तू पास आ मेरे
1. भीड़ में हूँ तनहा,
लेगा कौन मुझसे मेरे दिल के गम का बोझ?
साया खौफ का है मुझ पे,
तो फर्-याद करूँ याह से मैं;
उठाके बोझ, सुकूँ वो दे,
माने याह अनमोल मुझे।
(कोरस)
कहे वो, “आ करीब, आ करीब,
नहीं मैं दूर तुझसे।
तू देख मेरी आँखों से,
अच्-छा-इ-याँ हैं तुझमें।
बस, तू पास आ मेरे।”
2. गम की कैद में हूँ
और ये दिल मुझे देता है बार-बार सज़ा,
चाहूँ माफ करूँ खुद को;
याह से रोज़ करूँ मैं दुआ।
जब देखूँ याह करे परवाह,
तब उम्-मीद उठे दिल में।
(कोरस)
कहे वो, “आ करीब, आ करीब,
नहीं मैं दूर तुझसे।
तू देख मेरी आँखों से,
अच्-छा-इ-याँ हैं तुझमें।
बस, तू पास आ मेरे।”
(खास पंक्तियाँ)
रब था बेनाम मेरे लिए,
पर देखा दिल मेरा
और प्यार से खींच लिया मुझे,
अब याह रब है मेरा!
(कोरस)
कहे वो, “आ करीब, आ करीब,
नहीं मैं दूर तुझसे।
तू देख मेरी आँखों से,
अच्-छा-इ-याँ हैं तुझमें।
बस, तू पास आ मेरे।”