मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 9:1-50

9  फिर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह नहीं देखेंगे, जब तक कि वे यह न देख लें कि परमेश्‍वर का राज पूरी ताकत के साथ आ चुका है।”+  इसके छ: दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया। वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ उनके सिवा कोई नहीं था। उनके सामने यीशु का रूप बदल गया।+  उसके कपड़े चमकने लगे और इतने उजले सफेद हो गए जितना कि कोई भी धोबी सफेद नहीं कर सकता।  वहाँ चेलों को एलियाह और मूसा भी दिखायी दिए, वे दोनों यीशु से बात कर रहे थे।  तब पतरस ने यीशु से कहा, “गुरु, हम बहुत खुश हैं कि हम यहाँ आए। इसलिए हमें तीन तंबू खड़े करने दे, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।”  सच तो यह है कि पतरस को समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या कहना चाहिए क्योंकि वे बहुत डर गए थे।  फिर एक बादल उभरा और उन पर छा गया और बादल में से यह आवाज़ आयी,+ “यह मेरा प्यारा बेटा है।+ इसकी सुनो।”+  फिर अचानक चेलों ने आस-पास नज़र डाली और देखा कि अब वहाँ उनके साथ यीशु के सिवा कोई नहीं है।  जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें सख्ती से आदेश दिया कि जब तक इंसान का बेटा मरे हुओं में से ज़िंदा न हो जाए, तब तक उन्होंने जो देखा है वह किसी को न बताएँ।+ 10  चेलों ने यह बात गाँठ बाँध ली।* मगर वे आपस में चर्चा करने लगे कि उसने मरे हुओं में से ज़िंदा होने की जो बात कही, उसका क्या मतलब है। 11  उन्होंने यीशु से पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलियाह+ का आना ज़रूरी है?”+ 12  उसने कहा, “एलियाह वाकई पहले आएगा और सबकुछ पहले जैसा कर देगा।+ मगर शास्त्र में फिर ऐसा क्यों लिखा है कि इंसान के बेटे को बहुत-सी तकलीफें झेलनी होंगी+ और उसे तुच्छ समझा जाएगा?+ 13  पर मैं तुमसे कहता हूँ कि एलियाह+ दरअसल आ चुका है और ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, उन्होंने उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे।”+ 14  जब वे बाकी चेलों के पास आए, तो उन्होंने देखा कि लोगों की भीड़ चेलों को घेरे हुए है और शास्त्री उनसे बहस कर रहे हैं।+ 15  मगर जैसे ही भीड़ ने यीशु को देखा, वे दंग रह गए और भागकर उसके पास आए और उसका स्वागत किया। 16  यीशु ने उनसे पूछा, “तुम उनसे क्या बहस कर रहे हो?” 17  भीड़ में से एक ने कहा, “गुरु, मैं अपने बेटे को तेरे पास लाया था क्योंकि उसमें एक गूँगा दुष्ट स्वर्गदूत समाया है।+ 18  और जब कभी वह मेरे बेटे को पकड़ता है, तो उसे ज़मीन पर पटक देता है और मेरे बेटे के मुँह से झाग निकलने लगता है, वह दाँत पीसता है और बिलकुल बेजान हो जाता है। मैंने तेरे चेलों से इस दुष्ट दूत को निकालने के लिए कहा, मगर वे नहीं निकाल सके।” 19  यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “हे अविश्‍वासी लोगो,*+ मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हारी सहूँ? लड़के को मेरे पास लाओ।”+ 20  वे उसे यीशु के पास ले आए। मगर जैसे ही उस दुष्ट स्वर्गदूत ने यीशु को देखा, उसने बच्चे को मरोड़ा+ और वह बच्चा ज़मीन पर गिर पड़ा और लोटने और झाग उगलने लगा। 21  तब यीशु ने लड़के के पिता से पूछा, “इसकी यह हालत कब से है?” उसने कहा, “बचपन से। 22  इसकी जान लेने के लिए इस दुष्ट दूत ने कई बार इसे आग में झोंका है, तो कई बार पानी में गिराया है। लेकिन अगर तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खा और हमारी मदद कर।” 23  यीशु ने उससे कहा, “तू यह क्यों कह रहा है, ‘अगर तू कुछ कर सके’? जिसमें विश्‍वास है, उसके लिए सबकुछ मुमकिन है।”+ 24  उसी वक्‍त उस बच्चे के पिता ने ऊँची आवाज़ में कहा, “मुझमें विश्‍वास है, लेकिन अगर मेरे विश्‍वास में कोई कमी है, तो मेरी मदद कर!”+ 25  तभी यीशु ने देखा कि लोगों की एक भीड़ उनकी तरफ दौड़ी चली आ रही है, इसलिए उसने दुष्ट स्वर्गदूत को फटकारा और कहा, “हे गूँगे और बहरे दूत, मैं तुझे हुक्म देता हूँ, इसमें से बाहर निकल आ और आइंदा कभी इसमें मत जाना!”+ 26  तब वह दुष्ट दूत ज़ोर से चिल्लाया और लड़के को बहुत मरोड़ने के बाद उसमें से निकल गया। वह बच्चा मुरदा-सा हो गया और ज़्यादातर लोग कहने लगे, “यह तो मर गया है!” 27  लेकिन यीशु ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया। 28  इसके बाद यीशु एक घर में गया और वहाँ उसके चेलों ने अकेले में उससे पूछा, “हम उस दुष्ट स्वर्गदूत को क्यों नहीं निकाल पाए?”+ 29  उसने कहा, “इस किस्म का दूत सिर्फ प्रार्थना से निकाला जा सकता है।” 30  वे उस जगह से निकल पड़े और गलील से होकर गए। यीशु नहीं चाहता था कि लोग जानें कि वह कहाँ है। 31  क्योंकि इस दौरान वह अपने चेलों को सिखा रहा था और उन्हें यह बता रहा था, “इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात किया जाएगा और उसे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा। वे उसे मार डालेंगे,+ मगर मरने के तीन दिन बाद वह ज़िंदा हो जाएगा।”+ 32  मगर चेले उसकी बात नहीं समझे और उससे सवाल पूछने से भी डर रहे थे। 33  फिर वे कफरनहूम आए। जब वह घर के अंदर था, तो उसने चेलों से पूछा, “तुम रास्ते में किस बात पर झगड़ रहे थे?”+ 34  वे चुप्पी साधे रहे क्योंकि वे इस बात पर झगड़ रहे थे कि हममें बड़ा कौन है। 35  तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया और उनसे कहा, “अगर कोई सबसे बड़ा बनना चाहता है, तो ज़रूरी है कि वह सबसे छोटा बने और सबका सेवक बने।”+ 36  फिर उसने एक छोटे बच्चे को लेकर उनके बीच खड़ा किया और उसके कंधों पर हाथ रखकर उनसे कहा, 37  “जो कोई मेरे नाम से ऐसे एक भी बच्चे को स्वीकार करता है,+ वह मुझे स्वीकार करता है। और जो मुझे स्वीकार करता है, वह न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे भेजनेवाले को भी स्वीकार करता है।”+ 38  यूहन्‍ना ने उससे कहा, “गुरु, हमने देखा कि एक आदमी तेरा नाम लेकर लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाल रहा था और हमने उसे रोकने की कोशिश की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता।”+ 39  लेकिन यीशु ने कहा, “उसे रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से शक्‍तिशाली काम करे और पलटकर मुझे बदनाम भी करे। 40  जो हमारे खिलाफ नहीं, वह हमारे साथ है।+ 41  जो कोई तुम्हें इसलिए एक प्याला पानी पिलाता है कि तुम मसीह के हो,+ मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपना इनाम हरगिज़ न खोएगा।+ 42  लेकिन जो कोई विश्‍वास करनेवाले ऐसे छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है,* उसके लिए यही अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा घुमाता है और उसे समुंदर में फेंक दिया जाए।+ 43  अगर तेरा हाथ कभी तुझसे पाप करवाए* तो उसे काट डाल। अच्छा यही होगा कि तू एक हाथ के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि दोनों हाथों समेत गेहन्‍ना में डाला जाए, हाँ, उस आग में जो कभी बुझायी नहीं जा सकती।+ 44  — 45  और अगर तेरा पैर तुझसे पाप करवाता है* तो उसे काट डाल। अच्छा यही होगा कि तू एक पैर के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों पैरों समेत गेहन्‍ना में डाला जाए।+ 46  — 47  और अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवाती है* तो उसे निकालकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू एक आँख के बिना परमेश्‍वर के राज में दाखिल हो, बजाय इसके कि तुझे दोनों आँखों समेत गेहन्‍ना में फेंक दिया जाए,+ 48  जहाँ कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती।+ 49  इसलिए कि हर इंसान पर ऐसे आग बरसायी जाएगी जैसे नमक छिड़का जाता है।+ 50  नमक बढ़िया होता है, लेकिन अगर नमक अपना स्वाद खो दे, तो किस चीज़ से तुम उसे नमकीन कर पाओगे?+ खुद में नमक जैसा स्वाद रखो+ और आपस में शांति बनाए रखो।”+

कई फुटनोट

या शायद, “यह बात अपने तक रखी।”
शा., “पीढ़ी।”
यानी कुछ ऐसा करता है कि दूसरा आदमी विश्‍वास करना छोड़ देता है।
शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”
शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”
शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”

अध्ययन नोट

एक ऊँचे पहाड़: मुमकिन है कि यह हेरमोन पहाड़ है जो कैसरिया फिलिप्पी के पास है। (मर 8:27; मत 16:13 का अध्ययन नोट देखें।) इसकी ऊँचाई समुद्र-तल से करीब 9,232 फुट (2,814 मी.) है। शायद इसी पहाड़ की किसी ऊँची ढलान पर यीशु का रूप बदला था।​—अति. ख10 देखें।

गुरु: शा., “रब्बी।” इसका शाब्दिक मतलब है, “मेरे महान।” यह इब्रानी शब्द राव से निकला है जिसका मतलब है, “महान।” आम तौर पर “रब्बी” का मतलब होता है, “गुरु।”​—यूह 1:38.

आवाज़: खुशखबरी की किताबों में बताया गया है कि यहोवा ने तीन मौकों पर सीधे-सीधे इंसानों से बात की और यह दूसरा मौका था।​—मर 1:11; यूह 12:28 के अध्ययन नोट देखें।

गूँगा दुष्ट स्वर्गदूत: यानी एक ऐसा दुष्ट स्वर्गदूत जो एक इंसान में समाकर उसे गूँगा बना देता है।

मरोड़ा: इस मामले में बच्चे को मिरगी के दौरे इसलिए पड़ते थे क्योंकि उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हुआ था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मिरगी की बीमारी हमेशा दुष्ट स्वर्गदूतों की वजह से होती है, ठीक जैसे इनकी वजह से हमेशा लोग गूँगे और बहरे नहीं हो जाते। (मर 9:17, 25 से तुलना करें।) इसके बजाय, मत 4:24 में बताया गया है कि लोग यीशु के पास अपने बीमार जनों को लाने लगे और उनमें ऐसे लोग थे “जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे और मिरगी” से पीड़ित थे। इस तरह यहाँ दो तरह के पीड़ित लोगों की बात की गयी है।​—मत 4:24 का अध्ययन नोट देखें।

गूँगे और बहरे दूत: यानी एक ऐसा दुष्ट स्वर्गदूत जो एक इंसान में समाकर उसे गूँगा और बहरा बना देता है।

प्रार्थना से: कुछ हस्तलिपियों में ये शब्द भी जोड़े गए हैं: “और उपवास से।” लेकिन ये शब्द सबसे पुरानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते। ज़ाहिर है कि ये शब्द उन नकल-नवीसों ने जोड़ दिए जो खुद उपवास करते थे और इसका बढ़ावा देते थे। उन्होंने कई दूसरी आयतों में भी उपवास के बारे में लिखा, जबकि पुरानी हस्तलिपियों में उन आयतों में इस बारे में बात नहीं की गयी है।​—मत 17:21 का अध्ययन नोट देखें।

चक्की का वह पाट . . . जिसे गधा घुमाता है: मत 18:6 का अध्ययन नोट देखें।

उसे काट डाल: यीशु यहाँ अतिशयोक्‍ति अलंकार इस्तेमाल कर रहा था। वह कह रहा था कि एक व्यक्‍ति को हाथ, पैर या आँख जैसी कोई भी अनमोल चीज़ त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए, बजाय इसके कि वह उसकी वजह से परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करे। बेशक यीशु अपने शरीर को नुकसान पहुँचाने का बढ़ावा नहीं दे रहा था, न ही कह रहा था कि इंसान किसी तरह अपने अंगों का गुलाम है। (मर 9:45, 47) उसके कहने का मतलब था कि इंसान को अपने किसी अंग के ज़रिए पाप करने के बजाय उसे मार डालना चाहिए या ऐसा समझना चाहिए मानो वह शरीर से कट गया हो। (कुल 3:5 से तुलना करें।) उसे हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए किसी भी चीज़ को आड़े नहीं आने देना चाहिए।

गेहन्‍ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।

कुछ हस्तलिपियों में यहाँ लिखा है: “जहाँ उनके कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती।” लेकिन ये शब्द प्राचीन और अहम हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते। इनसे मिलते-जुलते शब्द आयत 48 में पाए जाते हैं, जिनके बारे में कोई शक नहीं है। सबूतों से पता चलता है कि किसी नकल-नवीस या नकल-नवीसों ने आयत 48 के शब्द आयत 44 और 46 में लिख दिए।​—अति. क3 देखें।

गेहन्‍ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।

मर 9:44 का अध्ययन नोट देखें।

गेहन्‍ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।

जहाँ: यानी “गेहन्‍ना” जिसका ज़िक्र पिछली आयत में किया गया है। जैसे मत 5:22 के अध्ययन नोट में बताया गया है, यीशु के दिनों तक हिन्‍नोम घाटी (जिससे “गेहन्‍ना” शब्द निकला है) कूड़ा-करकट जलाने की जगह बन गयी थी। ज़ाहिर है कि यीशु यह कहकर कि कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती, यश 66:24 की भविष्यवाणी की तरफ इशारा कर रहा था। उस भविष्यवाणी में यह नहीं बताया गया कि ज़िंदा लोगों को तड़पाया जाएगा बल्कि यह बताया गया है कि ‘उन आदमियों की लाशों’ का क्या होगा जो यहोवा के खिलाफ हो जाते हैं। हिन्‍नोम घाटी में जहाँ आग नहीं पहुँचती थी, वहाँ कीड़े पड़ जाते थे और बची हुई चीज़ों को खा जाते थे। इस आधार पर यीशु के कहने का मतलब था कि जब परमेश्‍वर कड़ी सज़ा देगा, तब लोगों को तड़पाया नहीं जाएगा बल्कि पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा।

ऐसे आग बरसायी जाएगी जैसे नमक छिड़का जाता है: शा., “आग से नमकीन किया जाएगा।” यह एक अलंकार है जिसे दो तरीकों से समझा जा सकता है। (1) अगर यह अलंकार मर 9:43-48 में दर्ज़ यीशु की बात से जुड़ा है तो इसका मतलब है, गेहन्‍ना की आग से नाश। यीशु शायद उस घटना की तरफ इशारा कर रहा था जब परमेश्‍वर ने मृत (लवण) सागर के पास बसे सदोम और अमोरा शहरों पर “आग और गंधक” बरसायी थी। (उत 19:24) इस संदर्भ के मुताबिक “हर इंसान आग से नमकीन किया जाएगा” शब्दों का मतलब है, जो लोग अपने हाथों, पैरों या आँखों के ज़रिए पाप करते हैं या दूसरों को ठोकर खिलाते हैं उन्हें गेहन्‍ना की आग से नमकीन किया जाएगा यानी पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा। (2) अगर यह अलंकार “आग से नमकीन किया जाएगा” मर 9:50 में दर्ज़ यीशु की बात से जुड़ा है, तो उसके कहने का मतलब शायद यह था कि उसके चेलों पर ऐसी आग आएगी जिससे उनका भला होगा और उनके बीच शांति होगी। इस संदर्भ के मुताबिक, हर इंसान यानी उसके सभी चेले यहोवा के वचन से शुद्ध किए जाएँगे, जो आग की तरह सभी झूठी शिक्षाओं और गलत बातों को भस्म कर देता है। साथ ही, चेले परीक्षाओं की आग से शुद्ध किए जाएँगे, यानी जब उन्हें सताया जाएगा तो उनकी वफादारी और भक्‍ति की परख होगी और उनके ये गुण और भी निखर जाएँगे। (यिर्म 20:8, 9; 23:29; 1पत 1:6, 7; 4:12, 13) यह भी हो सकता है कि जब यीशु ने यह बात कही तो उसके मन में ये दोनों विचार रहे हों।

नमक: एक ऐसा खनिज जो खाने का स्वाद बढ़ाता है। यह खाने की चीज़ों को खराब होने से भी बचाता है।​—मत 5:13 का अध्ययन नोट देखें।

अपना स्वाद खो दे: या “अपना नमकीनपन खो दे।” यीशु के दिनों में आम तौर पर नमक मृत सागर के पास से निकाला जाता था और इसमें दूसरे खनिज भी मिले होते थे। नमक को साफ करते वक्‍त इन खनिजों को अलग किया जाता था। इनमें कोई स्वाद नहीं होता था और ये किसी काम के नहीं रह जाते थे।

खुद में नमक जैसा स्वाद रखो: ज़ाहिर है कि यहाँ “नमक” का मतलब है, मसीहियों में पायी जानेवाली खूबी जो उन्हें ऐसे काम करने और ऐसी बातें कहने के लिए उभारती है जिनमें भलाई और लिहाज़ झलकता है और जिनसे दूसरों की जान बच सकती है। प्रेषित पौलुस ने इसी मतलब को ध्यान में रखते हुए “नमक” शब्द का इस्तेमाल किया था। (कुल 4:6, फु.) शायद यीशु के मन में प्रेषितों के झगड़ों की बात रही होगी कि उनमें सबसे बड़ा कौन होगा। अगर एक इंसान में लाक्षणिक नमक होगा तो वह ऐसी बातें कहेगा, जिन्हें स्वीकार करना दूसरों के लिए आसान होगा और इससे शांति बनी रहेगी।

तसवीर और ऑडियो-वीडियो

हेरमोन पहाड़
हेरमोन पहाड़

हेरमोन, इसराएली इलाके का सबसे ऊँचा पहाड़ है। इसकी ऊँचाई करीब 9,232 फुट (2,814 मी.) है और यह कैसरिया फिलिप्पी के पास है। जब नम हवा हेरमोन पहाड़ की बर्फीली चोटियों से होकर गुज़रती थी, तो उससे ओस बनती थी। यही ओस लंबे समय तक चलनेवाले सूखे मौसम में पेड़-पौधों को सींचती थी जिससे वे हरे-भरे रहते थे। (भज 133:3) इसकी पिघली हुई बर्फ यरदन नदी का मुख्य स्रोत है। एक संभावना है कि इस पहाड़ पर यीशु का रूप बदला था।​—मत 17:2.

हूला घाटी आरक्षित क्षेत्र से हेरमोन पहाड़ का नज़ारा
हूला घाटी आरक्षित क्षेत्र से हेरमोन पहाड़ का नज़ारा

हेरमोन पहाड़ वादा किए हुए देश की उत्तरी छोर पर है। इस पहाड़ पर कई चोटियाँ हैं जो साफ नज़र आती हैं। सबसे ऊँची चोटी समुद्र-तल से 9,232 फुट (2,814 मी.) की ऊँचाई पर है। इन्हीं चोटियों से पूर्वी लबानोन पर्वतमाला का दक्षिणी हिस्सा बनता है। मुमकिन है कि हेरमोन पहाड़ पर यीशु का रूप बदला था।

चक्की का निचला और ऊपरी पाट
चक्की का निचला और ऊपरी पाट

यहाँ तसवीर में दिखायी बड़ी चक्की को गधे जैसे पालतू जानवर के ज़रिए घुमाया जाता था। यह चक्की अनाज पीसने या जैतून का तेल निकालने के काम आती थी। इसके ऊपरी पाट का व्यास करीब 5 फुट (1.5 मी.) होता था और निचला पाट उससे भी बड़ा होता था।

आज हिन्‍नोम घाटी
आज हिन्‍नोम घाटी

हिन्‍नोम घाटी (1) को मसीही यूनानी शास्त्र में गेहन्‍ना कहा गया है। यहाँ वह पहाड़ भी दिखाया गया है (2) जहाँ पहली सदी में यहूदियों का मंदिर था। मगर आज वहाँ एक जानी-मानी इमारत है, मुसलमानों का मकबरा जिसे ‘डोम ऑफ द रॉक’ कहा जाता है।​—अतिरिक्‍त लेख ख-12 में नक्शा देखें।

मृत सागर के तट पर नमक
मृत सागर के तट पर नमक

आज दुनिया के दूसरे सागरों के मुकाबले मृत सागर (लवण सागर) का पानी नौ गुना ज़्यादा खारा है। (उत 14:3) मृत सागर का पानी जब भाप बनकर उड़ जाता था तो काफी तादाद में नमक रह जाता था। इसराएली यही नमक खाते थे। यह नमक ज़्यादा अच्छा नहीं माना जाता था क्योंकि इसमें दूसरे खनिज मिले होते थे। इसराएली, फीनीके के लोगों से भी नमक खरीदते होंगे जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें भूमध्य सागर से नमक मिलता था। बाइबल बताती है कि नमक खाने का स्वाद बढ़ाता है। (अय 6:6) यीशु रोज़मर्रा के कामों में इस्तेमाल होनेवाली चीज़ों की मिसाल देने में कुशल था, इसलिए उसने कुछ ज़रूरी सीख देने के लिए नमक की मिसाल दी। जैसे, पहाड़ी उपदेश में उसने चेलों से कहा, “तुम पृथ्वी के नमक हो।” ऐसा कहकर वह उन्हें समझा रहा था कि वे दूसरों की मदद कर सकते हैं ताकि परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता खराब न हो और उनकी ज़िंदगी नैतिक तौर पर बरबाद न हो।