निर्गमन 9:1-35
9 इसलिए यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन के पास जा और उससे कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को जाने दे ताकि वे मेरी सेवा करें।+
2 अगर तू उन्हें भेजने से इनकार कर देगा और उन्हें रोके रहेगा,
3 तो देख! मुझ यहोवा का हाथ+ तेरे सभी जानवरों के खिलाफ उठेगा। मैं तेरे घोड़ों, गधों, ऊँटों, गाय-बैलों और भेड़-बकरियों को एक महामारी से मारूँगा।+
4 मैं यहोवा इसराएलियों के जानवरों और मिस्रियों के जानवरों के बीच फर्क साफ दिखाऊँगा। इसराएलियों का एक भी जानवर नहीं मरेगा।”’”+
5 यहोवा ने यह महामारी लाने का एक समय भी तय किया और कहा, “मैं यहोवा कल के दिन मिस्र पर यह कहर लाऊँगा।”
6 यहोवा ने अगले दिन ऐसा ही किया। मिस्र के हर तरह के जानवर मरने लगे।+ मगर इसराएल का एक भी जानवर नहीं मरा।
7 जब फिरौन ने इस बारे में जाँच-पड़ताल करवायी तो पता चला कि इसराएलियों का एक भी जानवर नहीं मरा! फिर भी उसके दिल पर कोई असर नहीं हुआ और उसने इसराएलियों को नहीं जाने दिया।+
8 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “तुम एक भट्ठे से राख लेना और अपनी दोनों मुट्ठियाँ भर लेना। फिर मूसा फिरौन के देखते वह राख ऊपर हवा में उड़ाए।
9 तब वह राख बारीक धूल में बदलकर पूरे मिस्र में फैल जाएगी और इससे मिस्र के सभी इंसानों और जानवरों के शरीर पर फोड़े निकल आएँगे और उनसे मवाद बहने लगेगा।”
10 तब मूसा और हारून ने एक भट्ठे से राख ली और वे फिरौन के सामने गए। फिर मूसा ने राख हवा में उड़ायी। इससे इंसानों और जानवरों के शरीर पर फोड़े निकल आए और उनसे मवाद बहने लगा।
11 सभी मिस्रियों पर, यहाँ तक कि जादू-टोना करनेवाले पुजारियों के शरीर पर भी फोड़े निकल आए, इसलिए वे पुजारी मूसा के सामने खड़े न हो सके।+
12 मगर इस कहर के बावजूद फिरौन का दिल कठोर बना रहा और यहोवा ने उसे कठोर ही रहने दिया। फिरौन ने मूसा और हारून की बात नहीं मानी, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा से कहा था।+
13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू कल सुबह तड़के उठकर फिरौन के सामने जा और उससे कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को भेज दे ताकि वे मेरी सेवा करें।
14 अगर तू ऐसा नहीं करेगा, तो मैं सारे कहर लाकर तुझ पर और तेरे सेवकों और लोगों पर ऐसा वार करूँगा कि तू जान जाएगा कि पूरे जहान में मेरे जैसा परमेश्वर कोई नहीं।+
15 मैं चाहता तो अपना हाथ बढ़ाकर तुझ पर और तेरे लोगों पर कोई महामारी लाता और अब तक धरती से तेरा नामो-निशान मिटा चुका होता।
16 मगर मैंने तुझे इसलिए ज़िंदा रहने दिया है ताकि तुझे अपनी शक्ति दिखा सकूँ और पूरी धरती पर अपने नाम का ऐलान करा सकूँ।+
17 क्या तू अब भी मगरूर बना हुआ है और मेरे लोगों को न छोड़ने की ज़िद पर अड़ा है?
18 अब देखना मैं क्या करता हूँ। मैं कल इसी समय मिस्र पर ऐसे भारी-भारी ओले बरसाऊँगा, जैसे आज तक इस देश में कभी नहीं बरसे।
19 इसलिए अब तू अपने आदमियों से बोल कि वे जाकर तेरे सभी जानवरों को और तेरा जो कुछ बाहर है वह सब अंदर ले आएँ। हर वह इंसान और जानवर जो घर के बाहर होगा और अंदर नहीं लाया जाएगा, वह ओलों के गिरने से मर जाएगा।”’”
20 फिरौन के सेवकों में से जिस-जिसने यहोवा की बात सुनी और उसका डर माना, वे फटाफट जाकर अपने दासों और जानवरों को घरों के अंदर ले आए।
21 मगर जिन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी, उन्होंने अपने दासों और जानवरों को बाहर ही रहने दिया।
22 अब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आसमान की तरफ उठा ताकि पूरे मिस्र पर ओले बरसें,+ मिस्र के सभी इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों पर ओले गिरें।”+
23 तब मूसा ने अपनी छड़ी ऊपर आसमान की तरफ उठायी और यहोवा ने बादल के तेज़ गरजन के साथ ज़मीन पर ओले और आग* बरसायी। यहोवा मिस्र पर लगातार ओले बरसाता रहा।
24 ओलों की जमकर बारिश हुई और उनके साथ-साथ आग भी गिरती रही। जब से मिस्र देश बसा था, तब से मिस्र में ओलों की ऐसी बारिश नहीं हुई थी।+
25 ओलों ने पूरे मिस्र में तबाही मचा दी। जितने भी इंसान और जानवर बाहर थे सब मारे गए, पेड़ टूटकर गिर गए और सारे पौधे नष्ट हो गए।+
26 सिर्फ गोशेन में, जहाँ इसराएली रहते थे, ओले नहीं पड़े।+
27 इसलिए फिरौन ने मूसा और हारून को अपने पास बुलवाया और उनसे कहा, “अब मैं मानता हूँ कि मैंने पाप किया है। यहोवा ने जो किया वह सही है क्योंकि मैं और मेरे लोग दोषी हैं।
28 अब यहोवा से फरियाद करो कि वह ओलों का गिरना और बादलों का गरजना बंद कर दे। तब मैं तुम लोगों को यहाँ से जाने दूँगा, तुम्हें और नहीं रोकूँगा।”
29 मूसा ने कहा, “ठीक है, मैं जैसे ही शहर से बाहर कदम रखूँगा, यहोवा के सामने हाथ फैलाकर दुआ करूँगा। तब यह गरजन और ये ओले बंद हो जाएँगे ताकि तू जान ले कि सारी धरती का मालिक यहोवा है।+
30 मगर मुझे मालूम है कि इसके बाद भी तू और तेरे सेवक यहोवा परमेश्वर का डर नहीं माननेवाले।”
31 ओलों की वजह से मिस्र में अलसी और जौ की फसल बरबाद हो गयी क्योंकि जौ की फसल करीब-करीब पक चुकी थी और अलसी के पौधों में कलियाँ लग चुकी थीं।
32 मगर गेहूँ और कठिया गेहूँ की फसल को नुकसान नहीं हुआ क्योंकि इनकी फसल तैयार होने में अभी देर थी।*
33 मूसा फिरौन के पास से चला गया और शहर से बाहर आने के बाद उसने हाथ फैलाकर यहोवा से दुआ की। तब ओलों का गिरना, गरजन और बारिश सब बंद हो गया।+
34 जब फिरौन ने देखा कि बारिश, ओले और गरजन बंद हो गए हैं, तो उसने और उसके सेवकों ने फिर से पाप किया, उन्होंने अपना दिल कठोर बना लिया।+
35 फिरौन का दिल कठोर ही बना रहा और उसने इसराएलियों को जाने नहीं दिया। यह बिलकुल वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा से कहलवाया था।+