क्या आप राज के कामों के लिए त्याग करेंगे?
“परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”—2 कुरिं. 9:7.
1. कई लोग किस तरह के त्याग करते हैं? और क्यों?
लोगों के लिए जो बातें अहमियत रखती हैं, उनके लिए वे खुशी-खुशी कुछ भी त्याग करने को तैयार रहते हैं। माता-पिता अपने बच्चों के लिए अपना समय, पैसा और ताकत लगा देते हैं। आज जहाँ एक तरफ कुछ जवान खेलने और मौज-मस्ती करने में वक्त बिताते हैं, वहीं दूसरी तरफ, कुछ जवान खिलाड़ी जो अपने देश का नाम रोशन करने के लिए ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने की तमन्ना रखते हैं, वे हर दिन कई घंटे कड़ा अभ्यास करते हैं और प्रशिक्षण लेते हैं। यीशु ने भी उन बातों के लिए त्याग किए, जो उसके लिए अहमियत रखती थीं। उसका यह लक्ष्य कभी-भी नहीं था कि वह एक आराम-तलब ज़िंदगी जीए या उसके बच्चे हों। इसके बजाए, उसने राज के कामों को आगे बढ़ाने पर अपना पूरा ध्यान लगाए रखने का चुनाव किया। (मत्ती 4:17; लूका 9:58) यीशु के चेलों की ज़िंदगी में भी परमेश्वर का राज सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था, इसलिए उन्होंने इसके लिए बहुत-से त्याग या बलिदान किए। (मत्ती 4:18-22; 19:27) हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मेरी ज़िंदगी में क्या बात मायने रखती है?’
2. (क) सभी सच्चे मसीहियों के लिए कौन-से त्याग करने ज़रूरी हैं? (ख) इनके अलावा, कुछ मसीही और कौन-कौन-से त्याग कर पाते हैं?
2 कुछ तरह के बलिदान सभी सच्चे मसीहियों के लिए बेहद ज़रूरी हैं, ताकि वे यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता बना सकें और उसे कायम रख सकें। इनमें से कुछ हैं, अपना समय और ताकत प्रार्थना करने, बाइबल पढ़ने, पारिवारिक उपासना करने, सभाओं में हाज़िर होने और प्रचार करने में लगाना। * (यहो. 1:8; मत्ती 28:19, 20; इब्रा. 10:24, 25) हमारे त्याग और यहोवा की आशीष की वजह से ही, प्रचार काम रफ्तार पकड़ रहा है और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ पर उसकी उपासना करने के लिए आ रहे हैं। (यशा. 2:2) लेकिन इन ज़रूरी बलिदानों के अलावा कुछ और तरह के बलिदान भी हैं जो एक मसीही अपनी मरज़ी से कर सकता है। जैसे कई भाई-बहन बेथेल में सेवा करने, राज-घर और सम्मेलन भवन बनाने में मदद देने, अधिवेशनों का इंतज़ाम करने या राहत काम करने के लिए अपनी खुशी से त्याग करते हैं और इस तरह राज के काम में सहयोग देते हैं। हालाँकि ये बलिदान हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी नहीं हैं, लेकिन हाँ, राज के काम में सहयोग देने के लिए ये बहुत अहमियत रखते हैं।
3. (क) जब हम राज के कामों के लिए त्याग करते हैं, तो हमें कैसे फायदा होता है? (ख) हमें किन सवालों पर गौर करना चाहिए?
3 आज यह पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम राज के कामों को आगे बढ़ाने के लिए अपना भरसक करें। यह देखकर बहुत खुशी होती है कि कई मसीही यहोवा के लिए ऊपर बताए दूसरे तरह के बलिदान, यानी अपनी मरज़ी से बलिदान कर रहे हैं। (भजन 54:6 पढ़िए।) अगर हम भी परमेश्वर के राज के आने का इंतज़ार करते वक्त ऐसी त्याग की भावना दिखाएँ, तो हमें खुशी मिलेगी। (व्यव. 16:15; प्रेषि. 20:35) हम सभी के लिए यह ज़रूरी है कि हम खुद को करीबी से जाँचें। क्या हम और भी कुछ तरीकों से राज के काम के लिए बलिदान चढ़ा सकते हैं? हम अपना समय, पैसा, ताकत और काबिलीयतें कहाँ लगा रहे हैं? बलिदान चढ़ाते वक्त, हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? आइए चर्चा करें कि अपनी मरज़ी से चढ़ाए गए बलिदान के कुछ उदाहरणों से हम क्या सीख सकते हैं। इससे हमारी खुशी और भी बढ़ेगी।
प्राचीन इसराएल में चढ़ाए गए बलिदान
4. बलिदान चढ़ाने से इसराएलियों को कैसे फायदा होता था?
4 प्राचीन इसराएल के लोगों को अपने पापों की माफी पाने के लिए बलिदान चढ़ाना ज़रूरी था। ऐसा करने से ही वे यहोवा की मंज़ूरी पा सकते थे। कुछ बलिदान चढ़ाना एक माँग थी और कुछ बलिदान अपनी मरज़ी से चढ़ाए जा सकते थे। (लैव्य. 23:37, 38) होमबलि अपनी मरज़ी से या यहोवा के लिए तोहफे के रूप में चढ़ायी जा सकती थी। यहोवा को चढ़ाए बलिदानों में सबसे उम्दा उदाहरण है, सुलैमान के मंदिर के उद्घाटन के दौरान चढ़ाए गए बलिदान।—2 इति. 7:4-6.
5. यहोवा ने क्या इंतज़ाम किए थे ताकि गरीब लोग भी बलिदान चढ़ा सकें?
5 यहोवा इस बात को समझता था कि हर इसराएली एक-जैसा बलिदान नहीं चढ़ा सकता। वह उनका लिहाज़ करता था और इसलिए वह इसराएलियों से उसी चीज़ की माँग करता था, जो वे अपनी काबिलीयत के हिसाब से दे सकते थे। यहोवा के कानून में यह माँग की गयी थी कि जानवरों का बलिदान चढ़ाते वक्त उनका खून बहा दिया जाए। ये बलिदान यीशु के ज़रिए “आनेवाली अच्छी बातों की महज़ छाया” थे। (इब्रा. 10:1-4) लेकिन किस तरह का जानवर बलिदान चढ़ाया जाना चाहिए, इस मामले में यहोवा ने सख्ती नहीं बरती। उदाहरण के लिए, अगर कोई इसराएली बलिदान के तौर पर भेड़ या बकरी न चढ़ा सके, तो परमेश्वर पंडुकों का बलिदान भी कबूल कर लेता था। इस तरह, एक गरीब भी यहोवा को खुशी-खुशी बलिदान चढ़ा सकता था। (लैव्य. 1:3, 10, 14; 5:7) हालाँकि यहोवा अलग-अलग जानवरों के बलिदान कबूल कर लेता था, लेकिन अपनी मरज़ी से बलिदान चढ़ानेवाले हर व्यक्ति को दो माँगें पूरी करनी होती थीं।
6. बलिदान चढ़ानेवाले व्यक्ति से क्या दो माँगें की जाती थीं, और उन माँगों को पूरा करना कितना ज़रूरी था?
6 पहला, बलिदान चढ़ानेवाले व्यक्ति को अपने हालात के मुताबिक अपना उत्तम-से-उत्तम देना होता था। यहोवा ने इसराएल राष्ट्र से कहा था कि अगर बलिदान के लिए चढ़ाया जानेवाला जानवर बीमार होगा, या उसमें कोई खामी होगी, तो वह यहोवा को “ग्रहणयोग्य” नहीं होगा। (लैव्य. 22:18-20) दूसरा, बलिदान चढ़ानेवाले व्यक्ति को कानून में दिए स्तरों के मुताबिक शुद्ध होना था। अगर एक व्यक्ति अशुद्ध होता, तो उसे अपनी मरज़ी से भेंट चढ़ाने से पहले पापबलि या दोषबलि चढ़ानी थी, ताकि वह दोबारा यहोवा की मंज़ूरी पा सके। (लैव्य. 5:5, 6, 15) यह एक बहुत ही गंभीर मामला था। यहोवा ने आज्ञा दी थी कि अगर कोई अशुद्ध रहते मेलबलि में से खाए, जो अपनी मरज़ी से चढ़ाए गए बलिदानों में से एक था, तो वह यहोवा के लोगों में से नाश किया जाएगा। (लैव्य. 7:20, 21) दूसरी तरफ, जब बलिदान चढ़ानेवाला व्यक्ति यहोवा को कबूल होता और उसके बलिदान में कोई दोष नहीं होता, तो उसका ज़मीर साफ रहता और उसे बेहद खुशी होती।—1 इतिहास 29:9 पढ़िए।
आज चढ़ाए जानेवाले बलिदान
7, 8. (क) राज के कामों के लिए बलिदान करने से बहुतों को कैसे खुशी मिलती है? (ख) हमारे पास कौन-से साधन हैं जिन्हें हम यहोवा की सेवा में लगा सकते हैं?
7 ठीक जैसे पुराने ज़माने में इसराएली ज़रूरी बलिदानों के अलावा, अपनी मरज़ी से कुछ और बलिदान भी चढ़ाया करते थे, उसी तरह आज भी बहुत-से भाई-बहन अपनी मरज़ी से त्याग करने के लिए तैयार रहते हैं। कैसे? खुद को यहोवा की सेवा में पूरी तरह लगाकर। यहोवा को यह देखकर बेहद खुशी होती है। अपने भाइयों के लिए कड़ी मेहनत करने से हमें भी खुशी मिलती है। एक भाई की मिसाल पर गौर कीजिए जो राज-घर बनाने और कुदरती आफतों के शिकार लोगों की मदद करने के काम में हिस्सा लेता है। इस भाई का कहना है कि इस तरह अपने भाइयों की मदद करने से उसे जो खुशी मिलती है, वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। वह कहता है, “जब भाई-बहन अपने नए राज-घर में कदम रखते हैं या जब किसी प्राकृतिक विपत्ति के बाद उन्हें मदद मिलती है, तो उनके चेहरे पर खुशी और उनकी कदर देखकर, मुझे यकीन हो जाता है कि मेरी मेहनत बेकार नहीं गयी!”
8 आज के ज़माने में यहोवा का संगठन हमेशा से ही राज के कामों में सहयोग देने के अलग-अलग तरीके ढूँढ़ता आया है। सन् 1904 में, भाई सी. टी. रसल ने समझाया कि हममें से हरेक को अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हमारे साधन यहोवा की महिमा के लिए इस्तेमाल किए जाएँ, जिनमें हमारा समय, अधिकार और पैसा शामिल है। हालाँकि आज यहोवा को बलिदान चढ़ाने में कुछ त्याग भी करने होते हैं, लेकिन हमें इससे बहुत-सी आशीषें भी मिलती हैं। (2 शमू. 24:21-24) क्या हम यहोवा की सेवा में अपने साधनों का और भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं?
9. अपने समय का कैसे इस्तेमाल करें, इस मामले में हम लूका 10:2-4 में दिए सिद्धांत से क्या सीखते हैं?
9 हमारा समय। यहोवा की सेवा से जुड़े कई ज़रूरी काम करने में बहुत समय और मेहनत लगती है। इनमें से कुछ काम हैं, हमारे साहित्यों का अनुवाद और छपाई करना, राज-घर और सम्मेलन भवन बनाना, अधिवेशनों का इंतज़ाम करना, राहत काम में मदद देना, वगैरह। हम सभी के पास दिन में सिर्फ 24 घंटे होते हैं, लेकिन यीशु के बताए सिद्धांत को लागू करके हम अपने समय का बुद्धिमानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। जब यीशु ने अपने चेलों को प्रचार करने के लिए भेजा, तो उसने उनसे कहा, “राह में किसी को नमस्कार करने के लिए उसे गले” न लगाना। (लूका 10:2-4) यीशु ने ये हिदायतें क्यों दीं? बाइबल के एक विद्वान का कहना है: “पूरब के लोगों में हमारी तरह थोड़ा-सा झुकने या हाथ मिलाने जैसे अभिवादन नहीं होते थे। उनके अभिवादन में कई बार गले मिलना और झुकना, यहाँ तक कि ज़मीन पर पूरी तरह लेटकर दंडवत् करना भी शामिल था। इसमें काफी समय लग जाता था।” यीशु अपने चेलों को यह बढ़ावा नहीं दे रहा था कि वे दूसरों के साथ रुखाई से पेश आएँ। इसके बजाए, वह उन्हें यह समझने में मदद दे रहा था कि उनके पास थोड़ा ही समय है, इसलिए उन्हें अपने समय का सबसे सही तरीके से इस्तेमाल करना था और ज़्यादा ज़रूरी कामों को अहमियत देनी थी। (इफि. 5:16) क्या हम भी इस सिद्धांत को लागू कर सकते हैं, ताकि राज के कामों में सहयोग देने के लिए हमारे पास ज़्यादा समय हो?
10, 11. (क) कुछ उदाहरण दीजिए कि दुनिया-भर में हो रहे काम के लिए दिए गए हमारे दान का कैसे इस्तेमाल किया जाता है। (ख) 1 कुरिंथियों 16:1, 2 में दिया कौन-सा सिद्धांत हमारी मदद कर सकता है?
10 हमारा पैसा। राज के कामों को आगे बढ़ाने के लिए काफी पैसों की ज़रूरत होती है। हर साल सफरी निगरानों, खास पायनियरों और मिशनरियों के काम से जुड़े खर्च को पूरा करने में करोड़ों डॉलर लग जाते हैं। सन् 1999 से, ऐसे देशों में 24,500 से भी ज़्यादा राज-घर बनाए गए हैं, जहाँ हमारे भाइयों के पास कम साधन हैं। इसके बावजूद, अब भी करीब 6,400 राज-घरों की ज़रूरत है। हर महीने प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं की करीब 10 करोड़ कॉपियाँ छापी जाती हैं। इन सभी कामों का खर्च, अपनी मरज़ी से दिए गए आपके दान से चलाया जाता है।
11 यहोवा ने प्रेषित पौलुस को एक सिद्धांत लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसे हम उस वक्त ध्यान में रख सकते हैं, जब हम दान देने की सोच रहे होते हैं। (1 कुरिंथियों 16:1, 2 पढ़िए।) उसने कुरिंथ के भाइयों को बढ़ावा दिया कि वे यह देखने के लिए हफ्ते के आखिर तक इंतज़ार न करें कि उनके पास दान देने के लिए कितना पैसा बचा है। इसके बजाए, उसने उन्हें उकसाया कि वे हफ्ते की शुरूआत में ही अपने हालात के मुताबिक कुछ पैसा अलग जमा करें। पहली सदी की तरह, आज हमारे ज़माने में भी भाई-बहन पहले से योजना बनाते हैं कि कैसे वे अपने हालात के मुताबिक दान देकर उदारता दिखा सकते हैं। (लूका 21:1-4; प्रेषि. 4:32-35) यहोवा इस तरह की उदारता की कदर करता है।
12, 13. (क) कुछ लोग शायद क्यों राज के काम में अपनी ताकत और काबिलीयतें लगाने से पीछे हट जाते हैं? (ख) मगर यहोवा कैसे ऐसे लोगों की मदद कर सकता है?
12 हमारी ताकत और काबिलीयतें। जब हम राज के काम को आगे बढ़ाने के लिए अपनी ताकत और काबिलीयतें लगाने में मेहनत करते हैं, तो यहोवा हमारा साथ देता है। वह वादा करता है कि जब हम थक जाएँ, तो वह हमारी मदद करेगा। (यशा. 40:29-31) क्या हमें कभी महसूस होता है कि इस काम में अच्छी तरह योगदान देने के लिए हमारे पास ज़रूरी हुनर नहीं हैं? या क्या हमें लगता है कि दूसरे इस काम के लिए हमसे ज़्यादा काबिल हैं? याद रखिए कि यहोवा किसी के भी हुनर को और निखार सकता है, ठीक जैसे उसने बसलेल और ओहोलीआब के मामले में किया था।—निर्ग. 31:1-6; लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।
13 यहोवा हमें बढ़ावा देता है कि हम उसकी सेवा में अपना भरसक करें, और ऐसा करने से कभी पीछे न हटें। (नीति. 3:27) जब यरूशलेम का मंदिर दोबारा बनाया जा रहा था, तब यहोवा ने वहाँ रहनेवाले यहूदियों से इस बारे में गंभीरता से सोचने के लिए कहा कि वे निर्माण काम में सहयोग देने के लिए क्या कर रहे हैं। (हाग्गै 1:2-5) उनका ध्यान भटक गया था और वे यहोवा के काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं दे रहे थे। हमें खुद से पूछना चाहिए: क्या मैं अपनी ज़िंदगी में उन बातों को ज़्यादा अहमियत देता हूँ, जिन्हें यहोवा देता है? क्या हम अपने हालात का मुआयना कर सकते हैं, ताकि हम इन आखिरी दिनों में राज के कामों में ज़्यादा हिस्सा ले सकें?
हमारे पास जो है, उसी के मुताबिक बलिदान चढ़ाना
14, 15. (क) जिन भाइयों की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है, उनके उदाहरण से आपको क्या बढ़ावा मिला है? (ख) हमारी क्या इच्छा होनी चाहिए?
14 बहुत-से लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहाँ ज़िंदगी बसर करना बहुत मुश्किल है और गरीबी बहुत आम है। हमारे संगठन की यही कोशिश रहती है कि ऐसे देशों में रहनेवाले हमारे भाइयों की घटी को “पूरा” किया जाए। (2 कुरिं. 8:14) लेकिन जिन भाइयों की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है, वे भी दान देना एक सम्मान की बात समझते हैं। जब गरीब भाई-बहनों का दिल उन्हें खुशी-खुशी दान देने के लिए उभारता है, तो यह देखकर यहोवा को बहुत अच्छा लगता है।—2 कुरिं. 9:7.
15 अफ्रीका के एक बेहद गरीब देश में, कुछ भाई अपने बगीचे का एक छोटा-सा हिस्सा अलग रखते हैं और वहाँ वे जो भी उगाते हैं, उस उपज को बेचकर मिलनेवाला पैसा वे राज के काम के लिए दान कर देते हैं। उसी देश के एक इलाके में एक राज-घर बनाने की योजना चल रही थी। और उस इलाके के भाई-बहन इस काम में हाथ बँटाना चाहते थे। लेकिन यह काम उस वक्त शुरू होनेवाला था, जब बोआई का मौसम होता। और उस वक्त ये भाई आम तौर पर बहुत व्यस्त होते हैं। फिर भी इन भाई-बहनों ने ठान लिया था कि वे मदद करने से पीछे नहीं हटेंगे। वे दिन के समय राज-घर बनाने के काम में हाथ बँटाते थे और शाम के समय वे बगीचे में काम करते थे, ताकि वे अपनी फसल उगा सकें। वाकई, इन भाई-बहनों ने त्याग की क्या ही ज़बरदस्त भावना दिखायी! ये भाई-बहन हमें पहली सदी के मकिदुनिया के भाइयों की याद दिलाते हैं। वे “घोर गरीबी” में जी रहे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने पौलुस से मिन्नतें कीं कि उन्हें अपने भाइयों के लिए दान करने का सम्मान दिया जाए। (2 कुरिं. 8:1-4) उसी तरह, आइए हममें से हरेक ‘उस आशीष के अनुसार दे जो यहोवा ने हमें दी है।’—व्यवस्थाविवरण 16:17 पढ़िए।
16. हम कैसे इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि हमारे बलिदान परमेश्वर को मंज़ूर हों?
16 लेकिन अपनी मरज़ी से बलिदान चढ़ाते वक्त, हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए। वह यह कि पुराने ज़माने के इसराएलियों की तरह, अपनी मरज़ी से चढ़ाए गए हमारे बलिदान परमेश्वर को मंज़ूर हों। हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा की उपासना और हमारे परिवार से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करना हमारे लिए सबसे ज़रूरी है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम दूसरों की खातिर इस कदर अपना समय और साधन लगा दें कि अपने परिवारवालों की आध्यात्मिक या खाने-पहनने की ज़रूरतों को ही नज़रअंदाज़ कर दें। क्योंकि ऐसा करके हम यहोवा को वह देने की कोशिश कर रहे होंगे जो हमारे पास है ही नहीं। (2 कुरिंथियों 8:12 पढ़िए।) इसके अलावा, हमें खुद की आध्यात्मिकता भी बनाए रखनी चाहिए। (1 कुरिं. 9:26, 27) लेकिन यकीन रखिए कि जब हम बाइबल स्तरों के मुताबिक जीते हैं, तो हमारे बलिदानों से हमें खुशी और संतुष्टि तो होगी ही, साथ ही, ये बलिदान यहोवा को भी “मंज़ूर” होंगे।
हमारे बलिदान बहुत अनमोल हैं
17, 18. आज जो राज के लिए त्याग कर रहे हैं, उनके बारे में हम कैसा महसूस करते हैं? और हम सभी को किस बारे में सोचना चाहिए?
17 हमारे कई भाई-बहन राज के कामों में सहयोग देने के लिए ‘खुद को अर्घ की तरह उंडेल’ देते हैं। (फिलि. 2:17) जो भाई-बहन ऐसी त्याग की भावना दिखाते हैं, हम उनकी दिल से कदर करते हैं। और जो भाई राज के काम में अगुवाई लेते हैं, उनकी पत्नियों और बच्चों की उदारता और त्याग की भावना की भी हम तारीफ करते हैं।
18 राज के काम का साथ देने में बहुत मेहनत लगती है। आइए हम प्रार्थना करें और गहराई से सोचें कि हम यहोवा की सेवा में कैसे ज़्यादा-से-ज़्यादा कर सकते हैं। अगर हम ऐसा करें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि हमें आज भी बहुत आशीषें मिलेंगी और “आनेवाली दुनिया में” भी इससे कई गुना ज़्यादा आशीषें मिलेंगी!—मर. 10:28-30.
^ 15 जनवरी, 2012 की प्रहरीदुर्ग के पेज 21-25 पर दिया लेख, “तन-मन से यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाना” देखिए।