लूका के मुताबिक खुशखबरी 11:1-54
कई फुटनोट
अध्ययन नोट
प्रभु, . . . हमें प्रार्थना करना सिखा: चेले की इस गुज़ारिश के बारे में सिर्फ लूका ने लिखा। प्रार्थना के बारे में यह बातचीत, यीशु के पहाड़ी उपदेश देने के करीब 18 महीने बाद हुई। उस उपदेश में यीशु ने अपने चेलों को आदर्श प्रार्थना बतायी थी। (मत 6:9-13) लेकिन मुमकिन है कि उस वक्त यहाँ बताया चेला मौजूद नहीं था। इसलिए इस चेले की गुज़ारिश पर यीशु ने आदर्श प्रार्थना की खास बातें दोहरायीं। प्रार्थना, यहूदियों की ज़िंदगी और उपासना का एक अहम हिस्सा थी। इब्रानी शास्त्र की भजनों की किताब और दूसरी किताबों में कई प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं। इसलिए शायद चेले की इस गुज़ारिश का मतलब यह नहीं था कि वह प्रार्थना के बारे में कुछ नहीं जानता था या उसने कभी प्रार्थना नहीं की थी। इसमें कोई शक नहीं कि वह यहूदी धर्म गुरुओं की दिखावटी प्रार्थनाओं से भी वाकिफ था। लेकिन मुमकिन है कि उसने यीशु को प्रार्थना करते सुना होगा और गौर किया होगा कि उसकी प्रार्थनाएँ रब्बियों की प्रार्थनाओं से कितनी अलग हैं।—मत 6:5-8.
जब भी तुम प्रार्थना करो तो कहो: इन शब्दों के बाद आयत 2ख-4 में दी प्रार्थना में आदर्श प्रार्थना की खास बातें पायी जाती हैं। यह प्रार्थना यीशु ने करीब 18 महीने पहले पहाड़ी उपदेश देते वक्त बतायी थी। (मत 6:9ख-13) गौर करनेवाली बात है कि यीशु ने उस प्रार्थना को शब्द-ब-शब्द नहीं दोहराया। इससे पता चलता है कि यीशु यह बढ़ावा नहीं दे रहा था कि लोग यह प्रार्थना रटकर दोहराएँ, जैसे चर्च में किया जाता है। इसके अलावा, बाद में जब यीशु और उसके चेलों ने प्रार्थनाएँ कीं, तो उन्होंने आदर्श प्रार्थना के खास शब्द नहीं इस्तेमाल किए और न ही ठीक उसी तरीके से प्रार्थना की, जो तरीका आदर्श प्रार्थना में बताया गया था।
नाम: मत 6:9 का अध्ययन नोट देखें।
पवित्र किया जाए: मत 6:9 का अध्ययन नोट देखें।
जो भी हमारे खिलाफ पाप करके हमारा कर्ज़दार बन जाता है: जब कोई किसी व्यक्ति के खिलाफ पाप करता है तो यह ऐसा है मानो उसने उस व्यक्ति से कर्ज़ लिया हो, जो उसे हर हाल में चुकाना है यानी उसे माफी माँगनी है। पहाड़ी उपदेश देते समय यीशु ने जो आदर्श प्रार्थना बतायी, उसमें उसने मूल यूनानी भाषा में पाप के बजाय “कर्ज़” शब्द इस्तेमाल किया। (मत 6:12 का अध्ययन नोट देखें।) माफ कर दे के यूनानी शब्द का शाब्दिक मतलब है, “जाने देना” यानी कर्ज़ चुकाने की माँग करने के बजाय छोड़ देना।
परीक्षा आने पर हमें गिरने न दे: मत 6:13 का अध्ययन नोट देखें।
दोस्त, मुझे तीन रोटी उधार दे दे: मध्य पूर्वी देशों में मेहमान-नवाज़ी करना एक फर्ज़ माना जाता है और ऐसा करने के लिए लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, जैसे इस मिसाल में बताया गया है। मेहमान का आधी रात को आना दिखाता है कि उन दिनों सफर में कभी-भी परेशानी उठ सकती थी जिस वजह से मुसाफिरों के लिए तय वक्त पर पहुँचना हमेशा मुमकिन नहीं होता था। मेहमान के उस वक्त आने पर भी मेज़बान को लगा कि उसे मेहमान को कुछ-न-कुछ खाने को देना ही होगा। इसके लिए वह इतनी रात में अपने पड़ोसी को जगाकर उससे खाना माँगने के लिए भी तैयार था।
मुझे परेशान मत कर: इस मिसाल में बताए पड़ोसी के इनकार करने की वजह यह नहीं थी कि वह रूखे स्वभाव का था, बल्कि वह सो रहा था। उन दिनों घरों में, खासकर गरीबों के घरों में एक ही बड़ा कमरा होता था। अगर वह आदमी उठता, तो परिवार के बाकी लोग, यहाँ तक कि बच्चे भी जाग जाते।
बिना शर्म के माँगता ही जा रहा है: इस संदर्भ में इसका मतलब है, किसी चीज़ को पाने में लगे रहना। यीशु की मिसाल में बताए आदमी ने अपनी ज़रूरत की चीज़ माँगने में शर्म महसूस नहीं की या माँगते रहने में हार नहीं मानी। यीशु ने अपने चेलों से कहा कि इसी तरह उन्हें लगातार प्रार्थना करते रहना चाहिए।—लूक 11:9, 10.
बाल-ज़बूल: यह नाम शायद बाल-जबूब नाम का ही दूसरा रूप है, जिसका मतलब है “मक्खियों का मालिक।” इस बाल देवता की पूजा एक्रोन के पलिश्ती लोग करते थे। (2रा 1:3) कुछ यूनानी हस्तलिपियों में यह दूसरे तरीके से लिखा गया है, बील-ज़ीबाउल या बी-ज़ीबाउल जिनका शायद मतलब है, “ऊँचे निवास का मालिक।” या अगर परसर्ग ज़ीबाउल इब्रानी शब्द ज़ीवेल (मल) से लिया गया है, जो शब्द बाइबल में नहीं है, तो इन नामों का मतलब “मल का मालिक” हो सकता है। लूक 11:18 के मुताबिक, “बाल-ज़बूल” नाम शैतान को दिया गया है जो दुष्ट स्वर्गदूतों का राजा या शासक है।
परमेश्वर की पवित्र शक्ति: शा., “परमेश्वर की उँगली।” एक बार पहले जब ऐसी बातचीत हुई थी, तो मत्ती ने उस घटना को लिखते वक्त परमेश्वर की पवित्र शक्ति का ज़िक्र किया। इससे पता चलता है कि “परमेश्वर की उँगली” का मतलब है, “परमेश्वर की पवित्र शक्ति।” मूल भाषा में लूका के इस ब्यौरे में यीशु ने कहा कि उसने “परमेश्वर की उँगली” से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला, जबकि मत्ती के ब्यौरे के मुताबिक उसने “परमेश्वर की पवित्र शक्ति” या ज़ोरदार शक्ति से ऐसा किया।—मत 12:28.
साफ-सुथरा: कुछ हस्तलिपियों में लिखा है, “खाली, साफ-सुथरा।” लेकिन यहाँ जो लिखा है, उसका ठोस आधार शुरू की अधिकृत हस्तलिपियों में पाया जाता है। “खाली” का यूनानी शब्द मत 12:44 में आया है, जहाँ यीशु ने इसी से मिलती-जुलती बात कही। इसलिए कुछ विद्वानों का मानना है कि यह शब्द नकल-नवीसों ने लूका के ब्यौरे में जोड़ दिया होगा ताकि यह मत्ती के ब्यौरे से मेल खा सके।
दक्षिण की रानी: मत 12:42 का अध्ययन नोट देखें।
दीपक: मत 5:15 का अध्ययन नोट देखें।
टोकरी: मत 5:15 का अध्ययन नोट देखें।
तेरी आँख तेरे शरीर का दीपक है: मत 6:22 का अध्ययन नोट देखें।
एक ही चीज़ पर टिकी है: मत 6:22 का अध्ययन नोट देखें।
ईर्ष्या: मत 6:23 का अध्ययन नोट देखें।
धोए: यानी रिवाज़ के मुताबिक खुद को शुद्ध करना। यूनानी शब्द बपटाइज़ो (गोता लगाना; डुबकी लगाना) अकसर मसीही बपतिस्मे के लिए इस्तेमाल हुआ है। लेकिन यहाँ इस शब्द का मतलब है, यहूदी परंपरा के मुताबिक शुद्धिकरण के अलग-अलग रिवाज़ जो बार-बार माने जाते थे।—मर 7:4 का अध्ययन नोट देखें।
दान: मत 6:2 का अध्ययन नोट देखें।
वह दिल से दो: अगली आयत (लूक 11:22) में यीशु ने न्याय और प्यार पर ज़ोर दिया। इससे पता चलता है कि यहाँ वह शायद कह रहा था कि हमें ध्यान देना है कि हम जो भी करें, दिल से करें। अगर हम अपने कामों से सच्ची दया दिखाना चाहते हैं तो हमें प्यार की वजह से और खुशी-खुशी ऐसा करना चाहिए।
पुदीने, सुदाब और इस तरह के हर साग-पात का दसवाँ हिस्सा: मूसा के कानून के मुताबिक, इसराएलियों को अपनी फसल का दसवाँ हिस्सा देना होता था। (लैव 27:30; व्य 14:22) हालाँकि कानून में यह नहीं बताया गया था कि उन्हें पुदीने और सुदाब जैसे छोटे-छोटे पौधों का भी दसवाँ हिस्सा देना है, फिर भी यीशु ने इन्हें देने की परंपरा को गलत नहीं बताया। इसके बजाय उसने शास्त्रियों और फरीसियों को इसलिए फटकारा क्योंकि वे न्याय करने और परमेश्वर से प्यार करने जैसे कानून के सिद्धांतों को बढ़ावा न देकर उसकी छोटी-छोटी बातों को मानने पर ज़ोर दे रहे थे। एक और मौके पर जब यीशु ने इससे मिलती-जुलती बात कही, जो मत्ती 23:23 में दर्ज़ है, तो उसने पुदीने, सोए और जीरे का ज़िक्र किया।
सबसे आगे की जगहों: मत 23:6 का अध्ययन नोट देखें।
बाज़ारों: मत 23:7 का अध्ययन नोट देखें।
कब्रों . . . जो ऊपर से दिखायी नहीं देतीं: या “कब्रों . . . जिन पर कोई निशानी नहीं होती।” आम तौर पर यहूदियों की कब्रें एकदम साधारण होती थीं, उन पर कोई नक्काशी नहीं की जाती थी। जैसे यहाँ बताया गया है, कुछ कब्रें तो नज़र ही नहीं आती थीं। इस वजह से लोग उनके ऊपर चलकर निकल जाते थे और अनजाने में अशुद्ध हो जाते थे। मूसा के कानून के मुताबिक अगर कोई एक मरे हुए व्यक्ति की कोई भी चीज़ छू लेता था, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहता था। (गि 19:16) यह कानून उस व्यक्ति पर भी लागू होता था जो ऐसी कब्रों पर चलकर जाता था। इसलिए यहूदी हर साल कब्रों की सफेदी कराते थे ताकि वे आसानी से दिखायी दें और लोग उनसे दूर रहें। लेकिन ज़ाहिर है कि इस संदर्भ में यीशु कह रहा था कि जो लोग फरीसियों को अच्छा समझकर उनके साथ उठते-बैठते हैं, उन पर अनजाने में फरीसियों के बुरे रवैए और उनकी गलत सोच का असर होता है।—मत 23:27 का अध्ययन नोट देखें।
परमेश्वर ने अपनी बुद्धि की बदौलत कहा: शा., “परमेश्वर की बुद्धि ने कहा।” एक दूसरे मौके पर यीशु ने भी यही बात कही, “मैं तुम्हारे पास भविष्यवक्ताओं और बुद्धिमानों को और लोगों को सिखानेवाले उपदेशकों को भेज रहा हूँ।”—मत 23:34.
दुनिया की शुरूआत: “शुरूआत” के यूनानी शब्द का अनुवाद इब्र 11:11 में ‘गर्भवती होना’ किया गया है, जहाँ इसका इस्तेमाल “वंश” के यूनानी शब्द के साथ हुआ है। इसलिए ज़ाहिर होता है कि यहाँ इस शब्द का मतलब है, आदम और हव्वा के बच्चों का जन्म। यीशु ने “दुनिया की शुरूआत” का ज़िक्र करते वक्त हाबिल की बात शायद इसलिए की क्योंकि वही पहला इंसान था जो पाप से छुड़ाए जाने के लायक था और जिसका नाम “दुनिया की शुरूआत” से लिखी जानेवाली जीवन की किताब में दर्ज़ है।—लूक 11:51; प्रक 17:8; मत 25:34 का अध्ययन नोट देखें।
हाबिल के खून से लेकर जकरयाह के खून तक: मत 23:35 का अध्ययन नोट देखें।
वेदी और मंदिर के बीच: “मंदिर” का मतलब वह इमारत है, जिसमें पवित्र और परम-पवित्र भाग था। दूसरा इत 24:21 के मुताबिक, जकरयाह का खून “यहोवा के भवन के आँगन में” किया गया था और भीतरी आँगन में ही मंदिर के द्वार के सामने होम-बलि की वेदी थी। (अति. ख8 देखें।) इसलिए यीशु का यह कहना सही था कि जकरयाह का खून मंदिर और वेदी के बीच किया गया था।
चाबी . . . जो परमेश्वर के बारे में ज्ञान का दरवाज़ा खोलती है: बाइबल में जिन लोगों को सचमुच की या लाक्षणिक चाबियाँ दी गयीं, उन्हें कुछ अधिकार दिए गए थे। (1इत 9:26, 27; यश 22:20-22) इसलिए शब्द “चाबी” अधिकार और ज़िम्मेदारी की निशानी बन गया। इस संदर्भ में “परमेश्वर के बारे में ज्ञान” की बात की गयी है, क्योंकि यीशु उन धर्म गुरुओं से बात कर रहा था जो कानून के जानकार थे। वे जिस ओहदे पर थे और उनके पास जो अधिकार था, उस वजह से उन्हें लोगों को परमेश्वर का वचन समझाकर उसके बारे में सही ज्ञान देना था। इस तरह उन्हें ज्ञान का दरवाज़ा खोलना था। मत 23:13 में यीशु ने कहा कि धर्म गुरुओं ने “लोगों के सामने स्वर्ग के राज का दरवाज़ा बंद” कर दिया है। इसलिए इस आयत से तुलना करने पर हमें समझ में आता है कि लूक 11:52 में अंदर जाने शब्दों का मतलब है, स्वर्ग के राज में दाखिल होना। लोगों को परमेश्वर के बारे में सही ज्ञान न देकर धर्म गुरु उनसे वह मौका छीन रहे थे जिससे वे परमेश्वर के वचन को सही-सही समझ सकते थे और उसके राज में दाखिल हो सकते थे। इस तरह उन्होंने वह चाबी लेकर रख ली थी।
बुरी तरह उसके पीछे पड़ गए: इन शब्दों का मतलब हो सकता है, किसी के इर्द-गिर्द खड़े हो जाना। लेकिन मालूम होता है कि यहाँ इन शब्दों का मतलब है, धर्म गुरु यीशु से इतनी नफरत करते थे कि वे उसे डराने के लिए उस पर दबाव डाल रहे थे। यहाँ जो यूनानी क्रिया इस्तेमाल हुई है वही क्रिया मर 6:19 में भी आयी है, जहाँ बताया गया है कि हेरोदियास, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कितनी “नफरत करने लगी थी।”
तसवीर और ऑडियो-वीडियो
बिच्छू की 600 से ज़्यादा प्रजातियाँ हैं। सबसे छोटा बिच्छू 1 इंच (2.5 सें.मी.) से कम और सबसे बड़ा 8 इंच (20 सें.मी.) का पाया गया है। इनकी करीब 12 प्रजातियाँ इसराइल और सीरिया में मिलती हैं। हालाँकि बिच्छू का डंक जानलेवा नहीं होता लेकिन कई बिच्छू रेगिस्तान में पाए जानेवाले खतरनाक साँपों से ज़्यादा ज़हरीले होते हैं। इसराइल का सबसे ज़हरीला बिच्छू है, पीले रंग का लयूरस क्विनक्वैसट्रिआटस (यहाँ उसकी तसवीर दिखायी गयी है)। बिच्छू का डंक कितना दर्दनाक होता है, इसके बारे में प्रक 9:3, 5, 10 में बताया गया है। बिच्छू यहूदिया के वीराने, सीनै इलाके और इसके “भयानक वीराने” में पाए जाते थे।—व्य 8:15.
इफिसुस और इटली में पहली सदी की कुछ चीज़ों के अवशेष मिले हैं जिनके आधार पर कलाकार ने दीवट का यह चित्र (1) बनाया है। मुमकिन है कि इस तरह की दीवट अमीर लोगों के घरों में इस्तेमाल की जाती थी। गरीबों के घरों में दीपक छत से लटका दिया जाता था या दीवार में बने आले में (2) या फिर मिट्टी या लकड़ी की बनी दीवट पर रखा जाता था।
यह एक सदाबहार पौधा है जिससे तेज़ महक निकलती है और जिसकी टहनियाँ रोएँदार होती हैं। यह करीब 3 फुट (1 मी.) तक बढ़ता है, इसके पत्ते भूरे-हरे रंग के होते हैं और इस पर पीले फूल के गुच्छे लगते हैं। सुदाब की एक प्रजाति (रूटा चालेपैनसिस लाटीफोलीआ ) है, जो यहाँ दिखायी गयी है और दूसरी प्रजाति (रूटा ग्रेविओलेंस ) है। ये दोनों प्रजातियाँ इसराएल में पायी जाती हैं। धरती पर यीशु की सेवा के दौरान सुदाब की खेती की जाती थी और इसका इस्तेमाल दवाइयों और खाने का स्वाद बढ़ाने में किया जाता था। बाइबल में इस पौधे का ज़िक्र सिर्फ लूक 11:42 में आया है। वहाँ यीशु ने कपटी फरीसियों को धिक्कारा क्योंकि वे छोटी-से-छोटी चीज़ का दसवाँ हिस्सा देने पर ज़ोर देते थे।—मत 23:23 से तुलना करें।
कुछ बाज़ार सड़क पर लगते थे, जैसे यहाँ चित्र में दिखाया गया है। दुकानदार इतना सामान लगा देते थे कि रास्ता जाम हो जाता था। आस-पास के लोग बाज़ार से घरेलू सामान, मिट्टी के बरतन, काँच की महँगी चीज़ें और ताज़ी साग-सब्ज़ियाँ भी खरीदते थे। उस ज़माने में फ्रिज नहीं होते थे, इसलिए लोगों को खाने-पीने की चीज़ें खरीदने हर दिन बाज़ार जाना होता था। बाज़ार में लोगों को व्यापारियों या दूसरी जगहों से आए लोगों से खबरें भी मिल जाती थीं, यहाँ बच्चे खेलते थे और बेरोज़गार लोग इंतज़ार करते थे कि कोई उन्हें काम दे। बाज़ार में यीशु ने बीमारों को ठीक किया और पौलुस ने लोगों को प्रचार किया। (प्रेष 17:17) लेकिन घमंडी शास्त्रियों और फरीसियों को ऐसी सार्वजनिक जगहों पर लोगों की नज़रों में छाना और उनसे नमस्कार सुनना अच्छा लगता था।