निर्गमन 37:1-29
37 फिर बसलेल+ ने बबूल की लकड़ी से एक संदूक+ बनाया। उसकी लंबाई ढाई हाथ,* चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।+
2 उसने संदूक पर अंदर और बाहर से शुद्ध सोना मढ़ा और चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया।+
3 फिर उसने सोने के चार कड़े ढालकर बनाए और उन्हें संदूक के चारों पायों के ऊपर लगाया। संदूक के एक तरफ दो कड़े और दूसरी तरफ दो कड़े।
4 इसके बाद उसने बबूल की लकड़ी से डंडे बनाए और उन पर सोना मढ़ा।+
5 उसने ये डंडे संदूक के दोनों तरफ लगे कड़ों में डाले ताकि उनके सहारे संदूक उठाया जा सके।+
6 उसने संदूक के लिए शुद्ध सोने से एक ढकना तैयार किया।+ उसकी लंबाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।+
7 फिर उसने हथौड़े से सोना पीटकर उससे दो करूब+ बनाए और उन्हें संदूक के ढकने के दोनों किनारों पर लगाया।+
8 एक किनारे पर एक करूब और दूसरे किनारे पर दूसरा करूब था। इस तरह उसने ढकने के दोनों किनारों पर करूब बनाए।
9 करूबों के दोनों पंख ऊपर की तरफ फैले हुए थे और संदूक के ढकने को ढके हुए थे।+ दोनों करूब आमने-सामने थे और उनके मुँह ढकने की तरफ नीचे झुके हुए थे।+
10 फिर उसने बबूल की लकड़ी से एक मेज़ बनायी।+ उसकी लंबाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।+
11 उसने मेज़ को शुद्ध सोने से मढ़ा और उसके चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया।
12 फिर उस किनारे के साथ-साथ मेज़ के चारों तरफ एक पट्टी भी बनायी। उस पट्टी की चौड़ाई चार अंगुल* थी। पट्टी के नीचे सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया।
13 मेज़ के लिए उसने सोने के चार कड़े ढालकर बनाए और उन्हें मेज़ के चारों कोनों पर उस जगह लगाया जहाँ उसके चार पाए जुड़े हुए थे।
14 ये कड़े मेज़ की पट्टी के बिलकुल पास लगाए गए ताकि उनके अंदर वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे मेज़ उठायी जाती।
15 फिर उसने बबूल की लकड़ी से वे डंडे बनाए जिनके सहारे मेज़ उठायी जाती और उन पर सोना मढ़ा।
16 इसके बाद उसने मेज़ के लिए शुद्ध सोने से ये बरतन बनाए: थालियाँ, प्याले, अर्घ चढ़ाने के कटोरे और सुराहियाँ।+
17 फिर उसने शुद्ध सोने की एक दीवट बनायी।+ उसने सोने के एक ही टुकड़े को पीटकर पूरी दीवट यानी उसका पाया, उसकी डंडी, फूल, कलियाँ और पंखुड़ियाँ बनायीं।+
18 दीवट की डंडी पर छ: डालियाँ थीं, डंडी के एक तरफ तीन और दूसरी तरफ तीन।
19 हर डाली पर बादाम के फूल जैसे तीन फूलों की बनावट थी। फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी की रचना थी। इस तरह की रचनाएँ दीवट की डंडी से निकलनेवाली छ: की छ: डालियों पर थीं।
20 दीवट की डंडी पर बादाम के फूल जैसे चार फूलों की बनावट थी और फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी थी।
21 दीवट की डंडी के जिस हिस्से से डालियों का पहला जोड़ा निकला उसके नीचे एक कली जैसी रचना थी। इसी तरह, जहाँ से डालियों का दूसरा और तीसरा जोड़ा निकला, उसके नीचे भी एक-एक कली जैसी रचना थी। दीवट की डंडी से निकलनेवाली छ: डालियों के नीचे ये रचनाएँ थीं।
22 शुद्ध सोने के एक ही टुकड़े को हथौड़े से पीटकर कलियाँ, डालियाँ और पूरी दीवट बनायी गयी।
23 उसने दीवट के लिए शुद्ध सोने से सात दीए,+ चिमटे और आग उठाने के करछे बनाए।
24 उसने दीवट और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें एक तोड़े* शुद्ध सोने से बनायीं।
25 फिर उसने बबूल की लकड़ी से धूप की वेदी+ बनायी। यह वेदी चौकोर थी, लंबाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ। इसकी ऊँचाई दो हाथ थी। वेदी के कोनों को उभरा हुआ बनाकर सींग का आकार दिया गया।+
26 उसने पूरी वेदी को यानी उसके ऊपरी हिस्से, उसके बाज़ुओं और सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ा। और वेदी के चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया।
27 उसने वेदी पर आमने-सामने दोनों बाज़ुओं में, नक्काशीदार किनारे के नीचे सोने के दो-दो कड़े लगाए ताकि उनमें वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे वेदी उठायी जाती।
28 फिर उसने बबूल की लकड़ी से डंडे बनाए और उन पर सोना मढ़ा।
29 उसने अभिषेक का पवित्र तेल+ और शुद्ध, सुगंधित धूप भी तैयार किया,+ जिन्हें मसालों के उम्दा मिश्रण से बनाया गया था।*
कई फुटनोट
^ या “ठीक वैसे ही जैसे कोई इत्र बनानेवाला बनाता है।”