भजन 139:1-24
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
139 हे यहोवा, तूने मुझे जाँचा है,तू मुझे जानता है।+
2 तू मेरा उठना-बैठना जानता है,+
तू मेरे विचारों को दूर से ही जान लेता है।+
3 मैं चाहे चलूँ या लेटूँ, तू मुझ पर गौर करता है,तू मेरे पूरे चालचलन से वाकिफ है।+
4 इससे पहले कि मेरी जीभ एक भी शब्द कहे,हे यहोवा, तू जान लेता है।+
5 तू मुझे आगे और पीछे से घेरे रहता है,तू अपना हाथ मुझ पर रखता है।
6 तू मुझे कितनी बारीकी से जानता है,यह समझना मेरे बस के बाहर है।*
यह मेरी पहुँच से बाहर है।*+
7 मैं तेरी पवित्र शक्ति से बचकर कहाँ जा सकता हूँ?तेरे सामने से भागकर कहाँ जा सकता हूँ?+
8 अगर मैं ऊपर आकाश पर चढ़ जाऊँ, तो तू वहाँ रहेगा,अगर मैं अपना बिस्तर नीचे कब्र में लगाऊँ, तो तू वहाँ भी रहेगा।+
9 अगर मैं भोर के पंख लगाकर उड़ जाऊँकि जाकर दूर समुंदर के पास बस जाऊँ,
10 तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा,तेरा दायाँ हाथ मुझे थाम लेगा।+
11 अगर मैं कहूँ, “बेशक, अँधेरा मुझे छिपा लेगा!”
तो मेरे चारों ओर रात का अँधेरा उजाला हो जाएगा।
12 अँधेरा तेरे लिए अँधेरा नहीं होगा,रात का अँधेरा तेरे लिए दिन की तेज़ रौशनी जैसा होगा,+अँधेरा तेरे लिए उजाले के बराबर है।+
13 तूने मेरे गुरदे बनाए,तूने मुझे माँ की कोख में आड़ दी।*+
14 मैं तेरी तारीफ करता हूँ क्योंकि तूने मुझे लाजवाब तरीके से बनाया है,+यह देखकर मैं विस्मय से भर जाता हूँ।
तेरे काम बेजोड़ हैं,+ यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ।
15 जब मुझे गुप्त में बनाया जा रहा था,मुझे मानो धरती की गहराइयों में बुना जा रहा था,तब मेरी हड्डियाँ तुझसे छिपी न थीं।+
16 तेरी आँखों ने मुझे तभी देखा था जब मैं बस एक भ्रूण था,इससे पहले कि उसके सारे अंग बनते,उनके बारे में तेरी किताब में लिखा थाकि कब उनकी रचना होगी।
17 इसलिए तेरे विचार मेरे लिए क्या ही अनमोल हैं!+
हे परमेश्वर, तेरे विचार अनगिनत हैं!+
18 अगर मैं उन्हें गिनने की कोशिश करूँ, तो वे बालू के किनकों से ज़्यादा होंगे।+
जब मैं जाग उठता हूँ, तब भी तेरे संग होता हूँ।*+
19 हे परमेश्वर, काश तू दुष्टों को मार डालता!+
तब वे खूँखार आदमी* मुझसे दूर चले जाते,
20 जो बुरे इरादे से* तेरे खिलाफ बातें करते हैं।
वे तेरे बैरी हैं जो तेरे नाम का गलत इस्तेमाल करते हैं।+
21 हे यहोवा, क्या मैं उनसे नफरत नहीं करता जो तुझसे नफरत करते हैं?+क्या मैं उनसे घिन नहीं करता जो तुझसे बगावत करते हैं?+
22 मेरे दिल में उनके लिए बस नफरत है,+वे मेरे कट्टर दुश्मन बन गए हैं।
23 हे परमेश्वर, मुझे जाँच और मेरे दिल को जान।+
मुझे परख और मेरे मन की चिंताओं* को जान ले।+
24 देख कि मुझमें कुछ ऐसा तो नहीं जो मुझे बुरी राह पर ले जाए,+मुझे उस राह पर ले चल+ जो सदा कायम रहेगी।
कई फुटनोट
^ या “यह मेरे लिए बहुत हैरानी की बात है।”
^ या “यह मैं जान भी नहीं सकता।”
^ या शायद, “में बुना।”
^ या शायद, “तब भी उन्हें गिन रहा होता।”
^ या “खून के दोषी आदमी।”
^ या “अपने ही खयाल से।”
^ या “और परेशान करनेवाले विचारों।”