क्या आप हर दिन परमेश्वर की सुनते हैं?
क्या आप हर दिन परमेश्वर की सुनते हैं?
क्या आपको आईना देखने की आदत है? हममें से बहुतों की यह रोज़ की आदत होती है। हम शायद दिन में कई बार खुद को शीशे में निहारते हों। क्यों? क्योंकि हमें अपने रंग-रूप की फिक्र रहती है।
परमेश्वर का वचन, बाइबल पढ़ना आईने में खुद को देखने जैसा है। (याकूब 1:23-25) बाइबल के संदेश में इतनी ज़बरदस्त ताकत है कि वह हमारा असली चेहरा बेनकाब कर देता है। “यह इंसान के बाहरी रूप को उसके अंदर के इंसान से अलग करता है।” (इब्रानियों 4:12) यह बताती है कि हमें कहाँ फेरबदल करने की ज़रूरत है, ठीक जैसे आईना दिखाता है कि हमें खुद के रंग-रूप में कहाँ सुधार करने की ज़रूरत है।
बाइबल सिर्फ यह नहीं बताती कि सुधार कहाँ करना है, बल्कि यह भी कि कैसे करना है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “पूरा शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है और सिखाने, ताड़ना देने, टेढ़ी बातों को सीध में लाने और परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक अनुशासन देने के लिए फायदेमंद है।” (2 तीमुथियुस 3:16, 17) गौर कीजिए कि इस आयत में चार फायदे बताए गए हैं, जिनमें से तीन हैं—ताड़ना देना, टेढ़ी बातों को सीध में लाना और अनुशासन देना। इन तीनों बातों का हमारे रवैए और कामों में सुधार लाने से गहरा ताल्लुक है। अगर हमें अपने बाहरी रूप को सुधारने के लिए हर दिन शीशा देखने की ज़रूरत पड़ती है, तो क्या हमें अपने अंदर के इंसान को निखारने के लिए नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने की और भी ज़रूरत नहीं?
यहोशू को इसराएलियों का नेता ठहराने के बाद, यहोवा ने उससे कहा: “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” (यहोशू 1:8) जी हाँ, यहोशू के कामयाब होने के लिए ज़रूरी था कि वह परमेश्वर का वचन “दिन रात,” यानी नियमित तौर पर पढ़े।
रोज़ बाइबल पढ़ने के क्या फायदे हैं? पहले भजन में बताया गया है: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन 1:1-3) बेशक, हम सभी इन आयतों में बताए पुरुष के जैसा बनना चाहेंगे।
बहुत-से लोगों को हर दिन बाइबल पढ़ने की आदत है। जब एक मसीही से पूछा गया कि वह रोज़ बाइबल
क्यों पढ़ता है, तो उसने जवाब दिया: “अगर मैं दिन में कई बार परमेश्वर से प्रार्थना करूँ और उम्मीद रखूँ कि वह मेरी सुने, तो क्या मुझे भी हर दिन उसकी नहीं सुननी चाहिए? अच्छा दोस्त वह होता है, जो सिर्फ अपनी ही नहीं हाँकता बल्कि अपने दोस्त की भी सुनता है। और परमेश्वर की सुनने का बढ़िया तरीका है, बाइबल पढ़ना।” क्या आपको नहीं लगता कि इस भाई ने बिलकुल सही बात कही? बाइबल पढ़ना परमेश्वर की सुनने के बराबर है, क्योंकि इससे हम उसके नज़रिए के बारे में जान पाते हैं।बाइबल पढ़ाई के शेड्यूल पर कैसे बने रहें
हो सकता है आपने पहले भी बाइबल पढ़ने का कार्यक्रम शुरू करने की कोशिश की होगी। क्या आपने शुरू से आखिर तक बाइबल पढ़ी है? पूरी बाइबल पढ़ना, उसमें लिखी बातों से वाकिफ होने का एक बेहतरीन तरीका है। कई लोग बहुत बार पूरी बाइबल पढ़ना शुरू करते हैं, मगर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं। क्या आपके साथ ऐसा हुआ है? पूरी बाइबल पढ़ने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? क्यों न आप आगे बताए दो सुझाव आज़माएँ?
रोज़ बाइबल पढ़ने का शेड्यूल बनाइए। हर दिन एक ऐसा समय तय कीजिए, जिसमें आपको लगता है कि आप बिना किसी रुकावट के बाइबल पढ़ सकते हैं। साथ ही, एक दूसरा समय भी चुनिए ताकि अगर आप तय समय पर बाइबल नहीं पढ़ पाए, तो आप उसे दूसरे समय पर पढ़ सकें। इस तरह आप पुराने ज़माने के बिरीया के लोगों की मिसाल पर चल रहे होंगे। उनके बारे में कहा गया है: “उन्होंने मन की बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते रहे कि जो बातें वे सुन रहे थे वे ऐसी ही लिखी हैं या नहीं।”—प्रेषितों 17:11.
एक लक्ष्य रखकर चलिए। उदाहरण के लिए, अगर आप एक दिन में तीन से पाँच अध्याय पढ़ने का लक्ष्य रखें तो एक साल में आप पूरी बाइबल पढ़ सकते हैं। अगले पन्नों में दिया चार्ट ऐसा करने में आपकी मदद कर सकता है। क्यों न आप इस कार्यक्रम पर चलने की ठान लें? “तारीख” की जगह पर लिखिए कि आप दिए गए अध्याय कब पढ़ेंगे। जैसे-जैसे आप अध्याय खत्म करते हैं, बक्स पर निशान लगाते जाइए। इससे आपको पता रहेगा कि आपकी पढ़ाई कहाँ तक पहुँची है।
एक बार पूरी बाइबल पढ़ने पर क्यों न दोबारा शुरू करें? ऐसा आप हर साल कर सकते हैं। आप चाहें तो यही शेड्यूल इस्तेमाल कर सकते हैं और हर बार अलग-अलग भाग से शुरू कर सकते हैं। अगर आप पूरी बाइबल धीमी रफ्तार में पढ़ना चाहते हैं, तो आप एक दिन में पढ़े जानेवाले अध्यायों को दो या तीन दिन में बाँट सकते हैं।
यकीन मानिए जितनी बार आप बाइबल पढ़ेंगे, उतनी बार आपको इसमें अपनी ज़िंदगी में लागू करने के लिए कुछ-न-कुछ नया मिलेगा, जिस पर शायद आपका ध्यान पहले कभी न गया हो। ऐसा क्यों? क्योंकि “इस दुनिया का दृश्य बदल रहा है” और इसके साथ-साथ हमारी ज़िंदगी और हालात भी बदल रहे हैं। (1 कुरिंथियों 7:31) इसलिए ठान लीजिए कि आप रोज़ परमेश्वर के वचन के आईने में खुद की जाँच करेंगे। इस तरह आप हर दिन परमेश्वर की सुन रहे होंगे।—भजन 16:8. (w09 08/01)
[पेज 22 पर तसवीर]
क्या आप हर दिन बाइबल पढ़ने के लिए एक अलग समय तय कर सकते हैं?
[पेज 23-26 पर चार्ट/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
1
बाइबल पढ़ाई शेड्यूल
हिदायतें: तारीख की जगह पर लिखिए कि आप दिए गए अध्याय कब पढ़ेंगे। जैसे-जैसे आप अध्याय खत्म करते हैं, बक्स पर निशान लगाते जाइए। आप पूरी बाइबल क्रम से पढ़ सकते हैं या फिर दिए गए अलग-अलग विषयों के मुताबिक। अगर आप एक दिन में उतने अध्याय पढ़ें जितने दिए गए हैं, तो आप एक साल में पूरी बाइबल पढ़ सकेंगे।
◆ जिन दिनों पर लाल ईंट का चिन्ह है, उनमें दिए अध्यायों में बताया गया है कि परमेश्वर ने इसराएलियों के साथ कैसे व्यवहार किया था।
● जिन दिनों पर नीले बिंदु का चिन्ह है, उनमें दिए अध्यायों में बताया गया है कि मसीही मंडली की शुरूआत कैसे हुई।
2
मूसा की लिखी किताबें
तारीख अध्याय □✔
/ उत्पत्ति 1-3 □
/ 4-7 □
/ 8-11 □
/ ◆ 12-15 □
/ ◆ 16-18 □
/ ◆ 19-22 □
/ ◆ 23-24 □
/ ◆ 25-27 □
/ ◆ 28-30 □
/ ◆ 31-32 □
/ ◆ 33-34 □
/ ◆ 35-37 □
/ ◆ 38-40 □
/ ◆ 41-42 □
/ ◆ 43-45 □
/ ◆ 46-48 □
/ ◆ 49-50 □
/ निर्गमन ◆ 1-4 □
/ ◆ 5-7 □
/ ◆ 8-10 □
/ ◆ 11-13 □
/ ◆ 14-15 □
/ ◆ 16-18 □
/ ◆ 19-21 □
/ 22-25 □
/ 26-28 □
/ 29-30 □
/ ◆ 31-33 □
/ ◆ 34-35 □
/ 36-38 □
/ 39-40 □
/ लैव्यव्यवस्था 1-4 □
/ 5-7 □
/ 8-10 □
/ 11-13 □
/ 14-15 □
/ 16-18 □
/ 19-21 □
/ 22-23 □
/ 24-25 □
/ 26-27 □
/ गिनती 1-3 □
/ 4-6 □
/ 7-9 □
/ ◆ 10-12 □
/ ◆ 13-15 □
/ ◆ 16-18 □
/ ◆ 19-21 □
/ ◆ 22-24 □
/ ◆ 25-27 □
/ 28-30 □
/ ◆ 31-32 □
/ ◆ 33-36 □
/ व्यवस्थाविवरण 1-2 □
/ ◆ 3-4 □
/ 5-7 □
/ 8-10 □
/ 11-13 □
3
/ 14-16 □
/ ◆ 17-19 □
/ 20-22 □
/ 23-26 □
/ 27-28 □
/ ◆ 29-31 □
/ ◆ 32 □
/ ◆ 33-34 □
इसराएलियों ने वादा किए गए देश में कदम रखा
तारीख अध्याय □✔
/ यहोशू ◆ 1-4 □
/ ◆ 5-7 □
/ ◆ 8-9 □
/ ◆ 10-12 □
/ ◆ 13-15 □
/ ◆ 16-18 □
/ ◆ 19-21 □
/ ◆ 22-24 □
/ न्यायियों ◆ 1-2 □
/ ◆ 3-5 □
/ ◆ 6-7 □
/ ◆ 8-9 □
/ ◆ 10-11 □
/ ◆ 12-13 □
/ ◆ 14-16 □
/ ◆ 17-19 □
/ ◆ 20-21 □
/ रूत ◆ 1-4 □
इसराएल में राजाओं का राज
तारीख अध्याय □✔
/ 1 शमूएल ◆ 1-2 □
/ ◆ 3-6 □
/ ◆ 7-9 □
/ ◆ 10-12 □
/ ◆ 13-14 □
/ ◆ 15-16 □
/ ◆ 17-18 □
/ ◆ 19-21 □
/ ◆ 22-24 □
/ ◆ 25-27 □
/ ◆ 28-31 □
/ 2 शमूएल ◆ 1-2 □
/ ◆ 3-5 □
/ ◆ 6-8 □
/ ◆ 9-12 □
/ ◆ 13-14 □
/ ◆ 15-16 □
/ ◆ 17-18 □
/ ◆ 19-20 □
/ ◆ 21-22 □
/ ◆ 23-24 □
/ 1 राजा ◆ 1-2 □
/ ◆ 3-5 □
/ ◆ 6-7 □
/ ◆ 8 □
/ ◆ 9-10 □
/ ◆ 11-12 □
4
/ 1 राजा (पेज 3 का शेष) ◆ 13-14 □
/ ◆ 15-17 □
/ ◆ 18-19 □
/ ◆ 20-21 □
/ ◆ 22 □
/ 2 राजा ◆ 1-3 □
/ ◆ 4-5 □
/ ◆ 6-8 □
/ ◆ 9-10 □
/ ◆ 11-13 □
/ ◆ 14-15 □
/ ◆ 16-17 □
/ ◆ 18-19 □
/ ◆ 20-22 □
/ ◆ 23-25 □
/ 1 इतिहास 1-2 □
/ 3-5 □
/ 6-7 □
/ 8-10 □
/ 11-12 □
/ 13-15 □
/ 16-17 □
/ 18-20 □
/ 21-23 □
/ 24-26 □
/ 27-29 □
/ 2 इतिहास 1-3 □
/ 4-6 □
/ 7-9 □
/ 10-14 □
/ 15-18 □
/ 19-22 □
/ 23-25 □
/ 26-28 □
/ 29-30 □
/ 31-33 □
/ 34-36 □
बंधुआई से यहूदी की वापसी
तारीख अध्याय □✔
/ एज्रा ◆ 1-3 □
/ ◆ 4-7 □
/ ◆ 8-10 □
/ नहेमायाह ◆ 1-3 □
/ ◆ 4-6 □
/ ◆ 7-8 □
/ ◆ 9-10 □
/ ◆ 11-13 □
/ एस्तेर ◆ 1-4 □
/ ◆ 5-10 □
मूसा की लिखी किताबें
तारीख अध्याय □✔
/ अय्यूब 1-5 □
/ 6-9 □
/ 10-14 □
/ 15-18 □
/ 19-20 □
5
/ 21-24 □
/ 25-29 □
/ 30-31 □
/ 32-34 □
/ 35-38 □
/ 39-42 □
भजनों और कारगर बुद्धि की किताबें
तारीख अध्याय □✔
/ भजन 1-8 □
/ 9-16 □
/ 17-19 □
/ 20-25 □
/ 26-31 □
/ 32-35 □
/ 36-38 □
/ 39-42 □
/ 43-47 □
/ 48-52 □
/ 53-58 □
/ 59-64 □
/ 65-68 □
/ 69-72 □
/ 73-77 □
/ 78-79 □
/ 80-86 □
/ 87-90 □
/ 91-96 □
/ 97-103 □
/ 104-105 □
/ 106-108 □
/ 109-115 □
/ 116-119:63 □
/ 119:64-176 □
/ 120-129 □
/ 130-138 □
/ 139-144 □
/ 145-150 □
/ नीतिवचन 1-4 □
/ 5-8 □
/ 9-12 □
/ 13-16 □
/ 17-19 □
/ 20-22 □
/ 23-27 □
/ 28-31 □
/ सभोपदेशक 1-4 □
/ 5-8 □
/ 9-12 □
/ श्रेष्ठगीत 1-8 □
भविष्यवक्ता
तारीख अध्याय □✔
/ यशायाह 1-4 □
/ 5-7 □
/ 8-10 □
6
/ यशायाह (पेज 5 का शेष) 11-14 □
/ 15-19 □
/ 20-24 □
/ 25-28 □
/ 29-31 □
/ 32-35 □
/ 36-37 □
/ 38-40 □
/ 41-43 □
/ 44-47 □
/ 48-50 □
/ 51-55 □
/ 56-58 □
/ 59-62 □
/ 63-66 □
/ यिर्मयाह 1-3 □
/ 4-5 □
/ 6-7 □
/ 8-10 □
/ 11-13 □
/ 14-16 □
/ 17-20 □
/ 21-23 □
/ 24-26 □
/ 27-29 □
/ 30-31 □
/ 32-33 □
/ 34-36 □
/ 37-39 □
/ 40-42 □
/ 43-44 □
/ 45-48 □
/ 49-50 □
/ 51-52 □
/ विलापगीत 1-2 □
/ 3-5 □
/ यहेजकेल 1-3 □
/ 4-6 □
/ 7-9 □
/ 10-12 □
/ 13-15 □
/ 16 □
/ 17-18 □
/ 19-21 □
/ 22-23 □
/ 24-26 □
/ 27-28 □
/ 29-31 □
/ 32-33 □
/ 34-36 □
/ 37-38 □
/ 39-40 □
/ 41-43 □
/ 44-45 □
/ 46-48 □
/ दानिय्येल 1-2 □
/ 3-4 □
/ 5-7 □
/ 8-10 □
/ 11-12 □
7
/ होशे 1-7 □
/ 8-14 □
/ योएल 1-3 □
/ आमोस 1-5 □
/ 6-9 □
/ मीका 1-7 □
/ जकर्याह 1-7 □
/ 8-11 □
/ 12-14 □
/ मलाकी 1-4 □
यीशु की ज़िंदगी और सेवा से जुड़े किस्से
तारीख अध्याय □✔
/ मत्ती 1-4 □
/ 5-7 □
/ 8-10 □
/ 11-13 □
/ 14-17 □
/ 18-20 □
/ 21-23 □
/ 24-25 □
/ 26 □
/ 27-28 □
/ मरकुस ● 1-3 □
/ ● 4-5 □
/ ● 6-8 □
/ ● 9-10 □
/ ● 11-13 □
/ ● 14-16 □
/ लूका 1-2 □
/ 3-5 □
/ 6-7 □
/ 8-9 □
/ 10-11 □
/ 12-13 □
/ 14-17 □
/ 18-19 □
/ 20-22 □
/ 23-24 □
/ यूहन्ना 1-3 □
/ 4-5 □
/ 6-7 □
/ 8-9 □
/ 10-12 □
/ 13-15 □
/ 16-18 □
/ 19-21 □
मसीही मंडली में बढ़ोतरी
तारीख अध्याय □✔
/ प्रेषितों ● 1-3 □
/ ● 4-6 □
/ ● 7-8 □
/ ● 9-11 □
8
/ प्रेषितों (पेज 7 का शेष) ● 12-14 □
/ ● 15-16 □
/ ● 17-19 □
/ ● 20-21 □
/ ● 22-23 □
/ ● 24-26 □
/ ● 27-28 □
पौलुस की चिट्ठियाँ
तारीख अध्याय □✔
/ रोमियों 1-3 □
/ 4-7 □
/ 8-11 □
/ 12-16 □
/ 1 कुरिंथियों 1-6 □
/ 7-10 □
/ 11-14 □
/ 15-16 □
/ 2 कुरिंथियों 1-6 □
/ 7-10 □
/ 11-13 □
/ गलातियों 1-6 □
/ इफिसियों 1-6 □
/ फिलिप्पियों 1-4 □
/ कुलुस्सियों 1-4 □
/ 1 थिस्सलुनीकियों 1-5 □
/ 2 थिस्सलुनीकियों 1-3 □
/ 1 तीमुथियुस 1-6 □
/ 2 तीमुथियुस 1-4 □
/ इब्रानियों 1-6 □
/ 7-10 □
/ 11-13 □
दूसरे प्रेषितों और चेलों की लिखी किताबें
तारीख अध्याय □✔
/ याकूब 1-5 □
/ 1 पतरस 1-5 □
/ 2 पतरस 1-3 □
/ 1 यूहन्ना 1-5 □
/ 2 यूहन्ना/3 यूहन्ना/यहूदा □
/ प्रकाशितवाक्य 1-4 □
/ 5-9 □
/ 10-14 □
/ 15-18 □
/ 19-22 □
पहले, डैश के निशान पर काटिए
फिर दोनों पन्नों को जोड़कर मोड़िए