असली ज़िंदगी
1. सू-रज की किर-णें,
चू-में गा-लों को,
सु-ना-एँ पं-छी नग-मे।
ना को-ई तन-हा,
हैं अप-ने सब य-हाँ।
खु-शी से हर दिल झू-में!
(प्री-कोरस)
ऊँ-चे पर्-वत से हम दे-खें,
दिल-कश न-ज़ा-रे।
ता-रों की चा-दर हम ओ-ढ़ें,
और बे-खौफ सो-एँ।
ये तोह-फे
दे-गा याह ही ह-में!
तो
(कोरस)
अब उस दिन का हम
सब बे-ता-बी से
कर-ते हैं इं-त-ज़ार,
जब य-हो-वा से हम
पा-एँ-गे
एक खुश-यों से भरी
ज़िंद-गी न-यी!
2. गुल-शन जै-सा
मह-के-गा ये ज-हाँ,
ज-वा-नी भी लौट आ-यी।
आँ-सू ना गम,
फिर ना हों-गी आँ-खें नम
पिछ-ली बा-तें बीत चु-कीं।
लौट आ-एँ-गे अ-ज़ीज़ अप-ने,
जु-दा ना हों-गे।
तो हिम्-मत हम ना हा-रें-गे,
है फिर-दौस
क-रीब!
(कोरस)
तो अब उस दिन का हम
सब बे-ता-बी से
कर-ते हैं इं-त-ज़ार,
जब य-हो-वा से हम
पा-एँ-गे
एक खुश-यों से भरी
ज़िंद-गी न-यी!
(खास पंक्तियाँ)
ये वा-दे
कर-ने पू-रा याह भी तर-से।
तो आ-ओ
ये तस-वीर
र-खें सँ-जोए हम दिल में,
हाँ हर पल।
(कोरस)
और अब उस दिन का हम
सब बे-ता-बी से
कर-ते हैं इं-त-ज़ार,
जब य-हो-वा से हम
पा-एँ-गे
एक अस-ली ज़िं-द-गी!
(कोरस)
तो अब उस दिन का हम
सब बे-ता-बी से
कर-ते हैं इं-त-ज़ार,
जब य-हो-वा से हम
पा-एँ-गे
एक खुश-यों से भरी
ज़िंद-गी न-यी!
(आखिरी पंक्तियाँ)
मि-ले-गी तब न-यी
वो ज़िं-द-गी
मि-ले-गी तब अस-ली
हाँ ज़िं-द-गी
मि-ले-गी तब न-यी
वो ज़िं-द-गी
मि-ले-गी तब अस-ली
हाँ ज़िं-द-गी