दूसरा इतिहास 20:1-37
20 बाद में मोआबी+ और अम्मोनी+ लोग और उनके साथ कुछ अम्मोनिम लोग* यहोशापात से युद्ध करने आए।
2 यहोशापात को यह खबर दी गयी: “सागर* के इलाके से, एदोम+ से एक विशाल सेना तुझसे युद्ध करने आयी है। वे अभी हसासोन-तामार यानी एनगदी+ में हैं।”
3 यह सुनकर यहोशापात डर गया और उसने यहोवा की खोज करने की ठानी।+ इसलिए उसने पूरे यहूदा में उपवास का ऐलान किया।
4 फिर यहूदा के लोग यहोवा से मदद माँगने के लिए इकट्ठा हुए।+ वे यहोवा से सलाह करने यहूदा के सब शहरों से आए।
5 यहूदा और यरूशलेम के लोगों की मंडली यहोवा के भवन में नए आँगन के सामने इकट्ठा हुई। तब यहोशापात मंडली के सामने खड़ा हुआ
6 और उसने कहा:
“हे यहोवा, हमारे पुरखों के परमेश्वर, क्या स्वर्ग में तू ही परमेश्वर नहीं है?+ क्या राष्ट्रों के सब राज्यों पर तेरा ही अधिकार नहीं है?+ तेरे हाथ में शक्ति और ताकत है और कोई तेरे खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता।+
7 हे हमारे परमेश्वर, क्या तूने अपनी प्रजा इसराएल के सामने इस देश से लोगों को खदेड़ नहीं दिया था? और क्या तूने यह देश अपने दोस्त अब्राहम के वंश के लिए हमेशा की जागीर बनाकर नहीं दे दिया था?+
8 वे इस देश में बस गए और उन्होंने तेरे नाम की महिमा के लिए यहाँ एक पवित्र-स्थान बनाया+ और कहा,
9 ‘अगर हम तलवार चलने, कड़ी सज़ा पाने या महामारी या अकाल की वजह से संकट में पड़ जाएँ, तो हमें इस भवन के सामने और तेरे सामने खड़े होने दे (क्योंकि तेरा नाम इस भवन से जुड़ा है)+ और तुझे मदद के लिए पुकारने दे और तू हमारी सुने और हमें बचाए।’+
10 अब अम्मोनी, मोआबी और सेईर के पहाड़ी प्रदेश+ के लोगों को देख। जब इसराएली मिस्र से निकले थे तो तूने उन्हें इन लोगों पर हमला करने की इजाज़त नहीं दी थी। इसराएलियों ने उनका नाश नहीं किया था और उनसे दूर चले गए थे।+
11 देख, अब ये लोग उसका कैसा बदला दे रहे हैं, ये हमें इस जागीर से खदेड़ने आए हैं जो तूने हमें विरासत में दी है।+
12 हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उन्हें सज़ा नहीं देगा?+ हमारे पास इस विशाल सेना का मुकाबला करने की ताकत नहीं है जो हम पर हमला करने आयी है। और हम नहीं जानते कि हमें क्या करना चाहिए,+ हमारी आँखें तेरी ओर लगी हैं।”+
13 इस दौरान, यहूदा के सब आदमी अपनी पत्नियों, बच्चों,* यहाँ तक कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ यहोवा के सामने खड़े थे।
14 तब उस मंडली के बीच यहजीएल पर यहोवा की पवित्र शक्ति आयी, जो जकरयाह का बेटा था। जकरयाह बनायाह का, बनायाह यीएल का और यीएल मत्तन्याह का बेटा था, जो आसाप के बेटों में से एक लेवी था।
15 यहजीएल ने कहा, “हे पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगो और हे राजा यहोशापात, ध्यान से सुनो! यहोवा तुमसे कहता है, ‘इस विशाल सेना से मत डरो और न ही खौफ खाओ क्योंकि यह लड़ाई तुम्हारी नहीं, परमेश्वर की है।+
16 तुम कल उनसे युद्ध करने जाओ। वे सीस की तंग घाटी से आएँगे और तुम उन्हें घाटी के छोर पर यरुएल वीराने के सामने पाओगे।
17 तुम्हें यह लड़ाई लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। तुम अपनी जगह खड़े रहना और देखना+ कि यहोवा कैसे तुम्हारा उद्धार करता है।*+ हे यहूदा और यरूशलेम, तुम मत डरना और न ही खौफ खाना।+ कल तुम उनसे युद्ध करने जाना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।’”+
18 यह सुनते ही यहोशापात ने ज़मीन की तरफ सिर झुकाकर दंडवत किया और पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगों ने यहोवा के सामने गिरकर यहोवा की उपासना की।
19 तब वे लेवी, जो कहातियों के वंशज+ और कोरहवंशी थे, खड़े हुए ताकि बुलंद आवाज़ में+ इसराएल के परमेश्वर यहोवा की तारीफ करें।
20 अगले दिन सुबह वे जल्दी उठे और तकोआ के वीराने+ में गए। जब वे जा रहे थे तो यहोशापात खड़ा हुआ और कहने लगा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगो, मेरी सुनो! तुम अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो ताकि तुम मज़बूत खड़े रह सको।* उसके भविष्यवक्ताओं पर विश्वास रखो+ और तुम कामयाब होगे।”
21 यहोशापात ने लोगों से सलाह करने के बाद कुछ आदमियों को चुना ताकि वे यहोवा की तारीफ में गीत गाएँ।+ वे पवित्र पोशाक पहने, हथियारबंद सैनिकों के आगे-आगे चलते हुए यह गीत गाएँगे: “यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”+
22 जब वे खुशी-खुशी तारीफ के गीत गाने लगे तो यहोवा ने यहूदा पर धावा बोलनेवाले अम्मोन, मोआब और सेईर के पहाड़ी प्रदेश के लोगों पर पीछे से हमला करवाया और उन लोगों ने एक-दूसरे को मार डाला।+
23 अम्मोनी और मोआबी लोग सेईर के पहाड़ी प्रदेश के लोगों पर टूट पड़े+ ताकि उन्हें नाश कर दें, उन्हें मिटा दें। सेईर के लोगों को नाश करने के बाद उन्होंने एक-दूसरे को नाश कर दिया।+
24 जब यहूदा के लोग वीराने में पहरे की मीनार तक पहुँचे+ तो उन्होंने वहाँ से देखा कि दुश्मनों की लाशें ज़मीन पर पड़ी हैं।+ कोई भी ज़िंदा नहीं बचा था।
25 तब यहोशापात और उसके लोग उन्हें लूटने के लिए वहाँ गए। उन्हें ढेर सारी चीज़ें, कपड़े और सुंदर-सुंदर चीज़ें मिलीं और वे लाशों से ये चीज़ें उतारने लगे। वे तब तक बटोरते रहे जब तक कि और न ले जा सके।+ लूट का इतना सारा माल था कि उन्हें बटोरने में तीन दिन लगे।
26 चौथे दिन वे सब बराका घाटी में इकट्ठा हुए और वहाँ उन्होंने यहोवा की तारीफ की।* इसीलिए उन्होंने उस जगह का नाम बराका* घाटी रखा+ और आज तक उसका नाम यही है।
27 इसके बाद यहूदा और यरूशलेम के सभी आदमी खुशियाँ मनाते हुए यरूशलेम लौट गए क्योंकि यहोवा ने उन्हें दुश्मनों पर जीत दिलायी थी।+ उनके आगे-आगे यहोशापात था।
28 वे तारोंवाले बाजे और सुरमंडल बजाते हुए+ और तुरहियाँ फूँकते हुए+ यरूशलेम आए और यहोवा के भवन गए।+
29 जब सब देशों के राज्यों ने सुना कि यहोवा ने इसराएल के दुश्मनों से युद्ध किया है, तो परमेश्वर का खौफ उन सबमें समा गया।+
30 इसलिए यहोशापात के राज में शांति बनी रही और उसका परमेश्वर उसे चारों तरफ के दुश्मनों से राहत देता रहा।+
31 यहोशापात यहूदा पर राज करता रहा। जब वह राजा बना तब वह 35 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 25 साल राज किया। उसकी माँ का नाम अजूबाह था जो शिलही की बेटी थी।+
32 यहोशापात अपने पिता आसा के नक्शे-कदम पर चलता रहा।+ वह उस राह से नहीं भटका और उसने यहोवा की नज़र में सही काम किए।+
33 लेकिन उसके राज के दौरान ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं+ और लोगों ने अपने पुरखों के परमेश्वर की खोज करने के लिए अब तक अपने दिल को तैयार नहीं किया था।+
34 यहोशापात की ज़िंदगी की बाकी कहानी यानी शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास हनानी+ के बेटे येहू+ के लेखनों में लिखा है। इन लेखनों को इसराएल के राजाओं की किताब में शामिल किया गया था।
35 इसके बाद यहूदा के राजा यहोशापात ने इसराएल के राजा अहज्याह के साथ संधि की। अहज्याह दुष्ट काम करता था।+
36 यहोशापात ने तरशीश जानेवाले जहाज़+ बनाने के काम में उसके साथ साझेदारी की। और उन्होंने एस्योन-गेबेर+ में जहाज़ बनाए।
37 मगर एलीएज़ेर ने, जो मारेशा के रहनेवाले दोदावाहू का बेटा था, यहोशापात के खिलाफ यह भविष्यवाणी की: “यहोवा तेरे काम को नाकाम कर देगा क्योंकि तूने अहज्याह के साथ संधि की है।”+ इसलिए उनके जहाज़ टूटकर तहस-नहस हो गए+ और तरशीश नहीं जा सके।
कई फुटनोट
^ या शायद, “मऊनी लोग।”
^ ज़ाहिर है, मृत सागर।
^ शा., “बेटों।”
^ या “तुम्हें छुड़ाता है।”
^ या “धीरज धर सको।”
^ शा., “को आशीर्वाद दिया।”
^ मतलब “आशीर्वाद।”