लूका के मुताबिक खुशखबरी 20:1-47
कई फुटनोट
अध्ययन नोट
लंबे समय के लिए: खून करनेवाले बागबानों की मिसाल लिखते वक्त सिर्फ लूका ने बताया कि आदमी “लंबे समय के लिए” परदेस चला गया।—इसके मिलते-जुलते ब्यौरों मत 21:33 और मर 12:1 से तुलना करें।
कोने का मुख्य पत्थर: मत 21:42 का अध्ययन नोट देखें।
सम्राट: मत 22:17 का अध्ययन नोट देखें।
सूरत और . . . नाम की छाप: मत 22:20 का अध्ययन नोट देखें।
सदूकी: लूका की खुशखबरी की किताब में सिर्फ इस आयत में सदूकियों का ज़िक्र आता है। (शब्दावली देखें।) मुमकिन है कि यह नाम (यूनानी में सद्दाउकायोस) सादोक (सेप्टुआजेंट में अकसर सद्दाउक लिखा गया है) से जुड़ा है, जिसे सुलैमान के दिनों में महायाजक बनाया गया था। (1रा 2:35) सबूतों से पता चलता है कि उसके वंशजों ने कई सदियों तक याजक के तौर पर सेवा की।
मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा: यूनानी शब्द आनास्तासिस का शाब्दिक मतलब है, “उठाना; खड़े होना।” यह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने के सिलसिले में करीब 40 बार इस्तेमाल हुआ है। (मत 22:23, 31; लूक 20:33; प्रेष 4:2; 24:15; 1कुर 15:12, 13) यश 26:19 में जिस इब्रानी क्रिया का मतलब है “जीवित होना,” उसके लिए सेप्टुआजेंट में आनास्तासिस की यूनानी क्रिया इस्तेमाल हुई है। (यश 26:19 में लिखा है, “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे,” हिंदी—ओ.वी.)—शब्दावली में “मरे हुओं में से ज़िंदा करना” देखें।
इस ज़माने: या “दुनिया की व्यवस्था।” यूनानी शब्द आयॉन का बुनियादी मतलब है, “ज़माना।” मगर इसका यह भी मतलब हो सकता है, किसी दौर के हालात या कुछ खास बातें जो उस दौर या ज़माने को दूसरे दौर या ज़माने से अलग दिखाती हैं। इस संदर्भ में इसका मतलब है, आज की दुनिया की व्यवस्था।—मत 12:32; मर 10:30 के अध्ययन नोट और शब्दावली में “दुनिया की व्यवस्था या व्यवस्थाएँ” देखें।
आदमी . . . और औरतों: या “बच्चे; लोग।” शा., “बेटे।” “बेटे” के यूनानी शब्द का मतलब सिर्फ बेटा नहीं होता बल्कि इसके कई मतलब हो सकते हैं। इस संदर्भ में इस शब्द का मतलब है, आदमी और औरत दोनों। यह बात उस यूनानी शब्द से भी पुख्ता होती है जिसका अनुवाद शादी करायी जाती है किया गया है, क्योंकि वह शब्द औरतों के लिए इस्तेमाल होता है। ज़ाहिर है कि ‘इस ज़माने के बच्चे’ एक मुहावरा है, जो इस संदर्भ में ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है जिनका रवैया और जीने का तरीका मौजूदा दुनिया में आम हैं।
उस ज़माने: या “उस दुनिया की व्यवस्था।” यूनानी शब्द आयॉन का बुनियादी मतलब है, “ज़माना।” मगर इसका यह भी मतलब हो सकता है, किसी दौर के हालात या कुछ खास बातें जो उस दौर या ज़माने को दूसरे दौर या ज़माने से अलग दिखाती हैं। इस संदर्भ में इसका मतलब है, आनेवाली दुनिया जिस पर परमेश्वर का राज होगा और जहाँ लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।—मत 12:32; मर 10:30 के अध्ययन नोट और शब्दावली में “दुनिया की व्यवस्था या व्यवस्थाएँ” देखें।
बच्चे: शा., “बेटे।” मूल भाषा में यहाँ “बेटे” का यूनानी शब्द दो बार आया है। इस आयत के दूसरे भाग का शाब्दिक अनुवाद है, “जी उठने के बेटे होने की वजह से परमेश्वर के भी बेटे होंगे।” कुछ संदर्भों में इस शब्द का मतलब बेटा नहीं बल्कि कुछ और है।—लूक 20:34 का अध्ययन नोट देखें।
मूसा ने भी . . . ज़ाहिर की है: मर 12:26 का अध्ययन नोट देखें।
जहाँ वह यहोवा को ‘अब्राहम का परमेश्वर . . .’ कहता है: या “जब उसने कहा, ‘यहोवा अब्राहम का परमेश्वर है।’” हालाँकि मौजूदा यूनानी हस्तलिपियों में यहाँ शब्द किरियॉस (प्रभु) इस्तेमाल हुआ है, फिर भी परमेश्वर का नाम इस्तेमाल करना सही है। संदर्भ से पता चलता है कि यहाँ किरियॉस परमेश्वर के लिए इस्तेमाल हुआ है। यहाँ निर्ग 3:6 की बात लिखी है, जिसकी पहले की आयतों में “यहोवा” ने बात की। (निर्ग 3:4, 5) इब्रानी शास्त्र की इस बात के आधार पर लूक 20:37 में परमेश्वर का नाम लिखा गया है। इसके अलावा, विद्वानों ने गौर किया है कि यहाँ किरियॉस से पहले निश्चित उपपद नहीं लिखा गया, जबकि व्याकरण के मुताबिक आना चाहिए था। यह बात गौर करनेवाली है क्योंकि भले ही सेप्टुआजेंट की सबसे पुरानी कॉपियों में परमेश्वर का नाम है, मगर बाद की कॉपियों में उस नाम की जगह किरियॉस लिखा जाने लगा और वह भी बिना निश्चित उपपद के। यह एक और सबूत है कि किरियॉस परमेश्वर के नाम की जगह इस्तेमाल हुआ है। यही नहीं, बाइबल के कई अनुवादों में यह दिखाने के लिए कि लूक 20:37 में यहोवा परमेश्वर की बात की गयी है, आयत में या फुटनोट में या हाशिए में यहोवा, याहवे, יהוה (चार इब्रानी अक्षर, हिंदी में य-ह-व-ह), बड़े अक्षरों में प्रभु और अदोनाय में से कोई एक शब्द इस्तेमाल हुआ है। कई दूसरी किताबों से भी यह बात पुख्ता होती है।—अति. ग देखें।
इसलिए कि वे सब उसकी नज़र में ज़िंदा हैं: बाइबल बताती है कि जो लोग परमेश्वर से दूर हैं वे उसकी नज़र में मरे हुए हैं। (इफ 2:1; 1ती 5:6) उसी तरह, यह कहा जा सकता है कि यहोवा की मंज़ूरी पानेवाले सेवकों की भले ही मौत हो जाए, मगर उसकी नज़र में वे ज़िंदा रहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें दोबारा ज़िंदा करने का परमेश्वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा।—रोम 4:16, 17.
यहोवा: यहाँ भज 110:1 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं। मगर जैसे अति. क5 में बताया गया है, बाइबल के ज़्यादातर अनुवादों के उस भाग में, जिसे आम तौर पर ‘नया नियम’ कहा जाता है, परमेश्वर का नाम इस्तेमाल नहीं किया गया है, उन आयतों में भी नहीं जिनमें इब्रानी शास्त्र की बातें लिखी हैं। इसके बजाय, उनमें “प्रभु” शब्द इस्तेमाल हुआ है। लेकिन जैसे अति. ग में बताया गया है, कुछ अनुवाद हैं जिनमें मसीही यूनानी शास्त्र में यहोवा, याहवे, יהוה (चार इब्रानी अक्षर, हिंदी में य-ह-व-ह) और (परमेश्वर के नाम की जगह) बड़े अक्षरों में प्रभु और अदोनाय में से कोई एक लिखा हुआ है। किंग जेम्स वर्शन के 17वीं सदी के कुछ संस्करणों में लूक 20:42 और तीन दूसरी आयतों में, जहाँ भज 110:1 की बात लिखी है, बड़े अक्षरों में “प्रभु” लिखा हुआ है। (मत 22:44; मर 12:36; प्रेष 2:34) बाद में इसके जो संस्करण निकाले गए, उनमें भी ऐसा किया गया। इस अनुवाद के इब्रानी शास्त्र में बड़े अक्षरों में जहाँ “प्रभु” लिखा है, उसका मतलब है कि इब्रानी शास्त्र के मूल पाठ में वहाँ परमेश्वर का नाम है। उसी तरह अनुवादकों ने समझा कि मसीही यूनानी शास्त्र में बड़े अक्षरों में जहाँ-जहाँ “प्रभु” आया है वहाँ यहोवा की बात की गयी है। दिलचस्पी की बात है कि न्यू किंग जेम्स वर्शन बाइबल (जिसे पहली बार 1979 में तैयार किया गया था) में उन सभी जगहों में भी, जिनमें इब्रानी शास्त्र की बातें दर्ज़ हैं, परमेश्वर के नाम की जगह बड़े अक्षरों में “प्रभु” लिखा गया है।
बाज़ारों: मत 23:7 का अध्ययन नोट देखें।
सबसे आगे की जगहों: मत 23:6 का अध्ययन नोट देखें।
तसवीर और ऑडियो-वीडियो
इस वीडियो का एक आधार है: गलील झील से करीब 10 कि.मी. (6 मील) दूर उत्तर-पूरब में गामला शहर में पाए गए पहली सदी के सभा-घर के खंडहर। पहली सदी का कोई भी सभा-घर सही-सलामत नहीं पाया गया है, इसलिए यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सभा-घर ठीक कैसा दिखता होगा। मुमकिन है कि इस वीडियो में दिखायी कुछ चीज़ें उस ज़माने के ज़्यादातर सभा-घरों में रही होंगी।
1. सबसे आगे की या बढ़िया जगह, जो शायद मंच पर या उसके पास होती थीं।
2. मंच, जिस पर से एक शिक्षक कानून पढ़कर सुनाता था। हर सभा-घर में मंच शायद अलग जगह होता था।
3. दीवार से लगी बैठने की जगह, जहाँ शायद समाज के रुतबेदार लोग बैठते थे। दूसरे लोग शायद ज़मीन पर बिछी चटाई पर बैठते थे। गामला के सभा-घर में शायद बैठने की जगहों की चार पंक्तियाँ थीं।
4. पवित्र खर्रे रखने की जगह, जो शायद पीछे की दीवार के पास होती थी।
सभा-घर में बैठने के इंतज़ाम से हाज़िर लोगों को हमेशा यह याद आता था कि कुछ लोगों का दर्जा दूसरों से ऊँचा है। यीशु के चेले भी इस बात को लेकर बहस करते रहते थे कि उनमें कौन बड़ा है।—मत 18:1-4; 20:20, 21; मर 9:33, 34; लूक 9:46-48.
पहली सदी में आम तौर पर लोग मेज़ से टेक लगाकर खाना खाते थे। हर व्यक्ति अपने बाएँ हाथ की कोहनी से तकिए पर टेक लगाता था और दाएँ हाथ से खाना खाता था। यूनानी और रोमी लोगों के दस्तूर के मुताबिक, आम तौर पर खाना खाने के कमरे में कम ऊँचाईवाली एक मेज़ होती थी और उसके तीन तरफ दीवान लगाए जाते थे। रोमी लोग इस तरह के कमरे को ट्रिक्लिनियम (लातीनी शब्द जो एक यूनानी शब्द से निकला है जिसका मतलब है, “तीन दीवानोंवाला कमरा”) कहते थे। इस तरह के इंतज़ाम में नौ लोग एक-साथ खाना खाते थे, यानी हर दीवान पर तीन लोग बैठते थे। मगर बाद में बड़े-बड़े दीवान रखे जाने लगे ताकि एक-साथ ज़्यादा लोग खाना खा सकें। परंपरा के हिसाब से बैठने की हर जगह का अलग दर्जा होता था। (क) एक दीवान सबसे कम सम्मानवाला माना जाता था, (ख) दूसरा उससे ज़्यादा और (ग) तीसरा सबसे ज़्यादा सम्मानवाला। यहाँ तक कि दीवान पर भी बैठने की हर जगह अलग-अलग दर्जे की मानी जाती थी। तीनों में से बायीं तरफ बैठनेवाले की अहमियत सबसे ज़्यादा होती थी, बीचवाले की उससे कम और दायीं तरफवाले की सबसे कम। दावतों में आम तौर पर मेज़बान सबसे कम सम्मानवाले दीवान पर पहली जगह (1) पर बैठता था। बीचवाले दीवान पर तीसरी जगह (2) सबसे आदर की जगह मानी जाती थी। इस बात का कोई साफ सबूत नहीं है कि यहूदियों ने किस हद तक यह दस्तूर अपनाया था। लेकिन जब यीशु अपने चेलों को नम्रता की सीख दे रहा था, तब उसने शायद इसी दस्तूर की तरफ इशारा किया।