भजन 74:1-23
आसाप की रचना।+ मश्कील।*
74 हे परमेश्वर, तूने क्यों हमें सदा के लिए ठुकरा दिया है?+
तेरे चरागाह की भेड़ों पर क्यों तेरा क्रोध भड़का हुआ है?*+
2 उन लोगों* को याद कर जिन्हें तूने लंबे अरसे पहले अपनी जागीर बनाया था,+उस गोत्र को याद कर जिसे तूने इसलिए छुड़ाया कि वह तेरी विरासत बने।+
सिय्योन पहाड़ को याद कर जहाँ तू निवास करता था।+
3 उन जगहों की तरफ कदम बढ़ा जो पूरी तरह नाश की गयी हैं,+
दुश्मन ने पवित्र जगह की हर चीज़ तहस-नहस कर दी है।+
4 तेरे बैरी तेरी उपासना की जगह गरजे।+
वहाँ उन्होंने अपने झंडे गाड़ दिए।
5 उन्होंने ऐसी तबाही मचायी जैसे कोई घने जंगल में पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाता है।
6 उन्होंने कुल्हाड़ियों और लोहे की सलाखों से भवन की सारी नक्काशियाँ+ तोड़ दीं।
7 उन्होंने तेरे भवन में आग लगा दी।+
जो पवित्र डेरा तेरे नाम से जाना जाता है उसे दूषित कर दिया, खाक में मिला दिया।
8 उन्होंने और उनकी औलाद ने मन-ही-मन कहा:
“इस देश में परमेश्वर की उपासना की सारी जगह जला दी जाएँ।”
9 हमें कोई निशानी नज़र नहीं आती,एक भी भविष्यवक्ता नहीं रहा,हममें से कोई नहीं जानता कि ऐसा कब तक चलता रहेगा।
10 हे परमेश्वर, दुश्मन कब तक तुझे ताना मारता रहेगा?+
क्या बैरी सदा तक तेरे नाम का अनादर करता रहेगा?+
11 तू क्यों अपना दायाँ हाथ रोके हुए है?+
अपना हाथ बगल* से निकाल और उन्हें खत्म कर दे।
12 मेरे परमेश्वर, तू मुद्दतों से मेरा राजा है,तू ही धरती पर उद्धार दिलाता है।+
13 तूने अपनी ताकत से समुंदर में हलचल मचा दी,+समुंदर के विशाल जीवों का सिर कुचल दिया।
14 तूने लिव्यातान* के सिर कुचल दिए।उसे रेगिस्तान के लोगों को खाने के लिए दे दिया।
15 तूने पानी के सोतों और धाराओं के मुँह खोल दिए,+सदा बहती नदियों को सुखा दिया।+
16 दिन पर भी तेरा अधिकार है और रात पर भी।
तूने ज्योति बनायी, हाँ, सूरज की रचना की।+
17 तूने धरती की सारी हदें ठहरायीं,+सर्दी और गरमी का मौसम बनाया।+
18 हे यहोवा, ध्यान दे कि दुश्मन तुझ पर कैसे ताना कसते हैं,मूर्ख कैसे तेरे नाम का अनादर करते हैं।+
19 अपनी फाख्ते की जान जंगली जानवरों के हवाले न कर दे।
अपने पीड़ित लोगों को हमेशा के लिए न भुला दे।
20 हमारे साथ किया करार याद कर,क्योंकि धरती की अँधेरी जगह दरिंदों का अड्डा बन गयी हैं।
21 कुचले हुए निराश होकर न लौटें,+दीन-दुखी और गरीब तेरे नाम की तारीफ करें।+
22 हे परमेश्वर, उठ अपने मुकदमे की पैरवी कर।
ध्यान दे कि मूर्ख कैसे सारा दिन तुझ पर ताना कसते हैं।+
23 तेरे दुश्मन जो कहते हैं उसे न भूल।
तेरे खिलाफ उठनेवालों का होहल्ला आसमान तक बढ़ता जा रहा है।
कई फुटनोट
^ शा., “के खिलाफ तेरे क्रोध की आग का धुआँ क्यों उठ रहा है?”
^ शा., “अपनी मंडली।”
^ या “अपने कपड़े की तह।”