‘हियाव बान्ध और बहुत दृढ़ हो जा’
‘हियाव बान्ध और बहुत दृढ़ हो जा’
‘हियाव बान्ध और बहुत दृढ़ हो जा, तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।’—यहो. 1:7-9.
आप क्या जवाब देंगे?
हनोक और नूह ने कैसे हिम्मत दिखायी?
पुराने ज़माने में कुछ स्त्रियों ने कैसे ज़बरदस्त विश्वास और हिम्मत ज़ाहिर की?
ऐसे जवानों का उदाहरण दीजिए जिनकी हिम्मत आपका हौसला बढ़ाती है।
1, 2. (क) ज़िंदगी में सही रास्ते पर चलने के लिए कभी-कभार किस गुण की ज़रूरत पड़ती है? (ख) हम किस बात पर गौर करेंगे?
डर, कायरता और शर्मीलापन; हियाव और हिम्मत के बिलकुल विपरीत हैं। जब हम किसी के बारे में कहते हैं कि वह बहुत हिम्मतवाला है, तो हमारे मन में एक शूरवीर, ताकतवर और निडर इंसान की तसवीर उभर आती है। लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सही काम करने के लिए ज़रूरी नहीं कि हम शूरवीर या ताकतवर हों, मगर फिर भी हमें हिम्मत दिखाने की ज़रूरत पड़ सकती है।
2 बाइबल में ऐसे कई लोगों के उदाहरण दिए गए हैं, जिन्होंने निडरता से बड़ी मुश्किलों का सामना किया। इसके अलावा उन लोगों की मिसालें भी दर्ज़ हैं, जिन्होंने ज़िंदगी में आमतौर पर उठनेवाली परेशानियों का हिम्मत से सामना किया। हम इन मिसालों से क्या सीख सकते हैं? हम कैसे हिम्मत दिखा सकते हैं?
दुष्ट दुनिया में निडर साक्षी
3. हनोक ने दुष्ट लोगों के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी?
3 जलप्रलय से पहले की दुष्ट दुनिया में यहोवा का एक साक्षी होना आसान नहीं था। लेकिन ऐसे में भी हनोक ने, “जो आदम से सातवीं पीढ़ी में हुआ था,” हिम्मत के साथ यह भविष्यवाणी की, “देखो! यहोवा अपने लाखों पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आया, ताकि उन सबको सज़ा दे और उन सब भक्तिहीनों को उन भक्तिहीन कामों के लिए दोषी ठहराए जो उन्होंने परमेश्वर के खिलाफ जाकर किए थे और उन सभी घिनौनी बातों के लिए जो भक्तिहीनों ने उसके खिलाफ कही थीं, उन्हें सज़ा दे।” (यहू. 14, 15) हनोक ने इस तरह भविष्यवाणी की मानों वह पूरी हो चुकी है, क्योंकि उसका पूरा होना तय था। नूह के दिनों में जब पूरी दुनिया में जलप्रलय आया, तब वाकई सभी दुष्ट इंसानों का नाश हो गया!
4. किन हालात के बावजूद, नूह ‘परमेश्वर के साथ साथ चलता रहा’?
4 हनोक की भविष्यवाणी के 650 साल बाद, ईसा पूर्व 2370 में जलप्रलय आया। इस बीच नूह का जन्म हुआ, उसकी शादी हुई और उसने अपने तीन बेटों के साथ मिलकर जहाज़ तैयार किया। इसी दौरान दुष्ट स्वर्गदूतों ने इंसान का शरीर धारण करके सुंदर स्त्रियों से शादी कर ली और दानव-से संतान पैदा किए, जिन्हें नेफिलिम कहा जाता है। इतना ही नहीं, मनुष्यों की बुराई बहुत बढ़ गयी थी और धरती दुष्टता से भर गयी थी। (उत्प. 6:1-5, 9, 11) इन सब के बावजूद, “नूह परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा” और “नेकी के प्रचारक” के तौर पर हिम्मत से गवाही देता रहा। (2 पतरस 2:4, 5 पढ़िए।) इस दुनिया के आखिरी दिनों में हमें भी इसी तरह की हिम्मत दिखाने की ज़रूरत है।
उन्होंने विश्वास और हिम्मत दिखायी
5. मूसा ने कैसे विश्वास और हिम्मत दिखायी?
5 मूसा ने विश्वास और हिम्मत की बढ़िया मिसाल कायम की। (इब्रा. 11:24-27) ईसा पूर्व 1513 से 1473 के दौरान, इसराएलियों को मिस्र से निकालने और वीराने में उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए परमेश्वर ने मूसा का इस्तेमाल किया। मूसा खुद को इस ज़िम्मेदारी के काबिल नहीं समझता था, मगर फिर भी यहोवा के कहने पर उसने इसे कबूल किया। (निर्ग. 6:12) मूसा और उसके भाई हारून को कई बार मिस्र के तानाशाह राजा, फिरौन के सामने जाकर हिम्मत के साथ उन दस विपत्तियों का ऐलान करना पड़ा, जिनके ज़रिए यहोवा ने मिस्र के देवी-देवताओं को लज्जित करके अपने लोगों को छुड़ाया। (निर्ग. अध्या. 7-12) मूसा विश्वास और हिम्मत दिखा सका क्योंकि परमेश्वर हरदम उसके साथ रहा। उसी तरह, आज परमेश्वर हमारे साथ भी है।—व्यव. 33:27.
6. अगर अधिकारी हमसे पूछताछ करें, तो उन्हें हिम्मत के साथ गवाही देने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
6 मूसा की तरह हमें भी हिम्मत की ज़रूरत है, क्योंकि यीशु ने यह चेतावनी दी थी: “मेरी वजह से तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाएगा, ताकि उन पर और गैर-यहूदियों पर गवाही हो। मगर, जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे, तो यह चिंता न करना कि तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे। जो तुम्हें बोलना है वह उस वक्त तुम जान जाओगे। इसलिए कि बोलनेवाले सिर्फ तुम नहीं, बल्कि तुम्हारे पिता की पवित्र शक्ति है जो तुम्हारे ज़रिए बोलती है।” (मत्ती 10:18-20) अगर अधिकारी हमसे पूछताछ करें, तो यहोवा की पवित्र शक्ति हमें विश्वास, हिम्मत और आदर के साथ गवाही देने में मदद देगी।—लूका 12:11, 12 पढ़िए।
7. यहोशू क्यों हिम्मत दिखा सका और क्यों कामयाब हुआ?
7 मूसा के बाद यहोशू इसराएल जाति का अगुवा बना। परमेश्वर के कानून का लगातार अध्ययन करने से उसका विश्वास मज़बूत हुआ और उसे हिम्मत मिली। जब ईसा पूर्व 1473 में इसराएल जाति वादा किए हुए देश में कदम रखने के लिए तैयार थी, तब यहोवा ने यहोशू को आज्ञा दी, ‘तू हियाव बान्ध और बहुत दृढ़ हो।’ अगर वह परमेश्वर का कानून मानता तो बुद्धि से काम ले पाता और उसे कामयाबी मिलती। यहोवा ने उससे कहा था, “भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” (यहो. 1:7-9) इन शब्दों से यहोशू को कितना हौसला मिला होगा! वाकई परमेश्वर उसके साथ था क्योंकि ईसा पूर्व 1467 तक, छ: सालों के अंदर-अंदर, वादा किए हुए देश के ज़्यादातर हिस्सों पर इसराएलियों ने कब्ज़ा कर लिया था।
यहोवा की उपासना करनेवाली बहादुर स्त्रियाँ
8. राहाब ने किस तरह विश्वास और हिम्मत दिखाने में एक अच्छी मिसाल रखी?
8 सदियों से कई स्त्रियों ने साबित किया है कि वे यहोवा की बहादुर उपासक हैं। यरीहो शहर में रहनेवाली राहाब की मिसाल लीजिए, जो एक वेश्या थी। उसने परमेश्वर में विश्वास ज़ाहिर किया और हिम्मत दिखाते हुए, यहोशू के भेजे दो जासूसों को छिपाया और फिर राजा के आदमियों को गुमराह किया। बाद में, जब इसराएलियों ने यरीहो पर कब्ज़ा किया, तो राहाब और उसके परिवार को बचाया गया। राहाब अपना पेशा छोड़कर वफादारी से यहोवा की उपासना करने लगी और आगे चलकर मसीहा की पूर्वज बनी। (यहो. 2:1-6; 6:22, 23; मत्ती 1:1, 5) विश्वास और हिम्मत दिखाने की वजह से उसे कितनी बढ़िया आशीष मिली!
9. दबोरा, बाराक और याएल ने कैसे हिम्मत दिखायी?
9 ईसा पूर्व 1450 में यहोशू की मौत के बाद, इसराएल में इंसाफ करने के लिए न्यायी ठहराए गए। कनानी राजा याबीन, 20 सालों से इसराएलियों पर ज़ुल्म ढा रहा था। परमेश्वर ने दबोरा नाम की नबिया के ज़रिए, न्यायी बाराक को याबीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए उभारा। बाराक ताबोर पहाड़ पर अपने 10,000 आदमियों को लेकर याबीन की सेना से लड़ने के लिए तैयार था। याबीन की सेना, अपने सेनापति सीसरा की कमान में 900 रथों के साथ कीशोन नदी की तराई में इकट्ठी हुई। जब इसराएली घाटी में उतरने लगे, तो परमेश्वर ने अचानक एक बाढ़ लाकर रणभूमि को दलदल में तबदील कर दिया। सीसरा के रथ उसमें धँस गए। “तलवार से सीसरा की सारी सेना नष्ट की गई” और बाराक के लोगों की जीत हुई। सीसरा ने भागकर याएल नाम स्त्री के तंबू में पनाह ली। लेकिन जब वह सोया हुआ था, तब याएल ने मौका देखकर उसे मार डाला। जैसा कि दबोरा ने बाराक से भविष्यवाणी की थी, इस जीत की “बड़ाई” एक स्त्री, यानी याएल को गयी। दबोरा, बाराक और याएल ने हिम्मत से काम लिया था, इसलिए इसराएल में “चालीस वर्ष तक शान्ति रही।” (न्यायि. 4:1-9, 14-22; 5:20, 21, 31) परमेश्वर का भय माननेवाले बहुत-से स्त्री-पुरुषों ने इसी तरह विश्वास और साहस दिखाया है।
हमारी बातें हिम्मत बढ़ा सकती हैं
10. हम क्यों कह सकते हैं कि हमारे शब्द दूसरों की हिम्मत बढ़ा सकते हैं?
10 हम अपनी बोली से भी यहोवा की उपासना करनेवाले अपने भाई-बहनों की हिम्मत बढ़ा सकते हैं। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा दाविद ने अपने बेटे सुलैमान से कहा: “हियाव बान्ध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा। मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो, क्योंकि यहोवा परमेश्वर जो मेरा परमेश्वर है, वह तेरे संग है; और जब तक यहोवा के भवन में जितना काम करना हो वह न हो चुके, तब तक वह न तो तुझे धोखा देगा और न तुझे त्यागेगा।” (1 इति. 28:20) सुलैमान ने हिम्मत से काम लिया और यरूशलेम में यहोवा का शानदार मंदिर बनाया।
11. एक इसराएली लड़की के हिम्मत भरे शब्दों का एक इंसान की ज़िंदगी पर क्या असर हुआ?
11 ईसा पूर्व 10वीं सदी में हिम्मत दिखाते हुए एक इसराएली लड़की ने जो कहा, वह एक कोढ़ी के लिए आशीष का कारण साबित हुआ। लुटेरे उस लड़की को अगवा कर लाए थे और अब वह अराम, यानी सीरिया के सेनापति, नामान के घर पर दासी का काम करती थी। उसने उन चमत्कारों के बारे में सुना था, जो यहोवा ने एलीशा नबी के ज़रिए किए थे। इसलिए उसने नामान की पत्नी से कहा कि अगर नामान इसराएल जाए, तो यहोवा का भविष्यवक्ता उसे ठीक कर देगा। वह इसराएल गया और ठीक हो गया। नतीजा यह हुआ कि वह यहोवा का उपासक बन गया। (2 राजा 5:1-3, 10-17) अगर आप अभी छोटे हैं और इस लड़की की तरह यहोवा से प्यार करते हैं, तो वह आपको अपनी टीचरों, साथ पढ़नेवालों और दूसरों को गवाही देने के लिए हिम्मत दे सकता है।
12. राजा हिज़किय्याह के शब्दों का उसकी प्रजा पर क्या असर हुआ?
12 सोच-समझकर बोले गए शब्द मुश्किलों का सामना कर रहे लोगों का हौसला बढ़ा सकते हैं। ईसा पूर्व आठवीं सदी में जब अश्शूरियों ने यरूशलेम पर चढ़ाई की, तो राजा हिज़किय्याह ने अपनी प्रजा से कहा: “हियाव बान्धो और दृढ़ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है। अर्थात् उसका सहारा तो मनुष्य ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है।” इन शब्दों का लोगों पर क्या असर हुआ? बाइबल बताती है, “प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातों पर भरोसा किए रहे”! (2 इति. 32:7, 8) विरोध का सामना करते वक्त ऐसे शब्द हम सबका हौसला बढ़ा सकते हैं।
13. राजा अहाब के घराने का दीवान ओबद्याह, कैसे हिम्मत की एक मिसाल है?
13 कभी-कभार कुछ ना कहकर भी हिम्मत दिखायी जा सकती है। ईसा पूर्व 10वीं सदी में राजा अहाब के घराने के दीवान, ओबद्याह ने हिम्मत दिखाते हुए यहोवा के सौ नबियों को “पचास-पचास करके गुफाओं में” छिपाया ताकि उन्हें दुष्ट रानी इज़ेबेल के हुक्म के मुताबिक मौत के घाट न उतार दिया जाए। (1 राजा 18:4) परमेश्वर का भय माननेवाले ओबद्याह की तरह, आज भी यहोवा के कई वफादार सेवकों ने हिम्मत से काम लिया है और विरोधियों को अपने मसीही भाई-बहनों की जानकारी न देकर उनकी रक्षा की है।
निडर रानी एस्तेर
14, 15. रानी एस्तेर ने विश्वास और हिम्मत कैसे दिखायी और उसका क्या नतीजा हुआ?
14 ईसा पूर्व पाँचवी सदी में जब दुष्ट हामान ने फारसी साम्राज्य के यहूदियों का कत्लेआम करने की साज़िश रची, तो रानी एस्तेर ने ज़बरदस्त विश्वास और हिम्मत दिखायी। इस साज़िश की वजह से सब यहूदी दुखी होकर उपवास कर रहे थे और बेशक उन्होंने पूरे दिल से प्रार्थना भी की होगी! (एस्ते. 4:1-3) रानी एस्तेर भी बहुत परेशान थी। उसके चचेरे भाई मोर्दकै ने उसे उस फरमान की एक नकल भेजी, जिसमें यहूदियों के विनाश का आदेश जारी किया गया था। मोर्दकै ने उसे आज्ञा दी कि वह राजा के पास जाए और अपने लोगों के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती करे। लेकिन मुश्किल यह थी कि जो बिन बुलाए राजा के पास जाता उसे सज़ा-ए-मौत दी जाती थी।—एस्ते. 4:4-11.
15 इसके बावजूद, मोर्दकै ने एस्तेर से कहा: ‘जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से उद्धार हो जाएगा। क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो?’ एस्तेर ने मोर्दकै से दरखास्त की कि वह शूशन के यहूदियों को इकट्ठा करे और सब मिलकर उसके लिए उपवास करें। फिर उसने कहा, “मैं भी . . . उसी रीति उपवास करूंगी। और ऐसी ही दशा में मैं नियम के विरुद्ध राजा के पास भीतर जाऊंगी; और यदि नाश हो गई तो हो गई।” (एस्ते. 4:12-17) एस्तेर ने हिम्मत से काम लिया और एस्तेर की किताब दिखाती है कि परमेश्वर ने अपने लोगों को छुटकारा दिलाया। आज जब अभिषिक्त मसीही और उनके साथी, परीक्षा के दौरान इसी तरह हिम्मत दिखाते हैं, तो ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ हमेशा उनका साथ देता है।—भजन 65:2; 118:6 पढ़िए।
यीशु की हिम्मत की मिसाल
16. हमारे जवान भाई-बहनों के लिए यीशु ने क्या मिसाल रखी?
16 पहली सदी की एक घटना पर गौर कीजिए। यीशु 12 साल का था और वह मंदिर में “शिक्षकों के बीच बैठा उनकी सुन रहा था और उनसे सवाल कर रहा था।” इतना ही नहीं, “जितने लोग उसकी सुन रहे थे, वे सभी उसकी समझ और उसके जवाबों से रह-रहकर दंग हो रहे थे।” (लूका 2:41-50) हालाँकि यीशु छोटा ही था, उसने हिम्मत और विश्वास के साथ मंदिर के शिक्षकों से बात की। यीशु की मिसाल याद रखने से मसीही जवानों को मदद मिलेगी कि “जो कोई उनकी आशा की वजह जानने की माँग करता है, उसके सामने अपनी आशा की पैरवी करने के लिए” वे हरदम तैयार रहें।—1 पत. 3:15.
17. यीशु ने अपने चेलों को ‘हिम्मत रखने’ के लिए क्यों कहा और हमें हिम्मत से काम लेने की ज़रूरत क्यों है?
17 यीशु ने ‘हिम्मत रखने’ का बढ़ावा दिया। (मत्ती 9:2, 22) उसने अपने चेलों से कहा: “देखो! वह घड़ी आ रही है, दरअसल आ चुकी है, जब तुम में से हर कोई तित्तर-बित्तर होकर अपने-अपने घर चला जाएगा और तुम मुझे अकेला छोड़ दोगे। फिर भी मैं अकेला नहीं हूँ क्योंकि पिता मेरे साथ है। मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं ताकि मेरे ज़रिए तुम शांति पा सको। दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल की है।” (यूह. 16:32, 33) यीशु के चेलों की तरह, हमें भी इस दुनिया की नफरत का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब हम हिम्मत की उस मिसाल पर गौर करते हैं जो परमेश्वर के बेटे ने रखी, तो हमें भी इस दुनिया से अलग रहने और खुद को निष्कलंक बनाए रखने का हौसला मिलता है। यीशु ने इस दुनिया पर जीत हासिल की और हम भी ऐसा कर सकते हैं।—यूह. 17:16; याकू. 1:27.
“हिम्मत रख!”
18, 19. प्रेषित पौलुस ने विश्वास और हिम्मत का क्या सबूत दिया?
18 प्रेषित पौलुस ने बहुत-सी परीक्षाएँ सहीं। एक बार तो ऐसी नौबत आ गयी थी कि अगर रोमी सैनिक उसे बचाने न आते, तो शायद यरूशलेम के यहूदी उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालते। उसी रात “प्रभु पौलुस के पास आ खड़ा हुआ और उससे कहा: ‘हिम्मत रख! क्योंकि जैसे तू यरूशलेम में मेरे बारे में अच्छी तरह गवाही देता रहा है, उसी तरह रोम में भी तुझे गवाही देनी है।’” (प्रेषि. 23:10-12) पौलुस ने ठीक यही किया।
19 उसने बिना डरे उन “महा-प्रेषितों” को फटकारा जो कुरिंथ की मंडली को दूषित करना चाहते थे। (2 कुरिं. 11:5; 12:11) पौलुस इन झूठे प्रेषितों की तरह नहीं था; उसके पास सच्चा प्रेषित होने के ढेरों सबूत थे। उसने जोखिम भरे सफर तय किए, कई रातें आँखों में काटीं; उसे मारा-पीटा गया, जेल में डाला गया, वह भूखा-प्यासा रहा और उसने कई और खतरों का सामना भी किया। इसके अलावा, पौलुस ने संगी विश्वासियों के लिए सच्ची परवाह दिखायी। (2 कुरिंथियों 11:23-28 पढ़िए।) वह विश्वास और हिम्मत की क्या ही बढ़िया मिसाल था! इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्वर की ताकत की बदौलत ही यह सब मुमकिन हो पाया।
20, 21. (क) मुश्किल हालात में हिम्मत दिखाने की एक मिसाल दीजिए। (ख) हमें किन हालात में हिम्मत दिखाने की ज़रूरत पड़ सकती है और हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?
20 सभी मसीहियों को शायद पौलुस की तरह सताया न जाए; मगर जीवन में आनेवाली चुनौतियों का सामना करने के लिए हम सबको हिम्मत की ज़रूरत है। ब्राज़ील में रहनेवाले एक जवान की मिसाल लीजिए। वह एक गिरोह का सदस्य था। बाइबल अध्ययन करने के बाद, उसे लगा कि उसे ज़िंदगी में बदलाव करने चाहिए, मगर जो भी गिरोह छोड़कर जाता, उसकी जान नहीं बख्शी जाती थी। उसने प्रार्थना की और बाइबल के वचनों का इस्तेमाल करके अपने गिरोह के सरदार को समझाया कि वह क्यों गिरोह छोड़ना चाहता है। उस जवान से बिना बदला लिए उसे छोड़ दिया गया और वह राज का प्रचारक बन गया।
21 खुशखबरी का प्रचार करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है। हमारे जवान मसीही भाई-बहनों को स्कूल में खराई बनाए रखने के लिए भी यह गुण दिखाना पड़ता है। अधिवेशन में हर दिन हाज़िर होने के लिए काम से छुट्टी माँगनी हो, तो उसके लिए भी हिम्मत चाहिए। वाकई, हमें कई मौकों पर हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन हमारे सामने चाहे कोई भी चुनौती क्यों न आए, हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ‘विश्वास से की गयी प्रार्थनाएँ’ सुनता है। (याकू. 5:15) इसमें कोई शक नहीं कि वह हमें अपनी पवित्र शक्ति देगा ताकि हम ‘हियाव बान्धें और बहुत दृढ़ हो जाएँ’!
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 11 पर तसवीर]
हनोक ने एक दुष्ट दुनिया में हिम्मत के साथ प्रचार किया
[पेज 12 पर तसवीर]
याएल हिम्मतवाली स्त्री थी