यहोवा हमें खुद चुनाव करने का मौका देता है
परमेश्वर के करीब आइए
यहोवा हमें खुद चुनाव करने का मौका देता है
“मुझे अकसर यह डर सताता था कि मैं कुछ-न-कुछ गलत कर बैठूँगी और यहोवा की वफादार नहीं रह पाऊँगी।” यह बात एक मसीही स्त्री ने कही। उसके साथ बचपन में कुछ बुरे अनुभव हुए थे, जिनकी वजह से उसे लगता था कि वह ज़रूर कोई गलती कर बैठेगी। क्या वाकई ऐसा होता है? क्या हम सचमुच हालात के सामने बेबस हैं? नहीं। यहोवा परमेश्वर ने हमें आज़ाद मरज़ी का तोहफा दिया है, यानी हम खुद यह चुनाव कर सकते हैं कि हम कैसी ज़िंदगी जीएँगे। यहोवा चाहता है कि हम सही चुनाव करें और उसका वचन बाइबल ऐसा करने में हमारी मदद करती है। कैसे? यह जानने के लिए आइए हम बाइबल की एक किताब व्यवस्थाविवरण के अध्याय 30 में दर्ज़ मूसा के शब्दों पर गौर करें।
परमेश्वर हमसे क्या चाहता है, क्या यह जानना और उसके मुताबिक काम करना बहुत मुश्किल है? * मूसा ने कहा: “जो आज्ञा मैं आज तुझे देता हूं, वह न तो तेरे लिए बहुत कठिन है न तुझसे परे है।” (आयत 11, NHT) यहोवा हमसे ऐसा कोई काम करने के लिए नहीं कहता, जिसे पूरा करना हमारे लिए नामुमकिन हो। वह हमसे हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता। इसके अलावा, हम यह आसानी से जान सकते हैं कि वह हमसे क्या चाहता है। यह पता करने के लिए हमें “आकाश में” जाने की ज़रूरत नहीं है, न ही हमें “समुद्र पार” जाने की ज़रूरत है। (आयत 12, 13) बाइबल साफ-साफ बताती है कि हमें कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए।—मीका 6:8.
लेकिन यहोवा हमसे ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता कि हमें उसकी आज्ञा माननी ही होगी। अपने भविष्यवक्ता मूसा के ज़रिए उसने कहा: “आज मैंने तेरे सामने जीवन और समृद्धि तथा मृत्यु और विपत्ति रखी है।” (आयत 15, NHT) हमें पूरी छूट दी गयी है कि हम क्या चुनना चाहते हैं, जीवन या मृत्यु, समृद्धि या विपत्ति। हम परमेश्वर की उपासना करने और उसकी आज्ञा मानने का चुनाव कर सकते हैं, जिससे हमें आशीषें मिलेंगी। या हम उसकी आज्ञा के खिलाफ काम करने का चुनाव कर सकते हैं, जिसके हमें बुरे अंजाम भुगतने होंगे। फैसला हम पर छोड़ा गया है।—आयत 16-18; गलातियों 6:7, 8.
हम कौन-सा रास्ता चुनते हैं, क्या इससे यहोवा को कोई फर्क पड़ता है? बिलकुल पड़ता है! परमेश्वर की प्रेरणा से मूसा ने कहा: “जीवन को चुन ले।” (आयत 19, NHT) लेकिन हम जीवन को कैसे चुन सकते हैं? मूसा ने समझाया: “अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, उसकी सुनना तथा उस से लिपटे रहना।” (आयत 20) अगर हमारे दिल में यहोवा के लिए प्यार होगा, तो हम हर हाल में उसकी बात सुनेंगे, उसकी आज्ञा मानेंगे और उसके वफादार बने रहेंगे। इस तरह हम जीवन को चुन रहे होंगे। हम आज जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चल रहे होंगे और इससे हमें परमेश्वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा मिलेगी।—2 पतरस 3:11-13; 1 यूहन्ना 5:3.
मूसा के शब्द जो सच्चाई बयान करते हैं, उससे हमें बहुत दिलासा मिलता है। इस दुष्ट दुनिया में आपके साथ चाहे जो भी हुआ हो, आप उसके सामने बेबस नहीं हैं, न ही इसका मतलब है कि आप परमेश्वर की सेवा में कभी कामयाब नहीं हो सकते। यहोवा ने आज़ाद मरज़ी का तोहफा देकर आपको इज़्ज़त बख्शी है। जी हाँ, आप यहोवा से प्यार करने, उसकी सुनने और उसके वफादार बने रहने का चुनाव कर सकते हैं। अगर आप यह चुनाव करें, तो यहोवा आपकी कोशिशों पर ज़रूर आशीष देगा।
यह एक सच्चाई है कि यहोवा से प्यार करने और उसकी सेवा करने का चुनाव करने के लिए हम आज़ाद हैं। इस सच्चाई का एहसास जब उस स्त्री को हुआ जिसका ज़िक्र शुरू में किया गया है, तो उसे बहुत दिलासा मिला। वह कहती है: “इसमें कोई शक नहीं कि मैं यहोवा से प्यार करती हूँ। मगर कभी-कभी मैं भूल जाती थी कि सबसे ज़रूरी यही है। अगर मैं यहोवा से प्यार करती हूँ, तो मैं उसकी वफादार रह सकती हूँ।” यहोवा की मदद से आप भी उसके वफादार रह सकते हैं। (w09-E 11/01)
[फुटनोट]
^ इस पत्रिका के पेज 16 पर दिया लेख, “परमेश्वर के करीब आइए—यहोवा हमसे क्या चाहता है?” देखिए।