बातचीत जारी रखिए, शादी को मज़बूत बनाइए
“जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।”—नीति. 25:11.
1. शादी-शुदा जोड़ों को अच्छी बातचीत करने से कैसे मदद मिली है?
कनाडा में रहनेवाले एक भाई ने कहा, “किसी और के साथ वक्त बिताने से ज़्यादा, मुझे अपनी पत्नी के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है। उसके साथ वक्त बिताने से खुशियाँ दुगुनी हो जाती हैं और गम जैसे आधे हो जाते हैं।” ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाले एक पति ने लिखा, “हमारी शादी को 11 साल हो चुके हैं, लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब मैंने अपनी पत्नी से बात न की हो। हमारी शादी का रिश्ता इतना मज़बूत है कि हमें कोई डर या चिंता नहीं सताती। इसकी सबसे बड़ी वजह है, हम एक-दूसरे से लगातार और दिल खोलकर बात करते हैं।” कोस्टारिका में रहनेवाली एक बहन ने कहा, “एक-दूसरे से बातचीत करने की वजह से न सिर्फ हमारी शादी का बंधन मज़बूत हुआ है, बल्कि हम यहोवा के और करीब आ पाए हैं, प्रलोभनों से बच पाएँ हैं, एक-दूसरे के और करीब महसूस करते हैं और हमारे बीच प्यार बढ़ गया है।”
2. किन बातों की वजह से एक-दूसरे से बात करना मुश्किल हो सकता है?
2 क्या आप और आपका साथी एक-दूसरे से अच्छी तरह बात करते हैं या फिर आपको दिल खोलकर अपने साथी से बात करना मुश्किल लगता है? इसमें कोई दो राय नहीं कि कभी-कभार मुश्किल हालात खड़े हो सकते हैं, क्योंकि शादी का बंधन दो असिद्ध लोगों के बीच का रिश्ता है, जिनकी शख्सियत एक-दूसरे से अलग होती है। (रोमि. 3:23) कभी-कभी, दोनों की संस्कृति एक-जैसी नहीं होती या उनकी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई होती है। इसके अलावा, पति-पत्नी के बात करने का तरीका एक-दूसरे से अलग हो सकता है। इसीलिए शादी-शुदा ज़िंदगी पर अध्ययन करनेवाले जॉन एम. गॉटमन और नैन सिल्वर कहते हैं: “शादी के रिश्ते को कायम रखने के लिए ज़रूरी है कि आप हिम्मत से काम लें, फेरबदल के लिए तैयार रहें और आपका इरादा पक्का हो।”
3. किस तरह शादी-शुदा जोड़े अपने रिश्ते को मज़बूत बना पाए हैं?
3 वाकई, शादी को कामयाब बनाने के लिए मेहनत करना ज़रूरी है। मगर ऐसा करने से आपकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी। जो पति-पत्नी एक-दूसरे से प्यार करते हैं, वे साथ मिलकर ज़िंदगी का पूरा-पूरा मज़ा ले सकते हैं। (सभो. 9:9) इसहाक और रिबका के प्यार-भरे रिश्ते पर गौर कीजिए। (उत्प. 24:67) काफी समय साथ गुज़ारने के बाद भी, बाइबल में कहीं ऐसा नहीं बताया गया है कि कभी उनका प्यार फीका पड़ा हो। आज भी ऐसे बहुत-से जोड़ें हैं, जिनका रिश्ता बहुत मज़बूत है। इसका राज़ क्या है? उन्होंने अपने दिल की बात और अपनी भावनाएँ खुलकर, मगर प्यार-से बताना सीखा है। साथ ही, उन्होंने एक-दूसरे से पेश आते वक्त अंदरूनी समझ, प्यार, गहरा आदर और नम्रता का गुण ज़ाहिर करके अपने रिश्ते की नींव मज़बूत की है। अब हम इस लेख में देखेंगे कि कैसे ये ज़रूरी गुण एक जोड़े को अच्छी तरह बातचीत करते रहने में मदद दे सकते हैं।
अंदरूनी समझ दिखाइए
4, 5. अंदरूनी समझ होने से कैसे पति-पत्नी एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ सकते हैं? उदाहरण दीजिए।
4 नीतिवचन 16:20 (एन.डब्ल्यू.) कहता है, “जो किसी मामले में अंदरूनी समझ दिखाता है उसका भला होगा।” शादी-शुदा और पारिवारिक ज़िंदगी के मामले में भी यह बात सच है। (नीतिवचन 24:3 पढ़िए।) अंदरूनी समझ और बुद्धि पाने का सबसे अच्छा ज़रिया है, परमेश्वर का वचन। उत्पति 2:18 में बताया गया है कि परमेश्वर ने स्त्री को पुरुष का साथी बनाया था, उसकी हू-ब-हू नकल नहीं। स्त्री और पुरुष के बात करने का तरीका अलग-अलग होता है। आम तौर पर, स्त्रियाँ अपनी भावनाओं, लोगों और रिश्तों के बारे में बात करना पसंद करती हैं। वे चाहती हैं कि उनसे खुलकर और प्यार-से बात की जाए, क्योंकि इससे उन्हें महसूस होता है कि दूसरे उनसे प्यार करते हैं। दूसरी तरफ, ज़्यादातर पुरुष अपनी भावनाओं के बारे में बात करना इतना पसंद नहीं करते। इसके बजाय, उन्हें काम के बारे में या किसी समस्या और उसके हल के बारे में बात करना अच्छा लगता है। और पुरुष चाहते हैं कि उन्हें इज़्ज़त मिले।
5 ब्रिटेन में रहनेवाली एक बहन ने कहा, “मेरे पति मेरी पूरी बात सुनने के बजाय बस जल्द-से-जल्द समस्या सुलझाने में लग जाते हैं। यह बात मुझे बहुत चिढ़ दिलाती है, क्योंकि मैं बस इतना चाहती हूँ कि वे इतमीनान से मेरी बात सुनें और मेरी भावनाओं को समझने की कोशिश करें।” एक पति ने लिखा, “जब हमारी नयी-नयी शादी हुई थी, तो मेरी यही कोशिश रहती कि मैं अपनी पत्नी की हर परेशानी झट-से हल कर दूँ। लेकिन जल्द ही मैं समझ गया कि वह कुछ और चाहती थी। वह चाहती थी कि मैं उसकी बात सुनूँ।” (नीति. 18:13; याकू. 1:19) समझ से काम लेनेवाला पति अपनी पत्नी की भावनाओं की कदर करता है और उसी के मुताबिक उसके साथ पेश आता है। साथ ही, वह अपनी बातों से अपनी पत्नी को यकीन दिलाता है कि उसकी सोच और भावनाएँ उसके लिए मायने रखती हैं। (1 पत. 3:7) साथ ही, पत्नी भी यह जानने की कोशिश करती है कि फलाँ मामले में उसके पति का क्या नज़रिया है। जब पति-पत्नी एक-दूसरे को समझते हैं, एक-दूसरे की कदर करते हैं और परमेश्वर से मिली अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं, तो उनका रिश्ता और खूबसूरत बन जाता है। इसके अलावा, वे साथ मिलकर बुद्धि-भरे फैसले ले पाते हैं और उनके मुताबिक चल पाते हैं।
6, 7. (क) सभोपदेशक 3:7 में दिया सिद्धांत कैसे पति-पत्नी को अंदरूनी समझ दिखाने में मदद दे सकता है? (ख) एक पत्नी कैसे समझ से काम ले सकती है और पति को क्या करने की कोशिश करनी चाहिए?
6 जो पति-पत्नी अंदरूनी समझ दिखाते हैं, वे यह भी जानते हैं कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है।” (सभो. 3:1, 7) एक बहन, जिसकी शादी को दस साल हो चुके हैं, कहती है, “अब मुझे समझ आ गया है कि कुछ मौके ऐसे होते हैं जब फलाँ विषय पर बात छेड़ना सही नहीं होता। अगर मेरे पति के पास बहुत काम या दूसरी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, तो मैं कुछ वक्त बाद उस बारे में बात करती हूँ। नतीजा, अब हमारे बीच बहुत अच्छे से बातचीत हो पाती है।” समझदार पत्नियों के बोल भी मन को भानेवाले होते हैं। वे जानती हैं कि जब वे “ठीक समय पर,” और सही शब्द चुनकर अपनी बात कहती हैं, तो उनके पति को उनकी बात अच्छी लगती है और वे उसकी कदर भी करते हैं।—नीतिवचन 25:11 पढ़िए।
7 एक मसीही पति को न सिर्फ अपनी पत्नी की बात पर गौर करना चाहिए, बल्कि अपनी भावनाओं को भी साफ-साफ बताने की कोशिश करनी चाहिए। एक प्राचीन, जिसकी शादी को 27 साल हो चुके हैं, कहता है: “अपनी पत्नी को अपने दिल की बात बताने के लिए मुझे काफी सोचना पड़ता है।” एक और भाई, जिसकी शादी 24 साल पहले हुई थी, कहता है कि अकसर उसे अपनी परेशानी के बारे में बात करना अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है कि अगर वह उनके बारे में बात न करे, तो सब ठीक हो जाएगा। मगर फिर वह कहता है, “अब मुझे एहसास हुआ है कि अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करना कमज़ोरी की निशानी नहीं है। जब मुझे अपने दिल की बात बताना मुश्किल लगता है, तो मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं सही शब्द सही तरीके से बोल सकूँ। फिर मैं एक गहरी साँस लेता हूँ और बात करना शुरू करता हूँ।” इसके अलावा, बात करने के लिए सही माहौल का होना भी ज़रूरी है, मिसाल के लिए तब जब पति-पत्नी साथ मिलकर रोज़ाना बाइबल वचनों पर चर्चा कर रहे हों या फिर बाइबल पढ़ रहे हों।
8. अपनी शादी को कामयाब बनाने के लिए, मसीही जोड़ों को क्या प्रेरणा मिलती है, जो दुनिया के लोगों को नहीं मिलती?
8 पति और पत्नी दोनों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रार्थना करें और आपसी बातचीत में सुधार लाने के लिए उनमें गहरी इच्छा हो। यह सच है कि पुरानी आदतें छोड़ना इतना आसान नहीं होता। लेकिन जब पति-पत्नी यहोवा से प्यार करते हैं, उसकी पवित्र शक्ति माँगते हैं और अपनी शादी को पवित्र बंधन मानते हैं, तो उन्हें आपसी बातचीत में सुधार लाने की प्रेरणा मिलती है, एक ऐसी प्रेरणा जो दुनिया के लोगों को नहीं मिलती। एक पत्नी, जिसकी शादी को 26 साल हो गए हैं, लिखती है: “मेरे पति और मैं शादी के बारे में यहोवा के नज़रिए को बहुत गंभीरता से लेते हैं, इसलिए हम अपने मन में अलग होने का खयाल तक नहीं आने देते। और इस वजह से हम मुश्किलें पार करने के लिए और भी मेहनत करते हैं और एक-दूसरे से बात करके उन्हें सुलझाने की कोशिश करते हैं।” इस तरह, परमेश्वर के लिए भक्ति और वफादारी दिखाकर पति-पत्नी उसे खुश करते हैं और उससे ढेर सारी आशीषें पाते हैं।—भज. 127:1.
प्यार बढ़ाइए
9, 10. एक जोड़ा अपने बीच प्यार बढ़ाने के लिए क्या कर सकता है?
9 शादी में प्यार का गुण सबसे ज़रूरी है। बाइबल कहती है, प्यार “पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़ है।” (कुलु. 3:14) समय के साथ-साथ जब वफादार पति-पत्नी सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ निभाते हैं, तो उनके बीच सच्चा प्यार बढ़ता है। उनकी दोस्ती और भी गहरी हो जाती है। उन्हें एक-दूसरे का साथ और भी अच्छा लगने लगता है। आपका रिश्ता बस गिनी-चुनी बड़ी चीजें करने से ही मज़बूत नहीं होगा, जैसा फिल्मों में दिखाया जाता है, बल्कि एक-दूसरे के लिए कई छोटी-छोटी चीज़ें करने से होगा। जैसे प्यार-से गले लगाना, उसकी सराहना करना, उसके लिए कुछ करना, उसकी तरफ देखकर मुसकराना या सच्चे दिल से यह पूछना, “आज आपका दिन कैसा रहा?” यही छोटी-छोटी चीज़ें शादी में बड़ी-बड़ी खुशियाँ ला सकती हैं। एक पति-पत्नी, जो खुशी-खुशी अपनी शादी के 19 साल बिता चुके हैं, एक-दूसरे को दिन में फोन करते हैं या मैसेज भेजते हैं, “बस यह जानने के लिए कि सब कैसा चल रहा है।”
10 प्यार का गुण पति-पत्नी को उकसाता है कि वे एक-दूसरे को और अच्छी तरह जानने की कोशिश करते रहें। (फिलि. 2:4) जितना ज़्यादा वे एक-दूसरे को समझते हैं, उतना ज़्यादा उनका प्यार गहरा होता है, फिर भले ही उन दोनों में कुछ कमियाँ क्यों न हों। जी हाँ, एक कामयाब शादी समय के गुज़रते और भी खूबसूरत, और भी मज़बूत होती जाती है। इसलिए अगर आप शादी-शुदा हैं, तो खुद से पूछिए, ‘मैं अपने साथी को कितनी अच्छी तरह जानता हूँ? क्या मैं किसी मामले में उसकी सोच और उसकी भावनाओं को समझता हूँ? मैं कितनी बार अपने साथी के उन गुणों के बारे में सोचता हूँ, जिन्हें देखकर मैं उसकी तरफ आकर्षित हुआ था?’
आदर दिखाइए
11. शादी को कामयाब बनाने के लिए आदर दिखाना क्यों ज़रूरी है? उदाहरण देकर समझाइए।
11 कोई भी ऐसा शादी-शुदा जोड़ा नहीं, जिसकी शादी में खुशियाँ ही खुशियाँ हों। हर जोड़े को मुश्किलों से गुज़रना पड़ता है। हो सकता है, कई बार उनकी राय एक-दूसरे से अलग हो। जैसे, अब्राहम और सारा हमेशा एक-दूसरे से सहमत नहीं होते थे। (उत्प. 21:9-11) लेकिन इस वजह से उनके बीच कभी दरार नहीं आयी। ऐसा क्यों? क्योंकि वे एक-दूसरे के साथ आदर और गरिमा से पेश आते थे। उदाहरण के लिए, अब्राहम ने सारा से बात करते वक्त “कृपया” शब्द का इस्तेमाल किया। (उत्प. 12:11, 13, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) सारा ने भी अब्राहम की आज्ञा मानी और वह उसे अपना “प्रभु” मानती थी। (1 पत. 3:6) दूसरी तरफ, जब एक जोड़ा एक दूसरे का आदर नहीं करता, तो अकसर यह उनके बात करने के तरीके या लहज़े से ज़ाहिर हो जाता है। (नीति. 12:18) और अगर वे एक-दूसरे का आदर न करें, तो उनकी शादी खतरे में पड़ सकती है।—याकूब 3:7-10, 17, 18 पढ़िए।
12. जिनकी नयी-नयी शादी हुई है, उन्हें एक-दूसरे के साथ इज़्ज़त से बात करने की और भी ज़्यादा कोशिश क्यों करनी चाहिए?
12 जिनकी नयी-नयी शादी हुई है, उन्हें एक-दूसरे के साथ प्यार और इज़्ज़त से बात करने की और भी ज़्यादा कोशिश करनी चाहिए। इस तरह उनके बीच एक ऐसा माहौल होगा, जहाँ बिना किसी हिचकिचाहट के वे खुलकर एक-दूसरे से बात कर पाएँगे। एक पति समझाता है कि उनकी शादी के शुरुआती सालों में वे दोनों एक-दूसरे की भावनाओं, आदतों और ज़रूरतों को नहीं समझ पाते थे। नतीजा, वे कई बार खीझ उठते थे। लेकिन समझ से काम लेने और मज़ाकिया अंदाज़ रखने की वजह से वे एक अच्छा रिश्ता कायम कर पाए। वह यह भी कहता है कि उनके लिए नम्र होना, धीरज धरना और यहोवा पर भरोसा रखना भी बहुत ज़रूरी था। वाकई, यह हम सभी के लिए क्या ही बढ़िया सलाह है!
सच्ची नम्रता दिखाइए
13. शादी को खुशहाल बनाने के लिए नम्र होना क्यों ज़रूरी है?
13 शादी-शुदा जोड़ों के बीच अच्छी बातचीत एक शांत और शीतल नदी की तरह है, जो कल-कल करती एक बाग से होकर गुज़रती है। अगर आप चाहते हैं कि यह नदी बहती रहे, तो ज़रूरी है कि आप दोनों “नम्र स्वभाव” के हों। (1 पत. ) एक भाई जिसकी शादी को 11 साल हो चुके हैं, कहता है, “किसी झगड़े को जल्द-से-जल्द सुलझाने का सबसे अच्छा तरीका है नम्र होना, क्योंकि अगर आपमें यह गुण होगा, तो आप फौरन माफी माँग लेंगे।” एक प्राचीन, जिसकी शादी का 20 साल का सफर बहुत खुशहाल रहा है, कहता है, “कभी-कभी ‘मुझे माफ कर दो’ कहना, ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ’ कहने से कई ज़्यादा ज़रूरी होता है।” वह यह भी कहता है, “नम्र बनने का सबसे आसान तरीका है प्रार्थना करना। जब मैं और मेरी पत्नी साथ मिलकर यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो हमें याद आता है कि हम असिद्ध हैं और परमेश्वर हम पर कितनी महा-कृपा दिखाता है। इस तरह मुझे मामले को सही नज़रिए से देखने में मदद मिलती है।” 3:8
14. घमंड शादी को किस तरह खतरे में डाल सकता है?
14 दूसरी तरफ, अगर आपमें घमंड होगा, तो आप सुलह करने के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे। घमंड बातचीत का गला घोंट देता है क्योंकि एक घमंडी इंसान न तो माफी माँगना चाहता है, न ही उसमें ऐसा करने की हिम्मत होती है। ‘मुझे माफ कर दो’ कहने के बजाय, वह अपनी गलती पर परदा डालने की कोशिश करता है या दूसरे पर इलज़ाम लगाने लगता है। जब उसे ठेस पहुँचती है, तब शांति कायम करने के बजाय, वह या तो बेरूखी से बात करता है या बात करना बिलकुल ही बंद कर देता है। (सभो. 7:9) सच, घमंड शादीशुदा ज़िंदगी में ज़हर घोल देता है। इसलिए अच्छा होगा कि हम याद रखें, “परमेश्वर घमंडियों का सामना करता है, मगर नम्र लोगों को अपनी महा-कृपा देता है।”—याकू. 4:6.
15. समझाइए कि कैसे इफिसियों 4:26, 27 में दिया सिद्धांत, एक शादी-शुदा जोड़े को समस्या सुलझाने में मदद दे सकता है।
15 बेशक यह सोचना बेवकूफी होगी कि हममें घमंड की भावना नहीं आएगी। जब कभी पति-पत्नी में अनबन हो जाती है, तो घमंड को बीच में मत आने दीजिए, बल्कि समस्या को जल्द-से-जल्द सुलझाने की कोशिश कीजिए। पौलुस ने मसीहियों से कहा, “सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा बना न रहे, न ही शैतान को मौका दो।” (इफि. 4:26, 27) परमेश्वर के वचन में दी सलाह पर न चलने से हमारा ही नुकसान होता है। एक बहन दुख के साथ कहती है, “कभी-कभार ऐसा हुआ है कि मैंने और मेरे पति ने इफिसियों 4:26, 27 में दी सलाह नहीं मानी। जब-जब ऐसा हुआ, मैं पूरी रात ठीक से सो नहीं पायी!” कितना अच्छा होगा अगर हम जल्द-से-जल्द सुलह कर लें! लेकिन कई बार पति-पत्नी के लिए एक-दूसरे को कुछ वक्त देना अच्छा होता है, ताकि वे शांत हो जाएँ। उन्हें नम्र बने रहने के लिए यहोवा से प्रार्थना भी करनी चाहिए। इससे उन्हें खुद पर नहीं बल्कि समस्या को सुलझाने पर ध्यान देने में मदद मिलेगी।—कुलुस्सियों 3:12, 13 पढ़िए।
16. नम्र होने से कैसे पति-पत्नी एक-दूसरे की खूबियों और काबिलीयतों की कदर कर पाएँगे?
16 नम्रता और मर्यादा का गुण एक शादी-शुदा जोड़े को एक-दूसरे की खूबियों और काबिलीयतों पर ध्यान देने में मदद देता है। मिसाल के लिए, हो सकता है एक पत्नी में कुछ खास काबिलीयतें हों, जिनका इस्तेमाल वह अपने परिवार की भलाई के लिए करती हो। अगर उसका पति नम्र होगा और अपनी हदें पहचानता होगा, तो वह ऐसा नहीं सोचेगा कि उसे हर काम में अपनी पत्नी से आगे होना चाहिए। इसके बजाय, वह उसका हौसला बढ़ाएगा कि वह इसी तरह अपनी काबिलीयतों का इस्तेमाल करती रहे। इस तरह वह दिखाएगा कि वह उसकी कदर करता है और उससे प्यार करता है। (नीति. 31:10, 28; इफि. 5:28, 29) साथ ही, अपनी मर्यादा में रहनेवाली एक नम्र पत्नी अपनी काबिलीयतों का बखान नहीं करेगी, न ही वह अपने पति को नीचा दिखाएगी। वे दोनों “एक तन” हैं, इसलिए घमंड दिखाने से दोनों को ठेस पहुँच सकती है।—मत्ती 19:4, 5.
17. किस तरह एक जोड़ा अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी से खुशी पा सकता है और यहोवा की महिमा कर सकता है?
17 बेशक, आप चाहेंगे कि अब्राहम और सारा या इसहाक और रिबका की तरह, आपकी शादी-शुदा ज़िंदगी भी खुशियों से भरी हो, हमेशा कायम रहे और इससे यहोवा की महिमा हो। अगर आप ऐसा चाहते हैं, तो शादी के बारे में यहोवा का नज़रिए अपनाइए। अंदरूनी समझ और बुद्धि के लिए उसके वचन में झाँकिए। अपने साथी के अच्छे गुणों की कदर कीजिए, ताकि एक-दूसरे के लिए आपका प्यार बढ़ता रहे। (श्रेष्ठ. 8:6) नम्र बनने के लिए मेहनत कीजिए। अपने साथी का आदर कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो अपनी शादी से आपको तो खुशी होगी ही, साथ ही, स्वर्ग में रहनेवाले आपके पिता को भी खुशी होगी। (नीति. 27:11) बेशक, आपकी भावनाएँ भी उस पति की तरह होंगी जिसकी शादी को 27 साल हो चुके हैं। उसने लिखा, “मैं सोच भी नहीं सकता कि मेरी पत्नी के बगैर ज़िंदगी कैसी होती। दिन-ब-दिन हमारी शादी का बँधन मज़बूत होता जा रहा है। और इसकी वजह यही है कि हम दोनों यहोवा से प्यार करते हैं और हर दिन एक-दूसरे से बात करते हैं।”