कोई भी दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता
“कोई भी दो मालिकों का दास बनकर सेवा नहीं कर सकता . . . तुम परमेश्वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।”—मत्ती 6:24.
1-3. (क) बहुत-से परिवार किन आर्थिक हालात का सामना करते हैं? (ख) वे कैसे उनसे निपटने की कोशिश करते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ग) जब माता-पिता विदेश जाकर पैसा कमाने की सोचते हैं, तो उन्हें बच्चों की परवरिश से जुड़ी क्या चिंताएँ होती हैं?
जूली नाम की एक बहन कहती है, “मेरे पति, जेम्स, हर दिन काम से थके-हारे घर लौटते थे। a लेकिन उनकी तनख्वाह से हम बस किसी तरह दो वक्त की रोटी ही जुटा पाते थे। मैं उनका बोझ हलका करना चाहती थी और हमारे बेटे जिम्मी के लिए कुछ अच्छी चीज़ें खरीदना चाहती थी, वैसी जैसे उसके स्कूल के दोस्तों के पास थीं।” जूली अपने रिश्तेदारों की भी आर्थिक रूप से मदद करना चाहती थी और भविष्य के लिए कुछ पैसे जोड़ना चाहती थी। उसके कई दोस्त पैसे कमाने के लिए विदेश चले गए थे। मगर जब जूली ने अपने परिवार से बिछड़कर विदेश जाने के बारे में सोचा, तो उसके लिए फैसला करना बहुत मुश्किल था। क्यों?
2 जूली यह सोचकर परेशान थी कि अगर वह अपने प्यारे परिवार को छोड़कर चली गयी, तो इसका क्या अंजाम हो सकता है। वे हर हफ्ते एक परिवार के तौर पर मिलकर यहोवा की उपासना करते थे। अगर वह उनसे दूर चली गयी, तो वे साथ मिलकर उपासना कैसे करेंगे? लेकिन जूली यह भी सोच रही थी कि दूसरे भी तो कुछ समय के लिए अपने परिवार को छोड़कर विदेश गए थे। और फिर भी उनका परिवार यहोवा की सेवा में लगा रहा। क्या जूली वाकई इंटरनेट के ज़रिए अपने बेटे की परवरिश कर सकती थी और उसे यहोवा की सेवा करना सिखा सकती थी?—इफि. 6:4.
3 जूली ने इस मामले में दूसरों से सलाह ली। उसका पति नहीं चाहता था कि वह उन्हें छोड़कर जाए, पर उसने कहा कि अगर वह जाना चाहती है, तो वह उसे रोकेगा नहीं। प्राचीनों और मंडली के दूसरे सदस्यों ने उसे सलाह दी कि वह न जाए, लेकिन कुछ बहनों ने उससे कहा: “अगर तुम अपने परिवार से प्यार करती हो, तो तुम ज़रूर जाओगी। तुम वहाँ रहकर भी तो यहोवा की सेवा कर सकती हो।” हालाँकि वह अब भी कशमकश में थी, लेकिन फिर भी उसने विदेश जाकर नौकरी करने का फैसला किया और जेम्स और जिम्मी को अलविदा कहकर चली गयी। जाते-जाते उसने वादा किया, “मैं जल्दी लौट आऊँगी।” b
पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ और बाइबल सिद्धांत
4. (क) कई लोग क्यों अपने परिवार से दूर जाकर बस जाते हैं? (ख) जो माता-पिता अपने परिवार से दूर चले जाते हैं, अकसर उनके बच्चों की परवरिश कौन करता है?
4 यहोवा नहीं चाहता कि उसके सेवक भूखो मरें। (भज. 37:25; नीति. 30:8) इतिहास बताता है कि कई बार यहोवा के लोग गरीबी से निजात पाने के लिए दूसरी जगह जाकर बसे थे। कुलपिता याकूब ने अपने बेटों को खाना लाने के लिए मिस्र भेजा, ताकि वे भूखे न मर जाएँ। c (उत्प. 42:1, 2) इसके उलट, आज ज़्यादातर लोग इसलिए विदेश नहीं जाते कि उनके परिवार में खाने के लाले पड़े हुए हैं। तो फिर वे विदेश क्यों जाते हैं? कई लोग इसलिए जाते हैं क्योंकि वे भारी कर्ज़ में डूबे होते हैं। तो दूसरे इसलिए जाते हैं क्योंकि उनके देश की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं होती। वे अच्छी-से-अच्छी चीज़ें पाने की चाहत रखते हैं और ज़्यादा आराम की ज़िंदगी बिताना चाहते हैं, इसलिए वे अपने परिवार से दूर एक ऐसी जगह चले जाते हैं, जहाँ पैसा कमाना ज़्यादा आसान है। जो माँ या पिता घर से दूर चले जाते हैं, वे अकसर अपने बच्चों को दूसरों के पास छोड़ जाते हैं, जैसे अपने साथी, अपने बड़े बच्चे, दादा-दादी, नाना-नानी, दूसरे रिश्तेदारों या फिर दोस्तों के पास, ताकि वे उनकी परवरिश कर सकें। हालाँकि उन्हें अपने परिवार को छोड़ने का बहुत दुख होता है, लेकिन जो लोग घर से दूर काम करने के लिए जाते हैं, उनमें से कइयों को लगता है कि उनके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है।
5, 6. (क) यीशु ने सच्ची खुशी और सुरक्षा पाने के बारे में क्या सिखाया? (ख) यीशु ने अपने चेलों को किन चीज़ों के लिए प्रार्थना करना सिखाया? (ग) यहोवा की आशीष में क्या-क्या शामिल है?
5 यीशु के दिनों में भी कई लोग गरीब थे। उन्होंने भी शायद सोचा होगा कि अगर उनके पास खूब पैसा होता, तो वे ज़्यादा खुश और सुरक्षित रहते। (मर. 14:7) लेकिन यीशु नहीं चाहता था कि लोग अपना भरोसा कुछ वक्त के लिए रहनेवाली चीज़ों पर लगाएँ। वह चाहता था कि लोग यहोवा पर भरोसा रखें, जिसकी बरकतें हमेशा-हमेशा के लिए बनी रहती हैं। यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में सिखाया कि सच्ची खुशी और सुरक्षा, उन चीज़ों से नहीं मिलती जो हमारे पास हैं, और न ही यह हम अपने बलबूते हासिल कर सकते हैं। इसके बजाय, उसने सिखाया कि यह सच्ची खुशी और सुरक्षा हमें स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता यहोवा के साथ अपनी दोस्ती की बदौलत मिलती है।
6 आदर्श प्रार्थना में, यीशु ने हमें एक आराम-तलब ज़िंदगी पाने के लिए प्रार्थना करना नहीं सिखाया। इसके बजाय, उसने हमें “आज के इस दिन की रोटी,” यानी हमारी रोज़ाना की ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करना सिखाया। यीशु ने अपने सुननेवालों को साफ-साफ हिदायत दी: “अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो . . . इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो।” (मत्ती 6:9, 11, 19, 20) हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा अपने वादे के मुताबिक हमें आशीषें देगा। परमेश्वर की आशीषों में सिर्फ उसकी मंज़ूरी पाना ही शामिल नहीं है। बल्कि हमारी ज़रूरत की हर चीज़ देकर भी वह हमें आशीष देता है। बेशक, सच्ची खुशी और सुरक्षा पाने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह है हमारे प्यारे पिता यहोवा पर भरोसा करना, न कि पैसे पर।—मत्ती 6:24,25,31-34 पढ़िए।
7. (क) यहोवा ने बच्चों की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी किन्हें दी है? (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि माता-पिता मिलकर बच्चों की परवरिश करें?
7 ‘पहले परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहने’ में यह बात भी शामिल है कि हम अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को उस तरह निभाएँ, जैसे यहोवा चाहता है। मिसाल के लिए, मूसा के कानून में माता-पिताओं को हिदायत दी गयी थी कि वे खुद अपने बच्चों को यहोवा की सेवा करने की तालीम दें। जो मसीही यहोवा को खुश करना चाहते हैं, उन्हें भी ऐसा करना चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पढ़िए।) परमेश्वर ने यह ज़िम्मेदारी माँ-बाप को दी है, न कि दादा-दादी, नाना-नानी या किसी और को। राजा सुलैमान ने लिखा: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” (नीति. 1:8) यहोवा चाहता है कि माता-पिता और बच्चे सब साथ रहें, ताकि माता-पिता बच्चों को सिखा सकें और सही राह दिखा सकें। (नीति. 31:10, 27, 28) जब बच्चे अपने माता-पिता को यहोवा के बारे में बात करते हुए सुनते हैं और उन्हें रोज़ाना यहोवा की सेवा करते देखते हैं, तो वे भी वैसा ही करना सीखते हैं।
ऐसे नतीजे जिनकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी
8, 9. (क) जब माता-पिता अपने बच्चों से दूर रहते हैं, तो इससे परिवार पर क्या असर पड़ता है? (ख) जब माता-पिता और बच्चे साथ नहीं रहते, तो उनकी भावनाओं और सही-गलत के उनके स्तरों पर कैसे असर पड़ सकता है?
8 कई लोग जो अपने परिवार को छोड़कर विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं, उन्हें एहसास होता है कि उनके फैसले से शायद कुछ समस्याएँ उठ सकती हैं। लेकिन उनमें से ज़्यादातर को इस बात का एहसास नहीं होता कि उनके चले जाने से उनके परिवार पर किस तरह असर पड़ेगा। (नीति. 22:3) d जैसे ही जूली अपने परिवार को छोड़कर विदेश चली गयी, उसे अपने परिवार से बिछड़ने का गम सताने लगा। और यही गम उसके पति और बेटे को भी सालने लगा। जिम्मी बार-बार अपनी माँ से पूछता था, “आप मुझे छोड़कर क्यों चली गयीं?” जूली ने सिर्फ कुछ ही महीनों के लिए अपने परिवार से दूर जाने के बारे में सोचा था। लेकिन जैसे-जैसे महीने साल में बदलने लगे, जूली अपने परिवार में हो रहे बदलाव देखकर परेशान हो गयी। जिम्मी अब वह लड़का नहीं रहा, जिसे जूली जानती थी। वह उससे ज़्यादा बात नहीं करता था, और अब तो अपनी भावनाएँ भी उसे खुलकर नहीं बताता था। जूली मायूस होकर कहती है: “अब वह मुझसे प्यार नहीं करता था।”
9 जब माता-पिता और बच्चे साथ नहीं रहते, तो उनकी भावनाओं, यहाँ तक कि सही-गलत के उनके स्तरों पर भी काफी असर पड़ सकता है। e बच्चे जितने छोटे होते हैं और जितने लंबे समय तक अपने माता-पिता से दूर रहते हैं, परिवार को उतना ही ज़्यादा नुकसान पहुँच सकता है। जूली ने जिम्मी को समझाया कि वह ये सारे त्याग उसी की भलाई के लिए कर रही थी, लेकिन जिम्मी को लगता था कि अब उसकी माँ उससे प्यार नहीं करती। शुरू-शुरू में तो उसे अपनी माँ की कमी खलती थी। पर बाद में, उसे उसकी मौजूदगी खलने लगी। अपने माँ-बाप से बिछड़े दूसरे कई बच्चों की तरह, जिम्मी को भी लगने लगा कि अब उसकी माँ को न तो उससे प्यार पाने का हक है और न ही यह उम्मीद करने का कि जिम्मी उसकी बात माने।—नीतिवचन 29:15 पढ़िए।
10. (क) जब माता-पिता अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने और उन पर ध्यान देने के बजाय उन्हें बस तोहफे भेजते हैं, तो इसका क्या असर हो सकता है? (ख) जब माँ या पिता बच्चों से दूर होते हैं, तो परिवार में किस बात की कमी रह जाती है?
10 अपनी कमी को पूरा करने के लिए जूली अपने बेटे को पैसे और तोहफे भेजने लगी। मगर जल्द ही उसे एहसास हुआ कि ऐसा करके वह दरअसल अपने बेटे को खुद से और दूर कर रही थी। क्योंकि अनजाने में वह जिम्मी को यहोवा और अपने परिवार से नहीं, मगर पैसों और चीज़ों से प्यार करना सिखा रही थी। (नीति. 22:6) जिम्मी ने तो उसे यहाँ तक कह दिया: “आप घर वापस मत आओ, बस तोहफे भेजते रहो।” आखिरकार जूली को एहसास हुआ कि वह चिट्ठियों, फोन और वीडियो चैट के ज़रिए अपने बेटे की परवरिश नहीं कर सकती। वह कहती है, “आप इंटरनेट पर अपने बच्चे को गले नहीं लगा सकते या उसे चूमकर गुड-नाइट नहीं कह सकते।”
11. (क) काम की वजह से एक जोड़े का एक-दूसरे से दूर रहने का उनकी शादी पर क्या असर पड़ता है? (ख) जूली को कब एहसास हुआ कि उसे घर लौटने की ज़रूरत है?
11 जूली के विदेश जाने के फैसले का यहोवा के साथ उसके रिश्ते पर भी असर पड़ा। वह अपनी मंडली के साथ हफ्ते में एक बार या कभी-कभी उससे भी कम समय बिताने लगी। साथ ही, उसके और उसके पति के रिश्ते में भी दूरियाँ आ गयीं। उसे काम की जगह पर अपने मालिक के दबाव का भी सामना करना पड़ा, जो उसके साथ नाजायज़ संबंध रखना चाहता था। और क्योंकि जेम्स और जूली एक-दूसरे से खुलकर अपनी समस्याओं के बारे में बात नहीं कर सकते थे, इसलिए वे अपनी भावनाएँ दूसरों को बताने लगे। नतीजा यह हुआ कि वे दोनों अनैतिकता में फँसते-फँसते बचे। जूली को इस बात का भी एहसास हुआ कि भले ही उन दोनों ने कोई अनैतिक काम नहीं किया था, लेकिन उनकी शादी खतरे में थी। बाइबल शादीशुदा जोड़ों को हिदायत देती है कि उन्हें एक-दूसरे की भावनाओं और लैंगिक ज़रूरतों का ध्यान रखना चाहिए। जूली और जेम्स एक-दूसरे से इतनी दूर थे, इसलिए वे एक-साथ अकेले में वक्त नहीं बिता पाते थे और एक-दूसरे पर उस तरह ध्यान नहीं दे पाते थे, जैसे एक शादीशुदा जोड़े को देना चाहिए। (श्रेष्ठ. 1:2; 1 कुरिं. 7:3, 5) इसके अलावा, वे अपने बेटे के साथ मिलकर यहोवा की उपासना भी नहीं कर पाते थे। जूली कहती है, “जब मैंने एक अधिवेशन में सुना कि यहोवा के महान दिन से बचने के लिए, बिना नागा पारिवारिक उपासना करना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, तो मुझे समझ में आ गया कि मुझे घर लौटना ही होगा।” जूली उस वक्त को याद करके कहती है: “मुझे परिवार के साथ और यहोवा के साथ अपने रिश्ते की नींव दोबारा डालने की ज़रूरत थी।”
सही सलाह और गलत सलाह
12. जो लोग अपने परिवार से दूर रह रहे हैं, उन्हें बाइबल से क्या सलाह दी जा सकती है?
12 जब जूली ने घर लौटने का फैसला किया, तो कुछ भाई-बहन उसके इस फैसले से खुश थे, तो कुछ नाखुश। कुछ ने उसे सही सलाह दी, तो कुछ ने गलत। विदेश में उसकी मंडली के प्राचीनों ने उसके विश्वास और उसकी हिम्मत की तारीफ की। लेकिन जो लोग खुद अपने साथी और परिवार से दूर विदेश में रह रहे थे, उन्होंने जूली को रोकने की कोशिश की। उन्होंने उससे कहा कि वह घर लौटकर ज़्यादा पैसे नहीं कमा पाएगी। उसकी अच्छी मिसाल पर चलने के बजाय, उन्होंने उससे कहा, “देखना थोड़े-ही समय बाद तुम वापस यहाँ लौट आओगी।” निराश करनेवाली ऐसी बातें कहने के बजाय, मसीहियों को चाहिए कि वे “जवान स्त्रियों को सीख देकर सुधार सकें कि वे अपने-अपने पति और बच्चों से प्यार करें” और “अपने घर का काम-काज करनेवाली” हों। जी हाँ, उन्हें अपने परिवार की देखभाल करनेवाली होना चाहिए, “जिससे कि परमेश्वर के वचन की बदनामी न की जा सके।”—तीतुस 2:3-5 पढ़िए।
13, 14. एक मिसाल देकर समझाइए कि अपने परिवार की मरज़ी के खिलाफ जाने के लिए हमें विश्वास की ज़रूरत क्यों है।
13 काम के सिलसिले में परिवार को छोड़कर विदेश में रह रहे बहुत-से लोग ऐसे माहौल में पले-बढ़े होते हैं, जहाँ परंपरा मानना और रिश्तेदारों की, खासकर माता-पिता की, मरज़ी पूरी करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी समझा जाता है। ऐसे में, एक मसीही के लिए अपने परिवार की मरज़ी के खिलाफ जाना आसान नहीं होता, खासकर तब, जब वे कुछ ऐसा चाहते हों, जो परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ हो। इसके लिए मज़बूत विश्वास की ज़रूरत होती है।
14 ज़रा कैरन नाम की एक बहन के अनुभव पर गौर कीजिए: “जब मेरा बेटा डॉन पैदा हुआ, तब मैं और मेरे पति विदेश में काम कर रहे थे, और मैंने हाल ही में बाइबल अध्ययन करना शुरू किया था। मेरे परिवार में सभी यह उम्मीद कर रहे थे कि मैं डॉन को कुछ वक्त के लिए मेरे माता-पिता के यहाँ भेज दूँ, जब तक कि हम दोनों कुछ पैसे न जोड़ लें।” जब कैरन ने कहा कि वह खुद ही अपने बेटे की परवरिश करेगी, तो उसके रिश्तेदारों ने, यहाँ तक कि उसके पति ने कहा कि वह आलसी है और उसका मज़ाक उड़ाया, क्योंकि उन्हें लगा जैसे वह काम करने से जी चुरा रही है। कैरन कहती है: “सच कहूँ तो उस वक्त मुझे पूरी तरह समझ नहीं आ रहा था कि डॉन को कुछ साल मेरे मम्मी-पापा के पास छोड़ने में हर्ज़ ही क्या है। लेकिन मुझे इतना ज़रूर मालूम था कि यहोवा ने हमारे बेटे की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी हमें, यानी उसके माँ-बाप को दी है।” जब कैरन दूसरी बार माँ बननेवाली थी, तो उसके अविश्वासी पति ने गर्भपात करवाने के लिए उस पर ज़ोर डाला। कैरन ने पहले जो सही फैसला लिया था, उससे उसका विश्वास मज़बूत हो गया था और इसलिए उसने एक बार फिर ऐसा फैसला लिया जिससे यहोवा को खुशी होती। आज वह, उसका पति और उनके बच्चे, सभी इस बात से खुश हैं कि वे एक-साथ रहे। अगर कैरन ने अपने एक या दोनों बच्चों को परवरिश के लिए दूसरों के पास छोड़ दिया होता, तो नतीजा कुछ और ही होता।
15, 16. (क) बचपन में टीना की परवरिश कैसे हुई? (ख) जिस तरह टीना की परवरिश हुई थी, उसी तरह उसने अपनी बेटी की परवरिश क्यों नहीं की?
15 टीना नाम की एक साक्षी बहन कहती है: “कुछ सालों तक मेरी नानी ने मेरी परवरिश की, जबकि मेरी छोटी बहन को मम्मी-पापा ने पाला। इन सालों के दौरान मम्मी-पापा के लिए मेरी भावनाएँ बदल चुकी थीं। जब हम दोबारा साथ रहने लगे, तो मैंने गौर किया कि मेरी बहन मम्मी-पापा को बेझिझक अपने दिल की हर बात बताती थी, उनके गले लगती थी और उसका उनके साथ एक करीबी रिश्ता था। लेकिन मैं मम्मी-पापा के पास होकर भी उनसे दूर थी। यहाँ तक कि जब मैं बड़ी हुई, तब भी मैं उन्हें खुलकर नहीं बता पाती थी कि मैं कैसा महसूस कर रही हूँ। मैंने और मेरी बहन ने मम्मी-पापा को यकीन दिलाया है कि उनके बुढ़ापे में हम उनकी देखभाल करेंगे। लेकिन फर्क यह है कि मैं तब अपना फर्ज़ निभा रही होऊँगी, जबकि मेरी बहन प्यार की खातिर ऐसा कर रही होगी।”
16 “अब मेरी मम्मी चाहती हैं कि मैं अपनी बेटी को उनके पास भेज दूँ ताकि वे उसकी परवरिश करें, ठीक जैसे उन्होंने मुझे अपनी माँ के पास भेज दिया था। लेकिन मैंने प्यार-से उन्हें मना कर दिया। मैं और मेरे पति चाहते हैं कि हम खुद अपनी गुड़िया को यहोवा के मार्गों पर चलना सिखाएँ। और मैं अपनी बेटी के साथ अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहती।” टीना ने सीखा है कि कामयाब होने का सिर्फ एक ही रास्ता है, और वह है, दुनिया की चीज़ों और परिवारवालों से ज़्यादा, यहोवा और उसके सिद्धांतों से प्यार करना। यीशु ने साफ-साफ कहा था: “कोई भी दो मालिकों का,” यानी परमेश्वर के साथ-साथ धन-दौलत का “दास बनकर सेवा नहीं कर सकता।”—मत्ती 6:24; निर्ग. 23:2.
यहोवा हमारी मेहनत को “सुफल” बनाता है
17, 18. (क) सच्चे मसीही किन वादों पर हमेशा भरोसा रख सकते हैं? (ख) हम अगले लेख में किन सवालों पर गौर करेंगे?
17 हमारे पिता यहोवा ने वादा किया है कि अगर हम उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है, उसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो वह हमें वह सब कुछ देगा जिसकी हमें वाकई ज़रूरत है। (मत्ती 6:33) मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी कोई-न-कोई ऐसा रास्ता होता ही है, जिससे हम यहोवा को खुश कर सकते हैं और बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक काम कर सकते हैं। यहोवा यह भी वादा करता है कि वह हमारे लिए मुसीबतों से ‘निकलने का रास्ता निकालेगा।’ (1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए।) अगर हम यहोवा से प्रार्थना करें और उसकी आज्ञा मानें, तो हम यहोवा को दिखाएँगे कि हम उस पर भरोसा रखते हैं। (भज. 37:5, 7) जब हम सिर्फ यहोवा को अपना सच्चा मालिक मानकर उसकी दिल से सेवा करेंगे, तो वह हमारी मेहनत पर आशीष देगा। अगर हम उसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो वह हमारे जीवन को “सुफल” करेगा।—उत्पत्ति 39:3 से तुलना कीजिए।
18 मगर अपने परिवार से अलग रहने की वजह से रिश्तों में जो दूरियाँ आ जाती हैं, उन्हें मिटाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हम परिवार से दूर जाए बगैर कैसे उनकी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं? और हम दूसरों को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं कि वे अपने परिवार के साथ रहें? अगले लेख में हम इन सवालों पर गौर करेंगे।
a नाम बदल दिए गए हैं।
b हालाँकि इस लेख में नौकरी के सिलसिले में विदेश जानेवाले व्यक्ति के लिए बहनों के उदाहरण दिए गए हैं, लेकिन इस लेख में बताए सिद्धांत भाइयों और बहनों, दोनों पर लागू होते हैं।
c जितनी बार याकूब के बेटे मिस्र गए, उतनी बार वे तीन हफ्ते या उससे कम समय के लिए अपने परिवार से दूर रहे। बाद में, जब याकूब और उसके बेटे मिस्र में जाकर बस गए, तो वे अपनी पत्नियों और बच्चों को भी अपने साथ ले गए।—उत्प. 46:6, 7.
d फरवरी 2013 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में दिया लेख, “इम्मिग्रेशन—ड्रीम्स एण्ड रिऐलिटीज़” देखिए।
e बहुत-से देशों की रिपोर्टें दिखाती हैं कि अपने साथी या बच्चों से दूर रहने की वजह से बहुत-से परिवारों में गंभीर समस्याएँ उठी हैं, जैसे शादी के बाहर यौन-संबंध, समलैंगिकता और परिवार के सदस्यों के बीच नाजायज़ संबंध। इसके अलावा, बच्चों को स्कूल में समस्याएँ आ सकती हैं। वे शायद गुस्सैल हो जाएँ, बहुत चिंता करने लगें, निराशा में डूब जाएँ, यहाँ तक कि खुदकुशी करने की भी कोशिश करें।