यहोवा की चितौनियों को अपने हृदय के हर्ष का कारण बनाइए
“मैं ने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है।”—भज. 119:111.
1. (क) लोग सलाह मिलने पर किस तरह का रवैया दिखाते हैं, और क्यों? (ख) एक घमंडी इंसान सलाह मिलने पर कैसा रवैया दिखाता है?
जब लोगों को कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे अलग-अलग रवैया दिखाते हैं। मिसाल के लिए, अगर अधिकार रखनेवाला कोई व्यक्ति हमसे कुछ करने के लिए कहे, तो हम शायद फौरन उसकी बात मानने के लिए तैयार हो जाएँ। लेकिन अगर हमारी ही उम्र का कोई व्यक्ति या फिर जो हमसे कम अधिकार रखता है, हमें सलाह दे, तो शायद हम झट-से उसकी सलाह ठुकरा दें। जब लोगों को ताड़ना या सलाह दी जाती है, तो हो सकता है उनमें से कुछ दुखी हो जाएँ, निराश हो जाएँ, या शर्मिंदा महसूस करें। जबकि दूसरों में शायद कुछ करने का जोश भर आए, उनका हौसला बुलंद हो जाए और वे और भी बेहतर करना चाहें। आखिर लोगों का रवैया एक-दूसरे से इतना अलग क्यों होता है? इसकी एक वजह है, घमंड। जब एक घमंडी इंसान को सलाह दी जाती है, तो उसे लगता है कि वह उस पर लागू नहीं होती और वह उसे ठुकरा देता है। नतीजा, उस सलाह से उसे कोई फायदा नहीं पहुँचता।—नीति. 16:18.
2. सच्चे मसीही परमेश्वर के वचन से मिलनेवाली सलाह की कदर क्यों करते हैं?
2 वहीं दूसरी तरफ, सच्चे मसीही मददगार सलाह की कदर करते हैं, खासकर तब जब वह सलाह परमेश्वर के वचन पर आधारित होती है। यहोवा की चितौनियाँ हमें अंदरूनी समझ देती हैं और हमें सिखाती हैं। साथ ही, ये हमारी मदद करती हैं कि हम धन-दौलत, लैंगिक अनैतिकता, ड्रग्स और शराब के गलत इस्तेमाल करने के जाल में फँसने से बचें। (नीति. 20:1; 2 कुरिं. 7:1; 1 थिस्स. 4:3-5; 1 तीमु. 6:6-11) और-तो-और, यहोवा की चितौनियाँ मानने की वजह से हमारा दिल ‘हर्षित’ होता है।—यशा. 65:14.
3. भजनहार के दिखाए किस रवैए पर अमल करना हमारे लिए अच्छा होगा?
3 अगर हम चाहते हैं कि स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता के साथ हमारा अनमोल रिश्ता बरकरार रहे, तो ज़रूरी है कि हम अपनी निजी ज़िंदगी में यहोवा की बुद्धि-भरी बातों पर अमल करें। कितना अच्छा होगा अगर हम भजनहार जैसा रवैया दिखाएँ, जिसने लिखा, “मैं ने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं।” (भज. 119:111) क्या भजनहार की तरह, हम भी यहोवा की आज्ञाएँ पूरी करने में खुशी पाते हैं या कभी-कभी वे हमें बोझ लगती हैं? हालाँकि कभी-कभी हमें दी जानेवाली सलाह नागवार लगे या पसंद न आए, मगर हमें निराश होने की ज़रूरत नहीं। हम परमेश्वर की महान बुद्धि पर अटूट भरोसा कायम कर सकते हैं। आइए तीन तरीके देखें कि यह हम कैसे कर सकते हैं?
प्रार्थना के ज़रिए भरोसा बढ़ाइए
4. वह क्या चीज़ थी, जो दाविद की ज़िंदगी में कभी नहीं बदली?
4 राजा दाविद की ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उसकी ज़िंदगी में एक चीज़ कभी नहीं बदली। वह थी, अपने सृष्टिकर्ता पर उसका पूरा भरोसा। दाविद ने कहा: “हे यहोवा मैं अपने मन को तेरी ओर उठाता हूं। हे मेरे परमेश्वर, मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है।” (भज. 25:1, 2) स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता पर इतना भरोसा रखने में किस बात ने दाविद की मदद की?
5, 6. दाविद की प्रार्थनाएँ यहोवा के साथ उसके रिश्ते के बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?
5 बहुत-से लोग परमेश्वर से तभी प्रार्थना करते हैं जब वे किसी मुश्किल में होते हैं। मान लीजिए, आपका कोई दोस्त या रिश्तेदार आपसे सिर्फ तभी बात करता है, जब उसे पैसे की ज़रूरत होती है या आपसे कोई काम होता है। कुछ समय बाद, आप शायद उसके इरादे पर शक करने लगें। लेकिन दाविद ऐसा नहीं था। अच्छे और बुरे दोनों समय में, यहाँ तक कि पूरी ज़िंदगी दाविद ने अपनी प्रार्थनाओं से दिखाया कि वह दिल से यहोवा से प्यार करता था और उस पर भरोसा रखता था।—भज. 40:8.
6 ध्यान दीजिए, दाविद ने किन शब्दों में यहोवा की स्तुति की और उसे धन्यवाद दिया: “हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना विभव स्वर्ग पर दिखाया है।” (भज. 8:1) क्या आप दाविद के इन शब्दों से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ उसकी कितनी गहरी दोस्ती थी? यहोवा की महानता और महिमा ने दाविद पर ऐसी छाप छोड़ी कि वह “दिन भर” यहोवा की स्तुति करने के लिए प्रेरित हुआ।—भज. 35:28.
7. यहोवा से लगातार प्रार्थना करने से हमें कैसे फायदा होता है?
7 अगर हम यहोवा पर अपना भरोसा बढ़ाना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम दाविद की तरह, लगातार यहोवा से बात करें। बाइबल कहती है, “परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।” (याकू. 4:8) यहोवा से प्रार्थना करने से हम उसके करीब आते हैं। और प्रार्थना करना, पवित्र शक्ति पाने का एक अहम तरीका भी है।—1 यूहन्ना 3:22 पढ़िए।
8. हमें अपनी प्रार्थनाओं में हमेशा एक ही तरह के शब्दों का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए?
8 जब भी आप प्रार्थना करते हैं, तो क्या आप हमेशा एक ही तरह के शब्दों या वाक्यों का इस्तेमाल करते हैं? अगर ऐसा है, तो क्यों न आप प्रार्थना करने से पहले, कुछ वक्त निकालकर सोचें कि आप किस बारे में यहोवा से बात करना चाहते हैं। सोचिए अगर हम अपने किसी दोस्त से बात करते वक्त हर समय वही रटे-रटाए शब्द कहें, तो क्या उसे अच्छा लगेगा? शायद वह आपकी बात सुनना ही न चाहे। बेशक, यहोवा अपने वफादार सेवकों की दिल से की गयी प्रार्थना को कभी नहीं ठुकराता, मगर कितना अच्छा होगा अगर हम यहोवा से प्रार्थना करते वक्त वही रटी-रटायी बातें न दोहराएँ।
9, 10. (क) हम अपनी प्रार्थनाओं में किन बातों को शामिल कर सकते हैं? (ख) क्या बातें हमें दिल से प्रार्थना करने में मदद दे सकती हैं?
9 ज़ाहिर है अगर हम परमेश्वर के करीब आना चाहते हैं, तो हमें अपनी प्रार्थनाओं में सिर्फ आम बातों का ज़िक्र नहीं करना चाहिए। जितना ज़्यादा हम दिल खोलकर यहोवा से बात करेंगे, उतना ज़्यादा हम उसके करीब आएँगे और उतना ही ज़्यादा हम उस पर भरोसा कर पाएँगे। हमारी प्रार्थनाओं में क्या बातें शामिल होनी चाहिए? परमेश्वर का वचन जवाब देता है: “हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो।” (फिलि. 4:6) जी हाँ, ऐसी कोई भी बात जिसका असर परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते पर पड़ता है या उसके सेवक होने के नाते हमारी ज़िंदगी पर पड़ता है, उस विषय पर प्रार्थना करना सही होगा।
10 बाइबल में दर्ज़ वफादार स्त्री-पुरुषों की प्रार्थनाओं पर गौर करने से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। (1 शमू. 1:10, 11; प्रेषि. 4:24-31) भजन की किताब में यहोवा को दिल से की गयी ढेरों प्रार्थनाएँ और गीत दर्ज़ हैं। इन प्रार्थनाओं और गीतों में दर्द से लेकर खुशी तक, हर तरह की भावनाएँ पायी जा सकती हैं। वफादार जनों की इन प्रार्थनाओं की करीबी से जाँच करने से हमें मदद मिलेगी कि हम यहोवा से ऐसी प्रार्थनाएँ करें, जो यहोवा के दिल को छू जाएँ।
यहोवा की चितौनियों पर मनन कीजिए
11. हमें बाइबल में दी सलाहों पर क्यों मनन करना चाहिए?
11 दाविद ने कहा: “यहोवा के नियम [“चितौनियाँ,” एन.डब्ल्यू.] विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं।” (भज. 19:7) जी हाँ, हम चाहे साधारण इंसान क्यों न हों, यहोवा की आज्ञाएँ मानने से हम बुद्धिमान बन सकते हैं। लेकिन बाइबल में दी कुछ सलाहें ऐसी हैं, जिन पर मनन करने से ही हम अपनी ज़िंदगी में आनेवाले अलग-अलग हालात में वफादार रह पाएँगे। मिसाल के लिए, बाइबल सिद्धांतों पर मनन करने से आपको उस वक्त खराई बनाए रखने में मदद मिलेगी, जब आप पर स्कूल में या काम की जगह पर कुछ गलत काम करने का दबाव आता है। इसके अलावा, बाइबल सिद्धांतों पर मनन करने से आपको खून न लेने, मसीही निष्पक्षता बनाए रखने और पहनावे और बनाव-सिंगार के मामले में भी सही फैसले लेने में मदद मिलेगी। इन मामलों के बारे में परमेश्वर का नज़रिया जानने से हम इन हालात के लिए तैयार रह पाएँगे। कैसे? हम पहले से तय कर पाएँगे कि फलाँ हालात में हम क्या फैसला लेंगे। इस तरह पहले से सोचने और तैयारी करने से हम गलतियाँ करने से बच पाएँगे।—नीति. 15:28.
12. किन सवालों के बारे में सोचने से हमें परमेश्वर की चितौनियों को मानने में मदद मिलेगी?
12 आज जब हम परमेश्वर के वादों के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, तो क्या हम दिखा रहे हैं कि इन वादों पर हमारा विश्वास अब भी मज़बूत है और परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना आज भी हमारी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है? उदाहरण के लिए, क्या हम सचमुच विश्वास करते हैं कि महानगरी बैबिलोन का जल्द ही नाश हो जाएगा? भविष्य में मिलनेवाली आशीषें, जैसे धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी और पुनरुत्थान की आशा, क्या आज भी हमारे लिए उतनी ही असल हैं, जितनी कि उस वक्त थीं, जब हमने पहली बार इनके बारे में सीखा था? क्या हमने प्रचार के लिए अपना जोश बरकरार रखा है या हमारी ख्वाहिशें ज़िंदगी में पहली जगह पर आ गयी हैं? यहोवा के नाम का पवित्र किया जाना और उसकी हुकूमत को बुलंद करना, क्या आज भी हमारे लिए बहुत मायने रखता है? इन सवालों के बारे में गहराई से सोचने से हमें मदद मिलेगी कि हम परमेश्वर की “चितौनियों को सदा के लिए अपना निज भाग” बना लें।—भज. 119:111.
13. पहली सदी के मसीहियों को क्यों कुछ बातें समझने में मुश्किल लगीं? एक मिसाल दीजिए।
13 बाइबल में दी कुछ बातें शायद आज हमें पूरी तरह समझ न आएँ, क्योंकि उनके बारे में हमें साफ समझ देने का यहोवा का वक्त अभी नहीं आया है। यीशु ने अपने प्रेषितों को कई बार बताया कि उसका दुख झेलना और मरना ज़रूरी है। (मत्ती 12:40; 16:21 पढ़िए।) मगर प्रेषित समझ नहीं सके कि वह दरअसल क्या कहना चाह रहा था। वे उसकी बात तभी समझे जब यीशु का पुनरुत्थान हुआ, वह अपने चेलों को दिखायी दिया और “उसने शास्त्रों का मतलब समझने के लिए उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए।” (लूका 24:44-46; प्रेषि. 1:3) उसी तरह, जब तक कि ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन उन पर पवित्र शक्ति नहीं उँडेली गयी, तब तक मसीह के चेले यह समझ न सके कि परमेश्वर का राज स्वर्ग से राज करेगा।—प्रेषि. 1:6-8.
14. बीसवीं सदी की शुरूआत में हमारे भाइयों ने क्या अच्छी मिसाल रखी?
14 उसी तरह, बीसवीं सदी की शुरूआत में, सच्चे मसीही “आखिरी दिनों” के बारे में गलत उम्मीदें लगाए हुए थे। (2 तीमु. 3:1) मिसाल के लिए, सन् 1914 में कुछ मसीहियों को लगा कि उन्हें जल्द ही स्वर्ग उठा लिया जाएगा, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर भी, उन मसीहियों ने शास्त्र का अध्ययन करना जारी रखा और उन्हें एहसास हुआ कि पहले बड़े पैमाने पर प्रचार काम किया जाना है। (मर. ) इसलिए सन् 1922 में भाई जे. एफ. रदरफर्ड ने, जो उस वक्त प्रचार काम में अगुवाई ले रहे थे, अमरीका के सीडर पॉइंट, ओहायो में रखे गए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में हाज़िर लोगों से कहा: “देखो, राजा राज करता है! तुम उसके प्रचारक हो। इसलिए राजा और उसके राज का ऐलान करो, ऐलान करो, ऐलान करो।” उस वक्त से, “राज की खुशखबरी” का प्रचार करना आज के ज़माने के यहोवा के सेवकों की पहचान बन गया।— 13:10मत्ती 4:23; 24:14.
15. यहोवा ने अपने लोगों के लिए जो किया है, उस बात पर मनन करना हमारे लिए क्यों फायदेमंद है?
15 यहोवा ने जिस बेहतरीन तरीके से अपने लोगों से किए वादों को पूरा किया है और आज भी कर रहा है, उन पर मनन करना हमारे लिए फायदेमंद है। इससे हमारा इस बात पर यकीन और भी बढ़ता है कि यहोवा अपनी मरज़ी पूरी करने और भविष्य में अपना मकसद पूरा करने के काबिल है। इतना ही नहीं, परमेश्वर की चितौनियाँ हमारी मदद करती हैं कि हम अपने दिलो-दिमाग में उसकी भविष्यवाणियों को तरो-ताज़ा रखें, जो आगे चलकर पूरी होनेवाली हैं। हम यकीन रख सकते हैं कि ऐसा करने से हमें उसके वादों पर और भी भरोसा करने में मदद मिलेगी।
यहोवा की उपासना करते हुए, उस पर अपना भरोसा बढ़ाइए
16. परमेश्वर की सेवा में कड़ी मेहनत करने से क्या आशीषें मिलती हैं?
16 हमारा परमेश्वर यहोवा एक मेहनती परमेश्वर है। वह काम करने से कभी नहीं थकता। भजनहार ने कहा: “हे याह, तेरे तुल्य कौन सामर्थी है?” उसने यह भी कहा: “तेरा हाथ शक्तिमान और तेरा दहिना हाथ प्रबल है।” (भज. 89:8, 13) क्योंकि यहोवा खुद काम करता रहता है, इसलिए राज के काम को आगे बढ़ाने में हम जो भी मेहनत करते हैं, वह उसकी कदर करता है और उसके लिए हमें आशीष देता है। वह देखता है कि उसके सभी सेवक, फिर चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, बूढ़े हों या जवान, “अपनी रोटी बिना परिश्रम” के नहीं खाते। वे मेहनत करते हैं। (नीति. ) जब हम अपने सृष्टिकर्ता की सेवा में व्यस्त रहते हैं, तो हम उसकी मिसाल पर चल रहे होते हैं। उसकी सेवा में जितना हमसे हो सकता है, उतना करने से हमें भी खुशी होती है और यहोवा का दिल भी खुश होता है।— 31:27भजन 62:12 पढ़िए।
17, 18. यहोवा के निर्देश मानने से कैसे उस पर हमारा भरोसा बढ़ता है? एक उदाहरण दीजिए।
17 विश्वास के ये काम यहोवा पर हमारा भरोसा कैसे मज़बूत करते हैं? ज़रा सोचिए कि उस वक्त क्या हुआ था जब इसराएलियों का वादा किए गए देश में कदम रखने का वक्त आया। यहोवा ने वाचा का संदूक उठानेवाले याजकों को निर्देश दिया था कि वे यरदन नदी के बीचों-बीच जाकर खड़े हो जाएँ। लेकिन, जब लोग नदी के पास आए, तो उन्होंने देखा कि सावन की बारिश की वजह से नदी लबालब भरी है और पानी तेज़ी से बह रहा है। अब इसराएली क्या करते? क्या वे नदी किनारे डेरा डालकर हफ्तों इंतज़ार करते, जब तक कि पानी कम नहीं हो जाता? नहीं, इसके बजाय उन्होंने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा और उसके निर्देशों को माना। इसका क्या नतीजा हुआ? वाकया बताता है, ‘जब याजकों के पैर तट के जल में पड़े, तब ऐसा हुआ कि जलधारा थम गई।’ इसके बाद, ‘याजक यरदन के बीचोंबीच सूखी भूमि पर स्थिर खड़े रहे और समस्त इस्राएल सूखी भूमि पर से पार हुआ।’ (यहो. 3:12-17, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) ज़रा कल्पना कीजिए कि तेज़ी से बहते हुए पानी को थमते देख इसराएलियों में क्या ही खुशी की लहर दौड़ गयी होगी! वाकई, इसराएलियों का परमेश्वर पर भरोसा कितना बढ़ा होगा, क्योंकि उन्होंने उसके निर्देशों को माना।
18 यह सच है कि यहोवा आज अपने लोगों की खातिर ऐसे चमत्कार नहीं करता। लेकिन जब हम यहोवा पर विश्वास दिखाते हैं और उसके निर्देश मानते हैं, तो वह हमें आशीष ज़रूर देता है। परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमें हिम्मत देती है ताकि हम दुनिया-भर में राज के संदेश का प्रचार कर सकें। और यहोवा के खास गवाह, जी उठाए गए यीशु मसीह ने अपने चेलों को यकीन दिलाया कि इस ज़रूरी काम में वह उनका साथ देगा। उसने कहा: “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” उसने यह भी कहा: “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:19, 20) बहुत-से साक्षी जो शायद दूसरों से बात करते वक्त शर्माते या घबराते थे, उन्होंने अनुभव किया है कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति ने उन्हें इतनी हिम्मत दी है कि वे प्रचार में बिना डरे अजनबियों से बात कर पाते हैं।—भजन 119:46; 2 कुरिंथियों 4:7 पढ़िए।
19. अगर हम यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पाते जितना हम करना चाहते हैं, तौभी हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?
19 हमारे कई भाई-बहन ढलती उम्र या किसी बीमारी की वजह से यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पाते, जितना वे करना चाहते हैं। मगर वे यकीन रख सकते हैं कि ‘कोमल दया का पिता और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर’ उनके हालात अच्छी तरह समझता है। (2 कुरिं. 1:3) उसकी सेवा में हम जो भी करते हैं, वह उसकी कदर करता है। और हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि हमारा उद्धार खासकर मसीही के फिरौती बलिदान पर विश्वास दिखाने पर निर्भर करता है।—इब्रा. 10:39.
20, 21. कुछ तरीके क्या हैं, जिनसे हम यहोवा पर अपना भरोसा दिखा सकते हैं?
20 हमारी उपासना में, जितना हो सके अपना समय, ताकत और साधन लगाना शामिल है। जी हाँ, हम पूरे दिल से “प्रचारक का काम” करना चाहते हैं। (2 तीमु. 4:5) और सच तो यह है कि ऐसा करने में हमें खुशी भी होती है, क्योंकि इससे दूसरों को “सच्चाई का सही ज्ञान हासिल” करने में मदद मिलती है। (1 तीमु. 2:4) वाकई, यहोवा का आदर और स्तुति करने से हम उसकी नज़रों में धनी बनते हैं। (नीति. 10:22) साथ ही, ऐसा करने से हमें अपने सृष्टिकर्ता पर अटूट भरोसा बनाए रखने में मदद मिलती है।—रोमि. 8:35-39.
21 जैसे कि हमने चर्चा की, बुद्धि-भरी हिदायतें पाने के लिए यहोवा पर हमारा भरोसा अपने आप नहीं बढ़ता। इसके लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत है। इसलिए प्रार्थना के ज़रिए अपना भरोसा मज़बूत कीजिए। इस बात पर मनन कीजिए कि कैसे यहोवा ने बीते ज़माने में अपने वादे पूरे किए हैं, और कैसे वह भविष्य में भी करेगा। और यहोवा की उपासना करते हुए, उस पर अपना भरोसा बढ़ाते जाइए। याद रखिए, यहोवा की चितौनियाँ हमेशा के लिए बनी रहेंगी और अगर आप उन्हें मानें, तो आप भी हमेशा के लिए बने रहेंगे!