरा भी लड़ूँगा! तुम इन लोगों को जाने दो। ये किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते!” भीड़ चुपचाप वहाँ से खिसक गयी। हम उन भले लोगों के कितने शुक्रगुज़ार हैं, जिन्होंने इंसानियत के नाते हमारी मदद की।—प्रेषि. 27:3.

अधिवेशन ने मज़बूत किया

सन्‌ 1941 में मिज़ूरी राज्य के सेंट लूई शहर में अधिवेशन हुआ। यह हमारे लिए बिलकुल सही समय पर था। अनुमान लगाया गया कि 1,15,000 लोग उसमें हाज़िर हुए थे और बपतिस्मा लेनेवालों की गिनती कमाल थी! उस अधिवेशन में 3,903 लोगों ने बपतिस्मा लिया। मुझे भाई रदरफर्ड का भाषण आज भी याद है, जिसका विषय था “राजा के बच्चे।” उन्होंने सीधे हम बच्चों से बात की। फिर हम सबको नीले रंग की बहुत खूबसूरत किताब दी गयी, जिसका नाम था चिल्ड्‌रन। इस अधिवेशन ने मुझे अगले साल आनेवाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया, जब मैंने प्राइमरी स्कूल में जाना शुरू किया। मुझे और मेरी चचेरी बहनों को स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि हमने झंडे को सलामी नहीं दी थी। हम रोज़ाना यह सोचकर स्कूल जाते कि शायद हमारे स्कूल के अध्यक्ष का मन बदल जाए और वह हमें वापस स्कूल में बुला ले। हर दिन सुबह हम जंगलों को पार करते हुए स्कूल जाते और हमें वापस घर भेज दिया जाता। खैर, मैंने सोचा कि शायद परमेश्‍वर के राज्य के प्रति खराई बनाए रखने का यह एक तरीका है।

कुछ समय बाद ही अमरीका के उच्चतम न्यायालय ने कानून पारित किया कि झंडे को सलामी न देना हरेक का निजी मामला है। आखिरकार हम फिर से स्कूल जाने लगे। हमारा अध्यापक काफी भला था और हमारी जितनी पढ़ाई छूट गयी थी उसे पूरा करने में उसने हमारी मदद की। हमारे स्कूल के साथियों ने भी हमेशा हमें इज़्ज़त दी।

सन्‌ 1942 में ओहायो राज्य के क्लीवलैंड शहर में हुआ अधिवेशन भी मुझे याद है, जिसमें भाई नेथन एच. नॉर ने भाषण दिया था, जिसका विषय था, “शांति—क्या यह कायम रह सकती है?” प्रकाशितवाक्य की किताब के अध्याय 17 से समझाया गया कि दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद शांति का समय शुरू होगा। इसलिए हम बढ़ोतरी की उम्मीद करने लगे थे। और इस उम्मीद को मन में रखकर, सन्‌ 1943 में गिलियड स्कूल की शुरूआत की गयी। मुझे इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था कि इस स्कूल का मेरे आनेवाले कल पर बहुत गहरा असर होगा। बेशक, युद्ध के बाद शांति आयी और अत्याचार भी कम हो गया, लेकिन जब सन्‌ 1950 में कोरिया में युद्ध शुरू हुआ, तो अचानक हमारे प्रचार काम का विरोध शुरू हो गया जैसा कि शुरूआत में बताया गया है।

प्रचार काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

सन्‌ 1954 में मैंने हाई स्कूल पास कर लिया और उसके एक महीने बाद मैंने पायनियर सेवा शुरू कर दी। सन्‌ 1950 में मैंने केनट शहर में सेवा की जब भीड़ ने हमें घेर लिया था। इसके पाँच साल बाद मार्च 1955 में मुझे बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। जिस मंडली में मुझे नियुक्‍त किया गया था, उसके प्रचार का इलाका टाइम्स स्कुएर में था जो न्यू यॉर्क शहर के बीचों बीच था। गाँव की ज़िंदगी से मेरी यह ज़िंदगी कितनी अलग थी! अब मैं न्यू यॉर्क में रहनेवाले व्यस्त लोगों को पत्रिकाएँ खोलकर दिखा सकता था और उनका ध्यान खींचने वाला लेख दिखाकर उनसे पूछ सकता था, “क्या आपने कभी खुद से यह सवाल पूछा है?” और बहुत-से लोग पत्रिकाएँ ले लेते थे।

बेथेल में रहते वक्‍त मेरा सबसे पसंदीदा समय था, सुबह शास्त्र वचन पर जाँच करना जिसे भाई नॉर चलाते थे। वे पन्‍नों पर छपी बाइबल की आयतों में जान फूँक देते थे और बताते थे कि कैसे उन्हें अपने जीवन में लागू किया जा सकता है! वे हम अविवाहित जवान भाइयों से ऐसे बात करते थे, जैसे एक पिता अपने बेटे से करता है। और हमेशा हमें समझाते थे कि लड़कियों के साथ किस तरह से व्यवहार करना चाहिए। सन्‌ 1960 तक मैंने शादी करने का फैसला कर लिया।

मैंने बेथेल छोड़ने के लिए 30 दिन पहले अरज़ी लिखकर दे दी थी, लेकिन मुझे इसका कोई जवाब नहीं मिला। मैं शर्मीले स्वभाव का था मगर तीस दिन खत्म होने पर मैंने किसी तरह हिम्मत जुटाकर अपनी अरज़ी के बारे में पूछा। भाई रॉबर्ट वॉलन ने फोन उठाया और जवाब दिया। फिर मैं जहाँ काम कर रहा था, वहाँ आकर उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम खास पायनियर सेवा या सर्किट काम के बारे में क्या सोचते हो। मैंने कहा: “लेकिन बॉब मैं सिर्फ 24 साल का हूँ और मुझे इस काम का कोई अनुभव नहीं है।”

सर्किट काम

उस शाम को जब मैं कमरे में पहुँचा, तो वहाँ मेरे लिए एक बड़ा लिफाफा रखा था। उसमें एक अरज़ी खास पायनियर सेवा की थी और दूसरी सर्किट काम की। क्या कहूँ, मेरे तो होश ही उड़ गए! मुझे पूर्वी कैन्ज़स और दक्षिण पश्‍चिम मिज़ूरी के सर्किट में अपने भाइयों की सेवा करने का सम्मान मिला। बेथेल छोड़ने से पहले मैं सर्किट निगरान की सभा में हाज़िर हुआ, जिसमें आखिर में भाई नॉर ने कहा: “सर्किट और ज़िला निगरान होने का मतलब यह नहीं कि तुम मंडली के भाइयों से ज़्यादा जानते हो। कुछ भाइयों को तुमसे ज़्यादा अनुभव है, लेकिन अपने हालात के चलते वे तुम्हारी तरह सेवा नहीं कर पा रहे हैं। तुम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हो।”

यह बात वाकई सच साबित हुई! भाई फ्रेड मॉलहैन और उनकी पत्नी साथ ही उनके भाई चार्ली मेरे लिए बहुत बेहतरीन उदाहरण थे, वे कैन्ज़स राज्य के पारसन्ज़ शहर में रहते थे। उन्होंने 1900 के शुरूआती दौर में सच्चाई सीखी थी। उनके अनुभव सुनकर दिल को बड़ी खुशी मिली! ये अनुभव तब के थे जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था! एक और बुज़ुर्ग भाई थे जॉन रिस्टन, वे बड़े भले थे और मिज़ूरी के जॉप्लीन शहर में रहते थे, उन्होंने कई दशकों तक पायनियर सेवा की थी। इन भाइयों के दिल में परमेश्‍वर के संगठन के इंतज़ाम के लिए गहरा आदर था। हालाँकि मैं उम्र में उनसे काफी छोटा था, फिर भी सर्किट निगरान के तौर पर उन्होंने मेरी बहुत कदर की।

सन्‌ 1962 में मैंने लाल बालोंवाली एक पायनियर क्लॉरिस नोके से शादी कर ली जो बड़ी मिलनसार थी। मैंने क्लॉरिस के साथ सर्किट काम जारी रखा। भाइयों के साथ रहने की वजह से हम उन्हें ज़्यादा करीब से जान पाए। हमने जवानों को पूरे समय की सेवा शुरू करने का बढ़ावा दिया। इनमें से एक था, जे कोसिनस्की और दूसरी थी, जोआन क्रेस्मन जो ऐसे ही बढ़ावे के इंतज़ार में थे। हमने उनके साथ प्रचार किया और दूसरों की खातिर जीने में जो खुशी मिलती है, उसके अनुभव बताए। इसकी वजह से उन दोनों को अपनी ज़िंदगी में सही लक्ष्य रखने में मदद मिली। जोआन खास पायनियर बन गयी और जे बेथेल का सदस्य बन गया। आगे चलकर उन दोनों ने शादी कर ली और आज वे दोनों करीब 30 साल से सर्किट काम कर रहे हैं।

मिशनरी सेवा

सन्‌ 1966 में भाई नॉर ने हमसे पूछा कि क्या हम दूसरे देश में जाकर सेवा करना चाहेंगे? हमने कहा: “वैसे तो हम यहाँ खुश हैं, लेकिन अगर कहीं और हमारी ज़रूरत है तो हम तैयार हैं।” करीब एक हफ्ते बाद हमें गिलियड स्कूल बुलाया गया। गिलियड स्कूल में हाज़िर होकर मैं कितना खुश था! और बेथेल में दोबारा उन भाई-बहनों से मिलकर भी, जिनसे मैं बहुत प्यार करता था और जिनकी बड़ी इज़्ज़त करता था। अपने स्कूल के नए साथियों से भी हमने दोस्ती की, जो आज तक वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

क्लॉरिस और मुझे, दक्षिण अमरीका के एक्वाडोर देश में भेज दिया गया। हमारे साथ डेनिस और एडविना क्रिस्ट के अलावा आना रॉड्रीगस और डेल्या सान्चेज़ भी आए। क्रिस्ट और उसकी पत्नी राजधानी शहर क्यूटो गए। आना और डेल्या को हमारी तरह क्वेंगका भेजा गया, जो एक्वाडोर का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। हमारे प्रचार इलाके में दो प्रांत थे। क्वेंगका में मंडली की पहली सभा हमारे ही घर के एक कमरे में हुई थी। वहाँ हम चारों के अलावा दो-चार और लोग थे। हम सोचते थे कि हम मुट्ठी भर लोग भला कैसे यहाँ प्रचार कर सकेंगे।

क्वेंगका में जहाँ देखो चर्च-ही-चर्च नज़र आते थे। उनके कुछ पवित्र दिन हुआ करते थे, जब पूरे शहर में हर कहीं धार्मिक जुलूस निकाले जाते थे। फिर भी क्वेंगका के लोगों के मन में बहुत-से सवाल थे। उदाहरण के लिए जब मैं पहली बार मार्यो पोलो से मिला जो क्वेंगका में साइकल चैंपियन था, तो उसने यह सवाल पूछकर मुझे हैरान कर दिया: “प्रकाशितवाक्य की किताब में बतायी वेश्‍या कौन है?”

एक बार मार्यो हमारे घर रात को आया और बहुत परेशान नज़र आ रहा था। दरअसल, एक एवैंजिलिकल चर्च के पादरी ने उसे कुछ साहित्य दिए थे, जिनमें यहोवा के साक्षियों के बारे में बुरा-भला कहा गया था। मैंने मार्यो से कहा की हमें अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका मिलना चाहिए। इसलिए अगले दिन मार्यो ने पादरी को और मुझे अपने घर बुलाया ताकि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाए। मैंने कहा कि हम त्रियेक की शिक्षा पर चर्चा करेंगे। जब पादरी ने यूहन्‍ना 1:1 पढ़ा, तो खुद मार्यो ने ही उस आयत को समझाया। फिर एक-के-बाद-एक बाइबल की कई आयतें उसने समझायीं। लाज़िमी है कि पादरी त्रियेक की शिक्षा को बिना सही करार दिए, अपना-सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया। इस चर्चा से मार्यो और उसकी पत्नी को साफ पता चल गया कि बाइबल की सच्चाई किसके पास है। आगे चलकर वे बाइबल की शिक्षाओं की पैरवी करने में माहिर हो गए। अब क्वेंगका में 33 मंडलियाँ थीं और हमारे पूरे प्रचार इलाके में कुल मिलाकर 63 मंडलियाँ! वाकई यह बढ़ोतरी कमाल की थी, जिसे देखकर हम बेहद खुश हुए!

शाखा दफ्तर में सेवा करते हुए बढ़ोतरी देखना

सन्‌ 1970 में मुझे एल शूलो के शाखा दफ्तर भेजा गया जो ग्वाईकील शहर में था और वहाँ हम दोनों ने काम किया। बेथेल में एक भाई जिसका नाम, जो सैकरेक था, वह पूरे देश की 46 मंडलियों को साहित्य भेजता था। जब मैं बेथेल में काम कर रहा था, तब कुछ समय के लिए क्लॉरिस ने मिशनरी का काम जारी रखा। उसने 55 लोगों को बपतिस्मा लेने में मदद की। अकसर हर सम्मेलन में उसके 3-5 बाइबल अध्ययन बपतिस्मा लेते थे।

क्लॉरिस, लूक्रेस्या नाम की एक स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन करती थी, जिसका पति उसका बहुत विरोध करता था। इसके बावजूद, लूक्रेस्या ने आगे चलकर बपतिस्मा लिया और पायनियर सेवा शुरू कर दी। उसने अपने बच्चों को यहोवा के मार्ग पर चलना सिखाया। आज उसके दो बेटे प्राचीन हैं और एक खास पायनियर है और उसकी बेटी पायनियर है। उसकी पोती की शादी भी एक अच्छे भाई से हुई है और वे दोनों खास पायनियर सेवा करते हैं। इस परिवार ने बहुत-से लोगों को सच्चाई सीखने में मदद दी।

सन्‌ 1980 तक एक्वाडोर में करीब 5,000 प्रचारक हो गए थे। और हमारा दफ्तर छोटा पड़ने लगा। तभी एक भाई ने ग्वाईकील शहर से कुछ दूर, 80 एकड़ ज़मीन दान में दे दी। सन्‌ 1984 में हमने इस ज़मीन पर नया शाखा दफ्तर और सम्मेलन हॉल बनाना शुरू कर दिया, जिसका समर्पण सन्‌ 1987 में किया गया।

बढ़ोतरी में इनका भी हाथ

बेशक एक्वाडोर में और भी प्रचारकों की ज़रूरत थी। हमने देखा कि इन सालों के दरमियान दूसरे देशों से कई पायनियर और प्रचारकों ने यहाँ आकर मदद की, जो काबिले-तारीफ है। एक बेहतरीन उदाहरण जो मुझे याद आता है, वह एन्डी किड का है। वे कनाडा में एक स्कूल के अध्यापक थे, जो अब रिटायर हो चुके थे। वे 70 साल की उम्र में सन्‌ 1985 में एक्वाडोर आए और सन्‌ 2008 में अपनी मौत तक वफादारी से सेवा करते रहे। जब उनकी मौत हुई तब वे 93 साल के थे। जब मैं पहली बार उनसे मिला तब वे एक छोटी-सी मंडली में अकेले प्राचीन थे। उन्हें स्पेनिश भाषा नहीं आती थी, मगर किसी तरह टूटी-फूटी स्पेनिश में उन्होंने जन भाषण दिया और प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलाया। उन्होंने परमेश्‍वर का सेवा स्कूल भी चलाया और सेवा सभा के ज़्यादातर भाग भी उन्होंने ही लिए। उस इलाके में अब फलती-फूलती दो मंडलियाँ हैं, जिनमें करीब 200 प्रचारक और कई प्राचीन हैं।

एक और भाई एरनेस्टो डाएज़ अपने परिवार के साथ अमरीका से एक्वाडोर आए थे। सिर्फ आठ महीने बाद उन्होंने कहा: “हमारे तीनों बच्चों ने यहाँ की भाषा अच्छी तरह सीख ली है और वे बेहतरीन शिक्षक बन गए हैं। एक पिता के तौर पर मैंने अपने उस लक्ष्य को पूरा किया, जो इस दुनिया में पूरा करना नामुमकिन लगता है। वह है, अपने परिवार के साथ पायनियर के तौर पर पूरे समय की सेवा करने का लक्ष्य। हम सभी कुल मिलकर 25 बाइबल अध्ययन चला रहे हैं। इसकी वजह से हमारा परिवार एक-दूसरे के बहुत करीब आ गया है और सबसे बढ़कर यहोवा के साथ हमारा करीबी रिश्‍ता बन गया है जिसका अनुभव मैंने पहले कभी नहीं किया था।” हम ऐसे प्यारे भाई-बहनों की वाकई दिल से कदर करते हैं!

सन्‌ 1994 में शाखा दफ्तर को दुगना बड़ा करने की ज़रूरत आन पड़ी। फिर सन्‌ 2005 में यहाँ 50,000 से ज़्यादा प्रचारकों का शिखर बना, तो शाखा दफ्तर को एक बार फिर बड़ा करना पड़ा। इसमें एक बड़ा सम्मेलन हॉल, रहने के लिए नयी इमारत और अनुवादक दफ्तर बनाए गए। इस नए शाखा दफ्तर का समर्पण 31 अक्टूबर, 2009 को किया गया।

सन्‌ 1942 में जब मुझे स्कूल से निकाला गया था, तब अमरीका में 60,000 प्रचारक थे। अब वहाँ दस लाख से भी ज़्यादा प्रचारक हैं। सन्‌ 1966 में जब हम एक्वाडोर आए, तब यहाँ 1,400 प्रचारक थे। अब 68,000 से भी ज़्यादा प्रचारक हो गए हैं। लेकिन और भी बढ़ोतरी की उम्मीद है क्योंकि सन्‌ 2009 में 1,20,000 बाइबल अध्ययन चलाए गए और 2,32,000 से भी ज़्यादा लोग स्मारक समारोह में हाज़िर हुए। वाकई यहोवा ने जिस तरह अपने लोगों को आशीष दी है, उसकी तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। यह कितनी खुशी की बात है कि हम उस वक्‍त में जी रहे हैं, जब यहोवा का काम खूब ज़ोर-शोर से आगे बढ़ रहा है। *

[फुटनोट]

^ जब यह लेख तैयार किया जा रहा था, तब भाई हारली हैरिस की मौत हो गयी। वे अपनी मौत तक यहोवा के वफादार थे।

[पेज 5 पर तसवीरें]

एक ही जगह पर खुला सम्मेलन हॉल (1981) और ग्वाईकील सम्मेलन हॉल (2009)