ଅଧ୍ୟୟନ ଲେଖା ୮
କʼଣ ଆପଣଙ୍କ ପରାମର୍ଶ ଦ୍ୱାରା ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ହୃଦୟ ଖୁସି ହୁଏ ?
“ତୈଳ ଓ ସୁଗନ୍ଧି ଧୂପ ମନକୁ ଆହ୍ଲାଦିତ କରେ, ମନର ମନ୍ତ୍ରଣାରୁ ଜାତ ମିତ୍ରର ମିଷ୍ଟତା ତଦ୍ରୂପ କରେ ।”—ହିତୋ. ୨୭:୯.
ଗୀତ ୧୦୨ ‘कमज़ोरों की मदद करें’
ଲେଖାର ଝଲକ a
୧-୨. ଜଣେ ପ୍ରାଚୀନ ପରାମର୍ଶ ଦେବା ବିଷୟରେ କʼଣ ଶିଖିଲେ ?
बहुत साल पहले दो प्राचीन एक ऐसी बहन से मिलने गए, जो कुछ वक्त से सभाओं में नहीं आ रही थी। एक प्राचीन ने कई आयतें खोलकर बहन को समझाया कि सभाओं में आना कितना ज़रूरी है। उसे लगा कि उन्होंने अपना काम अच्छे-से किया। पर जब दोनों भाई वहाँ से जाने लगे, तो बहन ने उनसे कहा, “आपको ज़रा भी अंदाज़ा नहीं कि मैं किन परेशानियों से गुज़र रही हूँ।” भाइयों ने बहन को यह तो समझाया कि सभाओं में आना चाहिए, पर उन्होंने यह नहीं पूछा कि वह क्यों नहीं आ रही है। इसलिए बहन को उनकी सलाह अच्छी नहीं लगी।
୨ इस घटना को याद करते हुए उस प्राचीन ने कहा, “उस वक्त मुझे लगा कि बहन का बात करने का तरीका ठीक नहीं था। लेकिन बाद में जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि काश! मैंने इतनी सारी आयतें बताने के बजाय बहन से सवाल पूछे होते। जैसे, ‘सब कैसा चल रहा है? मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूँ?’” उस घटना से प्राचीन ने जो बात सीखी, वह उसे आज भी याद है। अब जब भी वह दूसरों से बात करता है, तो उनके हालात समझने की कोशिश करता है।
୩. ମଣ୍ଡଳୀରେ କେଉଁମାନେ ପରାମର୍ଶ ଦେଇପାରିବେ ?
୩ प्राचीन, परमेश्वर के झुंड के चरवाहे हैं। इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि ज़रूरत पड़ने पर वे दूसरों को सलाह दें। लेकिन मंडली के दूसरे लोग भी सलाह दे सकते हैं। जैसे, शायद एक भाई या बहन अपने दोस्त को बाइबल से कोई सलाह दे। (भज. 141:5; नीति. 25:12) या एक बुज़ुर्ग शायद बहन किसी जवान बहन को उन बातों के बारे में सलाह दे, जो तीतुस 2:3-5 में दर्ज़ हैं। और माता-पिताओं को अकसर अपने बच्चों को समझाना और सिखाना पड़ता है। इसलिए हालाँकि यह लेख प्राचीनों के लिए है, पर हम सब इससे कुछ-न-कुछ सीख सकते हैं। इस लेख से हम सीखेंगे कि हम किन तरीकों से सलाह दे सकते हैं जिससे दूसरों का भला हो, उनकी हिम्मत बँधे और उनका “मन खुश हो।”—नीति. 27:9.
୪. ଏହି ଲେଖାରେ ଆମେ କʼଣ ଆଲୋଚନା କରିବା ?
୪ इस लेख में हम चार सवालों पर चर्चा करेंगे। (1) सलाह देने की सही वजह क्या होनी चाहिए? (2) क्या सलाह देना वाकई ज़रूरी है? (3) सलाह कौन देगा? (4) अच्छी तरह सलाह देने के लिए हमें क्या करना होगा?
ପରାମର୍ଶ ଦେବାର ସଠିକ୍ କାରଣ କʼଣ ହେବା ଉଚିତ୍ ?
୫. ପରାମର୍ଶ ଦେବା ପୂର୍ବରୁ ପ୍ରାଚୀନମାନେ କʼଣ କରିବା ଉଚିତ୍ ? (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୩:୪, ୭)
୫ प्राचीन, भाई-बहनों से प्यार करते हैं। और कभी-कभी इसी प्यार की वजह से वे किसी ऐसे भाई या बहन को सलाह देते हैं, जो गलत कदम उठानेवाला है। (गला. 6:1) लेकिन सलाह देने से पहले प्राचीन क्या कर सकते हैं? वे प्यार के अलग-अलग पहलुओं के बारे में सोच सकते हैं, जिनका ज़िक्र प्रेषित पौलुस ने किया था। उसने कहा, “प्यार सब्र रखता है और कृपा करता है। . . . यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज से सह लेता है।” (1 कुरिंथियों 13:4, 7 पढ़िए।) अगर प्राचीन इन आयतों पर गहराई से सोचेंगे, तो वे भाई-बहनों को प्यार से सलाह दे पाएँगे। और जब भाई बहन महसूस करेंगे कि प्राचीन उनसे प्यार करते हैं, तो वे उनकी सलाह मान पाएँगे।—रोमि. 12:10.
୬. ପ୍ରେରିତ ପାଉଲଙ୍କଠାରୁ ପ୍ରାଚୀନମାନେ କʼଣ ଶିଖିପାରିବେ ?
୬ सलाह देने के मामले में प्राचीन, प्रेषित पौलुस से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब पौलुस को पता चला कि थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को सलाह की ज़रूरत है, तो उसने उन्हें चिट्ठियाँ लिखकर सलाह दी। लेकिन सलाह देने से पहले, उसने उनकी तारीफ की। उसने कहा कि वे विश्वासयोग्य रहकर सेवा करते हैं, प्यार से कड़ी मेहनत करते हैं और धीरज धरते हैं। पौलुस ने यह भी लिखा कि वह उनके हालात समझता है और जानता है कि ज़ुल्मों और मुश्किलों की वजह से उनकी ज़िंदगी आसान नहीं है। (1 थिस्स. 1:3; 2 थिस्स. 1:4) उसने यह भी कहा कि वे दूसरे भाई-बहनों के लिए अच्छी मिसाल हैं। (1 थिस्स. 1:8, 9) ज़रा सोचिए, पौलुस की ये सारी बातें पढ़कर उन्हें कितनी खुशी हुई होगी! उन्हें यकीन हुआ होगा कि वह उनसे बहुत प्यार करता है। इसलिए जब पौलुस ने अपनी दोनों चिट्ठियों में उन्हें सलाह दी, तो वे उसे मान पाए।—1 थिस्स. 4:1, 3-5, 11; 2 थिस्स. 3:11, 12.
୭. ଯେତେବେଳେ କିଛି ଲୋକମାନଙ୍କୁ ପରାମର୍ଶ ଦିଆଯାଏ, ସେମାନଙ୍କୁ କାହିଁକି ଦୁଃଖ ଲାଗେ ?
୭ अगर सलाह प्यार से न दी जाए, तो क्या हो सकता है? एक अनुभवी प्राचीन कहता है, “कुछ लोग सलाह मिलने पर बुरा मान जाते हैं। इसलिए नहीं कि सलाह गलत थी, बल्कि इसलिए कि वह प्यार से नहीं दी गयी।” इससे हम क्या सीखते हैं? अगर हम चाहते हैं कि दूसरे हमारी सलाह मानें, तो हमें चिढ़कर नहीं बल्कि प्यार से सलाह देनी चाहिए।
କʼଣ ପରାମର୍ଶ ଦେବା ପ୍ରକୃତରେ ଜରୁରୀ ଅଟେ ?
୮. ପରାମର୍ଶ ଦେବା ପୂର୍ବରୁ ଜଣେ ପ୍ରାଚୀନ ନିଜକୁ କʼଣ ପଚାରିବା ଉଚିତ୍ ?
୮ बाइबल में लिखा है कि हम “बोलने में उतावली” न करें। (नीति. 29:20) हरेक प्राचीन को यह सिद्धांत मानना चाहिए। सलाह देने में जल्दबाज़ी करने के बजाय, उसे पहले खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या उस भाई या बहन को सलाह देना वाकई ज़रूरी है? क्या यह बात पक्की है कि वह कुछ गलत कर रहा है? क्या उसने बाइबल का कोई नियम तोड़ा है या बस कुछ ऐसा किया है, जो मैं नहीं करता?’ अगर उसे पक्का नहीं है कि उस भाई या बहन को सलाह देना सही होगा या नहीं, तो उसे दूसरे प्राचीन से बात करनी चाहिए। उसे उससे पूछना चाहिए कि क्या उसे भी लगता है कि उस भाई या बहन ने कुछ गलत किया है और उसे सलाह देने की ज़रूरत है।—2 तीमु. 3:16, 17.
୯. କପଡ଼ା ଓ ସଜେଇ ହେବା ମାମଲାରେ ପରାମର୍ଶ ଦେବା ବିଷୟରେ ଆମେ ପାଉଲଙ୍କଠାରୁ କʼଣ ଶିଖୁ ? (୧ ତୀମଥି ୨:୯, ୧୦)
୯ यह बात समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। मान लीजिए कि एक प्राचीन को लगता है कि किसी भाई या बहन का पहनावा या सजने-सँवरने का तरीका ठीक नहीं है। ऐसे में प्राचीन खुद से पूछ सकता है, ‘क्या उसने इस मामले में बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ काम किया है?’ वह ध्यान रखेगा कि वह अपने मन से सलाह न दे। इसलिए वह किसी दूसरे प्राचीन से या किसी अनुभवी भाई या बहन से पूछ सकता है। वे साथ मिलकर पौलुस की सलाह पर चर्चा कर सकते हैं। (1 तीमुथियुस 2:9, 10 पढ़िए।) पौलुस ने मसीहियों के लिए नियम नहीं बनाए कि उन्हें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए और किस तरह के नहीं। क्योंकि वह जानता था कि भाई-बहन बाइबल के सिद्धांत मानते हुए अपनी पसंद के कपड़े पहन सकते हैं। उसने बस इतना बताया कि उन्हें सोच-समझकर कपड़े चुनने चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि उनसे यहोवा की बदनामी न हो। प्राचीनों को इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर तय करना चाहिए कि पहनावे और सजने-सँवरने के मामले में किसी को सलाह देनी चाहिए या नहीं।
୧୦. ଆମେ କେଉଁ କଥା ମନେ ରଖିବା ଉଚିତ୍ ?
୧୦ हमें याद रखना चाहिए कि किसी मामले में दो भाई अलग-अलग फैसले ले सकते हैं और दोनों का फैसला सही हो सकता है। इसलिए हमें भाई-बहनों पर अपनी राय नहीं थोपनी चाहिए। हमें उन्हें यह नहीं बताना चाहिए कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं।—रोमि. 14:10.
କିଏ ପରାମର୍ଶ ଦେବେ ?
୧୧-୧୨. ଯଦି ପରାମର୍ଶ ଦେବା ଜରୁରୀ, ତେବେ ଜଣେ ପ୍ରାଚୀନ ନିଜକୁ କେଉଁ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚାରିବା ଉଚିତ୍ ଏବଂ କାହିଁକି ?
୧୧ अगर यह बात पक्की हो जाए कि किसी भाई या बहन को सलाह देना ज़रूरी है, तो फिर सवाल उठता है कि कौन उसे सलाह देगा। किसी शादीशुदा बहन या बच्चे को सलाह देने से पहले, एक प्राचीन उसके परिवार के मुखिया से बात करेगा। शायद परिवार का मुखिया कहे कि वह खुद उससे बात करेगा। b या शायद वह कहे कि जब प्राचीन सलाह देगा, तो वह भी साथ रहना चाहेगा। और अगर किसी जवान बहन को सलाह देने की ज़रूरत है, तो कुछ मामलों में अच्छा होगा कि एक बुज़ुर्ग बहन उससे बात करे, जैसे पैराग्राफ 3 में बताया गया है।
୧୨ सलाह देने से पहले प्राचीनों को एक और बात का ध्यान रखना चाहिए। एक प्राचीन खुद से पूछ सकता है, ‘क्या मेरा सलाह देना ठीक रहेगा या अच्छा होगा कि कोई और प्राचीन उसे सलाह दे?’ उदाहरण के लिए, हो सकता है कि कोई भाई बहुत निराश हो, वह खुद को किसी लायक न समझता हो। तब अच्छा होगा कि एक ऐसा प्राचीन उसे सलाह दे, जो इसी तरह की भावनाओं से गुज़र चुका हो। वह उस व्यक्ति के हालात अच्छी तरह समझ पाएगा और ज़्यादा अच्छी तरह से उसे सलाह दे पाएगा। लेकिन अगर प्राचीनों में से कोई भी भाई-बहनों के जैसे हालात से न गुज़रा हो, तो उन्हें क्या करना चाहिए? उन्हें याद रखना चाहिए कि भाई-बहनों को हौसला देने की और उन्हें सलाह देने की ज़िम्मेदारी सभी प्राचीनों की है। इसलिए उन्हें ज़रूरत पड़ने पर भाई-बहनों को सलाह देनी चाहिए।
ଭଲଭାବେ ପରାମର୍ଶ ଦେବା ପାଇଁ ଆମକୁ କʼଣ କରିବାକୁ ହେବ ?
୧୩-୧୪. ପ୍ରାଚୀନମାନଙ୍କୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ କଥା ଧ୍ୟାନ ଦେଇ କାହିଁକି ଶୁଣିବା ଉଚିତ୍ ?
୧୩ ध्यान से सुनिए। सलाह देने की तैयारी करते वक्त, एक प्राचीन को खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं अपने भाई के हालात के बारे में कितना जानता हूँ? उसकी ज़िंदगी में सब कैसा चल रहा है? क्या वह किसी ऐसी मुश्किल का सामना कर रहा है, जो मुझे नहीं पता? अभी उसे सबसे ज़्यादा किस तरह की मदद चाहिए होगी?’
୧୪ याकूब 1:19 में दिया सिद्धांत सभी सलाह देनेवालों पर लागू होता है। याकूब ने लिखा, “हर कोई सुनने में फुर्ती करे, बोलने में उतावली न करे और गुस्सा करने में जल्दबाज़ी न करे।” शायद एक प्राचीन को लगे कि उसे भाई-बहनों के बारे में सब पता है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? नीतिवचन 18:13 में लिखा है, “जो सुनने से पहले ही जवाब देता है, वह मूर्खता का काम करता है और अपनी बेइज़्ज़ती कराता है।” किसी व्यक्ति के हालात के बारे में जानने का सबसे अच्छा तरीका है, सीधे उसी से पूछना। इसलिए प्राचीनों को कुछ भी बोलने से पहले ध्यान से सुनना चाहिए। याद कीजिए कि लेख की शुरूआत में बताए प्राचीन ने क्या कहा। उसे एहसास हुआ कि अपनी बात कहने से पहले उसे बहन से इस तरह के सवाल करने थे, “सब कैसा चल रहा है?” “मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूँ?” अगर प्राचीन वक्त निकालकर भाई-बहनों के हालात जानने की कोशिश करें, तो वे ज़्यादा अच्छी तरह उनकी मदद कर पाएँगे और उनका हौसला बढ़ा पाएँगे।
୧୫. ପ୍ରାଚୀନମାନେ, ହିତୋପଦେଶ ୨୭:୨୩ ପଦରେ ଦିଆଯାଇଥିବା ସିଦ୍ଧାନ୍ତକୁ କିପରି ମାନିପାରିବେ ?
୧୫ भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए। जैसे इस लेख की शुरूआत में समझाया गया, अच्छी तरह सलाह देने के लिए कुछ आयतें दिखाना या कुछ सुझाव देना काफी नहीं है। प्राचीनों को भाई-बहनों को यह भी महसूस कराना है कि वे भाई-बहनों की परवाह करते हैं, उनके हालात समझते हैं और उनकी मदद करना चाहते हैं। (नीतिवचन 27:23 पढ़िए।) इसलिए प्राचीनों को भाई-बहनों के अच्छे दोस्त बनने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
୧୬. ଭଲଭାବେ ପରାମର୍ଶ ଦେବା ପାଇଁ ପ୍ରାଚୀନମାନଙ୍କୁ କʼଣ କରିବାକୁ ହେବ ?
୧୬ प्राचीनों को ध्यान रखना चाहिए कि भाई-बहनों को ऐसा न लगे कि प्राचीन उनसे सिर्फ तभी बात करते हैं, जब उनसे कोई गलती हो गयी हो। इसके बजाय, उन्हें समय-समय पर भाई-बहनों से खुलकर बात करनी चाहिए, खासकर तब जब वे किसी मुश्किल का सामना कर रहे हों। एक अनुभवी प्राचीन कहता है, “ऐसा करने से आप उनके अच्छे दोस्त बन पाएँगे। और अगर ज़रूरत पड़े, तो आप उन्हें आसानी से सलाह दे पाएँगे।” यही नहीं, भाई-बहनों को भी प्राचीनों की सलाह मानना आसान लगेगा।
୧୭. ଜଣେ ପ୍ରାଚୀନଙ୍କୁ ବିଷେଶ କରି କେବେ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ଧରିବା ଉଚିତ୍ ଏବଂ ଦୟା କରିବା ଉଚିତ୍ ?
୧୭ सब्र रखिए और कृपा कीजिए। ऐसा करना तब और भी ज़रूरी है, जब कोई सलाह मानने से इनकार कर देता है। अगर किसी व्यक्ति को सलाह दी जाती है और वह फौरन नहीं मानता, तो एक प्राचीन को ध्यान रखना चाहिए कि अपना आपा न खो बैठे। उसे यीशु की तरह बनना चाहिए, जिसके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी, “वह कुचले हुए नरकट को नहीं कुचलेगा, न ही टिमटिमाती बाती को बुझाएगा।” (मत्ती 12:20) वह अकेले में प्रार्थना कर सकता है कि यहोवा उस भाई या बहन की मदद करे, ताकि वह समझ पाए कि उसे सलाह क्यों दी गयी है और उसे मान पाए। कुछ भाई-बहनों को सलाह मानने में वक्त लग सकता है। इसलिए अगर प्राचीन सब्र रखें और इस तरह बात करें जिससे कृपा ज़ाहिर हो, तो दूसरे आसानी से सलाह मान पाएँगे। यही नहीं, प्राचीनों को हमेशा बाइबल से सलाह देनी चाहिए।
୧୮. (କ) ପରାମର୍ଶ ଦେବା ବିଷୟରେ ଆମେ କେଉଁ କଥାଗୁଡ଼ିକ ମନେ ରଖିବା ଉଚିତ୍ ? (ଖ) ବକ୍ସ ସହିତ ଦିଆଯାଇଥିବା ଚିତ୍ରରେ ପିତାମାତା କʼଣ କଥା ହେଉଛନ୍ତି ?
୧୮ अपनी गलतियों से सीखिए। हम सब अपरिपूर्ण हैं, इसलिए हम इस लेख में दिए सुझाव पूरी तरह नहीं मान पाएँगे। (याकू. 3:2) हमसे गलतियाँ होंगी। हो सकता है कि हम कुछ ऐसा कर बैठें या कह दें, जिससे भाई-बहनों को ठेस पहुँचे। पर हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और भाई-बहनों से प्यार करना चाहिए। अगर वे हमारा प्यार महसूस करेंगे, तो वे हमारी गलतियाँ माफ कर पाएँगे।—“ माता-पिताओं के लिए” बक्स पर भी ध्यान दें।
ଆମେ କʼଣ ଶିଖିଲୁ ?
୧୯. ଆମେ କʼଣ କରିବା ଉଚିତ୍, ଯାହାଫଳରେ ଭାଇଭଉଣୀମାନେ ଖୁସି ହେବେ ?
୧୯ जैसा हमने इस लेख से सीखा, अच्छी तरह सलाह देना आसान नहीं है। हम सब अपरिपूर्ण हैं और हमारे भाई-बहन भी अपरिपूर्ण हैं। इसलिए इस लेख में बतायी बातें याद रखना अच्छा होगा। जैसे, हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम सही वजह से भाई-बहनों को सलाह दें। सलाह देने से पहले हमें पक्का करना चाहिए कि क्या सलाह देना वाकई ज़रूरी है और सलाह देने के लिए कौन ठीक रहेगा। हमें उनके हालात भी समझने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए हमें उनसे सवाल करने चाहिए और उनकी ध्यान से सुननी चाहिए। हमें भाई-बहनों के अच्छे दोस्त बनना चाहिए और उनसे प्यार से पेश आना चाहिए। याद रखिए, हम यही चाहते हैं कि हमारी सलाह से भाई-बहनों को न सिर्फ फायदा हो बल्कि उनका ‘मन भी खुश हो।’—नीति. 27:9.
ଗୀତ ୧୦୩ चरवाहे, आदमियों के रूप में तोहफे
a दूसरों को सलाह देना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन अगर हमें सलाह देनी पड़े, तो हम यह कैसे कर सकते हैं जिससे दूसरों का हौसला बढ़े और उन्हें फायदा हो? इस लेख से खासकर प्राचीनों को मदद मिलेगी कि वे इस तरीके से सलाह दें, जिससे भाई-बहन उनकी सुनें और मानें।
b फरवरी 2021 की प्रहरीदुर्ग में लेख, “मंडली में प्राचीनों को क्या अधिकार दिया गया है?” पढ़ें।