क्या आपमें यहोवा को ‘जाननेवाला मन’ है?
‘मैं उन्हें ऐसा मन दूंगा कि वे मुझे जानें, क्योंकि मैं ही यहोवा हूं। वे मेरी प्रजा ठहरेंगे।’—यिर्म. 24:7, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
1, 2. क्यों कुछ लोग अंजीर के बारे में सीखना चाहेंगे?
क्या आपको ताज़े-ताज़े या सूखे अंजीर खाना पसंद है? पुराने ज़माने के यहूदियों को अंजीर खाना पसंद था। (नहू. 3:12; लूका 13:6-9) आज बहुत लोगों को यह पसंद है, इसलिए दुनिया-भर में कई जगहों पर इसे उगाया जाता है। अंजीर के फल में कई पौष्टिक गुण पाए जाते हैं और कुछ लोग तो कहते हैं कि ये हमारे दिल के लिए बहुत अच्छा है।
2 यहोवा ने एक बार अंजीर की तुलना लोगों के दिलों से की। परमेश्वर लोगों को यह नहीं बता रहा था कि अंजीर खाने के क्या-क्या फायदे हैं, बल्कि वह उनके लाक्षणिक दिल की बात कर रहा था। उसने यिर्मयाह नबी के ज़रिए जो कहा उसका फायदा न सिर्फ आपको बल्कि आपके प्रिय जनों को भी होगा। अब जब हम गौर करेंगे कि परमेश्वर ने क्या कहा तो सोचिए कि मसीही होने के नाते हमें इससे क्या सीखना चाहिए।
3. यिर्मयाह अध्याय 24 में बताए अंजीर किन्हें दर्शाते हैं?
3 आइए सबसे पहले देखें कि परमेश्वर ने यिर्मयाह के दिनों में अंजीर के बारे में क्या कहा। ईसा पूर्व 617 में, यहूदा के लोग ऐसे काम कर रहे थे जिनसे यहोवा नफरत करता है। उसने यिर्मयाह को एक दर्शन दिखाया कि आगे चलकर यहूदा के साथ क्या होगा। दर्शन में यहोवा ने अंजीर के दो टोकरे दिखाए। एक टोकरे में “अच्छे अच्छे अंजीर” थे तो दूसरे में “बहुत निकम्मे अंजीर।” (यिर्मयाह 24:1-3 पढ़िए।) निकम्मे अंजीर, राजा सिदकिय्याह और उसकी तरह उन लोगों को दर्शाते थे, जिन पर राजा नबूकदनेस्सर और उसकी सेना जल्द ही हमला करनेवाले थे। लेकिन ऐसे भी लोग थे जो अच्छे अंजीर जैसे थे। इनमें से कुछ थे यहेजकेल, दानिय्येल और उसके तीन साथी और कुछ यहूदी जिन्हें आखिरकार बंदी बनाकर बैबिलोनिया देश ले जाया गया। आगे चलकर इनमें से कुछ यहूदी वापस अपने वतन लौटे और उन्होंने यरूशलेम और उसका मंदिर दोबारा बनाया।—यिर्म. 24:8-10; 25:11, 12; 29:10.
4. यहोवा ने अच्छे अंजीरों के बारे में जो कहा, उससे हमें क्यों हिम्मत मिलती है?
4 जो लोग अच्छे अंजीर जैसे थे उनके बारे में यहोवा ने कहा: ‘मैं उन्हें ऐसा मन दूंगा कि वे मुझे जानें, क्योंकि मैं ही यहोवा हूं। वे मेरी प्रजा ठहरेंगे।’ (यिर्म. 24:7, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) यही इस लेख का मुख्य वचन है। और इससे हमें कितनी हिम्मत मिलती है, क्योंकि यहोवा चाहता है कि ‘हमारा मन ऐसा हो जो उसे जाने,’ यानी हम ऐसे इंसान बनें जो उसके बारे में जानने की इच्छा रखते हों और उसके सेवक बनना चाहते हों। हम इस तरह के इंसान कैसे बन सकते हैं? बाइबल का अध्ययन करने, सीखी बातों को लागू करने, पश्चाताप करने, बुरे रास्ते पर चलना छोड़ देने, परमेश्वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने और पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेने से। (मत्ती 28:19, 20; प्रेषि. 3:19) क्या आपने ये कदम उठा लिए हैं? या क्या आप यहोवा के साक्षियों के साथ लगातार सभाओं में हाज़िर होते हैं और ये कदम उठा रहे हैं?
5. यिर्मयाह की किताब में खासकर किसके बारे में बताया गया है?
5 अगर हमने ये सारे कदम उठा लिए हैं तब भी हमें अपने रवैए और व्यवहार पर खास ध्यान देना चाहिए। वह क्यों? इसकी वजह हमें तब पता चलेगी जब हम गौर करेंगे कि यिर्मयाह ने मन या दिल के बारे में क्या लिखा। हालाँकि यिर्मयाह किताब के कुछ अध्याय, यहूदा के आस-पास के राष्ट्रों के बारे में बताते हैं, लेकिन इसमें खास तौर से यहूदा राष्ट्र और उस समय के बारे में बताया गया है जब पाँच राजाओं ने इस पर राज किया था। (यिर्म. 1:15, 16) जी हाँ, यिर्मयाह ने यह संदेश उन लोगों के लिए लिखा था, जो पहले से यहोवा को समर्पित थे। मूसा के दिनों में उनके पुरखों ने खुद एक ऐसा राष्ट्र बनने का चुनाव किया जो यहोवा को समर्पित होता। (निर्ग. 19:3-8) यिर्मयाह के दिनों में भी लोगों ने कहा था: “हम तेरे पास आए हैं; क्योंकि तू ही हमारा परमेश्वर यहोवा है।” (यिर्म. 3:22) लेकिन क्या उनके दिल की हालत अच्छी थी?
उन्हें “दिल का ऑपरेशन” करवाना था
6. परमेश्वर ने दिल के बारे में जो कहा, उसमें हमें क्यों खास दिलचस्पी लेनी चाहिए?
6 आजकल डॉक्टर नयी-से-नयी मशीनों का इस्तेमाल कर यह पता लगा सकते हैं कि हमारा दिल ठीक तरह से काम कर रहा है या नहीं। लेकिन यहोवा उनसे भी बढ़कर कुछ कर सकता है, जैसा कि हमें उसके इन शब्दों से पता चलता है: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता . . . हूं ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात् उसके कामों का फल दूं।” (यिर्म. 17:9, 10) ‘मन को खोजने’ का यह मतलब नहीं कि हमारे दिल की मेडिकल जाँच की जाए। दरअसल यहोवा यहाँ लाक्षणिक दिल की बात कर रहा है। यह एक इंसान की इच्छाओं, सोच-विचार, स्वभाव, रवैए और लक्ष्य को दर्शाता है यानी वह अंदर से कैसा इंसान है। परमेश्वर हमारे लाक्षणिक दिल की जाँच करता है और कुछ हद तक आप भी अपने दिल की जाँच कर सकते हैं।
7. यिर्मयाह ने अपने दिनों के ज़्यादातर यहूदियों के दिल की हालत के बारे में क्या कहा?
7 अपने लाक्षणिक दिल की जाँच करने के लिए हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘यिर्मयाह के दिनों में ज़्यादातर यहूदियों के दिल की हालत कैसी थी?’ जवाब जानने के लिए यिर्मयाह के शब्दों पर गौर कीजिए: ‘इस्राएल का सारा घराना मन में खतनारहित है।’ यिर्मयाह यहाँ उस खतने की बात नहीं कर रहा था जो मूसा के कानून के मुताबिक यहूदी पुरुषों को करवाना होता था। यह हम कैसे कह सकते हैं? हालाँकि यहूदी पुरुषों ने खतना करवाया था, फिर भी यहोवा ने उन्हें ‘खतनारहित’ कहा, क्योंकि वे “मन में खतनारहित” थे। (यिर्म. 9:25, 26) इसका क्या मतलब है?
8, 9. दिल के सिलसिले में ज़्यादातर यहूदियों को क्या करने की ज़रूरत थी?
8 “मन में खतनारहित” का मतलब जानने के लिए ध्यान दीजिए कि परमेश्वर ने यहूदियों को क्या करने का बढ़ावा दिया: “हे यहूदा के लोगो और यरूशलेम के निवासियो, . . . अपने मन का खतना करो; नहीं तो तुम्हारे बुरे कामों के कारण मेरा क्रोध . . . भड़केगा।” उनके बुरे कामों की शुरूआत कहाँ से हुई? उनके अंदर से यानी उनके दिल से। (मरकुस 7:20-23 पढ़िए।) जी हाँ, परमेश्वर ने सही-सही पता लगाया कि यहूदियों का दिल बागी बन चुका था और वे बदलने को तैयार नहीं थे। उनकी सोच और इरादे उसकी नज़र में बुरे थे। (यिर्मयाह 5:23, 24; 7:24-26 पढ़िए।) इसलिए परमेश्वर ने उनसे कहा: “यहोवा के लिए अपना खतना करो; हाँ, अपने मन का खतना करो।”—यिर्म. 4:4; 18:11, 12.
9 यिर्मयाह के दिनों के यहूदियों को लाक्षणिक तौर पर दिल का ऑपरेशन करवाना था, ठीक जैसे मूसा के दिनों में इसराएलियों ने करवाया था। (व्यव. 10:16; 30:6) “अपने मन का खतना” करने का मतलब था कि उन्हें अपने दिल से ऐसा हर विचार, इच्छा और इरादा निकाल फेंकना था जो परमेश्वर की आज्ञाओं से मेल नहीं खाता।—प्रेषि. 7:51.
हम यहोवा को ‘जाननेवाला मन’ कैसे पा सकते हैं?
10. दाविद की मिसाल पर चलते हुए हमें क्या करना चाहिए?
10 हमें परमेश्वर के कितने शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि वह यह समझने में हमारी मदद करता है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं। लेकिन क्या हम यहोवा के सेवकों को इस बात की चिंता करनी चाहिए कि हमारे दिल की हालत कैसी है? ऐसा नहीं है कि मंडली में ज़्यादातर मसीही बुराई कर रहे हैं या “निकम्मे अंजीर” बन रहे हैं, जैसे यिर्मयाह के समय में बहुत-से यहूदी बन गए थे। इसके उलट, परमेश्वर के सेवक आज वफादारी से उसकी सेवा करते हैं और शुद्ध चालचलन बनाए रखते हैं। लेकिन गौर कीजिए कि नेक होने के बावजूद दाविद ने परमेश्वर से क्या गुज़ारिश की: “हे परमेश्वर, मुझे जांचकर मेरे हृदय को जान ले; मुझे परख और मेरी चिन्ताओं को जान ले; और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं।”—भज. 17:3; 139:23, 24, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
11, 12. (क) हमें क्यों अपने दिल की जाँच करनी चाहिए? (ख) परमेश्वर क्या नहीं करता?
11 यहोवा चाहता है कि हममें से हरेक उसकी मंज़ूरी पाए और हमेशा पाता रहे। यिर्मयाह ने कहा कि यहोवा नेक लोगों को परखता है और उनके “हृदय और मन” को देखता है। (यिर्म. 20:12) अगर सर्वशक्तिमान, नेक लोगों के दिलों को भी जाँचता है, तो क्या हमें खुद अपनी जाँच नहीं करनी चाहिए? (भजन 11:5 पढ़िए। *) जब हम ऐसा करते हैं तो हम शायद पाएँ कि हमारा कोई लक्ष्य, भावना या रवैया हमें यहोवा की आज्ञा मानने में ढीला बना रहा है। इस बुराई को अपने दिल से निकालने के लिए हमें शायद अपने लाक्षणिक दिल का ऑपरेशन करवाना पड़े। ऐसा कौन-सा गलत रवैया या भावना हमारे दिल में हो सकती है? और उन्हें दूर करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?—यिर्म. 4:4.
12 यहोवा चाहता है कि हम इन बुराइयों को अपने अंदर से दूर करें। मगर ऐसा करने के लिए वह कभी-भी हमसे ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। उसने “अच्छे अंजीर” के बारे में कहा कि वह उन्हें ‘ऐसा मन देगा कि वे उसे जानें।’ उसने यह नहीं कहा कि वह ज़बरदस्ती उनका मन बदलेगा। बल्कि उनके दिल में यह इच्छा होनी चाहिए कि वे परमेश्वर को जानें। हममें भी ऐसी इच्छा होनी चाहिए।
13, 14. किस मायने में एक मसीही का दिल उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता है?
13 यीशु ने कहा था: “दुष्ट विचार, हत्याएँ, शादी के बाहर यौन-संबंध, व्यभिचार, चोरियाँ, झूठी गवाही और निंदा की बातें, ये दिल से ही निकलती हैं।” (मत्ती 15:19) अगर एक भाई अपने दिल को इस कदर कठोर बना ले कि वह व्यभिचार या शादी के बाहर यौन-संबंध रखे और पश्चाताप न करे, तो इसमें कोई शक नहीं कि वह हमेशा के लिए परमेश्वर की मंज़ूरी खो देगा। लेकिन अगर एक मसीही ऐसा गंभीर पाप न भी करे, तो भी वह शायद अपने दिल में किसी गलत इच्छा को पनपने दे रहा हो। (मत्ती 5:27, 28 पढ़िए।) इसलिए यह ज़रूरी है कि हम जाँचते रहें कि कहीं ऐसी गलत इच्छाएँ हमारे दिल में तो नहीं हैं। क्या आप मन-ही-मन विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के बारे में ऐसी इच्छाएँ रखते हैं, जो यहोवा की नज़र में गलत हैं? क्या आपको उन इच्छाओं को अपने दिल से निकालने की ज़रूरत है?
14 उसी तरह, हो सकता है एक मसीही किसी की ‘हत्या’ न करे, मगर वह इस कदर अपने दिल में किसी भाई के लिए नाराज़गी बढ़ने दे कि उससे नफरत करने लगे। (लैव्य. 19:17) क्या ऐसे में यह मसीही अपने दिल से ऐसी गलत भावनाओं को उखाड़ फेंकने की जी-तोड़ कोशिश करेगा?—मत्ती 5:21, 22.
15, 16. (क) मिसाल देकर समझाइए कि कैसे एक मसीही “मन में खतनारहित” हो सकता है। (ख) आपको क्यों लगता है कि ‘खतनारहित मन’ से यहोवा खुश नहीं होता?
15 खुशी की बात है कि ज़्यादातर मसीही ऐसी इच्छाओं और भावनाओं को अपने दिल में नहीं बढ़ने देते। पर गौर कीजिए कि यीशु ने “दुष्ट विचार” की भी बात की थी। इसकी एक मिसाल लीजिए। एक मसीही शायद सोचे कि उसे सबसे बढ़कर अपने परिवारवालों के लिए वफादारी दिखानी चाहिए। बेशक, हम आज अपने परिवार के लिए “मोह-ममता” दिखाना चाहते हैं, और दुनिया के लोगों की तरह नहीं होना चाहते जो इन “आखिरी दिनों” में ऐसी भावनाओं से खाली हैं। (2 तीमु. 3:1, 3) लेकिन हो सकता है हम अपने परिवार के लिए इस हद तक वफादारी दिखाएँ कि सही-गलत में फर्क ही न कर पाएँ। बहुतों का मानना है कि खून के रिश्ते से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं। इसलिए जब उनके किसी परिवारवाले को कोई ठेस पहुँचाता है, तो वे भी बुरा मान जाते हैं। याद कीजिए जब दीना के साथ कुछ गलत हुआ, तो गुस्से में आकर उसके भाइयों ने क्या किया। (उत्प. 34:13, 25-30) और अम्नोन की करतूत की वजह से अबशालोम के दिल में जो भावनाएँ उठीं, उस वजह से उसने अम्नोन का कत्ल कर दिया। (2 शमू. 13:1-30) जी हाँ, यह दिखाता है कि “दुष्ट विचार” कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं।
16 कुछ लोग इसलिए नाराज़ हो जाते हैं क्योंकि उनके परिवारवालों के साथ बुरा सलूक किया जाता है। या उन्हें लगता है कि उनके परिवारवालों के साथ ऐसा हुआ है। ऐसे में जिस भाई या बहन ने बुरा सलूक किया उसके साथ वे किस तरह पेश आते हैं? वे शायद उस भाई या बहन के बुलाने पर उनके घर जाने से इनकार कर दें और हो सकता है वे उन्हें कभी अपने घर न बुलाएँ। (इब्रा. 13:1, 2) हमें ऐसी गलत भावनाओं को अपने दिल में जगह नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे ज़ाहिर होगा कि हमारे अंदर प्यार की कमी है। ऐसे में हमारे दिल को जाँचने पर यहोवा यही कहेगा कि हम “मन में खतनारहित” हैं। (यिर्म. 9:25, 26) याद कीजिए कि यहोवा ने क्या गुज़ारिश की: “अपने मन का खतना करो।”—यिर्म. 4:4.
परमेश्वर को ‘जाननेवाला मन’ पाना और उसे बनाए रखना
17. यहोवा का भय हमें क्या करने के लिए उकसाएगा?
17 अपने लाक्षणिक दिल की जाँच करने पर आप पाएँ कि आप यहोवा की हिदायतों को मानने में ढिलाई कर रहे हैं और कुछ हद तक “खतनारहित” हैं। इसकी वजह शायद इंसान का डर, नाम या दौलत पाने की चाहत, अपनी ज़िद्द या मनमानी करना हो। यकीन मानिए आप अकेले नहीं हैं, और भी कई लोग इस तरह की भावनाओं से जूझ रहे हैं। (यिर्म. 7:24; 11:8) यिर्मयाह ने लिखा कि उसके दिनों के विश्वासघाती यहूदियों का “हठीला और बलवा करनेवाला मन” था। उसने आगे लिखा: “वे मन में इतना भी नहीं सोचते कि हमारा परमेश्वर यहोवा तो बरसात के आरम्भ और अन्त दोनों समयों का जल समय पर बरसाता है . . . इसलिये हम उसका भय मानें।” (यिर्म. 5:23, 24) अगर हम यहोवा का भय मानें यानी अगर हम उसका आदर करें, तो हम अपने दिल से बुराई निकाल पाएँगे। यहोवा का भय हमें उकसाएगा कि हम अपने दिल में ज़रूरी बदलाव करें और उसकी हिदायतों को मानने में ढिलाई न बरतें।
18. यहोवा ने नए करार में शामिल लोगों से क्या वादा किया?
18 जब हम ऐसा करने की कोशिश करते रहेंगे, तो यहोवा हमें ‘ऐसा मन देगा जो उसे जाने।’ दरअसल, यही वादा उसने अभिषिक्त जनों से किया है, जो नए करार में शामिल हैं: “मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे।” यहोवा आगे कहता है: “तब उन्हें फिर एक दूसरे से यह न कहना पड़ेगा कि यहोवा को जानो, क्योंकि . . . छोटे से लेकर बड़े तक, सब के सब मेरा ज्ञान रखेंगे; क्योंकि मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।”—यिर्म. 31:31-34. *
19. सच्चे मसीही क्या आस रखते हैं?
19 हम इस नए करार से हमेशा-हमेशा के लिए फायदा पाने की आस रखते हैं, फिर चाहे हम अभिषिक्त जन हों या बड़ी भीड़ का हिस्सा। हम सभी की यह ख्वाहिश होनी चाहिए कि हम यहोवा को जानें और उसके लोगों में गिने जाएँ। लेकिन यहोवा को हम हमेशा के लिए सिर्फ तभी जान पाएँगे, अगर मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर हमारे पाप माफ किए जाएँ। जब हमारे पाप माफ किए जा सकते हैं, तो क्या हमें दूसरों को माफ नहीं करना चाहिए, फिर चाहे ऐसा करना हमारे लिए कितना ही मुश्किल क्यों न हो? हमें अपने दिल से नफरत या गुस्से की हर भावना को निकाल फेंकने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। ऐसा करने से हम दिखाएँगे कि हम यहोवा को और भी अच्छी तरह जानने लगे हैं और उसकी सेवा करना चाहते हैं। हम उन लोगों में से होंगे जिनके बारे में यहोवा ने कहा: “तुम मुझे ढ़ूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे। मैं तुम्हें मिलूंगा।”—यिर्म. 29:13, 14.
^ भजन 11:5: “यहोवा भले व बुरे लोगों को परखता है, और वह उन लोगों से घृणा करता है, जो हिंसा से प्रीति रखते हैं।” (हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन)
^ नए करार के बारे में 15 जनवरी, 2012 की प्रहरीदुर्ग के पेज 26-30 में ज़्यादा जानकारी दी गयी है।