क्या यहोवा आपको जानता है?
क्या यहोवा आपको जानता है?
“यहोवा उन्हें जानता है जो उसके अपने हैं।”—2 तीमु. 2:19.
1, 2. (क) यीशु को किस बात की चिंता थी? (ख) हमें किन सवालों पर गौर करना चाहिए?
एक दिन एक फरीसी ने यीशु से पूछा: “परमेश्वर के कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” यीशु ने कहा: “तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।” (मत्ती 22:35-37) यीशु स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से बेइंतहा प्यार करता था और उसने यह अपने जीवन से ज़ाहिर भी किया। यीशु को इस बात की भी चिंता थी कि यहोवा की नज़र में उसका अच्छा नाम हो और इसलिए उसने वफादारी से उसकी आजीवन सेवा की। और अपनी मौत से कुछ समय पहले वह कह सका कि परमेश्वर उसे आज्ञाकारी शख्स के तौर पर जानता है। इस तरह यीशु यहोवा के प्यार में बना रहा।—यूह. 15:10.
2 बहुत-से लोग आज परमेश्वर से प्यार करने का दावा करते हैं। बेशक हम भी ऐसे लोगों में हैं। फिर भी इन गंभीर सवालों पर गौर करना ज़रूरी है: क्या यहोवा मुझे जानता है? वह मेरे बारे में क्या सोचता है? क्या यहोवा मुझे अपना मानता है? (2 तीमु. 2:19) इस विश्व के महाराजा के साथ ऐसा करीबी रिश्ता रखना कितने बड़े सम्मान की बात है!
3. कई लोगों को क्यों यह विश्वास करना मुश्किल होता है कि यहोवा उन्हें अपना मानता है और ऐसी सोच दूर करने के लिए क्या बात उनकी मदद कर सकती है?
3 फिर भी यहोवा से प्यार करनेवाले कुछ लोगों को यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि यहोवा उन्हें अपना मानता है। ऐसा क्यों? क्योंकि वे किसी-न-किसी वजह से खुद को इस लायक नहीं समझते। लेकिन परमेश्वर हमें अलग नज़रिए से देखता है और यह जानकर हमें कितनी खुशी होती है! (1 शमू. 16:7) प्रेषित पौलुस ने अपने संगी मसीहियों से कहा: “जो कोई परमेश्वर से प्यार करता है, तो उसे परमेश्वर जानता है।” (1 कुरिं. 8:3) अगर आप चाहते हैं कि परमेश्वर आपको जाने तो ज़रूरी है कि आप उसे प्यार करें। आपको क्या लगता है: आप यह पत्रिका क्यों पढ़ रहे हैं? आप क्यों पूरे दिल, पूरी जान, पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से यहोवा की सेवा करने की कोशिश कर रहे हैं? आपने क्यों अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित करके बपतिस्मा लिया? बाइबल कहती है कि दिलों को जाँचनेवाला परमेश्वर यहोवा मनभावने लोगों को अपनी तरफ खींचता है। (हाग्गै 2:7; यूहन्ना 6:44 पढ़िए।) तो आप उसकी सेवा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि खुद यहोवा ने आपको अपनी तरफ खींचा है। और ऐसे लोग अगर उसके वफादार रहें तो वह उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा। परमेश्वर की नज़र में वे बड़े अनमोल हैं और वह उन्हें दिल से चाहता है।—भज. 94:14.
4. हमें परमेश्वर के प्यार में बने रहने की फिक्र क्यों करनी चाहिए?
4 जब यहोवा ने हमें अपनी ओर खींच लिया है तो हमें इस बात की फिक्र करनी चाहिए कि हम हमेशा उसके प्यार में बने रहें। (यहूदा 20, 21 पढ़िए।) याद रखिए कि बाइबल कहती है कि हम परमेश्वर से धीरे-धीरे दूर जा सकते हैं या खुद उससे अलग हो सकते हैं। (इब्रा. 2:1; 3:12, 13) 2 तीमुथियुस 2:19 में दर्ज़ शब्द लिखने से पहले पौलुस ने हुमिनयुस और फिलेतुस का ज़िक्र किया। एक वक्त था जब यहोवा इन दोनों को अपना मानता था मगर बाद में वे सच्चाई से भटक गए। (2 तीमु. 2:16-18) इनके अलावा, गलातियों की मंडली में भी कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें पहले परमेश्वर जानता था पर बाद में वे उसकी आध्यात्मिक रौशनी से बाहर निकल आए। (गला. 4:9) हमने परमेश्वर की नज़र में जो अच्छा नाम बनाया है, उस पर कभी आँच न आने दें।
5. (क) परमेश्वर किन गुणों की कदर करता है? (ख) हम किन उदाहरणों पर गौर करेंगे?
5 कुछ ऐसे गुण हैं जिन्हें यहोवा खास तौर पर पसंद करता है। (भज. 15:1-5; 1 पत. 3:4) परमेश्वर उन लोगों को जानता था जिन्होंने विश्वास और नम्रता जैसे गुण दिखाए। आइए हम इनमें से दो लोगों के उदाहरण पर गौर करें। हम एक ऐसे इंसान के उदाहरण पर भी गौर करेंगे जो घमंडी बन गया, जिस वजह से यहोवा ने उसे ठुकरा दिया। इनसे हम बहुत ज़रूरी सबक सीख सकते हैं।
विश्वास दिखानेवालों का पिता
6. (क) अब्राहम ने यहोवा के वादों पर अपना विश्वास कैसे ज़ाहिर किया? (ख) हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा वाकई अब्राहम को जानता था?
6 अब्राहम “यहोवा पर विश्वास” करता था। उसने इतनी उम्दा मिसाल कायम की कि वह ‘विश्वास दिखानेवाले सब लोगों का पिता’ कहलाया। (उत्प. 15:6; रोमि. 4:11) अपने विश्वास की वजह से अब्राहम ने दूर देश में जाने के लिए अपना घर-बार, दोस्त और ज़मीन-जायदाद छोड़ दी। (उत्प. 12:1-4; इब्रा. 11:8-10) सालों बाद भी अब्राहम का विश्वास मज़बूत रहा। यह तब ज़ाहिर हुआ जब उसने यहोवा की आज्ञा मानते हुए अपने बेटे ‘इसहाक की मानो बलि चढ़ा ही दी।’ (इब्रा. 11:17-19) अब्राहम ने यहोवा के वादों पर विश्वास दिखाया जिसकी वजह से यहोवा उसे बेहद पसंद करता था। यहोवा वाकई अब्राहम को जानता था! (उत्पत्ति 18:19 पढ़िए।) यहोवा को न सिर्फ उसके वजूद का एहसास था, बल्कि वह एक मित्र की तरह उसे दिल से चाहता था।—याकू. 2:22, 23.
7. यहोवा के वादों के बारे में क्या बात गौर करने लायक है और उसका अब्राहम पर कैसा असर हुआ?
7 यह बात गौर करने लायक है कि जीते-जी अब्राहम को वह ज़मीन नहीं मिली थी जिसका उससे वादा किया गया था। और ना ही वह अपने वंश को “समुद्र के तीर की बाल के किनकों के समान अनगिनित” होते देख सका। (उत्प. 22:17, 18) हालाँकि ये वादे अब्राहम के जीवनकाल में पूरे नहीं हुए फिर भी उसने यहोवा पर अपना मज़बूत विश्वास बनाए रखा। वह जानता था कि अगर परमेश्वर ने कोई बात कह दी तो वह ऐसी थी मानो पूरी हो चुकी है। जी हाँ, अब्राहम पूरी ज़िंदगी इसी विश्वास के मुताबिक जीया। (इब्रानियों 11:13 पढ़िए।) क्या यहोवा हममें भी अब्राहम के जैसा विश्वास पाता है?
यहोवा के वादों का इंतज़ार करना —विश्वास की निशानी
8. कुछ वाजिब इच्छाएँ क्या हैं जिन्हें सभी पूरा होते देखना चाहते हैं?
8 हम सभी की कुछ ख्वाहिशें होती हैं जिन्हें हम पूरी होते देखना चाहते हैं। शादी करना, बच्चे होना और अच्छी सेहत पाना जैसी इच्छाएँ गलत नहीं है। लेकिन कुछ लोगों की ये सभी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं। अगर हमारे मामले में भी ऐसा है तो हम जिस तरह से इन हालात का सामना करेंगे उससे ज़ाहिर होगा कि हममें कितना विश्वास है।
9, 10. (क) कुछ लोगों ने कैसे अपनी इच्छाएँ पूरी की हैं? (ख) परमेश्वर के वादों के पूरे होने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
9 अगर हम इन इच्छाओं को परमेश्वर के उसूलों के खिलाफ जाकर पूरा करें, तो यह कितनी बड़ी मूर्खता होगी। इससे एक इंसान का परमेश्वर के साथ रिश्ता खत्म हो सकता है। कुछ लोगों ने सेहत के मामले में ऐसे इलाज का चुनाव किया जो यहोवा की सलाह के खिलाफ था। दूसरों ने ऐसा रोज़गार चुना जिसकी वजह से उन्हें अपने परिवार और मंडली की सभाओं से दूर रहना पड़ता है। और कुछ अविश्वासियों के साथ रोमानी संबंध कायम कर लेते हैं। क्या ऐसी राह पर चलकर एक मसीही कह सकेगा कि यहोवा उसे अपना मानता है? अगर अब्राहम, यहोवा के वादों को पूरा होते देखने के लिए अधीर हो जाता तो यहोवा कैसा महसूस करता? और तब क्या अगर अब्राहम इंतज़ार करने के बजाय मामले को हाथ में लेकर दोबारा कहीं बस जाता और दुनिया में नाम बनाने लगता? (उत्पत्ति 11:4 से तुलना कीजिए।) ऐसा करने से क्या यहोवा उसे अपना मित्र बनाए रखता?
10 आपकी कौन-सी ऐसी इच्छाएँ हैं जिन्हें आप पूरा होते देखना चाहते हैं? क्या आपका विश्वास इतना मज़बूत है कि आप उस समय तक इंतज़ार कर सकें, जब यहोवा आपकी वाजिब इच्छाएँ पूरी करेगा? (भज. 145:16) जैसा कि अब्राहम की मिसाल दिखाती है, परमेश्वर के कुछ वादे उतनी जल्दी पूरे नहीं होते जितनी जल्दी हम चाहते हैं। फिर भी जब हम विश्वास दिखाते हुए जीते हैं, तो यहोवा उसकी कदर करता है। ऐसा करने से हमारा ही भला होगा।—इब्रा. 11:6.
नम्रता और घमंड के नतीजे
11. कोरह को क्या आशीषें मिली थीं? और इससे परमेश्वर के प्रति उसके रवैए के बारे में क्या पता चलता है?
11 अब हम मूसा और कोरह के बारे में देखेंगे। यहोवा के इंतज़ामों और फैसलों के लिए उनका रवैया एक-दूसरे से बिलकुल अलग था और इसी बिनाह पर यहोवा ने उनके बारे में अपनी राय कायम की। कोरह कोहाती घराने का एक लेवी था और उसे परमेश्वर से कई आशीषें मिली थीं। जब इसराएली राष्ट्र ने लाल समुद्र पार किया तब वह भी उनमें से एक था और जब सीनै पहाड़ पर इसराएलियों ने मूर्तिपूजा की, तब उसने यहोवा का पक्ष लिया। इसके अलावा, करार के संदूक को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के काम में भी कोरह की एक अहम भूमिका थी। (निर्ग. 32:26-29; गिन. 3:30, 31) वह सालों तक यहोवा का वफादार रहा और बहुत-से इसराएली उसका आदर करते थे।
12. जैसा पेज 28 पर दिखाया गया है, घमंड करने की वजह से परमेश्वर के साथ कोरह के रिश्ते पर क्या असर हुआ?
12 बात उस समय की है जब इसराएल जाति वादा किए हुए देश की ओर जा रही थी। कोरह को लगा कि यहोवा के इंतज़ाम में कुछ गड़बड़ है। जब उसने कुछ बदलाव करने की कोशिश की तब इसराएल के 250 प्रधानों ने भी उसका साथ दिया। कोरह और बाकी लोगों को यकीन था कि यहोवा के साथ उनका रिश्ता मज़बूत है। इसलिए उन्होंने मूसा से कहा: “तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है।” (गिन. 16:1-3) उन्हें खुद पर कितना भरोसा और घमंड था! मूसा ने उनसे कहा: “यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है।” (गिनतियों 16:5 पढ़िए।) अगले दिन के खत्म होते-होते कोरह और उसके साथी खाक में मिल गए!—गिन. 16:31-35.
13, 14. मूसा ने किन तरीकों से अपनी नम्रता दिखायी?
13 कोरह के विपरीत मूसा “पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (गिन. 12:3) हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानकर उसने दिखाया कि वह नम्र और दीन है। (निर्ग. 7:6; 40:16) बाइबल में ऐसा कोई वाकया नहीं मिलता जहाँ मूसा ने यहोवा के काम करने के तरीके पर सवाल खड़ा किया या उसके इंतज़ाम से खीज उठा हो। उदाहरण के लिए, यहोवा ने निवासस्थान बनाने के बारे में मूसा को हर बारीक जानकारी दी थी जैसे कि उसके तंबू का कपड़ा किस रंग के धागे से बनाया जाना चाहिए और उसमें कितनी फलियाँ या छल्ले होने चाहिए। (निर्ग. 26:1-6) अगर यहोवा के संगठन में कोई निगरान आपको किसी काम को करने के लिए छोटे-से-छोटा निर्देश दे तो आप शायद खीज उठें। यहोवा सबसे बेहतर निगरान है और वह अपने सेवकों को काफी ज़िम्मेदारियाँ देता है और उन पर भरोसा करता है। जब वह किसी मामले में बारीक निर्देश देता है तो उसके पीछे ज़रूर वाजिब कारण होता है। ध्यान दीजिए जब यहोवा ने मूसा को बारीक-से-बारीक जानकारी दी तो वह खीज नहीं उठा मानो यहोवा उसकी काबिलीयत को कम आँक रहा है या उसे अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं दे रहा है। इसके बजाय, मूसा ने इस बात का ध्यान रखा कि कारीगर सारा काम “[परमेश्वर के निर्देश] के अनुसार” करें। (निर्ग. 39:32) नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल! मूसा ने इस बात को माना कि यह यहोवा का काम था और वह तो सिर्फ औज़ार है जिसे यहोवा अपना काम पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
14 मूसा ने तब भी नम्रता दिखायी जब वह खुद मुश्किल हालात से गुज़रा। एक बार शिकायती इसराएलियों की वजह से मूसा आपे से बाहर हो गया और परमेश्वर का नाम पवित्र करने से चूक गया। इसका नतीजा यह हुआ कि यहोवा ने मूसा से कहा कि अब वह लोगों को वादा किए हुए देश में नहीं ले जाएगा। (गिन. 20:2-12) उसने और उसके भाई हारून ने कुड़कुड़ाती इसराएल जाति के साथ सालों धीरज से काम लिया था। लेकिन बाद में, सिर्फ एक गलती की वजह से मूसा उस वादे को पूरा होते नहीं देख सका जिसकी वह बरसों से आस लगाए था! मूसा ने कैसा रवैया दिखाया? हालाँकि वह निराश ज़रूर हुआ मगर उसने यहोवा के फैसले को नम्रता से कबूल किया। वह जानता था कि यहोवा धर्मी परमेश्वर है जो कभी अन्याय नहीं करता। (व्यव. 3:25-27; 32:4) जब आप मूसा के बारे में सोचते हैं तो क्या आपको नहीं लगता कि यहोवा उसे जानता था?—निर्गमन 33:12, 13 पढ़िए।
यहोवा के अधीन रहने के लिए नम्रता ज़रूरी
15. कोरह के घमंडी रवैए से हम क्या सीख सकते हैं?
15 हमें यहोवा की मंज़ूरी तभी मिलेगी, जब हम मसीही संगठन में की जानेवाली फेरबदल और मंडली में अगुवाई लेनेवाले भाइयों के फैसलों के प्रति सही रवैया दिखाएँगे। कोरह और उसके साथियों को खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा था, वे घमंडी थे और उनमें विश्वास की कमी थी इसलिए वे परमेश्वर से दूर हो गए। हालाँकि कोरह की नज़र में बुज़ुर्ग मूसा फैसले ले रहा था लेकिन असल में यहोवा ही इसराएल राष्ट्र का निर्देशन कर रहा था। कोरह यह बात समझ नहीं पाया और इस वजह से उसने उन लोगों के लिए वफादारी नहीं दिखायी, जिन्हें यहोवा इस्तेमाल कर रहा था। यहोवा अपने वक्त पर ज़रूरत के हिसाब से अपने इंतज़ाम के बारे में ज़्यादा समझ देता है या फेरबदल का कारण समझाता है। कितना अच्छा होता अगर कोरह यहोवा के वक्त का इंतज़ार करता! लेकिन घमंड में आकर कोरह ने जो कदम उठाया उससे यहोवा की सेवा में की गयी उसकी सालों की मेहनत मिट्टी में मिल गयी।
16. मूसा की नम्रता की मिसाल पर चलने से यहोवा कैसे हमें भी अपना मानेगा?
16 यह वाकया आज प्राचीनों और मंडली के दूसरे सदस्यों के लिए एक ज़बरदस्त चेतावनी है। यहोवा के समय का इंतज़ार करने और नियुक्त किए गए भाइयों के निर्देश मानने के लिए नम्रता की ज़रूरत होती है। क्या हम भी मूसा की तरह नम्र और कोमल-स्वभाव के हैं? क्या हम अपने अगुवों के निर्देश मानते हैं और याद रखते हैं कि उन्हें किसने नियुक्त किया है? जब हमें किसी बात से निराशा होती है, तो क्या हम अपनी भावनाओं पर काबू रखते हैं? अगर हाँ, तो यहोवा हमें भी अपना मानेगा। हमारी नम्रता और अधीनता उसके दिल को भा जाएगी।
यहोवा उन्हें जानता है जो उसके अपने हैं
17, 18. हम हमेशा यहोवा के अपने जाने जाएँ, इसके लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?
17 उन लोगों के उदाहरण पर गौर करना फायदेमंद होगा जिन्हें यहोवा जानता था और जिन्हें उसने अपनी तरफ खींचा। अब्राहम और मूसा असिद्ध थे और उनमें भी हमारी ही तरह कमियाँ थीं, फिर भी यहोवा ने उन्हें अपना माना। लेकिन कोरह के उदाहरण से हमने सीखा कि अगर हम खबरदार न रहें तो हम उससे दूर जा सकते हैं और फिर यहोवा हमें अपना नहीं जानेगा। हममें से हरेक का यह पूछना अच्छा होगा: ‘यहोवा मुझे किस नज़र से देखता है? बाइबल के इन उदाहरणों से मैं क्या सीख सकता हूँ?’
18 इस बात से आपको बहुत हिम्मत मिलेगी कि यहोवा जिन वफादार जनों को अपनी तरफ खींचता है उन्हें वह अपना मानता है। विश्वास, नम्रता और दूसरे गुण पैदा करते रहिए क्योंकि ऐसा करने से परमेश्वर आपको और भी अपना मानेगा। यहोवा हमें जाने और अपना निज भाग समझे यह कितने सम्मान की बात है! इससे हमें आज संतुष्टि मिलती है और आनेवाले समय में ढेरों आशीषें भी मिलेंगी।—भज. 37:18.
क्या आपको याद है?
• यहोवा के साथ आप किस अनमोल रिश्ते का आनंद उठा सकते हैं?
• आप अब्राहम के विश्वास पर कैसे चल सकते हैं?
• हम कोरह और मूसा से क्या सबक सीख सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 26 पर तसवीर]
क्या अब्राहम की तरह हमें भी विश्वास है कि यहोवा हर कीमत पर अपने वादे पूरे करेगा?
[पेज 28 पर तसवीर]
कोरह नम्रता से निर्देश मानने को तैयार नहीं था
[पेज 29 पर तसवीर]
क्या यहोवा आपको ऐसे इंसान के तौर पर जानता है, जो नम्रता से उसके निर्देश मानता है?