विलापगीत 5:1-22
5 हे यहोवा, हम पर जो गुज़री है उस पर ध्यान दे।
देख कि हम कितने बेइज़्ज़त हुए हैं।+
2 हमारी विरासत परायों के हवाले कर दी गयी है, हमारे घर परदेसियों को दे दिए गए हैं।+
3 हम अनाथ हो गए, हम पर से पिता का साया उठ गया है, हमारी माँएँ विधवा जैसी हो गयी हैं।+
4 हमें अपना ही पानी खरीदना पड़ता है,+ अपनी ही लकड़ी के लिए दाम देना पड़ता है।
5 हमारा पीछा करनेवाले हमारी गरदन पर सवार हैं,हम पस्त हो गए हैं, हमें बिलकुल आराम नहीं दिया जाता।+
6 हम रोटी के लिए मिस्र और अश्शूर के आगे हाथ फैलाते हैं+ ताकि अपनी भूख मिटा सकें।
7 हमारे पुरखों ने पाप किया था और वे अब नहीं रहे, मगर उनके गुनाहों का अंजाम हमें भुगतना पड़ रहा है।
8 हम पर सेवक राज कर रहे हैं, उनके हाथ से हमें छुड़ानेवाला कोई नहीं।
9 वीराने की तलवार की वजह से हम अपनी जान जोखिम में डालकर रोटी लाते हैं।+
10 तेज़ भूख से हमारी खाल भट्ठे की तरह तप रही है।+
11 उन्होंने सिय्योन में शादीशुदा औरतों को और यहूदा के शहरों में कुँवारियों को भ्रष्ट* किया।+
12 हाकिम हाथ से लटका दिए गए,+ मुखियाओं का बिलकुल आदर नहीं किया गया।+
13 जवान हाथ की चक्की उठाते हैं, लड़के लकड़ियों का बोझ उठाते हुए लड़खड़ाते हैं।
14 मुखिया अब शहर के फाटकों पर नज़र नहीं आते,+ न ही जवानों का संगीत सुनायी देता है।+
15 हमारे दिलों में अब खुशी नहीं रही, हमारा नाच-गाना मातम में बदल गया है।+
16 हमारे सिर का ताज गिर गया है। धिक्कार है हम पर क्योंकि हमने पाप किया है!
17 इसलिए हमारा मन रोगी है,+हमारी नज़र धुँधली पड़ गयी है।+
18 सिय्योन पहाड़ उजाड़ पड़ा है,+ वहाँ लोमड़ियाँ घूमती हैं।
19 हे यहोवा, तू सदा अपनी राजगद्दी पर विराजमान रहता है।
तेरी राजगद्दी पीढ़ी-पीढ़ी तक बनी रहती है।+
20 तूने क्यों हमें हमेशा के लिए भुला दिया है, इतने लंबे अरसे से हमें त्याग दिया है?+
21 हे यहोवा, हमें अपने पास वापस ले आ और हम खुशी-खुशी तेरे पास लौट आएँगे।+
हमारे पुराने दिन लौटा दे।+
22 मगर तूने तो हमें पूरी तरह ठुकरा दिया है।
तू अब भी हमसे बहुत गुस्सा है।+
कई फुटनोट
^ या “का बलात्कार।”