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एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लो और एक-दूसरे की हिम्मत बँधाओ

एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लो और एक-दूसरे की हिम्मत बँधाओ

“आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें।”—इब्रा. 10:24.

1, 2. जब दूसरा विश्‍वयुद्ध खत्म होने पर था, तब 230 यहोवा के साक्षियों को किस बात ने मदद दी जिससे वे मौत के सफर से बच पाए?

 यह दूसरे विश्‍व युद्ध के खत्म होने के आस-पास की बात है। हिटलर की सेना युद्ध हार रही थी। नात्ज़ी सरकार ने उन हज़ारों कैदियों को जान से मार डालने का हुक्म दिया था, जो अभी तक यातना शिविरों में थे। साक्सनहाउसन शिविर के कैदियों को करीबी बंदरगाहों तक ले जाया जाना था और वहाँ उन्हें जहाज़ों में चढ़ाकर, उन जहाज़ों को डूबो दिया जाना था। यह उनके मनसूबे का एक हिस्सा था जो आगे चलकर ‘मौत का सफर’ कहलाया।

2 साक्सनहाउसन यातना शिविर से 33,000 कैदियों को 250 किलोमीटर दूर जर्मनी के लूबेक नाम के एक बंदरगाह शहर तक चलकर जाना था। इन कैदियों में छ: देशों से 230 यहोवा के साक्षी भी थे। सैनिकों ने साक्षियों को हुक्म दिया कि वे साथ-साथ चलें। बीमारी और कम खाना मिलने की वजह से सभी कैदियों की हालत कमज़ोर थी। लेकिन हमारे सभी भाई इस सफर में जिंदा बच गए। कैसे? उनमें से एक कैदी ने कहा: “हम लगातार एक-दूसरे की हिम्मत बँधाते रहे, ताकि हम हार न मानें।” परमेश्‍वर से मिली “ताकत जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है,” और एक-दूसरे के लिए उनके दिल में जो प्यार था, उस वजह से वे ज़िंदा बच पाए।—2 कुरिं. 4:7.

3. हमें क्यों एक-दूसरे का हौसला बढ़ाना चाहिए?

3 आज हम मौत के ऐसे किसी खौफनाक सफर पर नहीं हैं, मगर हाँ, हम कई चुनौतियों का सामना ज़रूर करते हैं। सन्‌ 1914 में परमेश्‍वर का राज शुरू होने के बाद, शैतान को स्वर्ग से धरती पर फेंक दिया गया। वह “बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्‍त बाकी रह गया है।” (प्रका. 12:7-9, 12) जैसे-जैसे यह दुनिया हर-मगिदोन की तरफ बढ़ रही है, शैतान हम पर आज़माइशें और दबाव ला रहा है, ताकि वह यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता कमज़ोर कर सके। इतना ही नहीं, हर दिन की चिंताएँ भी हमें बोझ से दबा देती हैं। (अय्यू. 14:1; सभो. 2:23) कभी-कभी ये सारी परेशानियाँ हमें इतना कमज़ोर कर सकती हैं कि हम चाहे कुछ भी करें, हम निराश हो ही जाते हैं। मिसाल के लिए, एक भाई ने सालों तक कई लोगों को यहोवा के वफादार बने रहने में मदद दी थी। लेकिन जब उसकी उम्र ढलने लगी, तो वह और उसकी पत्नी बीमार पड़ गए और वह बहुत ही हताश महसूस करने लगा। उस भाई की तरह, हम सभी को यहोवा से “वह ताकत” चाहिए “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।” साथ ही, हमें एक-दूसरे के हौसले की भी ज़रूरत है।

4. अगर हम दूसरों का हौसला बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें प्रेषित पौलुस की किस सलाह पर अमल करना चाहिए?

4 अगर हम चाहते हैं कि दूसरों को हमसे हौसला मिले, तो ज़रूरी है कि हम प्रेषित पौलुस की उस सलाह पर अमल करें, जो उसने इब्रानी मसीहियों को दी थी। उसने कहा था: “आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें, और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है। बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ, और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।” (इब्रा. 10:24, 25) इस खास सलाह पर हम कैसे अमल कर सकते हैं?

‘एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लो’

5. “एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी” लेने का क्या मतलब है? हम यह कैसे कर सकते हैं?

5 “एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी” लेने का मतलब है, “दूसरों की ज़रूरतों के बारे में सोचना।” अगर हम राज-घर में अपने भाई-बहनों को सिर्फ जल्दी में नमस्ते कह दें या उनसे सिर्फ गैर-ज़रूरी बातों के बारे में बात करें, तो क्या हम सचमुच में उनकी ज़रूरतें जान पाएँगे? शायद नहीं। बेशक हम इस बात का ध्यान रखेंगे कि हम ‘अपने काम से काम रखें’ और “दूसरों के मामलों में दखल” न दें। (1 थिस्स. 4:11; 1 तीमु. 5:13) लेकिन अगर हम अपने भाइयों का हौसला बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें उन्हें अच्छी तरह जानना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि हम उनके हालात, गुण, उनकी आध्यात्मिकता, उनकी अच्छाइयों और कमज़ोरियों से वाकिफ हों। हमें उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि हम उनके दोस्त हैं और उनसे बेहद प्यार करते हैं। इसके लिए अपने भाइयों के साथ समय बिताना ज़रूरी है, सिर्फ उस वक्‍त नहीं जब वे मुश्‍किल में होते हैं और हताश हो जाते हैं, बल्कि दूसरे मौकों पर भी।—रोमि. 12:13.

6. अपनी देख-रेख में सौंपी गयी भेड़ों में “गहरी दिलचस्पी” लेने में क्या बात एक प्राचीन की मदद करेगी?

6 मंडली के प्राचीनों को उकसाया गया है कि वे ‘परमेश्‍वर के झुंड की, जो उनकी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करें’ और ऐसा खुशी-खुशी और तत्परता के साथ करें। (1 पत. 5:1-3) लेकिन अगर वे उनकी देख-रेख में सौंपी गयी भेड़ों को अच्छी तरह जानेंगे ही नहीं, तो वे असरदार तरीके से अपनी चरवाही की ज़िम्मेदारी निभाएँगे कैसे? (नीतिवचन 27:23 पढ़िए।) अगर प्राचीन दिखाएँ कि वे अपने भाई-बहनों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार हैं और यह ज़ाहिर करें कि उन्हें भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताना अच्छा लगता है, तो मंडली के सदस्य ज़रूरत पड़ने पर बिना हिचकिचाए उनसे मदद माँग सकेंगे। इसके अलावा, वे आसानी से प्राचीनों को अपनी भावनाएँ और चिंताएँ बता पाएँगे। नतीजा, प्राचीन अपनी देख-रेख में सौंपी गयी भेड़ों में “गहरी दिलचस्पी” ले सकेंगे और उन्हें ज़रूरी मदद दे सकेंगे।

7. जो लोग मायूस हैं, उनकी ‘बिना सोचे-समझे बोली’ गयी बातों के बारे में हमें क्या याद रखना चाहिए?

7 थिस्सलुनीकियों की मंडली को पौलुस ने कहा: “कमज़ोरों को सहारा दो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:14 पढ़िए।) “कमज़ोरों” में मायूस और हताश लोग भी शामिल हैं। नीतिवचन 24:10 कहता है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्‍ति बहुत कम है।” गहरी निराशा में डूबा हुआ इंसान कभी-कभी ‘बिना सोचे-समझे बोल’ देता है। (अय्यू. 6:2, 3, वाल्द-बुल्के अनुवाद) ऐसे लोगों में “गहरी दिलचस्पी” लेते वक्‍त, हमें यह याद रखना चाहिए कि कई बार वे जो बात कह देते हैं, उनके कहने का वह मतलब नहीं होता। रशेल ने, जिसकी माँ लंबे समय से गहरी निराशा से जूझ रही थी, खुद अपनी ज़िंदगी में इस बात का अनुभव किया। वह कहती है: “कई बार माँ मुझे कुछ बुरा-भला कह देती। लेकिन ऐसे में ज़्यादातर मैं खुद को याद दिलाने की कोशिश करती कि माँ का स्वभाव असल में कैसा है, कि वह बहुत प्यारी और दयालु है। मैंने सीखा कि गहरी निराशा से गुज़र रहे लोग कई बार ऐसी बातें कह देते हैं, जो वे कहना नहीं चाहते। ऐसे लोगों के साथ पेश आने का सबसे बदतर तरीका होगा, बदले में कुछ बुरा कहना या करना।” नीतिवचन 19:11 कहता है: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।”

8. हमें खासकर किन्हें अपने प्यार का “सबूत” देना चाहिए? और क्यों?

8 हम एक ऐसे भाई में “गहरी दिलचस्पी” कैसे ले सकते हैं, जो अपनी किसी बीती गलती की वजह से हताश है? हालाँकि उसने अपनी गलती सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए हों, मगर हो सकता है वह फिर भी शर्मिंदा महसूस कर रहा हो। पौलुस ने कुरिंथ के भाइयों को मंडली के एक ऐसे भाई के बारे में लिखा, जिसने अपनी गलती पर पश्‍चाताप किया था। उसने लिखा: “तुम्हें उसे कृपा दिखाते हुए माफ करना चाहिए और उसे दिलासा देना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वह आदमी हद-से-ज़्यादा उदासी में डूब जाए। इसलिए मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि तुम उस आदमी को अपने प्यार का सबूत दो।” (2 कुरिं. 2:7, 8) किसी चीज़ का “सबूत” देने का मतलब है, अपनी बातों और अपने कामों से उसे “दिखाना” या “ज़ाहिर करना।” तो अगर हम अपनी बातों और अपने कामों से यह दिखाएँगे ही नहीं कि हम फलाँ भाई से प्यार करते हैं और उसकी परवाह करते हैं, तो उसे इस बात का एहसास कैसे होगा?

‘प्यार और बढ़िया कामों में उकसाना’

9. “प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने” का क्या मतलब है?

9 पौलुस ने लिखा: “आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें।” यह हम कैसे कर सकते हैं? अपने भाई-बहनों को प्यार दिखाने और बढ़िया कामों में लगे रहने के लिए बढ़ावा देकर। जब एक चिंगारी बुझने पर हो, तो ज़रूरी है कि कोयले को हवा दी जाए। (2 तीमु. 1:6) उसी तरह, ऐसे कई तरीके हैं जिनसे हम अपने भाइयों को उकसा सकते हैं कि वे जोश के साथ परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहें। उनमें से एक अच्छा तरीका है, भाइयों के अच्छे कामों के लिए उनकी दिल से तारीफ करना।

दूसरों के साथ प्रचार में काम कीजिए

10, 11. (क) हममें से किन्हें तारीफ की ज़रूरत होती है? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे किसी की तारीफ करने से उसे सही काम करने का बढ़ावा मिल सकता है?

10 हम सभी को तारीफ के दो शब्द सुनने की ज़रूरत होती है, फिर चाहे हम हताश हों या न हों। एक भाई ने लिखा: “मेरे पिताजी ने कभी नहीं कहा कि मैंने कोई अच्छा काम किया है। इसलिए मैं आत्म-सम्मान की कमी के साथ ही पला-बढ़ा। . . . हालाँकि अब मेरी उम्र 50 साल है, मगर आज भी जब कभी मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं कि एक प्राचीन के नाते मैं अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहा हूँ, तो मुझे बहुत खुशी महसूस होती है। . . . मेरे अपने अनुभव से मैंने सीखा है कि दूसरों का हौसला बढ़ाना कितना ज़रूरी है, और ऐसा करने के लिए मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता हूँ।” जी हाँ, जब कोई हमारी तारीफ करता है, तो वाकई हमारे अंदर जोश भर जाता है। यह बात पायनियरों, बुज़ुर्गों और हताश लोगों के बारे में भी सच है।—रोमि. 12:10.

11 जब प्राचीन किसी ऐसे इंसान की मदद करते हैं जिसने कुछ गलत काम किया है, तो उसके अच्छे कामों के लिए उसकी तारीफ करने से उसे बढ़ावा मिल सकता है कि वह अपनी सोच बदले और सही काम करे। (गला. 6:1) इसी बात से मिरयीम नाम की एक बहन को मदद मिली। वह लिखती है: “मेरी ज़िंदगी की सबसे दर्दनाक घड़ी थी, जब मेरे कुछ करीबी दोस्तों ने सच्चाई की राह पर चलना छोड़ दिया और उसी दौरान मेरे पिता को मस्तिष्क रक्‍तस्राव हो गया। मैं बहुत निराश हो गयी। अपनी निराशा पर काबू पाने के इरादे से मैं एक ऐसे लड़के के साथ घूमने लगी जो सच्चाई में नहीं था।” इसका नतीजा यह हुआ कि वह महसूस करने लगी कि वह यहोवा के प्यार के लायक नहीं है और उसने सच्चाई छोड़ देने का फैसला किया। लेकिन तब एक प्राचीन ने उसे वह सब याद दिलाया, जो उसने यहोवा की सेवा में किया था और उसे यकीन दिलाया कि यहोवा उससे अब भी प्यार करता है। नतीजा, यहोवा के लिए उसके दिल में प्यार फिर से जाग उठा। उसने उस दुनियावी लड़के से नाता तोड़ दिया और यहोवा की सेवा करना जारी रखा।

प्यार और बढ़िया कामों में उकसाइए

12. अगर हम अपने भाइयों की दूसरों से तुलना करें, उनकी नुकताचीनी करें या उन्हें दोषी महसूस कराएँ, तो क्या हो सकता है?

12 हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने भाइयों को जोश के साथ यहोवा की सेवा करते रहने के लिए किस तरह ‘उकसाते’ हैं। हमें उनकी दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए, हमारे बनाए गए नियमों को न मानने पर उनकी नुकताचीनी नहीं करनी चाहिए या उन्हें यह एहसास दिलाकर दोषी महसूस नहीं कराना चाहिए कि वे परमेश्‍वर की सेवा में ज़्यादा नहीं कर रहे। क्योंकि इससे शायद वे थोड़े समय के लिए अच्छा करने लगें, लेकिन इसका असर ज़्यादा समय तक नहीं रहेगा। अपने भाइयों को “उकसाने” का सबसे उम्दा तरीका है, उनकी तारीफ करना और उन्हें यह एहसास दिलाना कि यहोवा के लिए प्यार की खातिर ही हम उसकी सेवा में अपना भरसक करना चाहते हैं।—फिलिप्पियों 2:1-4 पढ़िए।

‘एक-दूसरे की हिम्मत बंधाओ’

13. दूसरों की हिम्मत बँधाने का क्या मतलब है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

13 आखिर में, पौलुस ने कहा कि हम ‘एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ।’ दूसरों की हिम्मत बँधाने की तुलना हम आग में कोयला डालने से कर सकते हैं। जब हम आग में कोयला डालते हैं, तो वह जलती रहती है या और भी तेज़ जलने लगती है। अपने भाइयों की हिम्मत बँधाने का मतलब है, उन्हें मज़बूत करना और उन्हें दिलासा देना, ताकि वे परमेश्‍वर की सेवा करते रहें। जब हम निराश लोगों की मदद करते हैं, तो हमें उनसे प्यार और कोमलता से बात करनी चाहिए। (नीति. 12:18) और-तो-और, हमें “सुनने में फुर्ती” करनी चाहिए और “बोलने में सब्र।” (याकू. 1:19) अगर हम अपने भाई की बात सुनें और यह समझने की कोशिश करें कि वह कैसा महसूस कर रहा है, तो शायद हम यह पता लगा पाएँ कि वह क्यों निराश है। और फिर शायद हम उससे कुछ ऐसा कह पाएँ, जिससे उसे मदद मिले।

भाइयों को जानने के लिए उनके साथ वक्‍त बिताइए

14. एक प्राचीन ने कैसे एक भाई की मदद की जो निराश था?

14 गौर कीजिए कि एक दयालु प्राचीन ने कैसे एक भाई की मदद की, जो कई सालों से यहोवा की सेवा में ठंडा पड़ा हुआ था। जब इस प्राचीन ने उस भाई की बात सुनी, तो उन्हें यह पता चला कि वह भाई अब भी यहोवा से बहुत प्यार करता है। वह प्रहरीदुर्ग के हर अंक का अध्ययन करता था और हर सभा में हाज़िर होने के लिए मेहनत करता था। मगर मंडली के कुछ भाइयों ने कुछ ऐसा काम किया था, जिसकी वजह से यह भाई निराश हो गया था। उस प्राचीन ने झट से किसी नतीजे पर पहुँचने के बजाय, बड़े गौर से उस भाई की बात सुनी, और उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश की। फिर उन्होंने उस भाई को यकीन दिलाया कि मंडली के भाई-बहन अब भी उससे और उसके परिवार से प्यार करते हैं। वक्‍त के चलते, भाई को एहसास हुआ कि बीते दिनों के बुरे अनुभवों की वजह से वह उस परमेश्‍वर से दूर जा रहा है जिससे वह बहुत प्यार करता है। उस प्राचीन ने उसे अपने साथ प्रचार में आने का न्यौता दिया। प्राचीन की मदद से वह फिर से जोश के साथ प्रचार करने लगा और आगे चलकर वह फिर से एक प्राचीन के तौर पर सेवा करने लगा।

जिस इंसान को हौसले की ज़रूरत है, उसकी बात सब्र से सुनिए (पैराग्राफ 14, 15 देखिए)

15. निराश लोगों की हिम्मत बँधाने के बारे में हम यहोवा से क्या सीख सकते हैं?

15 एक निराश इंसान शायद तुरंत बेहतर महसूस न करे या पहली दफा में ही हमारी मदद कबूल न करे। हमें शायद कुछ समय तक उसे सहारा देते रहना होगा। पौलुस ने कहा: “कमज़ोरों को सहारा दो, और सबके साथ सहनशीलता से पेश आओ।” (1 थिस्स. 5:14) कमज़ोरों की मदद करते वक्‍त जल्दी से हार मानने के बजाए, आइए हम उन्हें ‘सहारा देकर’ उनकी मदद करते रहें। बीते ज़माने में, यहोवा अपने उन सेवकों के साथ सब्र से पेश आया जो निराश हो गए थे। उदाहरण के लिए, यहोवा एलिय्याह के साथ बड़े सब्र से पेश आया और उसकी भावनाओं की कदर की। यहोवा की सेवा करते रहने के लिए एलिय्याह को जो चीज़ें चाहिए थीं, वह सब यहोवा ने उसे दीं। (1 राजा 19:1-18) दूसरा उदाहरण है, दाविद का। दाविद ने अपने किए पर सच्चा पश्‍चाताप दिखाया। यह देखकर यहोवा ने उसे माफ कर दिया। (भज. 51:7, 17) परमेश्‍वर ने भजन 73 के रचयिता की भी मदद की, जिसने उसकी सेवा करनी लगभग छोड़ दी थी। (भज. 73:13, 16, 17) यहोवा हमारे साथ भी प्यार और सब्र से पेश आता है, खासकर जब हम निराश होते हैं। (निर्ग. 34:6) बाइबल कहती है कि उसकी दया ‘प्रति भोर नई होती रहती है’ और “अनन्त है।” (विला. 3:22, 23, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) यहोवा हमसे उम्मीद करता है कि हम उसकी मिसाल पर चलें और निराश लोगों के साथ प्यार और दया से पेश आएँ।

जीवन की राह पर बने रहने के लिए एक-दूसरे की हिम्मत बँधाइए

16, 17. जैसे-जैसे इस व्यवस्था का अंत नज़दीक आ रहा है, हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए? और क्यों?

16 साक्सनहाउसन यातना शिविर से निकले 33,000 कैदियों में से हज़ारों कैदी मारे गए। मगर जो 230 यहोवा के साक्षी उस यातना शिविर से निकले थे, वे सभी-के-सभी ज़िंदा बच गए। एक-दूसरे से उन्हें जो हिम्मत और सहारा मिला, उसी की बदौलत ‘मौत का सफर’ उनके लिए ज़िंदगी का सफर साबित हुआ।

17 आज हम भी ‘जीवन की तरफ ले जानेवाले रास्ते पर’ हैं। (मत्ती 7:14) जल्द ही, यहोवा के सारे उपासक साथ-साथ नयी दुनिया में जाएँगे, जहाँ न्याय का बसेरा होगा। (2 पत. 3:13) जैसे-जैसे शैतान की दुष्ट व्यवस्था का अंत नज़दीक आ रहा है, आइए हम ठान लें कि हमेशा की ज़िंदगी की तरफ ले जानेवाले रास्ते पर चलने में हम एक-दूसरे की मदद करते रहेंगे।