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यहोवा के अपने

यहोवा के अपने
  1. 1. ऐसे लोग कहाँ इस दुन्‌-या में

    जो बात अनकही भी मेरे दिल की सुनें?

    मेरी तमन्‍ना थी मिल जाएँ दोस्त ऐसे;

    जो वफादार हों और बन जाएँ अपने।

  2. 2. रिश्‍ते करीबी पाए मैंने;

    आखिर मिली प्यार की गरमी इस बर्‌-फी-ले जग में।

    मेरी आरज़ू अब हकीकत बन गयी;

    याह के अपनों में मुझे जगह अपनी मिली।

    (खास पंक्‍तियाँ)

    इस बाग में फूल हैं रंग-बिरंगे, खुशबुएँ कई;

    भाई और बहन सभी, शान इस गुलशन की।

    याह ने की है बागबानी हर कोने में जग के;

    है नाज़, हम खिले गुलशन में यहोवा के।

  3. 3. है प्यार हमारा यूँ खुशगवार;

    शबनम की बूँदों जैसा ये दिल को दे करार।

    ऐसा है अनोखा प्यार हम लोगों में;

    मिलती है खुशी कि हुए याह के अपने।

    (खास पंक्‍तियाँ)

    हाँ, फिज़ा प्यार की फैली इस गुलशन में याह के;

    इक साथ हम खिलते इस हसीन बागीचे में।

  4. 4. याह की मुहब्बत ऐसे खींचती हमें,

    रहेंगे हम उसी के चलतीं जब तक साँसें।

    दोस्त यहोवा के सदा ही जीएँगे;

    तब सभी होंगे, हाँ, यहोवा के अपने।

    होंगे सब यहोवा के अपने।

    हाँ, अपने।

    हाँ, अपने।